सैफ विंटर गेम्‍स के नाम पर यह कैसा तमाशा!

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दीपक आजाद
दीपक आजाद
‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’, यह कहावत उत्तराखंड में इन दिनों खासा गरम है। सैफ विंटर गेम्‍स के नाम पर देहरादून से लेकर औली तक में जो कुछ हुआ, उसके केंद्र में यह फिट बैठती है। कंपकंपाती ठंड के बीच हुए सैफ विंटर गेम्स, कॉमनवेल्थ की तर्ज पर सवाल उठाते हैं कि आखिर इन खेलों की जरूरत किसको है? इंडिया को या भारत को।

सात दक्षिण एशियाई देशों भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालद्वीव के इस पहले शीतकालीन खेल कुंभ की मेजबानी का जिम्मा भारत के हाथों में था। उत्तराखंड में हुए इस आयोजन से ऐसा कहीं से भी नहीं लगा कि भारत सरकार इसे गंभीरता से ले रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सैफ गेम्स की ओपनिंग से लेकर क्लोजिंग सेरेमनी तक सब जगह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री या मंत्री ही नजर आए। ओपनिंग सेरेमनी में आना तो केंद्रीय खेल मंत्री को था, लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने पीठ फेर ली। गिल ने केंद्रीय राज्यमंत्री को भेजकर इतिश्री कर ली। क्लोजिंग सिरेमनी में भी यही हुआ।

शुरू के दिन देहरादून में और फिर आखिरी तीन दिन उच्च हिमालयी क्षेत्र औली में हुए इन खेलों पर केंद्र व राज्य सरकार ने करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपये खर्च किए। इस खेल आयोजन में अव्यवस्थाओं का ठीक वैसा ही बोलबाला रहा, जैसा दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्‍स में देखा गया। देहरादून में स्टेट स्पोटर्स कॉलेज में कृत्रिम तरीके से बर्फ तैयार कर विंटर गेम्स के लिए आइस रिंग बनाई गई। यह रिंग स्केटिंग के साथ आइस हॉकी के लिए बनाई गई, लेकिन हॉकी के लिए आयोजकों को कोई टीम ही नहीं मिली। अलबत्ता स्केटिंग का ही आयोजन हो सका।

उधर 14 जनवरी से 16 जनवरी तक औली में भी सैफ गेम्स के नाम पर अच्छा खासा ड्रामा हुआ। कंपकंपाती ठण्‍ड के बीच औली की बर्फीली ढलानों में स्कीइंग प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। मौसम खराब होने और भारी अव्यवस्थाओं के बीच आधे में ही आनन-फानन में खेलों के समापन कर दिया गया। नेपाली और पाकिस्तानी खिलाड़ियों से भेदभाव की भी खबरें आईं। इस दौरान जोशीमठ से औली तक पहुंचने वाले एकमात्र साधन साढ़े चार किमी लम्बे रोपवे में खराबी आने से कई लोगों की जान पर बन आई थी। जैसे-तैसे लोगों को सकुशल निकाला जा सका। इससे समझा जा सकता है कि करोड़ो रुपये खर्च करने के बाद भी राज्य सरकार ने इन खेलों के आयोजन को लेकर कितनी ईमानदारी बरती।

इस पूरे आयोजन में कॉमनवेल्थ गेम्स की तर्ज पर घपले-घोटालों की गंध महसूस की जा रही है। देहरादून में बनी आइस रिंग पर करोड़ों रुपये फूंक दिए गए। दो दिन के आयोजन के लिए कृतिम तौर पर बर्फ से आइस रिंग तैयार की गई। अव्यवस्थाओं के बीच खेल समाप्त होने के बाद अब आइस रिंग कोई काम आ भी पाएगी या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम। वहीं, इस खेल आयोजन में सरकार ने जिस तरह इवेंट मैनेजमैंट के नाम पर मुम्बई की एक कंपनी को एक करोड़ से ज्यादा का ठेका दिया, वह भी सवालों के घेरे में है।

एक आला अफसर की कृपा से फ्रेशव्हील इवेंट मैनेजमेंट कंपनी को यह ठेका दिया गया। सप्ताह भर के इस खेल आयोजन में इस कंपनी ने कितना और कैसा काम किया यह उसकी पहली प्रेस कांफ्रेंस में ही दिख गया था। विंटर गेम्स आयोजन समिति की इस प्रेस कांफ्रेंस में हिन्दी में जो प्रेस नोट जारी किया गया उसमें शाब्दिक गलतियों का ऐसा भंडार था कि कोई भी सिर पकड़ ले। अव्यवस्थाओं से खफा पत्रकारों ने भी जमकर हंगामा काटा। माना जा रहा है कि इस कंपनी को ठेका देने में जिस नौकरशाह की अहम भूमिका रही, उसको कमीशन के तौर पर अच्छी -खासी रकम भेंट की गई। भारी अव्यवस्थाओं के बीच खेल आयोजन के नाम पर ही साढ़े चार करोड़ रुपये की बंदरबांट की गई। कॉमनवेल्थ की तर्ज पर इसकी भी जांच हो तो कई चेहरों पर कालिख पुत सकती है।

