नए साल के मौके पर मैंने मीडिया के कई वरिष्ठों और कुछ संभावनाशील दोस्तों-कनिष्ठों को एक मेल भेजा. मेल में ये लिखा था… ”विषय: पुराने नए साल के संधिकाल में आपसे एक अनुरोध, आदरणीय, आपसे अनुरोध है कि बीत रहे साल और आने वाले नए साल को लेकर कुछ सोचें और लिखें. विषय मैं सुझा रहा हूं. बीत रहे साल में सबसे ज्यादा खुशी (उम्मीद, आशा, सकारात्मकता) और सबसे ज्यादा निराशा (अवसाद, अकेलापन, तनाव, नाउम्मीदी) किस चीज से मिली आपको. आने वाले साल में आप वो क्या कुछ करना चाहेंगे जो अब तक नहीं कर पाए, या नए साल में आप निजी और सार्वजनिक जीवन में क्या कुछ करना चाहेंगे. और आखिरी चीज, आपको इन दिनों किस चीज से मोहब्बत है और किससे नफरत है. जीवन के अकारथ बीतने का भाव कितना गहरा या हलका है मन में. क्या कुछ करने की खुशी है जो आपको जीवट बनाती है.
बीत रहे साल और नए साल के शुरुआत तक उपरोक्त सवालों पर निकले आपके जवाबों को प्रकाशित किया जाएगा. आपके अलावा कई और लोगों को ये सवाल भेज रहा हूं, इस तरह एक सीरिज प्लान हो जाएगी लेकिन इस सीरिज से हमारे पाठक तभी जुड़ पाएंगे जब आप उपरोक्त सवालों के जवाब बेहद ईमानदारी और निजता के साथ लिखेंगे, बिना यह परवाह किए कि कोई क्या सोचेगा. उम्मीद करता हूं कि सदा की तरह आपका सहयोग मिलेगा और इसी बहाने आपके मन में दबी छुपी भावना व सोच प्रकट होगी, सकारात्मक भड़ास के रूप में. अपना जवाब आप मेरे इसी पर्सनल मेल पर भेजें. साथ में आपकी कोई ऐसी तस्वीर जो रुटीन से अलग हो, जिसमें कोई सीन हो, कोई भावना हो, कोई परिदृश्य हो, या परिवार हो या दार्शनिकता हो या एकाकीपन हो या उल्लास हो या निराशा हो, जो आप पसंद करें. आप जो भी लिखेंगे, उसे बिना कांटछांट के प्रकाशित किया जाएगा. आभार. -यशवंत”
इस मेल के जवाब में पांच लोगों ने जवाबी मेल भेजा- ”मैं लिखूंगा, जल्दी भेजता हूं”. पर अभी तक सिर्फ एक सज्जन ने सुझाए गए सब्जेक्ट पर लिखकर भेजा है. वे हैं वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार विष्णु नागर. मुझे खुशी है और गर्व भी, विष्णु नागर जी ने इन सवालों का जवाब न सिर्फ लिखकर भेजा, बल्कि पूरे मन और दिल से लिखा है. उनकी एक लाइन मेरे दिल को छू गई, वो ये है- ”चोरों और डाकुओं ने अपने लंबे पंजे हर तरफ गाड़ रखे हैं और मुश्किल यह है कि उन्हें चोर-डाकू कहना भी मुश्किल है क्योंकि वे इतने सुसभ्य, अंग्रेजीदां और प्रभावशाली लगते हैं कि ऐसा शब्द इस्तेमाल करते हुए अन्याय कर रहे हैं, ऐसा लगने लगता है.” विष्णु जी के लिखे को अगली पोस्ट में प्रकाशित करा रहा हूं, साथ में अपील उन पत्रकार साथियों से भी हैं, जो उपरोक्त विषय पर लिखने को इच्छुक हैं. आपका स्वागत है और आप मुझे लिखकर मेल करिए. जरूर प्रकाशित किया जाएगा.
हां, इस विषय पर अब तक मिले कम रिस्पांस से ये लगने लगा है कि मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी और पत्रकार अपने आरामतलब खोल से परे ऐसा कुछ नहीं करना-कहना चाहते जिससे उनके खोल में कोई खलल पड़े. सो, वह बोलने-लिखने में बहुत चूजी हो गये हैं या होते हैं, लाभ-हानि के गणित से संचालित. ऐसा मुझे लगता है. संभव है मैं गलत होऊं.
अगर उपरोक्त विषय पर किसी और साथी का लिखा अगले कुछ एक दिन में मिलता है तो उसे भी प्रकाशित किया जाएगा. और, जिन तक ये निमंत्रण न पहुंचा हो, लिखने का, वे इस पोस्ट को निमंत्रण ही मानें और सुझाए गए विषय पर लिख भेजें, अपनी तस्वीर के साथ.
आभार
यशवंत
एडिटर
भड़ास4मीडिया
संपर्क : yashwant@bhadas4media.com
Comments on “पुराने नए साल के संधिकाल में आपसे एक अनुरोध”
आप गलत नहीं सही हैं। यह भारत का मध्यम वर्ग है , महापाखंडी। दुसरों की निजता को पढकर उपहास उडाने वाला।