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हिंदुस्तान, पटना के पच्चीस बरस होने पर नीतीश सरकार ने की विज्ञापनों की बरसात

बिहार की मीडिया पर आरोप लगता रहा है कि वह नीतीश सरकार के ‘सुशासन’ में घटने वाली नकारात्मक घटनाओं को उस तेवर के साथ नहीं उठाती जिस तेवर से उठाना चाहिए। इन सबके पीछे वजह नीतीश सरकार के मीडिया मैनेजमेंट को माना जाता है। इस मैनेजमेंट के तहत सरकारी विज्ञापन देकर बिहार की मीडिया को अपनी ओर कर लेने और सरकार के खिलाफ खबरों पर विराम लगा देना या केवल सकारात्मक खबरें ही छपवाना… जैसे काम होते हैं।

<p>बिहार की मीडिया पर आरोप लगता रहा है कि वह नीतीश सरकार के 'सुशासन' में घटने वाली नकारात्मक घटनाओं को उस तेवर के साथ नहीं उठाती जिस तेवर से उठाना चाहिए। इन सबके पीछे वजह नीतीश सरकार के मीडिया मैनेजमेंट को माना जाता है। इस मैनेजमेंट के तहत सरकारी विज्ञापन देकर बिहार की मीडिया को अपनी ओर कर लेने और सरकार के खिलाफ खबरों पर विराम लगा देना या केवल सकारात्मक खबरें ही छपवाना... जैसे काम होते हैं।</p> <p>

बिहार की मीडिया पर आरोप लगता रहा है कि वह नीतीश सरकार के ‘सुशासन’ में घटने वाली नकारात्मक घटनाओं को उस तेवर के साथ नहीं उठाती जिस तेवर से उठाना चाहिए। इन सबके पीछे वजह नीतीश सरकार के मीडिया मैनेजमेंट को माना जाता है। इस मैनेजमेंट के तहत सरकारी विज्ञापन देकर बिहार की मीडिया को अपनी ओर कर लेने और सरकार के खिलाफ खबरों पर विराम लगा देना या केवल सकारात्मक खबरें ही छपवाना… जैसे काम होते हैं।

सरकारी विज्ञापनों के जरिए मीडिया पर मेहरबानी होने की दास्तान सूचना के अधिकार के तहत पहले ही सामने आ चुका है। तब जनता और राजनीतिक पार्टियों को पता चला था कि किस तरह विज्ञापन देकर मीडिया के मुंह पर ताला जड़ने की कोशिश की गयी। विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे को जमकर उछाला भी। एक बार फिर नीतीश सरकार मीडिया को विज्ञापन देने को लेकर चर्चा में है। किसी अख़बार के 25 वर्ष पूरे होने पर सरकार कई कई पन्नों का विज्ञापन बिहार के 25 कदम कहते हुए आखिर कैसे दे सकती है? क्या एक अख़बार के 25 वर्ष राज्य के 25 वर्ष हैं? यह तो सिर्फ अख़बार पर मेहरबानी करना ही है।

इस बार मामला सिर्फ और सिर्फ एक अखबार का है। वह अखबार दैनिक हिन्दुस्तान, पटना। दैनिक हिन्दुस्तान, पटना के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर नीतीश सरकार ने मेहरबान होकर, पटना के दूसरे अखबारों को दरकिनार करते हुए 20 अगस्त 2011 के अखबार के लिए पृष्ठ संख्या-7, 9, 18, 19, 21 पर पूरे पृष्ठ का विज्ञापन दे डाला। यह विज्ञापन IPRD-5308 s (notice)-11.12 के तहत छापा गया। मजेदार बात यह है कि 20 अगस्त के हिन्दुस्तान, पटना में स्वास्थ्य, पंचायती राज, नगर विकास, कानून व्यवस्था, शिक्षा, विषय पर अलग-अलग पृष्ठ पर सरकार की विकास कार्यों की चर्चा करते हुए तरक्की के 25 कदम से जो कि वास्तव में इस अख़बार के 25 वर्ष पर, छापा गया।

गौर करने वाली बात यह है कि यह 25 कदम भले ही सरकार के दर्शाते हो लेकिन यह तरक्की के 25 कदम यानी हिन्दुस्तान पटना के 25 वर्ष के पोषक लगते हैं। 20 अगस्त को प्रकाशित होने वाले पटना के हिन्दुस्तान को छोड़कर किसी भी दूसरे अखबार में यह नहीं छपा ? पूरा का पूरा विज्ञापन पेज  को समाचार के रूप में छापा गया। नीचे केवल IPRD-5308 s (notice)-11.12 छाप दिया गया ताकि नियमतः यह विज्ञापन प्रतीत हो। इसका दोहराव 21 अगस्त के दैनिक हिन्दुस्तान, पटना में पुनः किया गया। पृष्ठ संख्या-21 पर IPRD-5312 s (विजिलेंस)11-12 के तहत विभाग का लेखा जोखा पेश किया गया।