खैर, घपले-घोटालों से इतर इस पूरे खेल आयोजन को लेकर राज्य सरकार चाहती तो औली को पर्यटन के लिहाज से राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, विदेशों में भी एक टूरिस्ट सेंटर के तौर पर पेश कर सकती थी, पर यहां भी मुख्यमंत्री निशंक ने भावी विधानसभा चुनाव को देखते हुए मीडिया को मैनेज करने पर ही जोर लगाए रखा। सैफ गेम्स के प्रचार-प्रसार के लिए जो विज्ञापन जारी किए, वह ज्यादातर उत्तराखंड की सीमाओं के भीतर ही अपने लोगों को दिखाए-पढ़ाए गए। सैफ गेम्स के बहाने सरकार ने रीजनल न्यूज चैनल्स और अखबारों को ही विज्ञापन रूपी भेंट चढ़ाई। जिन कुछ बाहरी अखबारों को यह भेंट चढ़ाई गई वह केवल दिल्ली तक के लिए ही सीमित थी! राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक पहुंच रखने वाले चैनल्स को इससे दूर ही रखा गया। प्रमुख न्यूज चैनल्स ने तो सैफ गेम्स को कवर करने में गंभीरता नहीं दिखाई। ज्यादातर चैनल्स पर या तो सैफ गेम्स की खबर नहीं चली, या चली भी तो खानापूर्ति के लिए।

यह जरूर है कि राज्य स्तर पर सरकार के बेहतर मैनेजमेंट के चलते ज्यादातर मीडिया संस्थान आंखों पर पटटी बांधकर खेलों के सफल आयोजन का डंका पीटते रहे। इस भीड़ में दैनिक हिन्दुस्तान ने समापन पर खेलों की बदइंतजामी को हाईलाइट कर खुदको अपने प्रतिद्वंद्वियों जागरण, अमर उजाला से अलग जरूर दिखाया। इस सबके बीच एक अहम सवाल यह कि जब मुल्क में एक बड़ी आबादी भुखमरी की मौत मर रही हो, तब कॉमनवेल्थ की कड़ी में सैफ विंटर गेम्स के नाम पर करोड़ों का खेल खेलने की क्या जरूरत? क्या यह शाइनिंग इंडिया और सफरिंग इंडिया के बीच का द्वंद्व है? लगता है खाते-अघाते बीस-तीस करोड़ लोगों का यह इंडिया बाकी दूसरे भारतीयों की परवाह किए बगैर अपने अभिजातीय दिखने की लड़ाई लड़ रहा रहा है। आगे भी वह ऐसा करता रहेगा, जब तक उसे सड़क छाप भारतीयों की ओर से चुनौती नहीं मिलती।

लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.

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Comments on “सैफ विंटर गेम्‍स के नाम पर यह कैसा तमाशा!

  • narayan pargain says:

    agar ghotla hua hai to saboot kay bad kabar liknaa ka dam rakoo bhai kabar to koi bhi likh sakta hai dektay hai kitna dam hai aap ki kalaam mai bas yo hi mohraa bantay rahoo koi mukaam hasil karoo to thik hai nahi to patkritaa ki jindi kya hoti hai kisi pakay hua chawel sai salahh lo wasi bhi tum to laal salaam walay ho to sarker ki kami niklanaa aaap ka sagal hai deswati saboot wali kaber to flash kar do kab tak dabaa kar rakoogay ak kabar ko kabhi to jamir jagg jaygaa us din kabar likh dena nahi likh sakoo to dramaa band kar do .. kaber mai koi kas dam nahi tha kyo ki ya kaber kai papeero mai bhi aa chuki thi aur aaap ki jankari kamjor thi auli par

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  • anjaan hamlawar says:

    ye chor adhikari tourist secretry Rakesh Sharma hai….wah uttarakhand or saf games ka kalmadi hai…khelon ke baad ab khelo main huey ghotalon ki jaanch honi chahiye…nishnk jhoota cm hai….usko janta kabhi maaf nahi karegi…

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  • mini sharma says:

    Deepak ji
    Jaha Saarkari Paisa ho waha Ghotale naa ho aisa ho sakta hai. Jis desh mai Mantri se lekar Santri tak Ghotalo mai phanse ho waha kaa too Bhagwan hee Malik hai………………….

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