: कांट्रैक्ट रीन्यू न करने का फरमान :हिंदी पट्टी में इंडिया टुडे मैग्जीन के पर्याय बन चुके वरिष्ठ पत्रकार फरजंद अहमद के बारे में खबर मिल रही है कि संस्थान अब उन्हें एक्सटेंशन देने से मना कर रहा है. संभवतः 30 अप्रैल के बाद फरजंद अहमद इंडिया टुडे के साथ नहीं रहेंगे. सूत्रों के मुताबिक इंडिया टुडे में एमजे अकबर के आने के बाद से पुराने लोगों की विदाई का सिलसिला तेज हुआ है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कई लोगों को इंडिया टुडे से कार्यमुक्त किया जा चुका है.
पर फरजंद अहमद के साथ भी संस्थान ऐसा सुलूक करेगा, यह किसी को उम्मीद न थी. पहले बिहार और फिर यूपी में अपनी लेखनी के जरिए इंडिया टुडे की खास पहचान बनाने वाले फरजंद अहमद अपने सादगीपूर्ण जीवन और सरोकारी पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं. बताया जाता है कि प्रबंधन ने फरजंद अहमद को इतना मौका भी नहीं दिया है कि वे कहीं वैकल्पिक व्यवस्था कर सकें. इसके पीछे भी इंडिया टुडे प्रबंधन की एक खास चाल है. पिछले साल जब सभी लोगों के कांट्रैक्ट को रीन्यू किया गया तो उसमें से चुपके से वो वाला पार्ट हटा दिया गया जिसमें लिखा रहता है कि संस्थान या सामने वाला व्यक्ति, दोनों में से जो भी चाहे, तीन महीने पहले एक दूसरे को सूचित कर एक दूसरे से अलग हो सकता है. नई व्यवस्था में यह कर दिया गया है कि अगर कांट्रैक्ट रीन्यू नहीं होता है तो यह समझा जाए कि नौकरी गई.
सूत्रों के मुताबिक फरजंद अहमद को कांट्रैक्ट रीन्यू न किए जाने के बारे में जानकारी तब दी गई जब उन्होंने खुद अपनी तरफ से कई बार जानने-पता करने का प्रयास किया. उन दिनों जब फरजंद अहमद के पास दर्जन भर आफर दूसरे संस्थानों से हुआ करते थे, तब उन्होंने इंडिया टुडे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाते हुए कहीं और जाने से मना कर दिया था लेकिन संस्थान ने बदले में बेहद तंगदिली दिखाते हुए बिना बताए चुपके से उनका साथ छोड़ने का फैसला कर लिया. इस देश में मीडिया संस्थानो की बेरुखी और क्रूरता के लाखों किस्से में फरजंद अहमद का प्रकरण भी जुड़ गया है. इससे खासकर उन लोगों को होशियार हो जाना चाहिए जो अपने अपने संस्थानों के लिए जी-जान लगाकर काम करते हैं और अपने परिवार व अपने निजी जीवन की बलि चढ़ा देते हैं. ऐसे लोगों को जब अचानक पता चलता है कि उनके संस्थान ने बेहद क्रूरता के साथ उनसे अचानक नाता तोड़ने का फैसला कर लिया है तो वे कहीं के नहीं होते.
फरजंद अहमद के बारे में जानकारी मिली है कि वे पहले इंडिया टुडे के परमानेंट इंप्लाई के रूप में काम करते थे. इंडिया टुडे प्रबंधन ने 2001 में एक स्कीम शुरू की जिसमें कहा गया कि लोग चाहें तो फंड वगैरह अपना लेकर बढ़ी हुई सेलरी पर कनसलेंट बन सकते हैं. फरजंद अहमद ने फंड वगैरह का पूरा पैसा मिलते देख कनसलटेंट होने का फैसला कर लिया. अगर उन्हें आर्थिक दिक्कत न होती तो शायद वे कनसलटेंट होने का विकल्प नहीं चुनते. जो भी हो, लेकिन फरजंद अहमद के साथ इंडिया टुडे प्रबंधन ने जो सुलूक किया है, उसे कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता और मीडिया संगठनों, खासकर यूपी के पत्रकार संगठनों को इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाना चाहिए.
जो भी नौकरी कहीं करता है, उसे एक दिन वहां से विदा होना ही पड़ता है लेकिन सवाल विदाई के तरीके का है. खासकर उन लोगों के साथ जिन्होंने अपने जीवन के कीमती समय को किसी संस्थान के साथ होम किया हो. उन्हें अगर संस्थान इज्जत और सहमति के साथ विदा नहीं करता, दुखी करके विदा करता है तो इसकी आह देर सबेर संस्थानों पर लगेगी ही, यह तय है, भले कोई माने या न माने. उपर वाले की लाठी जब पड़ती है तब आवाज नहीं होती. यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में इंडिया टुडे समेत पूरे टीवी टुडे ग्रुप की साख को जबरदस्त बट्टा लगा है.
Comments on “फरजंद अहमद के साथ इंडिया टुडे मैनेजमेंट ने अच्छा सुलूक नहीं किया”
इंडिया टुडे में अब पहले वाली बात नहीं है.राजस्थान में तो इसके प्रमुख खुल कर सरकारी भवनों को बनाने के ठेके लेते है और माल काट रहे है.विस्मय तो ये है कि स्वयं पत्रकार अपने परिजन के नाम से ठेके लेते है.कोई अफसर और मंत्री मदद नहीं करे या काम नहीं दे तो अगला अंक उनको समर्प्रित हो जाता है.इतनी बड़ी पत्रिका और पत्रकार टेंडर की कोपी लिए दफ्तर दफ्तर घूम रहा है.सारे ठेकेदार परेसान क्या करे.अभी पुलिस अकादमी के भवन में ठेके को लेकर जमकर पत्रकार नाराज है.अफसर परेसान है .क्योंकि ठेका दिया तो सरकार तंग करेगी.क्योंकि पत्रकार पिछली सरकार के प्रिय थे.ना दिया तो पत्रकार बिना मतलब खाट खड़ी करेगा.
Farchand Ahmed is one of the most reputed Indian journalists. Such kind of treatment meted out to him is really castigated in severe terms. F Ahmed is a symbol of impartial journalism. This is the reason that he is respected by all politicians across political spectrum.
Even Bihar CM Nitish Kumar had applauded his journalistic caliber in public meeting. Many times Lalu Yadav applauded him.
In later course Indian Today will miss him. Like The Hindustan Dainik is missing Arun Ashesh, Pradip Saurabh & others.
Abhay Kumar
09031792498
Dear editor: Your write-up has hurt my feelings. You have written many unfounded facts just to sensationalise my relationship with India Today. Fair journalism demands that you should have checked facts with me. I have completed 30 years with India Today and retirement is normal process. I hv been treated well and continue to enjoy best of relations with my editors & collegues. No individual; is greater than an institition. You shouldn’t have run this kind of report without taking my version. This is slanderous and you must withdraw it.
Hope in bid to maintain credibity of your site you must avoid this kind of writing.
Thanking you
Farzand Ahmed
Dear Farzand Sahab.
I think this report published on Bhadas is written with good intention. I found nothing slanderous.
May be, you are too much owed to India Today but there is no particular group, in fact, most newspaper & magazine owners (managements) treat the journalists in unprofessional way.
I think you should see Yashwant’s spirit.