आगामी रविवार को ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ का आखिरी एडिशन निकलेगा. इसके साथ ही 168 साल पुराना साप्ताहिक अखबार इतिहास के पन्नों दफन हो जाएगा. अखबार के मालिक जेम्स मर्डोक ने अखबार को बंद करने का एलान कर दिया. ब्रिटिश फुटबालर रियान गिग्स के फोन हैकिंग की वजह से इस अखबार को बंद किया जा रहा है. इसके साथ ही दो सौ कर्मचारियों की नौकरी अधर में लटक गई.
अखबार पर मैनचेस्टर युनाइटेड के फुटबालर रियान गिग्स ने कथित तौर पर अपना मोबाइल फोन को हैक करने का आरोप न्यूज ऑफ द वर्ल्ड अखबार पर लगाया था. गिग्स ने इस साप्ताहिक टेब्लाइड के खिलाफ मुकदमा किया था. जिसमें आरोप लगाया गया था कि इस टेब्लाइड ने 2005 से 2006 के बीच उनका फोन हैक किया था. इसके बाद ही जेम्स मर्डोक को न्यूज इंटनेशनल ग्रुप के इस अखबार को बंद करने का फैसला लेना पड़ा.
इस फैसले के बाद से ही लगभग दो सौ कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटक गए. न्यूज ऑफ द वर्ल्ड के कार्यालय में मातम पसरा हुआ है. अखबार के ज्यादातर कर्मचारियों ने फोन हैकिंग कांड के लिए रुपर्ट मर्डोक के मीडिया संस्थान से जुड़ी वरिष्ठ अधिकारी रिबेका ब्रुक्स को जिम्मेदार ठहराया है, जिनके कार्यकाल में गिग्स की फोन हैकिंग हुई थी. ब्रुक्स न्यूज ऑफ द वर्ल्ड की संपादक रह चुकी हैं.
1843 से प्रकाशित हो रहा यह अखबार इंग्लैंड का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार है. न्यूज इंटरनेशन के इस साप्ताहिक टेब्लाइड की हर सप्ताह 26 लाख प्रतियां बिकती थीं. जबकि सप्ताह के अन्य दिनों में इसी ग्रुप का द सन अखबार सबसे ज्यादा बिकता है. न्यूज ऑफ द वर्ल्ड के कर्मचारियों के सामने यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या न्यूज ऑफ द वर्ल्ड के कर्मचारियों को न्यूज इंटनेशनल के दूसरे अखबार द सन में नौकरी दी जाएगी. हालांकि न्यूज ऑफ द वर्ल्ड के पत्रकारों को समायोजित करने की प्रकिया शुरू कर दी गई है.
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July 9, 2011 at 9:28 am
गजब शायद इस समय का सबसे पुराना पेपर कल अतीती बन जाएगा, सचमुचयह खबर ह्रदय विदारक है।ेक तरफ रोजाना नए -2 अखबार निकल रहे है और इस तरह के माहौल में इंग्लैंड का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार है. न्यूज इंटरनेशन के इस साप्ताहिक टेब्लाइड का बंद हो जाना बड़ा अजीब लग रहा है। बंद भी तब हो रहा है जब यह पेपर आज भी 20 लाख बिक रहा है।यह पेपर तो संपूर्ण विश्व मीडिया जगत के लिए धरोहर की तरह है जिसे हचाने की आवश्यकता है। मगर नव धनिको के कारपोरेट समूह के लिए तो किसी इतने पुराने पेपर को बचाने के लिए कोई पहल करना बेमानी है। काश मीडिया के पंजीकरण का नियम कानून कुछ लचीला और मल्टीनेशनल की तरह होता तो शायद कोई भारतीय मीड़िया मालिक इस पेपर को गोद ले सकता था।खैर जिस पेपर की उम्र 24 घंटे भी नहीं रह गई हो उसके लिए केवल विलाप ही किया जा सकता है।
हालांकि पेपरो की दुनिया में बंद होने और नया पेपर चालू होने का दौर चलता ही रहता है। कब कहां और कौन सा पेपर कैसे बंद हो जाता है यह अब ज्यादातर लोगों के लिए दिलचस्पी का विषय भी नहीं रह गया है, मगर कोआ 168 साल पुराना पेपर बंद हो जाए तो सहसा यकीन नहीं होता। शानदार अतीत और और लंबे समय काल का साक्षी रहा अखबार का बंद हो जाना वाकई मीडिया के साथ साथ सामाजिक और इसके लाखों पाठको के लिए भी सदमा से कम नही होगा।मगर इस सदमे को झेलना या इसके लिए अफसोस जाहिर करने के सिवा और हम कर भी क्या सकते है।