पूरा का पूरा मैटर आलेखनुमा प्रकाशित कर पाठकों को भ्रमित किया गया। यह इस तरह से छापा गया कि लगे कि आलेख हो। इसमें सरकार के विकास के विभागीय बातों को समेटा गया।यह पूरा मामला अख़बार के प्रबंधन के फाड़े से जुड़ा है। इस तरह के विज्ञापन को छापने के लिए विज्ञापनदाता अख़बार को पूरा मैटर देता है और उसे समाचार या आलेख की शक्ल में छपवाता है ताकि पाठक को ऐसा लगे कि यह विज्ञापन नहीं समाचार या आलेख हो। इसके लिए विज्ञापन देनेवाला अख़बार प्रबंधन को विज्ञापन कि दर से भुगतान करता है। लेकिन इसे लिखनेवाले पत्रकार को अलग से कुछ भी नहीं दिया जाता है। सवाल ये उठता है कि हिन्दुस्तान अखबार को ही यह मौका क्यों दिया गया ? अगर यह विज्ञापन नहीं होता तो नीचे आईडीपीआर का जिक्र नहीं होता। सिर्फ एक अखबार को इतना विज्ञापन देना और दूसरे को एक पेज का भी विज्ञापन नहीं देना आखिर क्या दर्शाता है ?

विज्ञापन को लेकर हमेशा से सवाल उठते रहे है 15 अगस्त के विज्ञापन को लेकर सूचना और जनसंपर्क विभाग में भी उर्दू समाचार पत्रों ने भी हल्का-पुल्का विरोध जताया था। उन्हें हिन्दी अखबारों की तरह विज्ञापन पूरी तरह से नहीं मिल पाया था। चर्चा तो ये भी है कि ऐसे ऐसे पत्र-पत्रिकाओं को विज्ञापन दिया जाता है जो जमीन पर तो है ही नहीं बस कागजों पर नजर आते हैं। बहरहाल, एक बार फिर मीडिया के गलियारे में सवाल उठा है कि नीतीश सरकार हिन्दुस्तान पटना पर इतना मेहरबान क्यों है।

पटना से लीना की रिपोर्ट. लेखिका लीना इन दिनों मीडियामोरचा की संपादक के रूप में कार्यरत हैं.

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0 Comments

  1. अभिषेक

    August 23, 2011 at 7:28 am

    चलो भाई.. अपने अक्कू भइया की नौकरी बच गई..

  2. Girish Mishra

    August 24, 2011 at 1:10 am

    Isn’t it an act of corruption? Quid pro qo is there. You scratch my back and I scratch your back! Yet both this daily and the CM talk of morality and honesty.

  3. Shubh J

    August 24, 2011 at 12:05 pm

    Leena ji, Hindustan se vida hone ka yah matlab nahi hai ki Zabardasti iski niw khodi jaye. Jaha tak aise vigyapan ka sawal hai to varshganth manane wale AAJ mein aise page kai saal se chhapte rahe hain. JAGRAN, Prabhat Khabar aadi ko v aise vigyapan milte hain. Raha matter ka sawal to yah vigyapandata k mindset par nirbhar karta hai.
    Shubh J

  4. ramdev

    August 25, 2011 at 10:43 am

    सुधा जी ,लीना जी ने यह इस लिये नहीं लिखा होगा क कि वे विदा लेने के बाद इस तरह लिखा .???…. विज्ञापन को लेकर जो खेल हो रहा है और ऊपर से सरकार कहती है कि भ्रटाचार को दूर करना है??? और जो मीडिया मे हो रहा है वह आप को नहीं दिखाता है ??

  5. leena

    August 25, 2011 at 10:58 am

    Shubh J, mai nahi janti apko ki kaisi ap yah jante hai ki mai hindustan me kabhi thi.use chhode hue warshon bit gaye. baharhal is lekh ka usse koi lena dena nahi. bat patrkarita ke sarokaron ki hai aur iski ki koi pathak paise dekar akhbar padne ke liye kharidta hai. kisi ki atm prashansha ke panne- panne padne ko nahi.

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