करप्शन विरोधी अभियान को न्यूज चैनलों के समर्थन से डरी सरकार ने निकाला डंडा

: लाइसेंस रिन्यूअल के फंडे को डंडे की तरह इस्तेमाल करने की रणनीति : काटजू ने नई नीति त्यागने की अपील की : केन्द्र सरकार ने न्यूज चैनलों पर अंकुश लगाने की तैयारी कर ली है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने न्यूज चैनलों के लिए जो नई गाइडलाइन जारी की है उसमें इन अंकुश का उल्लेख है. कहा गया है कि अगर कोई न्यूज चैनल पांच से अधिक बार न्यूज व विज्ञापन के लिए तय नियमावली का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

मेरा सवाल और अंबिका सोनी का जवाब, टेप सुनें

सोचिए, चैनल के संपादक लोग लाखों रुपये महीने सेलरी लेते हैं और उनके देश भर में फैले सैकड़ों स्ट्रिंगर एक-एक पैसे को तरसते हैं. इस विषमता, इस खाई, इस विरोधाभाष के कई नतीजे निकलते हैं. चैनलों की रीढ़ कहे जाने वाले स्ट्रिंगर मजबूरन ब्लैकमेलिंग के लिए प्रेरित होते हैं. या कह सकते हैं कि चैनल के लखटकिया संपादक लोग अपने स्ट्रिंगर को जान-बूझ कर ब्लैकमेलर बनने के लिए जमीन तैयार करते हैं.

पुण्य प्रसून का ओजस्वी भाषण, यशवंत का मंत्री से दमदार सवाल

: पुण्य बोले- इस सभागार में उदयन शर्मा या एसपी या राजेन्द्र माथुर होते तो संपादकों के वक्तव्य सुनने के बाद उठकर चले जाते : यशवंत ने अंबिका सोनी के समक्ष स्ट्रिंगरों का मुद्दा उठाया- लाखों रुपये लेने वाले संपादकों नहीं देते अपने स्ट्रिंगरों को पैसे : मीडिया की दयनीय दशा का वर्णन करने वाला पंकज पचौरी का भाषण अंबिका सोनी को पसंद आया :

मीडिया को महिला अनुकूल बनाने के लिए कानून की आवश्‍यकता : अंबिका

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने आज कहा कि मीडिया को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने और महिला अनुकूल बनाने के वास्ते सरकार को महिला समर्थक कानून लागू करने की आवश्यकता है। अंबिका दिल्‍ली में मीडिया में दक्षिण एशियाई महिलाएं (एसएडब्ल्यूएम) के पहले क्षेत्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए यह बात कही।

Sack Ambika Soni!

The first reshuffle including minor induction in the Union Council of Ministers by the Prime Minister Dr. Manmohan Singh on January 20, 2011 appears to be cosmetic and not meaningful as the Minister of Information and Broadcasting Ambika Soni has not been shifted or sacked.

चैनलों पर नजर रखने के लिए गठित होगी शिकायत परिषद

चैनलों पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों या खबरों पर नजर रखने के लिए केंद्र सरकार ‘प्रसारण सामग्री शिकायत परिषद’ बनाने जा रही है. 13 सदस्‍यीय परिषद का गठन मनोरंजन चैनलों की प्रतिनिधि संस्‍था इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन की सलाह पर किया जा रहा है. परिषद में प्रसारण उद्योग तथा नागरिक समाज के सदस्य शामिल होंगे.

अंबिका सोनी ने दूरदर्शन-आकाशवाणी के पुराने साथियों को सम्‍मानित किया

दूरदर्शन और आकाशवाणी के कई पुराने न्‍यूज एंकर और रीडर जो नए जमाने के एंकरों की भीड़ में खो चुके हैं, कई साल बाद शुक्रवार को एक साथ नजर आए. सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी की पहल पर उन्‍हीं के सरकारी आवास पर ऐसे कई लोगों को आमंत्रित किया गया, जो एक समय में दूरदर्शन और आकाशवाणी के जाने-माने चेहरे थे. मकसद था उन्‍हें एक साथ बुलाकर उनके योगदान की तारीफ करना.

