सोचिए, चैनल के संपादक लोग लाखों रुपये महीने सेलरी लेते हैं और उनके देश भर में फैले सैकड़ों स्ट्रिंगर एक-एक पैसे को तरसते हैं. इस विषमता, इस खाई, इस विरोधाभाष के कई नतीजे निकलते हैं. चैनलों की रीढ़ कहे जाने वाले स्ट्रिंगर मजबूरन ब्लैकमेलिंग के लिए प्रेरित होते हैं. या कह सकते हैं कि चैनल के लखटकिया संपादक लोग अपने स्ट्रिंगर को जान-बूझ कर ब्लैकमेलर बनने के लिए जमीन तैयार करते हैं.
समाज और देश में समता-समानता की बात करने वाले मीडिया के भीतर कितना भयंकर असंतोष है, कितना भयंकर शोषण है, यह जानने के लिए सिर्फ संपादक-स्ट्रिंगर की सेलरी की विवेचना कर लेना जरूरी है. महंगाई के इस दौर में ईमानदार स्ट्रिंगरों यानि ईमानदार हजारों टीवी जर्नलिस्टों को कितना मुश्किल जीवन जीना पड़ता है, इसका केवल अंदाजा लगाया जा सकता है. संपादक लोग मंचों से बड़ी बड़ी बात करते हैं, इसलिए भी कर पाते हैं क्योंकि उनका पेट भरा होता है, जेब फूला होता है, सो, सुंदर वचन बोलने में कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन जब उनसे उनके स्ट्रिंगरों के बारे सवाल किया जाता है तो वे इसका जवाब देने की जगह सवाल को ही टालने-इगनोर करने की कोशिश करते हैं.
पर कल बड़ा बढ़िया मौका रहा. दिल्ली के रफी मार्ग पर स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हाल में मंच पर केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के साथ-साथ हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशिशेखर, चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय, आज समाज अखबार के प्रधान संपादक राहुल देव, जी न्यूज के प्रधान संपादक सतीश के सिंह, वरिष्ठ और ओजस्वी पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी, एनडीटीवी के प्रबंध संपादक पंकज पचौरी आदि मौजूद थे. चार संपादकों के भाषण दे लेने के बाद अंबिका सोनी को बोलने का न्योता दिया गया. अंबिका सोनी को जो कहना था, उन्होंने कहा. उन्होंने भाषण खत्म किया, तालियां बजने लगीं तो मैं अचानक खड़ा हुआ और अपने मन में उमड़-घुमड़ रहे स्ट्रिंगरों के सेलरी स्ट्रक्चर वाले सवाल को उठा देने का निर्णय लिया.
मैंने कहा- ”मंत्री महोदया, मैडम, एक सवाल है मेरा, छोटा सा सवाल है….”. मेरे खड़ा होकर इतना कहते ही कई संपादकों के चेहरे भक हो गए. एक दो लोगों ने मुझे इशारा कर बैठने को कह दिया. मतलब, सवाल न पूछने का इशारा कर दिया. पर मैं बैठा नहीं और न ही संपादकों के तेवर से प्रभावित हुआ. मैंने अपना पूरा सवाल सामने रख दिया. मैंने पूछा- ”यहां बैठे प्रबंध संपादक लोग ग्यारह ग्यारह लाख रुपये महीने सेलरी लेते हैं पर इनके देश भर में फैले हजारों स्ट्रिंगर्स को धेला भर भी नहीं मिलता. ये संपादक अपने स्ट्रिंगरों को ब्लैकमेलर बनने के लिए मजबूर कर देते हैं, तो क्या यह करप्शन नहीं है.” यहां बताना जरूरी है कि उदयन शर्मा के जन्मदिन पर आयोजित सेमिनार का इस बार का विषय ”भ्रष्टाचार और मीडिया” था. सो, मेरा सवाल भ्रष्टाचार और मीडिया को लेकर तो था ही, मीडिया के अंदर के एक भयानक काले सच को उदघाटित करने वाला भी था और चैनलों की रीढ़ स्ट्रिंगर्स की व्यथा को सर्वोच्च सत्ता व सर्वोच्च संपादकों के कानों तक पहुंचाने वाला भी था.
