अपने आपको दुनिया का ग्यारहवें नंबर का सबसे बड़ा अखबार समूह बताने वाले दैनिक भास्कर समूह में हड़कंप मच गया है। हालत यह है कि 20 मई को होने वाली डायरेक्टरों की बैठक अब 27 मई तक के लिए टाल दी गई है। दैनिक भास्कर के नए मालिक समूह डीबी कॉर्प ने झारखंड में जो दो नए संस्करण चालू करने पर तैयारियों में ही पानी की तरह पैसा बहाया था वे भी अब कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़ गए हैं। ऐसा इसलिए हुआ है कि दैनिक भास्कर के मालिक होने का दावा करने वाले रमेश अग्रवाल और उनके बेटे सुधीर और गिरीश सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को भी नहीं मानते।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि दैनिक भास्कर नाम पर अग्रवाल परिवार की जिस दूसरी शाखा का कब्जा है, उनका भी अधिकार है। उन सबकी सहमति के बगैर कोई नया संस्करण शुरू नहीं किया जा सकता। दैनिक भास्कर झांसी के मालिक और उत्तर प्रदेश में कहीं भी संस्करण खोलने के लिए अनुबंध के तहत अधिकृत संजय अग्रवाल ने झारखंड की अदालतों में अपील कर के प्रकाशन रुकवा दिया है और अदालत ने डीबी कॉर्प यानी रमेश अग्रवाल से सात दिन के अंदर सफाई देने के लिए कहा है।
इस बीच उत्तर प्रदेश पर अपने एकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए संजय अग्रवाल ने दिल्ली के एकदम पड़ोस में नोएडा से दैनिक भास्कर का प्रकाशन शुरू करने का फैसला किया है। दैनिक भास्कर की अपनी प्रिटिंग प्रेस भी नोएडा में ही है और वे बहुत सारे दूसरे प्रकाशन भी छापते हैं। यह कहानी अदालत में और उसके बाहर लंबी खिच रही है लेकिन इसका मतलब आपकी समझ में तब तक नहीं आएगा जब तक भास्कर की स्थापना और बाद में सफलता के साथ हुई हेराफेरी की कहानी आपको नहीं बता दी जाए। यह कथा पहले भी बता चुका हूं मगर नए संदर्भो में फिर पढ़ लीजिए।
बहुत संभव है कि आपने 1956 में भोपाल से प्रकाशित सुबह सबेरा और 1957 में ग्वालियर से प्रकाशित गुड मार्निंग इंडिया के नाम भी न सुने हों। झांसी से ग्वालियर आए सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने ये दो अखबार शुरू किए थे। अखबार चल निकले तो 1958 में इनका नाम भास्कर समाचार कर दिया गया। उसी साल ग्वालियर से जयेंद्र गंज मोहल्ले में एक गली से दैनिक भास्कर की शुरुआत हुई। आज देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक दैनिक भास्कर का पहला संस्करण अब भी उसी गली से छपता है।
भाई साहब द्वारका प्रसाद अग्रवाल एक बड़े हॉल मे बैठते थे जहां एक ओर संपादकीय विभाग था और दूसरी ओर प्रसार यानी सरकुलेशन। नीचे की मंजिल पर रिपोर्टिंग वाले बैठते थे और पाई-पाई का हिसाब रखने वाले भाई साहब अखबारों के बंडल स्टेशन पहुंचाने वाले ऑटो रिक्शा पर नजर रखने के लिए कई बार उसके साथ अगली सीट पर बैठ कर चले जाते थे। तब तक उनके पास कार भी नहीं थी।
