: नीरा प्रकरण और वेब की दुनिया : आज नीरा राडिया प्रकरण में पत्रकारों की भूमिका को ले कर बहस खुद उसी टेलीविजन पर हुई है, जिस टीवी चैनल में उन महत्वपूर्ण नामों में से एक बरखा दत्त खुद एक प्रमुख स्तम्भ के रूप में काम करती रही है. यह कहानी आज से करीब छह महीने पहले मई में शुरू हुए थी. मुझे याद है मई महीने की शुरुआत में यहीं भड़ास पर मैंने पहली बार इस महान महिला नीरा जी का नाम सुना, जिन्हें आज इस देश का बच्चा-बच्चा जानता है और आज जिनका नाम बड़े “सम्मान” के साथ लिया जा रहा है. उस समय किसी भी छोटे-बड़े समाचार-पत्र में कम से कम मैंने तो इस भद्र महिला का नाम नहीं देखा था.
उससे भी बड़ी बात यह है कि मैंने यहीं भड़ास पर यह भी सुना था कि बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे नामचीन लोग इस महिला के संपर्क में आ कर एक बहुत महत्वपूर्ण मंत्री पद हेतु लॉबिंग करने के दोषी ठहराए जा रहे हैं. यह बात भड़ास नहीं कह रहा था. यह बात बयाँ कर रहा था एक दस्तावेज़, जो कथित तौर पर बहुत ही गोपनीय अभिलेख था, जो संवेदनशील पद पर बैठे एक पुलिस अधिकारी द्वारा इनकम टैक्स विभाग के एक उच्च अधिकारी को लिखा गया बताया जा रहा था.
यदि कहूँ कि आज जो भी मेरा भड़ास से लगाव बढ़ा है और इसके प्रति मेरे मन में अच्छे भाव हैं, उसकी शुरुआत लगभग इसी समाचार के बाद से हुई थी. यदि चौबीस घंटों चीखने वाले चैनलों की आवाज़ और भाषा में बयाँ किया जाए तो यह वास्तविक रूप में एक ब्रेकिंग न्यूज़ था- और वह भी एक अत्यंत संवेदनशील और ग्रेड ए का ब्रेकिंग न्यूज़. बल्कि मैंने इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर भड़ास में एक खबर भेजी थी जिसका शीर्षक दिया था- Barkha-Vir-Tata. यह सही है कि जहां ये कथित गोपनीय दस्तावेज़ इन तीनों बड़े लोगों पर अत्यंत गंभीर आरोप से मढ़ रहे थे, वहीँ हमारे देश का एक बहुत बड़ा मीडिया वर्ग इस खबर को ले कर पूरी तरह से शांत था. असीम शान्ति. जैसे कोई बात ही नहीं हो. जैसे यह कोई मामूली सी घटना हो.
मैंने तो देखा है, और आप सब ने भी सैकड़ों बार देखा होगा कि बिना किसी बुनियाद के या मामूली साक्ष्य पर भी यह मीडिया अपनी बात कहने के साथ-साथ बड़े जोशो-खरोश से अपना निर्णय भी सुनाने लगती है, एक आदमी को कई बार खुले-आम बेईमान, भ्रष्ट, पतित बताने लगती है, दलाल और बिका हुआ करार देती है. पर इतनी जानकारी के बावजूद सब ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे इसमें कौन सी बड़ी बात हो. मैं आज भी जब टीवी देख रहा था तो एक चैनेल पर बड़े ऊँचे आवाज में कई युवा और खूबसूरत चेहरे वाले रिपोर्टर बड़ी नाराजगी के भाव के साथ पुकार-पुकार कर कुछ नेताओं के जमीन सम्बंधित मामलों पर व्याख्यान दे रहे थे, उन नेताओं को दोषी ठहरा रहे थे और उनके लिए कई बार ऐसे शब्दों का भी प्रयोग कर रहे थे जो अशिष्ट तो नहीं थे, पर निश्चित रूप से मन-बढ़ई की श्रेणी में तो आते ही थे. पर चूँकि इस देश में हर बेईमान (और कई सारे डरपोक ईमानदार) आदमी दो लोगों/ संस्थाओं से जरूर घबराता है- एक तो मीडिया और दूसरा ज्यूडीसिएरी, इसीलिए अक्सर ये लोग मीडिया के लोगों द्वारा दिए गए ऐसे डांट-फटकार का प्रतिवाद नहीं करते और इन भाषाओं का जवाब नहीं देते. लेकिन मैं जब यह खबर सुन-देख रहा था तो मेरे बगल में बैठी मेरी पत्नी नूतन ने टिप्पणी की- “देखिये, यहाँ तो कितने जोर से चीख रहे हैं, मानों यहीं अभी के अभी फैसला कर देंगे और नीरा राडिया-बरखा दत्त- वीर सांघवी प्रकरण पर सब एक से एक चुप रहे, जबकि ऑडियो वहां भी थे और उनकी बात-चीत से और कुछ नहीं तो शक तो पूरा हो ही जाता था.” मैंने भी मन में यही सोचा कि शायद “हाथी के दांत- खाने के और दिखाने के और” जैसे मुहावरा इन्हीं अवसरों के लिए बना होगा.