अंबिका सोनी ने जवाब दिया. अपनी सीट पर बैठे-बैठे जवाब दिया. उन्होंने खुद को ”प्रो-स्ट्रिंगर” बताया. साथ ही टालने वाले अंदाज में मुझे जवाब दिया- ”तीस साल बाद जब आप संपादक हो जाएंगे तब इस सवाल को उठाइएगा तो मैं जवाब दूंगी.” अब अंबिका जी को कौन समझाए कि मैं तीस साल बाद नहीं, बल्कि तीन साल पहले से ही संपादक हूं, भले भड़ास4मीडिया का संपादक हूं. और, मैं चाहूंगा कि किसी हरामखोर के यहां नौकरी करने की जगह तीस साल बाद भी, जिंदा रहा तो, मैं भड़ास4मीडिया का ही संपादक बना रहूं. खैर, मेरा जो मकसद था सवाल उठाने का वो पूरा हो चुका था. स्ट्रिंगर्स की समस्या केंद्रीय मंत्री से लेकर संपादकों के कानों तक एक बार फिर पहुंचा दी गई. इन्हें थोड़ी भी शरम होगी तो ये संपादक अपने अपने स्ट्रिंगर्स के बेहतर जीवन के लिए सेलरी की निश्चित रकम निर्धारित करेंगे ताकि ईमानदार स्ट्रिंगर्स को अपने परिवार का पेट पालने के लिए दलाली या ब्लैकमेलिंग का सहारा न लेना पड़े.
मुझे संतोष हुआ कि मैं जो काम कर रहा हूं, मैं जिस मिशन पर चल रहा हूं, उसी के तहत मीडिया के एक बड़े तबके के हित से जुड़ा सवाल उठाया. वहां से लौटते हुए मुझे संतोष था कि आज का दिन मेरे लिए सार्थक रहा. आप अगर सुनना चाहते हैं कि मैंने किस तरह सवाल उठाया और अंबिका सोनी ने क्या जवाब दिया तो नीचे दिए गए आडियो प्लेयर पर क्लिक कर सुनें.
यशवंत सिंह
एडिटर, भड़ास4मीडिया
EK PATRKAAR
July 12, 2011 at 12:28 pm
AAPKA SAVAL BAHUT ACCHA THA YASHVANT BHAI.YE SAMPADAK LOG HI STRINGER KO PESE NA DE KAR UNHE DALALI KARNE KE LIYE MAJBOOR KARTE HAIN.THX
lovekesh kumar singh raghav
July 12, 2011 at 1:41 pm
bahut hi badiya kaam kiya yeshwant ji aap ko badhai………….or sadhuwaad
raj
July 12, 2011 at 3:38 pm
ambikaji ko sampadko aur maliko ko manana hai rijhana hai to we stingro aur chote patrkaro per nazare inayat kyo kare
Sukhwinder Singh
July 12, 2011 at 3:39 pm
Yashwant Ji ab to bhagwan hi malik hai iss vivastha ka Ambika ji Minister hote hoye bhi apni state mein media ko azaad nahin krva paayi hain. khuleaam illlegal channels chal rahe hain. chahe wo cable par ho ja phir satellite par. {ek wakeya yaad aa raha hai share kar leta hoon ” hum log punjab kahin pe baithe hoye the to waha kisi sajjan ne humse pochha k channel ki permission ke liye kya karna padta hai, hum channel lana chahte hain. iss se pehle k hum kuchh bol paate ek dosre mahapursh ne jabab de diya.” o g koi gal ni channel di permission taan mere dost ke uncle dete hain tusi kall chalo mere naal ludhiana te parso apna channel suru karlo” yeh hall hai punjab mein} jab ye bane huye code ko lagu nahin karwa pa rahe hain to aap ka sawaal to door ki kaudi ho gaya….jab unhe pata chala hoga k aap pehle se hi sampadak hain to sayad wo koi code banane ke baare mein soche….agar ban bhi gaya toh….. fir lagu hoga , hoga v k nahin…..
khair hum aapke iss kadam ki apne dil se sarahna karte hain aur aapke sath hain: Sukhwinder Singh 099888 12533.