इन दिनों भास्कर समूह खबरों में है। भास्कर ने डीबी कार्प के नाम से शेयर बेचने शुरू किए हैं। इस पर बवाल है। अदालत में मुकदमा भी चल रहा है। कहानी यह है कि सेठ द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने दैनिक भास्कर चलाने के लिए जो कंपनी रजिस्टर करवाई थी उसका नाम द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स था। यह भागीदारी फर्म थी और इसमें उनके भाई महेश अग्रवाल भाई विश्वंभर अग्रवाल और बेटे रमेश अग्रवाल शामिल थे। विश्वंभर अग्रवाल नहीं रहे तो उनके बेटों ने अपना हिस्सा रमेश अग्रवाल को बेच दिया और बदले में जबलपुर, सतना और नागपुर में भास्कर के संस्करण चलाने का लीज पर अधिकार उन्हें दे दिया गया।
मगर अचानक रमेश अग्रवाल ने अपने आपको भास्कर समूह का मालिक घोषित कर दिया। खुद द्वारका प्रसाद अग्रवाल अपने बेटे के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय तक गए जहां कहा गया कि अखबार का मालिक द्वारका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स ही है और दैनिक भास्कर नाम पर भी उसका अधिकार है। द्वारका प्रसाद जी की बेटी हेमलता अग्रवाल को भी कंपनी में सर्वोच्च न्यायालय ने भागीदार करार दिया।
हेमलता कहती हैं कि रमेश अग्रवाल और भास्कर प्रबंधन ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या कर के अवमानना की और दिल्ली सहित कई जगह उनके नाम जो संपत्ति थी, वह भी बेच डाली। रही बात भास्कर के धंधों की तो हाल ही में उसने दिल्ली के सुपर बाजार की इमारत खरीदने के लिए टेंडर डाला है।
देश के अखबारों को नियंत्रित करने वाले आरएनआई ने जुगाड़ विशेषज्ञ भरत अग्रवाल की कृपा से दैनिक भास्कर का मालिक अचानक बीपी अग्रवाल एंड ब्रदर्स से रायटर्स एंड पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड को बना दिया। इसके लिए बाकी भागीदारों का दावा है कि रमेश अग्रवाल ने अपने पिता द्वारा सारी हिस्सेदारी अपने नाम करने का दस्तावेज पेश किया। द्वारका प्रसाद जी को तब तक लकवा मार चुका था मगर उन्होंने अदालत से कहा कि उन्हें ऐसा कोई दस्तावेज याद नहीं है। द्वारका प्रसाद अग्रवाल की दो पत्नियां थी। किशोरी देवी और कस्तुरी देवी।
सर्वोच्च न्यायालय ने किशोरी देवी और उनकी बेटियों हेमलता और अनुराधा को द्वारका प्रसाद अग्रवाल की हिस्सेदारी सौंपने के लिए भी आदेश दिया जो अब अपील में है। हेमलता दिल्ली में रहती हैं और उनके पास बहुत पैसा नहीं है जबकि रमेश अग्रवाल की ओर से देश के सबसे महंगे वकील खड़े किए जाते हैं। रमेश अग्रवाल को उनके चाचा विश्वंभर दास फर्जी चेयरमैन बताते हैं और रमेश अग्रवाल की ओर से इस बारे में कभी कोई जवाब नही आया।
जब वे अपने बीमार पिता के खिलाफ मुकदमा लड़ सकते हैं, जब वे भास्कर नाम छिनने से डर कर नव भास्कर और दिव्य भास्कर चलाने की अर्जी दे सकते हैं तो वे कुछ भी कर सकते हैं। नव भास्कर का उनका आवेदन जबलपुर उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। दिव्य भास्कर गुजराती में बड़ा अखबार बन चुका है। जी समूह के साथ मिल कर अंग्रेजी में मुंबई से डीएनए निकाला गया मगर भास्कर समूह की इस मामले में असमर्थता को देख कर अब जी समूह ने इसकी संपादकीय जिम्मेदारी खुद संभाल ली है। रमेश अग्रवाल का नमक और तेल का धंधा अच्छा चल रहा है और खुद अपनी वेबसाइट के अनुसार यह समूह ग्यारह सौ करोड़ रुपए का मालिक है। इस रकम में कितनी किसकी है, इसका फैसला तो अदालत ही करेगी।
लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.
