बीबीसी हिंदी रेडियो सर्विस को साल भर के लिए जीवनदान

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: इस एक साल में निजी पूंजी के जरिए रेडियो सर्विस के खर्चे वहन करने की संभावना तलाशी जाएगी : बीबीसी प्रबंधन ने पिछले दिनों बीबीसी हिंदी रेडियो सर्विस समेत कई भाषाओं की रेडियो सर्विसों को बंद करने का जो ऐलान किया था, उसमें अब संशोधन किया है. हिंदी रेडियो सर्विस को एक साल के लिए जीवनदान दे दिया गया है. लेकिन इस एक साल के जीवनदान में बीबीसी हिंदी रेडियो के सिर्फ शाम के सत्र को कांटीन्यू रखा जाएगा.

बीबीसी का कहना है कि बीबीसी हिंदी रेडियो सर्विस को लेकर भारत में हर तबके की तरफ से शुरू हुई बहस और हिंदी रेडियो सर्विस को जारी रखने की मांग को देखते हुए फैसला लिया गया है कि फिलहाल अगले एक साल तक इस रेडियो सर्विस के शाम के सत्र को जारी रखा जाएगा. यह शाम का सत्र पूरे एक घंटा का होता है जिसका प्रसारण भारत में पहले की तरह आगे भी होता रहेगा. यह रेडियो, मोबाइल और आनलाइन माध्यमों के जरिए उपलब्ध होगा. बीबीसी का यह भी कहना है कि कई कामर्शियल पार्टीज ने अल्टरनेट फंडिंग के लिए एप्रोच किया है और इनके प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि जनवरी महीने में बीबीसी प्रबंधन ने हिंदी समेत कई भाषाओं की रेडियो सर्विस को बंद करने का ऐलान कर दिया था. इनकी बंदी की तारीख मार्च अंत तय की गई थी. इस बीच हिंदी रेडियो सर्विस बंद किए जाने के फैसले के खिलाफ भारत के कई बड़े पत्रकारों, साहित्यकारों व बुद्धिजीवियों ने संयुक्त रूप से बीबीसी प्रबंधन को पत्र भेजकर इस हिंदी सर्विस को जारी रखने की मांग की थी. बीबीसी प्रबंधन ने चहुंओर उठती मांग को देखते हुए हिंदी रेडियो सर्विस को अगले एक साल तक के लिए जीवन दान देने का फैसला कर लिया है. इस बारे में बीबीसी की तरफ से एक प्रेस रिलीज जारी की गई है.

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Comments on “बीबीसी हिंदी रेडियो सर्विस को साल भर के लिए जीवनदान

  • chandra kumar says:

    ye BBC ki hindi seva hai.-hindi ke liye ek achha prayas hai, redio ki pahuch sudur chetro me aaj bhi kayam hai, esse vichar manthan aur khuli bahas logo me chalti rahati hai.

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  • ganesh prasad jha says:

    पर इतना तो तय है कि इस तरह जो कुछ हमें आगे से इस नई व्यवस्था के तहत मिलेगा वह “हमारी पुरानी बीबीसी हिंदी सर्विस” तो जाहिर है नहीं ही होगी. बीबीसी हिंदी सेवा के जो पुराने सुननेवाले हैं उन्हें बखूबी याद होगा कि आज से 20-25 साल पहले जो बीबीसी हिंदी सेवा थी वह आज नहीं है. आगे जो होगी वह और पतली और कुछ ज्यादा कंप्रोमाइज्ड होगी. एसे में क्या फर्क और खासियत रह जाएगी देश की खबरें यहां के लोगों से सुनने की बजाय बीबीसी से सुनने में. वैसे भी पहले जब प्रसारण लंदन से होता था तो उसका एक खास टेस्ट और अंदाज था. दिल्ली के कनाट प्लेस से हो रहे प्रसारण में वह बात नहीं है. दरअसल, जब आप लंदन में बैठकर दुनिया को या उसके किसी एक देश को देखते हैं तो उसका अंदाज और जब आप किसी देश को उसकी ही राजधानी में बैठकर देख रहे होते हैं उसका अंदाज अलग-अलग होता है. दोनों के आउटपुट में काफी अंतर हो जाता है. पूरी सोच ही बदल सी जाती है जब आप लंदन में बैठकर अपने भारत को देखते हैं. आपकी निजी सोचने-समझने की क्षमता में बहुता भारी फर्क आ जाता है, आपका फलक यानी कैनवास बढ़ जाता है, और इस सबके साथ आफ खबरों को बहुत ही बढ़िया तरीके से एक अलग अंदाज में मांज सकते हैं जो दिल्ली में बैठकर कतई संभव नहीं है. उससे खबरों के प्रस्तुतिकरण को एक खास अंदाज मिलता है. अब न तो पहले वाले यानी पहले जैसे पत्रकार बीबीसी में रहे और न प्रस्तुति का वह अंदाज रहा. अब तो कुछ भी खास नहीं होता. हां, ले देकर साथी राजेश जोशी हैं पर वे अकेले कितना भाड़ झोंकेंगे. बाकी सब तो भरती की खबरें हैं. बीबीसी हिंदी सेवा तो अब राष्ट्रीय जैसा रहा नहीं, गली मुहल्ले की खबरें देनेवाला रेडियो बन गया है. कुछ ज्यादा ही लोकलाइज्ड हो गया है पिछले कुछ सालों से. इसी चक्कर में बर्बाद हो गया और मजा भी किरकिरा हो गया. नई पीढ़ी को क्या पता क्या होता है बीबीसी का मतलब. सवाल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाने का है जो पिछले कई सालों से नहीं हो रहा. भाई राजेश जोशी समझ रहे होंगे मेरी भावनाएं कि जैसे जनसत्ता अब जनसत्ता नहीं रहा वैसे ही बीबीसी हिंदी सर्विस अब बीबीसी नहीं रही. क्षमा याचना सहित,
    -गणेश प्रसाद झा

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