अश्विनी कुमार संभवतः इकलौते ऐसे संपादक हैं जो अपने संपादकीय में हर सुबह शायरी और कविताओं के जरिये तल्खी के साथ उपदेशक की भूमिका में अपने पाठकों के बीच हाजिर होते हैं, पर उनके पंजाब केसरी का रंग-ढंग कम चौंकाने वाला नहीं है। शायद यह पंजाब केसरी में ही हो सकता है कि एक पत्रकार जो पूरे एक दशक से केसरी का चेहरा हो, लेकिन उसका ही अखबार उसे पहचानता तक न हो। उत्तराखंड में पंजाब केसरी को ढो रहे एक पत्रकार की कहानी हैरान करने वाली तो है ही, केसरी की धंधेबाजी वाला चेहरा भी बेपर्दा करती है।
उत्तराखंड में पंजाब केसरी के दिल्ली संस्करण और पानीपत संस्करण अपने-अपने ढंग से काम करते हैं। यहां बात दिल्ली संस्करण की हो रही है। दिल्ली संस्करण के साथ ‘उत्तराखंड केसरी’ नाम से चार पेज की कवरेज दी जाती है। इस अखबार ने राजपुर रोड पर अपना कार्यालय बनाया है। पिछले दस सालों से इस कार्यालय को चलाने वाले दरवान सिंह रावत ही खबरों से लेकर विज्ञापन और प्रसार तक का सारा कामकाज देखते हैं, लेकिन पंजाब केसरी की फाइलों में उनका नाम कहीं दर्ज नहीं है।
समाचार लेखन का सारा दारोमदार तो दरवान के जिम्मे है, लेकिन अखबार में खबरें देहरादून से कहीं दूर यूपी के सहारनपुर में बैठे जावेद साबरी की बाइलाइन के रूप में छपती हैं। जावेद सहारनपुर में बैठे-बैठे पंजाब केसरी के लिए देहरादून से भी खबरों का जुगाड़ करते हैं। वे पंजाब केसरी के लिए सहारनपुर से भी खबरें लिखते हैं। दरवान को जावेद ने ही देहरादून की खबरें सहारनपुर उन तक पहुंचाने का काम दे रखा है। बदले में जावेद देहरादून में काम देख रहे दरवान को दो से तीन हजार रुपये मासिक भुगतान करते हैं।
जावेद के अलावा पंजाब केसरी के एक ऐसे ही प्रतिनिधि सुनील तलवाड़ की भी कहानी उनसे मिलती जुलती है। बताया जाता है कि तलवाड़ रहते तो हल्द्वानी में हैं, लेकिन उन्होंने भी कुछ ऐसा जुगाड़ बैठाया है कि अखबार में देहरादून से खबरें उनके नाम से चस्पा होती हैं। वे कभी-कभार देहरादून में दिख जाते हैं। इसके अलावा भी पंजाब केसरी, दिल्ली संस्करण, देहरादून से करीब आधा दर्जन पत्रकारों की सेवाएं लेता है। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय संचार एजेंसियों से भी अखबार खबरें लेता है।
राजधानी में होने वाली पत्रकार वार्ताओं में अक्सर ऐसा होता है, जब पंजाब केसरी के तीन से चार प्रतिनिधि कार्यक्रम में आपस में ही टकरा जाते हैं। इस पूरे गड़बड़झाले में दरवान सिंह रावत केसरी के देहरादून में प्रमुख स्तंभ होने के बावजूद अखबार की खबरों में कहीं नहीं दिखते। केसरी के नाम पर उनके पास कहने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे कह सकें कि वे इस अखबार के लिए पिछले एक दशक से काम कर रहे हैं। अखबार के काम का तरीका ऐसा है कि हर सुबह केसरी के पन्नों पर उत्तराखंड से कुछ ऐसी खबरें दिख जाती हैं, जो पहले दिन दूसरे बड़े अखबारों में छप गई होती हैं। बड़े अखबारों से टेप कर अगले दिन वैसे ही केसरी में छाप दिया जाता है।
यह तो एक कहानी है, पता नहीं उत्तराखंड में ऐसे कितने पत्रकार हैं जो केसरी के इस जाल में उलझे हुए हैं। इसलिए हे महान संपादक अश्विनी कुमार अपने संपादकीय उपदेशों के साथ अपनी नजरें कुछ इधर भी फेरो, ताकि पत्रकारों और पत्रकारिता का कुछ भला हो सके।
लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.
Comments on “हे महान संपादक अश्विनी कुमार महज कोरे उपदेश मत दो!”
priy deepak ji punjab kesari akela akhbar nhi hai..is akhbar me 10 saal se kaam karne wale shri rawat ji ka naam kahi darj nhi h yeh dukhad hai lekin isi dehradun se nikalne wale rashtriya sahara se jude ek aise patrakar rajnikant sukla hai jo haridwar se manyata prapt patrakaar hai lekin unhone pichle 2 saal se shayad hi koi khabar bheji ho..yahi nhi ve shrmjivi patrakaar shang ke padadhikari bhi hai ab ve sangathan aur akhbaar se kaise jude hai yeh to sangathan aur akhbaar ke aalawa shri rajnikant ji hi bata sakte hhai…:);):D:D;):)
ya dunia kora updasho sa hi chalti hai.
saste deshbhakto ki fauz karge mauz
esme nai bat kya hai, cycle ka puncture lagane wale Inderjeet sharma ko b bureaucheif to p kesari ne he to banaya, mahasaya ne jamkar sahar me dalali khai or apne he sansthan me 24 lakh ka ghotala kiya, jalandhar se laat padi or delhi me baith gaye, guru ram roi jaise sasnsthan ko b blakmail kiya, ajkal mahant bankar ghum rha hai,charcha hai ki aek bhai nikale to dusra gale lagata hai mukhibar b to chahiye, ashwani ji desh bhar k chor or fraud apko he mubarak, bas patrikarita jaise pese ko badnam mat kro, waise apke updesh oro k liye theek hai……………….