BIJAY SINGH
May 27, 2010 at 5:17 pm
BHAI ALOK TOMAR JI ,
badhai ho,mast report hai.
desh ke diggaj akhbar ka dawa karne walo ka ye haal hai.mujhe kuch kahani malum thi kyonki main bhaskar me kam kar chuka hu.,lekin aapne dwarka prasad agarwal ji ki kahani bata kar bhaskar ke naye mailkon ki poll khol di hai,bhai saheb kya kijiyega paisa aise hi kamaya jata hai na.
punjipatiyon ka hisab dekhiye to ghaple samne ayenge hi ayenge.
punah badhai ,hum aapke saath hain.
Pawan bansal
May 26, 2010 at 6:29 am
good investigative story. alok ji keep on the traditions of sh Prhabash Ji
sushil Gangwar
May 22, 2010 at 5:03 am
Patrkaar darta nahi daarata hai Print media se lekar Electranic media ki khabro ka rang rup hi ud gaya hai. Eske liye jimmdaar kown hai . Patrakaar ko dar hota to Sahara samachar patra or Ambedkar today Patrika me Gali galoch ka prayog kyo karta. Esse saaf jahir hota hai .Aaj ke patrkaaro ko dar nahi lagta hai. Mai ek ese thaila chhap patrakaar ko janta hu. Jo shichha ke maamle me Kala akchhar bhais barabar hai . Newspaper or News site chalta hai. Chhote mote sing opration ko anjaam karke thodi si kamaee bhi kar leta hai. vah Editor cum Journalist saal me do baar jail ho aata hai. Jab maine usse puchh ki bhai jail jaane se dar nahi lagta hai to ,vah bola yaar Pahle din Bahut dar laga tha . Ab meri aadat ho gayi hai. Fir kis baat ka dar ? Lalu ji ne kaha hai Jail jaane se jeevan sarthak hota hai. Hakikat me aaj ka patrakaar Patrakarita nahi karna chahta hai. Vah paise khakar Puri khabro ko hajam kar leta hai. esliye patrakarita ka bade paimane par Business ho raha . Khabre table or under table bik rahi hai hai. Gar kowi apni jaan jokhim me daal kar khabar lekar TV chennal ke pass jata hai. Tathakathit chennal us bande se phone karke Paiso ki maadvani karta hai. Tum hame khabar na chalane ke kitne paise de sakte ho. Bechara khabarchi Mufaat me maara jaata hai. vah sochta hai khabar aaj chalegi or kal chalegi . Ese kya kahege Patrakarita ?
http://www.sakshatkar.com
अजय शर्मा
May 22, 2010 at 9:49 am
मैंने तो सुना है की आलोक तोमर जी को दैनिक भास्कर से ग्वालियर में खुद स्वर्गीय, द्वारका प्रसाद अग्रवाल ने जूते मारे थे. कहानी ये भी है की आलोक जी हेमलता अग्रवाल से ओरेम करने लगे थे. क्या वे खुद सच बताएँगे.
Pankaj Sharma
May 22, 2010 at 2:38 pm
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Pankaj Sharma
May 22, 2010 at 2:39 pm
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Pankaj Sharma
May 22, 2010 at 2:40 pm
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Pankaj Sharma
May 22, 2010 at 2:42 pm
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Dr Matsyendra Prabhakar
May 22, 2010 at 3:46 pm
Bhaskar parivar ke jhagde men karobar ya vyapar ka bhale hi koi fayda ho, patrakarita aur patrakar ka ismen nuksan hi hai. patrakar bandhu iss haqiqat ko samjhen aur iss jhagde ki bina par ho rahe kathit vistar ko aadhar bana kar uchhal-kood na karen tabhi behtar hoga, bhai har cheez ki apani ek sima hoti hai.
Rituraj Upadhyay
May 22, 2010 at 5:21 pm
Mr. Toumar will u plz tell me how u know everything……. i mean ur story indicate that u have some personal problem from bhaskar…but kuch bhi ho bose aapne to puri kundali hi teyar kr dali…… itna to khud ramesh agrwal bhi nhi jante honge…..