केन्‍द्र ने कहा तेलंगाना मुद्दे पर संयम बरतें चैनल

केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से कहा है कि वह अलग तेलंगाना राज्य की मांग पर गठित श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट सम्बंधी खबरों की कवरेज में संयम बरते। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम के साथ बैठक की और उन्हें श्रीकृष्णा समिति की रिपोर्ट सम्बंधी घोषणाएं करने के लिए एक विशेष प्रवक्ता की नियुक्ति का सुझाव दिया। समिति 31 दिसम्बर को केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।

बीएस लाली का जल्‍द होगा निलंबन : अ‍ंबिका सोनी

सरकार ने शुक्रवार को कहा कि प्रसार भारती के विवादास्पद मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीएस लाली के निलंबन के मुद्दे पर अगले कुछ दिनों में निर्णय ले लिया जाएगा। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने समारोह से इतर संवाददाताओं से कहा कि लाली से संबंधित फाइल गुरुवार की शाम ही प्रधानमंत्री कार्यालय से सूचना प्रसारण मंत्रालय में पहुंची है। मंत्रालय प्रसार भारती अधिनियम पर गौर कर रहा है और अगला कदम अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक उठाया जाएगा।

घोटाला : अंबिका सोनी मृणाल पांडेय बीएस लाली

राष्ट्रमंडल खेल में घपले-घोटालों की नित नई कहानियां पता चल रही हैं लेकिन किसी की निष्पक्ष जांच नहीं हो रही क्योंकि निष्पक्ष जांच होगी तो कांग्रेसियों के चेहरे पर कालिख पुत जाएगी. बड़े-बड़े घपले-घोटाले करके बिना डकार लिए उसे पचा जाने में माहिर कांग्रेसियों ने पूरे मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया है. भाजपा नेता सुधांशु मित्तल के यहां छापे डलवाकर भाजपा को इशारा कर दिया कि ज्यादा हो-हल्ला किया तो तेरे लोगों को भी फंसा देंगे.

अथारिटी के जरिए कंट्रोल होंगे न्यूज चैनल!

सरकार की भाषा व चाल-चलन को समझने में थोड़ा वक्त लगता है लेकिन गहराई से समझें तो सब कुछ समझ में आ जाता है. न्यूज चैनलों के बेलगाम कंटेंट पर मचे विवाद के बाद केंद्र सरकार ने इस मीडिया पर सीधे नियंत्रण की जो कोशिश शुरू की थी, उसे विरोध के चलते फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. लेकिन चोर दरवाजे से अब एक प्राधिकरण के जरिए कंटेंट पर सरकारी कंट्रोल की कवायद की जा रही है. अगर यकीन न हो तो केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के बयान को पढ़िए.

एचटी की पार्टी में अंबिका-शोभना की जुगलबंदी

चंडीगढ़ में कल अच्छी खासी जुटान थी. अंबिका सोनी और शोभना भरतिया दोनों साथ थीं. एक मीडिया मामलों की केंद्रीय मंत्री और दूसरी एक बड़े मीडिया हाउस एचटी ग्रुप की मालकिन. इन दोनों महिलाओं की जुगलबंदी के बीच हिंदुस्तान टाइम्स, चंडीगढ़ के दस साला होने का जश्न मनाया गया. जश्न में केंद्रीय मंत्री थोड़ी चिंतित हुईं. पत्रकारिता को लेकर. एचटी चंडीगढ़ एडिशन की 10वीं वर्षगांठ पर शुक्रवार को आयोजित एक समारोह में अंबिका भाषण दे रहीं थीं.

टैम वाले टामी कुत्ते की मौत मरेंगे!

अब चैनलों की टीआरपी तय करेगा बार्क : सरकार अब टीवी चैनलों की टीआरपी तय करने में मौजूदा एजेंसी टैम के एकाधिकार को खत्म करेगी। अब शहरी टीवी दर्शकों के आधार पर ही टेलीविजन चैनलों की लोकप्रियता का आकलन नहीं किया जाएगा। अब देश की जनसंख्या के बड़े हिस्से यानी ग्रामीण टीवी दर्शकों की पसंद का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा।

टीवी कंटेंट पर नजर रखने के लिए ब्लू प्रिंट

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी बजट सत्र खत्म होने के पहले संसद में टेलीविजन चैनल्स के कंटेंट पर नजर रखने के लिए ब्लू प्रिंट पेश करेंगी. यह ब्लू प्रिंट उन्होंने टीवी इंडस्ट्री के प्रत्येक सेक्शन के लोगों से बातचीत कर तैयार कराया है. टीवी चैनलों पर प्रसारित कंटेंट पर निगरानी रखने के लिए एक ढांचे की जरूरत को मंत्रालय महसूस कर रहा है. हालांकि अंबिका सोनी बार-बार कहती रही हैं कि टेलीविजन चैनल खुद अपने पर नियंत्रण रख सकते हैं. मगर वे सिर्फ इस सदिच्छा से संतुष्ट नहीं है.

