पहले भी पत्रकारों के सवालों से घिरते रहे हैं राजीव शुक्‍ला

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राजीव शुक्‍ला पहली बार किसी पत्रकार के लपेटे में नहीं फंसे हैं. वे अक्सर फंसते रहते हैं. पत्रकार से मंत्री बने राजीव शुक्‍ला इसके पहले भी कई बार अपनी आदतों के चलते उलझ चुके हैं. कानपुर से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले राजीव शुक्‍ला को बहुत पहले ही यह बात समझ में आ गई था कि नेताओं से सामान्‍य संबंध बनाने से नहीं, निजी संबंध बनाने से ज्यादा फायदा होता है.

कहा जाता है कि अपने शुरुआती दौर से ही उन्‍होंने याज्ञवल्‍क्‍य का संबंध सूत्र याद कर लिया था, जिसमें आदान-प्रदान और दोनों की सुविधा का ख्‍याल रखने की बात कही गई है. राजीव ने पहले ही समझ लिया था कि खुद को राजनीतिक परिवेश में धीरे धीरे रूपांतरित कर लेना चाहिए. उन्‍होंने अपने संबंध एनडीए के साथ तो बनाए ही, यूपीए के साथ भी उनके संबंध वैसे ही अच्‍छे और घनिष्‍ठ रहे.

भाजपा और सहयोगी दलों के सहारे जीत कर राज्‍यसभा सांसद बने राजीव शुक्‍ला ने जितना बीजेपी को साधा, उतना ही कांग्रेस पर भी निशाना लगाये रखा. तभी तो कांग्रेस में शामिल करने के लिए जब उन्‍हें अहमद पटेल प्रेस के सामने लाए और बोलते-बोलते ये सच बोल गए कि राजीव शुक्‍ला भले ही शारीरिक तौर पर एनडीए के साथ रहे हों परन्‍तु दिल से वे हमेशा कांग्रेस के साथ रहे, यह सुनकर वहां मौजूद हर शख्‍स उनका चेहरा देखने लगा.

उसी समय आजतक के एक संवाददाता ने राजीव शुक्‍ला से सवाल किया था कि यह तो किसी के चरित्र पर सबसे बड़ा आक्षेप और लांछन है कि वो जाहिरा तौर पर किसी के साथ है और दिल से किसी और के साथ. इस सवाल पर वहां मौजूद पत्रकारों ने जमकर ठहाका लगाया था. अहमद पटेल को तो इस सवाल का कोई जवाब नहीं सूझा पर राजीव शुक्‍ला भी अपनी झेंप मिटाने के लिए बस मुस्‍करा कर रह गए थे. वैसे भी राजीव शुक्‍ला के बारे में कहा जाता है कि वे होते कहीं और हैं तथा अपने हित के लिए करते कुछ और हैं.

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