Neeraj Bhushan
July 12, 2011 at 3:58 pm
Please Accept My Salute!
anil kumar
July 12, 2011 at 4:40 pm
यसवंत भाई. स्ट्रिंगर्स की मुख्य समस्या उठाने के लिए धन्यवाद ..लेकिन इस समस्या का समाधान इन सत्ता की कुर्सियों को पकड़कर अपना घर भरने वालो से करना बेमानी है . ये खुद भ्रस्ट है , स्ट्रिंगर्स को क्या न्याय दिलायेगे . रहा सवाल चैनल्स का तो अपने फायदे के लिए ये पत्रकारों को पत्रकार नहीं ..दलाल बनाने का काम बखूबी कर रहे है .क्योकि स्ट्रिंगर अपने घर का पैसा लगाकर पत्रकारिता को जीवित रखे है. यही हॉल रहा तो आने वाले वर्षो में पत्रकार नहीं दलाल भर्ती किये जायेगे .जो खबरे नहीं करेगे बल्कि दलाली करेगे .वैसे भी आज स्ट्रिगर अपना पेट नहीं भर पा रहा है .तो परिवार का भरण पोषण क्या करेगा . सोचकर दुःख होता है – कभी कभी तो लगता है की इससे तो अच्चा था कि हमारा देश गुलाम होता तो ज्यादा अच्छा था .कम से कम आज़ादी दिलाने वाले वीरो की कुर्बानी व्यर्थ तो न जाती …
रिंकू सिंह
July 12, 2011 at 5:02 pm
आपकी नीयत तो ठीक है परन्तु आप आत्म मुग्धता के शिकार लगते हैं।
Dhananjay Jha
July 12, 2011 at 8:08 pm
keep it up, you raise a honest question infront of minister, stringer situation is worst in channels/ newspapers and Top Bosses do not bother about this. keep it up, my BEST wishes with you, thnx
ravi kumer
July 13, 2011 at 4:35 am
यशवंत जी..बहुत खूब..जब आपने सवाल उठाया..मैं वहीं था।आपने देखा् होगा कि दरअसल ये प्रोग्राम इसलिए रखा गया था कि उदयन शर्मा फाउंडेशन के प्रति सरकार इसकी तरह दिलेर बनी रहे. ट्रस्ट को पैसा मिलता रहे..और कुछ पत्रकारों को हर महीने हजारों रुपए मिलते रहें..इसीलिए आपने देखा होगा कि अंबिका जी के मंच से जाते ही शशिशेखर,उदय शंकर,प्रसून वाजपेयी जैसे नौजवान और ओजस्वी संपादक खिसक लिए..ये वो पत्रकार हैं जो लाखों रुपए की सैलरी लेकर एसी कारों के शीशे से बाहर की दुनिया देखते हैं।विनोद अग्निहोत्री कौन है,,जवाब आलोक मेहता का चमचा।पुष्य प्रसून कौन है..जवाब है जिसने सहारा में कई पत्रकारों को परेशान किया।दाढ़ी रखे इस दार्शनिक पत्रकार से कोई पूछे कि ये खुद कितना पानी में है..स्टार इंडिया के सीईओ उदय शंकर अपने मातहतों को जलील करके किस प्रकार आगे बढ़े हैं..बताने की जरूरत नहीं है।शशिशेखर का अपने मातहतों के प्रति सलूक कैसा है..ये आप जानते हैं..लोग आज भी आगरा में शशिशेखर को गालीनवीस कहते हैं..एक से एक नूमने मंच पर बैठे थे..हां पंकज पचौरी पर ऐसा कोई आरोप नहीं है..आपने जिस प्रकार स्ट्रिंगरों का सवाल उठाया..शशिशेखर निकल भागे..अपने मातहतों क् प्रति इस इंसान का रवैया जानवरों जैसा रहा है।खैर आप इसी तरह दमित और शोषित पत्रकारों की आवाज उठाते रहिए..हम आपके साथ हैं