प्रसार भारती कामकाज में पारदर्शिता बरते : अंबिका

अंबिका सोनीकेंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कहा कि सार्वजनिक प्रसारणकर्ता प्रसार भारती की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने कामकाज खासतौर पर कार्यक्रमों के चयन के लिए बनाई गई मूल्यांकन समितियों के मामले में पारदर्शिता सुनिश्चित करे। मंत्रालय की दूसरी सलाहकार समिति की बैठक में उन्होंने कहा कि मंत्रालय प्रसार भारती को बेशक अनुदान देता है, लेकिन इसे प्रसार भारती के कार्यक्रमों और कार्यप्रणाली में किसी प्रकार का हस्तक्षेप या प्रभाव नहीं माना जाना चाहिए।

मीडिया वाले खुद सुधर जाएं : अंबिका सोनी

केंद्र सरकार का कहना है कि वह मीडिया पर कोई कानून या प्रतिबंध थोपने के पक्ष में नहीं है और प्रसारणर्ताओं के लिए पहला कदम आत्मनियमन का होना चाहिए। उन्हें खुद सुधर जाना चाहिए। सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि प्रसारणकर्ताओं को आत्म नियमन अपनाना चाहिए। हम प्रसारणकर्ताओं से बातचीत कर रहे हैं कि कैसे सामग्री में सुधार के लिए रास्ते बनाए जाएं। हालांकि मैं स्पष्ट करना चाहूंगी कि भले ही हमारी बातचीत जारी है लेकिन सरकार मीडिया पर कोई कानून या प्रतिबंध थोपने के पक्ष में नहीं है।

न्यूज चैनलों की बैंड बजाकर मानेंगी अंबिका सोनी!

प्रसारण क्षेत्र के स्वशासी निकाय पर हो रहा विचार : टीआरपी के लिए पत्रकारिता की ऐसी-तैसी करने वाले न्यूज चैनलों की बैंड बजाने पर सरकार उतारू है। ढेर सारी शाब्दिक लफ्फाजियों के बावजूद सरकार की मंशा स्पष्ट है कि वह कोई ऐसी चीज लाना चाहती है जो किसी न किसी प्रकार न्यूज चैनलों के कान उमेठ सके। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने सीएनएन-आईबीएन पर डेविल्स एडवोकेट प्रोग्राम में  करण थापर से बातचीत में जो कुछ कहा, उससे पूरी तरह साफ है कि सरकार न्यूज चैनलों को बेलगाम छोड़ने के मूड में नहीं है। हालांकि सरकार यह भी नहीं कह रही है कि वह न्यूज चैनलों को किसी भी तरीके से नियंत्रित करना चाहती है।

‘सिसकते’ दूरदर्शन को बचाने आगे बढ़ी सरकार

प्रसार भारती बोर्ड के झगड़े में ‘सिसकते’ दूरदर्शन को बेचारगी से बचाने की दिशा में सरकार एक कदम और आगे बढ़ गई है। समझा जाता है कि कानून मंत्रालय ने विवादों का पिटारा बन चुके प्रसार भारती बोर्ड को भंग कर कमान अपने हाथ में लेने के सूचन प्रसारण मंत्रालय के प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी है। सूत्रों के अनुसार कानून मंत्रालय का मानना है कि स्वायत्तशासी संस्था या बोर्ड यदि कामकाज के मामले में निष्क्रिय साबित हो रहे हैं तो सरकार कानूनी तौर पर इनकी कमान अपने हाथ में ले सकती है। नई वैकल्पिक व्यवस्था होने तक इनका संचालन भी सरकार कर सकती है। इस आधार पर कानून मंत्रालय प्रसार भारती बोर्ड भंग करने के सूचना प्रसारण मंत्रालय के बिंदुओं से सहमत है।

