तो बिजेंद्र यादव गिरफ्तार हो ही गए. कल यह मालूम हुआ था कि इलाहाबाद पुलिस द्वारा बिजेंद्र यादव को कैन्ट थाने में पकड़ लाया गया था, जब वह अपने एक मामले की सुनवाई के लिये इलाहाबाद हाईकोर्ट गए थे. आज सुबह मालूम हुआ कि पुलिस ने आखिरकार सिविल लाइन थाने में उनके खिलाफ मुक़दमा लिख ही दिया और अब उन्हें गिरफ्तार कर उनको कोर्ट के सामने पेश किया गया. उन्हें धारा 353 आईपीसी तथा पुलिस फोर्सेस (इन्साईटमेंट टू ओफ्फेंस) एक्ट की धारा चार के तहत गिरफ्तार किया गया.
मैं अब दावे से कह सकती हूँ कि धन्य है हमारी उत्तर प्रदेश की पुलिस व्यवस्था जो अपराधियों पर कार्रवाई करने की अपेक्षा उन लोगों की धरपकड़ में ज्यादा विश्वास रखती है, जो कोई महत्वपूर्ण मुद्दा उठा रहे हों. आखिर बिजेंद्र यादव कर क्या रहे हैं- एक ऐसा मुद्दा उठा रहे हैं जो आज के समय सबों की निगाह में आनी चाहिए. यदि निचले श्रेणी के पुलिसकर्मियों और उनके परिवारों से जुडी कोई समस्या है जिसके लिए वे काम करना चाहते हैं और एक समूह के रूप में इसे संपादित करना चाहते हैं तो मैं नहीं समझती इसमें कुछ भी गलत है. क्या हम अब भी ब्रिटिश भारत में रह रहे हैं जब सच्चाई को सामने लाना और किसी की भलाई के लिए काम करना गुनाह हो?
ऊपर से बिजेंद्र यादव का गुनाह क्या है? उन्होंने एक संस्था बाकायदा कानूनन रजिस्टर करवाई, वह भी हाई कोर्ट के आदेश के बाद. अब वे इसके जरिये कुछ समस्याएं सामने ला रहे थे. साथ ही आइपीएस अफसरों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले भी रख रहे थे जिसके अनुसार एक अपंजीकृत संस्था के जरिये प्रति महीने करोड़ों रुपये प्रत्येक अधीनस्थ कर्मी से वसूल किये जा रहे हैं और उसका कोई ब्योरा तक नहीं दिया जा पा रहा है. यह सब बातें पहले ही मीडिया के जरिये आम लोगों के बीच आ चुकी है. बिजेंद्र यादव को कोर्ट में प्रस्तुत किया गया और वहां से कोर्ट ने तुरंत जमानत भी दे दी. मैं समझती हूँ कि यह सच्चाई की बहुत बड़ी जीत है. साथ ही मैं इसे एक अच्छे उद्देश्य की न्यायालय द्वारा परोक्ष मान्यता के रूप में भी देखती हूँ. यह हो सकता है कि अभी इस तरह ही और कार्यवाहियां हो. यह संभव है सरकार अपनी ताकत से इनके सत्यपरक मुहीम को कुचल सकने में कामयाब हो जाए.
पर मैं फिर भी यही मानूंगी कि उसमे जीत बिजेंद्र यादव की ही हुई है क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ पुलिस वालों और उनके परिवारवालों की समस्याओं और उनसे जुड़े मुद्दे बड़ी शिद्दत और मजबूती के साथ सामने रख दिया है. सही तो यही रहा होता कि सरकार उनके द्वारा कही जा रही बातों को सुनते हुए उन पर न्यायपूर्ण कार्यवाही करती और अधीनस्थ पुलिसवालों के हित के लिए तदनुरूप आवश्यक कदम उठाती पर जैसा कि अक्सर सत्ता का स्वरुप होता है, इस बार भी उसने सच का गला घोंटने और गलत का साथ देने का नाकाम प्रयास किया है.
लेकिन साथ ही आज जिस प्रकार से अदालत से उन्हें गिरफ्तारी के बाद तत्काल ही पुलिस द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों के बावजूद जमानत दी है उससे मेरे मन में भी बहुत अधिक उत्साह का संचार हुआ है और मैं इसे इस दिशा में एक बड़ी जीत के रूप में लेती हूँ. मुझे विश्वास है इन प्रयासों के दम पर पुलिस के निचले स्तर के कर्मचारियों और उनके परिवार वालों की समस्याओं के दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति होगी.
डॉ नूतन ठाकुर
संपादक
पीपल’स फोरम
लखनऊ
anshuman
February 11, 2011 at 8:02 pm
क्या विचार हैं आपके
शमीम अहमद
February 11, 2011 at 8:52 pm
बिल्कुल सही फरमाया
Shailendra singh
February 12, 2011 at 4:39 pm
Mayawati sarkar ke sipahiyon aur mayawati ko sat sat naman.