Pankaj Sharma
May 22, 2010 at 7:17 pm
श्री आलोक जी, सच से रूबरू कराने के लिये कोटि-कोटि बधाई!
महोदय,
लोकतंत्र को जिन्दा रखने के लिये समाचार पत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन इस देश के सबसे बड़े हिन्दी समाचार पत्र का दावा करने वाले दैनिक जागरण ने नम्बर दो अखबार भास्कर की खबर को दबा कर जता दिया है कि वे लोक के लिये सिर्फ अपने स्वार्थो के लिये समाचारों को प्रकाशित करते है, रोकते है और उन्हें सनसनी खेज बनाते है। भला हो भड़ास का जिसने राडिया के रंग लोक को सामने लाने और मीडिया के कुलषित चेहरें से परचित कराया लेकिन जिन समाचारों पत्र तथा टीवी चैनल से वीरसंघवी और बरखा दत्त जुड़े उनकी ओर से चुप्पी रहस्मय है। क्या होगा इस देश का
पंकज शर्मा
गुदरी बाजार, झांसी
ALOK TOMAR
May 23, 2010 at 2:56 am
ये अजय शर्मा जो भी हों, उनकी और सब की सूचना के लिए, मैंने दैनिक भास्कर में कभी ”नौकरी” नहीं की. जहां तक जूते मरने का सवाल है तो, स्वर्गीय द्वारका प्रसाद अग्रवाल सिर्फ जुबान के तीखे थे. मेरे तो उनसे सदा आत्मीय रिश्ते रहे. उन्होंने तो मुझे काम करने का निमंत्रण दिया था, मगर मैं दैनिक स्वदेश में काम कर रहा था, जहां से सीधे दिल्ली चला आया. भड़ास पर हे मेरा साक्षात्कार पढ़ लें. सवाल हेम लता से ”ओरेम” करने का तो शायद ये अजय जी प्रेम लिखना छह रहे होंगे. हेमलता मेरी मित्र हैं और रहेंगी. आपको क्या दिक्कत है.
ALOK TOMAR
May 23, 2010 at 2:58 am
भड़ास से ही
आज देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक दैनिक भास्कर का पहला संस्करण अब भी उसी गली से छपता है। ग्वालियर में जब मैं दैनिक स्वदेश में काम करता था तो भाई साहब (द्वारका प्रसाद जी को लोग इसी नाम से जानते थे और वे भी अपने चौकीदार से ले कर संपादक तक को भाई साहब ही कहते थे, नाराज हो कर गाली देते तो भी भाई साहब कहते थे) ने नौकरी के लिए बुलाया था। ‘स्वदेश’ में चार सौ रुपए मिलते थे और भाई साहब ने कहा कि पांच सौ रुपए दूंगा।
balveer
May 23, 2010 at 6:10 am
tomar jee ek ek karke sare pardafash kar rahe , kya tomar jee batange ki unhone aaj tak media ke mafiyon ke sath kyoun kam kiya jab wah intna imandar hai.
Jangbir Goyat
May 23, 2010 at 1:58 pm
tomer ji , ajkal ap kya ker rehe hai .apne apni newsagency suru ji thi na ?
chandra kant
May 23, 2010 at 4:02 pm
riston ko nibhaney ki kala to koi aap se sikhey aur fir saf goie haqiqat to aap ki pahchan hi hai , manayniya atal ji , arjun singh ji , chandraswami ,to sirf nam ke ristey hongey aap ke liye ,itna hi nahin aur na jane kitney sampadkon aur ptrkaron ke pyar main aap alok tomer ban payien hongey .iskey saat – saat aap ke dusman bhi patrakaron main hongey hi aap jaise patrkaron ki sankhya kam hai such kadwa hota hai aap apna dhyan rakh kar patrkaron ko jagruk karten rahengey yahi aap se apekcha rakhta hun