पर जो असली बात मैं कहना चाहता हूँ वह यह है कि नीरा प्रकरण ने अब अंतिम रूप से वेब पत्रकारिता और वेब दुनिया की ताकत को स्पष्ट रूप से प्रमाणित कर दिया है. हाथ कंगन को आरसी क्या के तर्ज़ पर भड़ास जैसे वेब मीडिया पोर्टल इस बात की क्रेडिट ले सकते हैं कि-“हाँ, हम हैं इस केस को इस अंजाम तक पहुंचाने वाले.” साथ ही यह भी कि-“अब तुम हमारी आवाज़ दबा नहीं पाओगे, बड़े भाई. अब मैं जवान हो गया हूँ.” जी हाँ, वेब मीडिया अब वास्तव में जवान हो चुका है, कम से कम जवानी की दहलीज़ पर तो पहुँच ही गया है. अब इसकी आवाज़ में ताकत आ गयी है और अब इसकी कही गयी बातों को लोग बड़ी गंभीरता से लेने लगे हैं.
मैं इसे अपने आप में एक बहुत ही शुभ सन्देश मानता हूँ और यह सोचता हूँ कि इस प्रक्रिया से सारे समाज का ही हित होगा. अब हम बड़े-बड़े अखबारों के गुलाम नहीं रहे- ना तो अपनी खबर बताने के लिए और ना ही अन्य लोगों की खबरें जानने के लिए. यहाँ तमाम अति-विश्वसनीय, जिम्मेदार, मजबूत और तेवर वाले वेब ग्रुप हैं, जो आपकी बातों को एकदम से दुनिया के कोने-कोने तक पहुचाने का माद्दा रखते हैं और ऐसा कर भी रहे हैं.
इनका साथ देने को फेसबुक, ऑरकुट, लिंक्डइन जैसे दूसरे सोशल नेटवर्किंग साईट हैं, जो इनकी रही सही कसर पूरी कर दे रहे हैं और किसी भी दबी-कुचली आवाज़ को एकदम से पूरा दमखम प्रदान कर दे रहे हैं. मैं इस सब का स्वागत तो करता ही हूँ, साथ ही यह प्रार्थना भी करता हूँ कि इनके तेवर और इनकी ललक इसी प्रकार से बनी रहे.
जय हो नीरा राडिया मैडम- हिन्दुस्तान में वेब की आवाज़ को एक नई उंचाई देने में मदद करने के लिए.
लेखक अमिताभ ठाकुर पुलिस अधिकारी हैं. इन दिनों अवकाश लेकर शोध, लेखन और घुमक्कड़ी के काम में व्यस्त हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
K S Thakur
December 2, 2010 at 7:21 am
आदरनीय अमिताभ ठाकुर जी,
मैं आपसे और आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. मीडिया कितना बिक चूका है इसका उदाहरण है स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित जी की मृत्यु!
तथाकथित मीडिया में चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या टीवी मीडिया उनके बारे में अभी तक कोई समाचार देखने और सुनने को नहीं मिला ! हैरानी की बात है की राखी को छींक आने की खबरें तो हर चौथे दिन देखने-सुनने को मिल जाती है पर उस महान आत्मा के बारे में ये लोग अभी तक पूरी तरह से चुप्पी लगाए बैठे हैं जिसने आम लोगों में अकाट्य तथ्यों से जाग्रति लाने का महान प्रयास किया!
K.D.Sharma
December 2, 2010 at 9:25 am
Amitabh ji, aapse kuchh jyada ki ummid thi!
par aap comment karne me kuchh kanjoosi kar gaye!
ho sakta hai iske peechhe kuchh khaas vajah ho?
kuchh bhi ho hamari aashayen aur duaayen aapke saath hain.
joseph
December 2, 2010 at 3:14 pm
web journalism ek taakat to bana hee hai lekin use jimmedar bane rahane kee chunauti hai.
yashovardhan nayak
December 3, 2010 at 5:52 am
अमिताभ जी ,आपने सुना होगा की ‘रतन टाटा ‘ने आरोप लगाया था ,कि वे ‘विमानसेवा’ के व्यवसाय से इसलिए दूर हो गए की उनसे एक मंत्री ने रिश्वत मांगी थी .आज तक टाटा ने उस मंत्री या सरकार का नाम बताने का साहस नहीं जुटा पाया ,बिना नाम लिए आरोप लगाना कायरता और अनैतिक बात मानी जाती है.आज ‘भड़ास मीडिया’पर अपने दिल की बात कहने का मौका आसानी से सुलभ है.मुझे हिंदी या अंगरेजी में टाइप करना नहीं आता ,यह तो मेरे मित्र संजय करीर ने मुझे ई-मेल करके बताया कि गूगल ट्रांसलिटेरेसन प्रोग्राम की मदद से रोमन लिपि में टाइप मैटर आसानी से देवनागरी लिपि में बदल जाता है. इस सुविधा के चलते ही , मैं एक अंगुली से रोमन लैटर टाइप करता हूँ ,और ई-मेल आदि शुद्ध हिंदी में भेजने का सुख प्राप्त कर पाता ,भड़ास मीडिया कि वजह से मै अपनी आवाज आपकी आवाज में मिला पा रहा हूँ. मेरा आपसे आग्रह है कि ,आप अदालतों में पड़े लंबित मामलो,वारंटो के वर्षो तामील न होने और फर्जी मुकद्दमो में फंसे लोगो कि पीड़ा पर लिखें[email protected]