संगम पांडेय
July 13, 2011 at 5:17 am
अपनी दाल रोटी बचाए रखने को सिद्धांत की तरह मानने वाले इस युग में आपने ऐसी ऊंची महफिल में ऐसी आवाज उठाई, इसके लिए आपको खुद पर संतोष होता होगा, पर मुझे आप पर श्रद्धा होती है।
STRINGER
July 13, 2011 at 9:44 am
” हम स्ट्रिंगर की तरफ से यशवंत जी को तहे दिल से धन्यवाद ” मिडिया में रहकर भी हम अपनी आवाज़ सरकार तक नहीं पहुंचा पाए. लेकिन आपकी मेहरबानी से कम से कम यह बात सरकार के कानों तक गयी. अंजाम चाहे जो भी हो आगाज़ हुआ है तो इसका सफल परिणाम भी निकलेगा. वैसे भरे पेट संपादकों के मुंह से प्रवचन सुनना ऐसा लगता है जैसे किसी डकैत के मुंह से शिष्टाचार के बोल … हमारे लिए तो बस यशवंत भाई ही संपादक हैं… जो किसी का मुखपत्र नहीं और न ही किसी सत्ता या विपक्ष के बेड़ियों में जकड़े पत्रकार. धिक्कार है उन संपादकों पर जो स्ट्रिंगर की समस्या को उठाने के बजाये, उनको रोकते हैं जो इस सच्चाई को आगे लाना चाहता है.
एक बार फिर से यशवंत भाई… बहुत-बहुत शुक्रिया…:)
nkdiwan haridwar
July 17, 2011 at 6:46 am
Yashwant ji…. “Nakkarkhane main tootee hi sahi …. baji toh tootee …
aur aisi baji ki sitti pitti gum Javab dene walon ki…… shaabash!!!!
madhup
July 23, 2011 at 6:05 pm
this is very true and we r with u sir…congratulations..u r a brave editor…
shailesh kumar singh
August 3, 2011 at 3:38 pm
yashvant bhai aap soch bhi nahi skte ki mai aapke swal se kitna khush hun lekin aphsosh ki jis andaj me aapne ambika soni se swal kiya yesa aor koai sampadak nahi ker skta yashvant ji mere dil me aapke liye es samay jo ejjat hai sayad wo kbhi kisi sampadak ke liye jhi ho patrkaro ke liye aap ne ek lau jlane ka kam kiya hai
vimal
September 23, 2011 at 12:25 pm
bhaiya ek anna jab poori sarkaar ko hila sakta hai to kya bhadas4media hum stringro key liye aandolon nahi shru ker sakta..ek aawaz to uthaaye hum log aap key saat aa jaaye gey..
manjeet
October 16, 2011 at 6:30 pm
Thank you & a salute 2 u sir,.. 4 raising the question regarding the cause and solution of rotten roots of the fourth pillar of the Indian democracy in front of the Government as well as managers of Indian Journalism….u r a Genuine Journalist.
Abhinav Sharma
June 4, 2012 at 8:42 pm
Aaj ki channel or akhbaar ki patrakarita sirf blakmaling or Sadak pe ID bechne vali rah gayi hai, in mantriyon or media gharane ke baapon ko kon samjhaye ki patrakarita ise nahin kehte….. Yashvant ji ki patrakarita ke tarike se main bahut prabhavit hu