अगड़म-बगड़म : बहुत दिन से गायब था। ऐसी ही प्रकृति है अपनी। कभी यहां तो कभी वहां। आजकल लिखने का मन भी नहीं करता। खराबी एकाध दो हो तो लिखा जाए भइये, पर अब तो जहां नजर फेरो, गड़बड़ी की गाड़ी हड़बड़ी में नहीं, आराम से चलते दिखती है। एक के बारे में लिखने की सोचो तो चार और लिखवाने के लिए तैयार। इतनी गड़बड़ियों को देख कर बजाय लिखने के, अपना पौव्वा खोल लेता हूं और अलौकिक चिंतन में डूब जाता हूं। पर परलोक जाने से पहले जिंदगी तो लोक में ही कटनी है, इसलिए आज लोक चिंतन करने आ पहुंचा हूं। खबर दे रहा हूं, गासिप भी समझियो तो कोई बात नहीं क्योंकि आजकल खबरें गासिप होती हैं और गासिप खबरें होने लगी हैं। खबर एक बड़े मीडिया हाउस से है जिसने टीवी इंडस्ट्री में ढेर सारे गठजोड़ कर ढेर सारे चैनल लांच कर दिए हैं। इसी ग्रुप का एक चैनल है होम शापिंग का। रोज सामान बेचा जाता है इससे।
मेरे एक पियक्कड़ पत्रकार मित्र नशे में कहते हैं कि यह चैनल सबसे ज्यादा प्राफिट देता है बैल साहब को। बैल साहब चैनल के सुप्रीम कर्ताधर्ता हैं। उनके नजदीकी लोग बताते हैं कि कंपनी चलाते-बढ़ाते इतने निष्ठुर और कामी हो गए हैं कि बिलकुल बैल नंबर वन बन गए हैं वो। बताते हैं कि रोजाना दो करोड़ के आसपास की बिक्री हो जाती है उनके होम शापिंग वाले चैनल से। अगर दस फीसदी मुनाफा भी हाथ लग रहा है तो जोड़ लीजिए कितना होता है। उनके ढेर सारे चैनलों में सबसे कमाऊ पूत टाइप चैनल यही वाला चैनल है।
इसी चैनल में एक एंकर साहब काम करते हैं। रोजाना पांच हजार रुपये पगार पाते हैं। जोड़ लीजिए, महीने का कितना हुआ। चैनल के अच्छे एंकर इसलिए माने जाते हैं क्योंकि सामान बेचने में मास्टर हैं, उसी तरह जैसे कुछ लोग खबर बेचने में पीएचडी हैं। डेढ़ लाख रुपये मासिक पगार पाने के बावजूद वे अपनी आदत से लाचार रहते हैं। आदत बोले तो हैबिट। हैबिट एक ऐसा रैबिट है जिससे पीछा छुड़ाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन-सा होता है इस घोर कलयुग में। तो चैनल के इस एंकर साहब की हैबिट ये है कि मौका देखते ही ये कुछ न कुछ मार देते हैं, तड़ी पार कर देते हैं, नौ-दो ग्यारह कर देते हैं। इनने पिछले दिनों चैनल से एक मोबाइल तड़ी पार कर दिया। वही मोबाइल जिसकी बिक्री के लिए उसके फीचर्स की व्याख्या करने को उन्हें हस्तगत किया गया था पर उन्होंने उसे जेबगत कर लिया। उन्होंने प्रोग्राम के बाद के कुछ घंटों में अगड़म-बगड़म करते हुए मोबाइल को छू मंतर किया।
पर आजकल छू मंतर कहां चलता है भइये। सीसीटीवी-फीसीटीवी का दौर है। हगते-मूतते भी लोग पकड़ जाते हैं, जबकि ये बेहद निजी काम हो रहा होता है। बेइमनवे तो हर जगह निगाह मार देते हैं, कपड़े के भीतर भी। तो मोबाइल चोराते कहां से बच पाएंगे एंकर साहब। पहले चैनल के आफिस से टाई, कोट, कलम वगैरह वगैरह पार किया करते थे, और अब एक दिन मोबाइल पार कर दिया। धरा गए। पकड़ा गए। सीसीटीविया ने उनकी चोरी पकड़वा दी। बस, फिर क्या था। चैनल वालों ने उनको चलता कर दिया।
चैनल वालों ने आंखें मूंद कर, ललाट पर दैवत्व उतार कर और लबों पर सुकोमल मुस्कुराहट बिखेरते हुए बताया कि उनका वसूल है कि वो चोर को नहीं रखते अपने पास।
बजार में भौचकियाए घूम रहे किसी दुर्जन ने उनका ध्यान भंग करते हुए पूछ लिया कि तुम जो माल बेचकर कमीशन की खोरी उर्फ चोरी करते हो, वह क्या है बे???
तो चैनल वाले स्वामी जी के मुख से मोतियों से बोल फूट पड़े…. हम लीगल चोर हैं, सुन बे, हे बजार के दुर्जन, वो एंकरवा इल-लीगल चोर है, सुन बे, हे मतिभ्रम!!!!
चलिए इस कलियुगी शास्त्रार्थ के फचड़े पचड़े में नहीं पड़ते हैं और अंखिया बंद करके निकल लेते हैं क्योंकि अपन को और आपको तो पता ही है कि बहुत पुरानी कहावत है, लांग लांग एगो वाली…. कि …. डकैतजी ने अपने गिरोह में ऐलान कर दिया था …. कि … उन्हें हमेशा ईमानदार सदस्य भाते हैं …. क्योंकि …. उन्हें धोखा, चोरी, विश्वासघात सख्त नापसंद है।
सो, ये चैनल वाले भले चोर हों पर उनके किसी कर्मचारी ने चोरी कर दी हो तो वो कैसे माफ कर सकते हैं भला।
तो हे भइया, वो एंकरवा निकाल दिया गया है।
ये कहानी मेरे पियक्कड़ मित्र ने बताई है। पता नहीं वो झूठ बोल रहा था या सच। या हमको चरा रहा था। कुछ सुराग वुराग आपको भी लगे तो कनफुसिया दीजिएगा। मैं ठहरा झक्की दारूवाला, जब मूड बना तो जितना पता चल सका था उतना झकझका के लिखने बैठ गया।
देखता हूं कि यशवंत बाबू इसको छाप पाते हैं या नहीं। सुना है वो भी आजकल बजार के सज्जन पुरुष बनने की फिराक में हैं पर बातें परलोक की करते रहते हैं।
जय हो मदिरा देवी की, जय हो इस लोक की….
और अब मैं चला परलोक चिंतन करने…
जरा पैगवा में पनिया मिलाना रे बाबू देलहवी रजा जंगरचोर ….
लेखक झक्की दारूवाला मीडिया की आफ द रिकार्ड खबरों के ज्ञाता और भड़ास4मीडिया के व्याख्याता हैं। ये अक्सर दारू में टुन्न रहते हैं और खुद से भी सुन्न रहते हैं, लेकिन वे सब बूझते हैं। आप उन तक अपने संस्थान की अकथ कहानी अगड़म-बगड़म कालम में प्रकाशित होने के लिए भेजना चाहते हैं तो [email protected] पर मेल करें और सब्जेक्ट लाइन में ”अगड़म-बगड़म” या ”agdam-bagdam” जरूर लिखें ताकि झक्की भाई साहब को अपनी खबर खोजने में दिक्कत न हो। आपकी खबर मिलते ही उनको पहुंचा दी जाएगी।