अंबिका के दांत दिखाने के हैं, काटने के नहीं

[caption id="attachment_15958" align="alignleft"]मुकेश कुमारमुकेश कुमार[/caption]सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने कह तो दिया है मगर उनकी इस घोषणा पर कोई भरोसा करने को तैयार नहीं है कि वह टीवी चैनलों के लायसेंस देने के मामले में सख्त रवैया अपनाएंगी। टीवी इंडस्ट्री के लिए इसका यही मतलब है कि अब लायसेंस महँगे हो जाएंगे क्योंकि इसके लिए रिश्वतखोरी बढ़ जाएगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के बाबू, अफसर और मंत्री सब लायसेंस देने के एवज़ में ज़्यादा रकम चाहते हैं इसलिए ऐसा कड़क माहौल बनाया जा रहा है कि अब आसानी से लायसेंस नहीं मिलेंगे, ख़ास तौर पर उन्हें जिनका मीडिया से कोई पुराना रिश्ता नहीं है। दबाव इन्हीं नवागतों पर डाला जा सकता है क्योंकि पहले से मीडिया कारोबार में लगे लोग सरकारी दबाव का जवाब मीडिया के ज़रिए दे सकते हैं। काफी समय से इस पर आपत्तियाँ उठाई जाती रही हैं कि ऐसे लोगों को चैनलों के लायसेंस दिए जा रहे हैं, जो मीडिया की गंभीरता को नहीं समझते और उनका मक़सद ऐन केन प्रकारेण धन कमाना है।

टीवी के संपादक अब चिरकुटई से तौबा करें

टीवी न्यूज चैनलों के संपादक अगर समय से अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए, खुद की पहल पर, इकट्ठे मिल-बैठकर, यह तय कर लिए होते कि उन्हें इस-इस तरह के कार्यक्रम नहीं दिखाने हैं, और इस तरह के दिखाने हैं, तो संभवतः टीवी न्यूज चैनलों का इस कदर कबाड़ा नहीं हुआ होता। जनता तो गरिया ही रही है, सरकार भी आंखें तरेर रही है। जब पानी नाक तक पहुंच रहा है तो मजबूरन हाथ-पांव मारने की कवायद के तहत टीवी संपादकों ने एक बाडी बना ली और सरकार से संयुक्त बारगेनिंग में जुट गए हैं। तेवर और गरिमा खो चुके टीवी के संपादकों की बात सरकार कितनी सुनेगी, या सुन भी लेगी तो उससे क्या भला हो जाएगा, यह तो नहीं पता लेकिन इतना तय है कि टीवी जर्नलिज्म के नाम पर चिरकुटई परोसने वाले टीवी के संपादकों को अब भी अक्ल आ जानी चाहिए। उन्हें टीआरपी की फोबिया से मुक्त होना चाहिए। उन्हें टीआरपी के पीछे भागने की जगह, गंभीर खबरों व विश्लेषणों की तरफ वापस लौटना चाहिए। देश व समाज के सामने खड़े बड़े मुद्दे पर खोजी पत्रकारिता करनी चाहिए। सरकारों को कठघरे में खड़े करने की परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए।

चैनल खोलना नहीं होगा आसान

भारतीय टेलीविजन बाजार में चैनलों की तेजी से बढ़ती बाढ़ तो दूसरी तरफ चैनलों की गिरती साख से चिंतित केन्द्र सरकार अब अपनी मौजूदा “चैनल अनुमति नीति” में भारी बदलाव लाने जा रही है. एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत, नए चैनलों को अनुमति देने से संबंधित मौजूदा दिशानिर्देशों की गहन समीक्षा की जा रही है. सरकार की चिन्ता का एक कारण यह भी है कि नए चैनल शुरू करने वालों में से कइयों की पृष्ठभूमि संदिग्ध है और उनका मीडिया से कोई लेना-देना नहीं है.

‘टीवी संपादक कंटेंट बेहतर बनाना चाहते हैं’

बीईए के “मीट द एडिटर्स” में अंबिका सोनी ने स्वीकारा : सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने टीवी चैनलों के संपादकों को भरोसा दिया है कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर किसी भी तरह की पाबंदी के खिलाफ है। सरकार टीवी चैनलों के साथ जोर जबदस्ती करके उन पर किसी भी तरह की पाबंदी या रेगुलेशन थोपने के पक्ष में नहीं है। अंबिका सोनी ने ये बातें हाल में गठित टीवी न्यूज चैनलों के संपादकों की संस्था ‘ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन’ से साथ ‘मीट द एडिटर्स’ कार्यक्रम में कही। दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में न्यूज चैनलों के करीब पच्चीस संपादकों से अंबिका सोनी की दो घंटे तक बातचीत हुई।

अंबिका के राज में देर रात दिखेंगे एडल्ट प्रोग्राम!

इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन (आईबीएफ) व न्यूज ब्राडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के पदाधिकारियों और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी के बीच हुई बैठक में टीवी पर रात 11 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक ‘वयस्कों के लिए’ टाइप कार्यक्रम दिखाने को लेकर काफी विचार-विमर्श किया गया। बैठक में कहा गया कि जब दुनिया के ज्यादातर देशों में देर रात के वक्त एडल्ट प्रोग्राम दिखाए जाते हैं और ये प्रोग्राम बच्चे न देख पाएं, इसके लिए पैरेंटल लाक जैसी व्यवस्थी की गई है तो भारत में यह क्यों नहीं हो सकता।

‘टैम’ वाले ‘टामियों’, अब तो डूब मरो!

दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर का अंश‘टैम’ वाले कितने बड़े चोर, धंधेबाज और साथ ही साथ चिरकुट भी हैं (ये सब इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि दरअसल टीवी न्यूज इंडस्ट्री से कंटेंट गायब कराने का श्रेय इन्हीं ‘टैम’ वालों को जाता है और इन्हीं ‘टैम’ वालों ने टीवी पत्रकारों को जोकर बनकर काम करने को मजबूर कर रखा है), यह जानना हो तो दैनिक भास्कर  में प्रकाशित एक खबर पढ़ लीजिए। टेलीविजन आडियेंस मीजरमेंट (टैम) वाले आजकल दूरदर्शन न्यूज यानि डीडी न्यूज पर बहुत मेहरबान हो गए हैं। इसे कई निजी न्यूज चैनलों से आगे बताने लगे हैं। ये काम वे सिर्फ मौखिक नहीं कर रहे हैं, बल्कि आंकड़े देकर बता-समझा रहे हैं। वजह यह है कि केंद्र सरकार ने संकेत दे दिया है कि वे टैम वालों के रेटिंग के अर्जी-फर्जी नाटक से खुश नहीं है और जल्द ही एक राष्ट्रीय टेलीविजन मीजरमेंट एजेंसी बनाने के काम को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा।

केबल आपरेटरों की मोटी फीस से बचाओ

चैनलों ने मंत्री के सामने उठाया कैरिज फीस का मामला : सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने खबरिया चैनलों से कहा है कि वे खबरों के अपने समय में से 5 प्रतिशत हिस्सा उन खबरों के लिए आवंटित करें जो विभिन्न विपरीत परिस्थितियों के बीच आने वाली मानवीय उपलब्धियों के बारे में हो। उन्होंने कहा कि मीडिया इस बात को लेकर किसी तरह का संशय ना पाले कि सरकार चैनलों के कार्यक्रमों पर नियंत्रण से संबंधित कोई कदम उनसे बिना विचार विमर्श के उठाएगी। एक कार्यक्रम में मंत्री ने कहा कि उनकी इच्छा है कि सामाजिक सरोकार और मानवीय उपलब्धियों से संबंधित खबरों को भी उचित प्राथमिकता दी जाए। मीडिया संगठनों के प्रमुखों ने मंत्री से लगातार बढ़ रहे कैरिज फीस (केबल आपरेटरों द्वारा चैनलों की दिखाने के एवज में ली जाने वाली रकम) के बारे में चर्चा की और अनुरोध किया कि इस पर सरकार कुछ करे।

मीडिया के नियमन से डर क्यों?

आनेद प्रधानमीडिया के नियमन (रेग्यूलेशन) का मुद्दा एक बार फिर गर्म हो गया है। ’सच का सामना’ को लेकर संसद में हुई तीखी बहस के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने वायदा किया है कि यूपीए सरकार अगले सात सप्ताहों में मीडिया के नियमन को लेकर एक मसौदा प्रस्ताव देश के सामने बहस के लिए पेश करेगी। लेकिन दूसरी ओर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘सच का सामना’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग करनेवाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जिन्हें ऐसे कार्यक्रम पसंद नही हैं, वे रिमोट का इस्तेमाल करके ऐसे चैनल और कार्यक्रम बदल दें। इसके साथ ही, मीडिया के नियमन के मसले पर एक बार फिर बहस शुरू हो गयी है। जाहिर है कि मीडिया खासकर उसकी अंतर्वस्तु (कंटेंट) के नियमन की यह बहस नयी नही है। पिछले कई वर्षों से यह बहस चल रही है। यह भी सच है कि इस मुद्दे पर देश में एक राय नहीं है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि मीडिया खासकर उसके कंटेंट के नियमन और वह भी सरकारी नियमन को लेकर बिलकुल सहमति नही है।