एपीजे अब्दुल कलाम होने को भले ही आज भूतपूर्व राष्ट्रपति हैं लेकिन भारतीय परंपरा और कानून, भारत की जमीन पर तो क्या दुनिया के किसी भी देश में उनसे साधारण मनुष्य की तरह व्यवहार करने की इजाजत नहीं देता। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वीवीआईपी प्रोटोकॉल के हकदार हैं। लेकिन जिस देश के वे महामहिम रहे, उस अपने ही देश की राजधानी दिल्ली में अमेरिका की कांटिनेंटल एयरलाइन ने उनका जी भर कर अपमान किया। भारत ने इस मामले में जब कांटिनेंटल एयरलाइन से माफी मांगने की बात कही, तो पहले तो साफ इंकार कर दिया। लेकिन संसद में खूब हंगामा हुआ तो मामले को बढ़ता देख, दो दिन बाद माफी मांग ली।
भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति कलाम न्यूयार्क जा रहे थे। अमरीका की कांटिनेंटल एयर लाइन ने नई दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयर पोर्ट पर अपने विमान में बिठाने से पहले कलाम को आम यात्रियों की कतार में खड़ा किया। वे इतने सीधे सादे हैं कि भीड़ के बीच लाइन लगा कर खड़े भी हो गए। उनको एक्स-रे से गुजारा, वे गुजर भी गए। और बदतमीजी की सीमा तो तब टूटी, जब बाकायदा उनके हाथ ऊपर उठवाकर तलाशी भी ली गई। भूतपूर्व राष्ट्रपति से कहा गया कि वे अपना मोबाइल, पर्स और हैंड बैग एक्स-रे बेल्ट पर रखें। यह हद थी। भारत के राष्ट्रपति को पद छोड़ने के बाद भी प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति जैसी ही जो सुविधाएं मिलती है उनमें से एक यह भी है कि कभी भी और कहीं भी उनकी तलाशी नहीं ली जाती। लेकिन कलाम के साथ ऐसा नहीं हुआ। कॉन्टिनेंटल एयरलाइंस ने यह बदसलूकी की। बाद में बयान जारी करके चोरी और सीनाजोरी की तर्ज पर यह भी कहा कि अमेरिका के ट्रांसपोर्टेशन सिक्युरिटी एक्ट के मुताबिक बोर्डिंग से पहले की जाने वाली सुरक्षा जांच से किसी को भी छूट नहीं दी जा सकती। लेकिन भारत के अब तक के राष्ट्रपतियों में व्यक्ति के तौर पर बेहद सरल इंसान कलाम की तलाशी लेने वाली यह वही कांटिनेंटल एयरवेज है, जो अपने कर्मचारियों की कभी तलाशी नहीं लेती। इसे अमरीकी बदतमीजी की एक कायर मिसाल कहा जा सकता है।
शर्मनाक तो यह है कि कलाम की तलाशी नई दिल्ली के उस इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ली गई, जहां रोज कई मंत्री–संत्री और दर्जनों अल्लू-पल्लू किस्म के सरकारी प्यादे भी धड़ल्ले से बिना किसी जांच के आते-जाते रहते हैं। और उससे भी शर्मनाक यह है कि हवाई अड्डे के सैकड़ों कर्मचारी, अपने देश के अब तक के सबसे सम्मानित और सबसे मासूम भूतपूर्व राष्ट्रपति का यह अपमान बापू के तीन बंदरों की तरह देखते रहे। बाकी जो यात्री थे, उनमें से कई बेचारे खुद शर्मिंदा हो रहे थे, तो कुछ मूरख हंस भी रहे थे। यात्रियों की प्रारंभिक जांच, सामान के एक्स-रे और तलाशी की जिम्मेदारी किसी अमरीकी एजेंसी के हवाले नहीं बल्कि, हमारी अपनी दिल्ली पुलिस और सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्युरिटी फोर्स यानी सीआईएसएफ के जिम्मे है। इसलिए कहा जा सकता है कि कलाम के मामले में अमेरिकी कमीनेपन से ज्यादा हमारे अपने लोगों की नालायकी भी साबित हुई है। सीआईएसएफ के जवानों और एयरपोर्ट ऑथरिटी के कर्मचारियों ने भी चुप्पी साधकर भारत के सबसे सम्मानित व्यक्तित्वों में से एक के साथ सरेआम हो रहे उस अपमान को खामोशी से देखा।
वैसे, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब अमेरिका ने ऐसी हरकत की हो। बात उन दिनों की है, जब फक्कड़ किस्म के समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज हमारे रक्षा मंत्री हुआ करते थे। वे 2003 में अमेरिका गए थे। तब अमरीका के एक हवाई अड्डे परबाकायदा जॉर्ज फर्नांडीज को कपड़े उतारने को कहा गया। दुनिया भर को अपनी ताकत का लोहा मनवाने वाले शक्तिशाली भारत के ताकतवर रक्षा मंत्री का कुर्ता ही नहीं, पायजामा तक उतरवाकर तलाशी ली गई। हमारी तरफ से तब ऐसा मान लिया गया था कि अमेरिकी कमीनेपन यही हद हो सकती है। और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका द्वारा आतंकवादी सूची में डाल कर वीजा देने से इंकार करने का वाकया भी भारत के अपमान की श्रेणी में इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि हमारे देश में भले ही बाकी दलों द्वारा राजनीतिक रूप से मोदी को अछूत माना जाता हो। लेकिन आखिर हैं तो वे भारत के एक सूबे के साढ़े छह करोड़ नागरिकों द्वारा चुने गए एक संवैधानिक मुख्यमंत्री। कायदे से वे भी बाकी मुख्यमंत्रियों की तरह वहां के वीजा के हकदार हैं। लेकिन अमेरिका ने मोदी को अपने लिए खतरा मान लिया तो मान लिया। कोई क्या कर सकता है।
भारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का मामला अमरीका की धरती पर बुने हुए उनके अंदरूनी मामले मानकर अपने मन को समझाया जा सकता है। लेकिन यहां ज्यादा लज्जित होने लायक बात यह है कि अमेरिका की ने हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति का यह अपमान हमारे अपने लोगों के हाथों, हमारी अपनी ही धरती पर, देश की राजधानी दिल्ली में करवाया। सीआईएसएफ और दिल्ली पुलिस के जवान अपने महामहिम रहे कलाम के हाथ ऊपर उठवाकर तलाशी लेने से इंकार कर देते तो कोई उनकी नानी नहीं मर जाती। शायद उल्टे उनका सम्मान कुछ और बढ़ जाता। लेकिन कलाम एक संजीदा इंसान हैं। यह बुजुर्ग भूतपूर्व राष्ट्रपति इस घटना को शायद कभी याद भी नहीं करे। और कांटिनेंटल एयरलाइन ने भी दो दिन बाद आखिर माफी मांग ली। मगर हम, अपनी अस्मिता को और ऊंचा उठाने वालों का अपमान करवाने के बाद माफी मंगवाकर आखिर कितनी बार इसी तरह अपने आप के खुश करते रहेंगे।
लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक हैं। उनसे संपर्क niranjanparihar@hotmail.com के जरिए किया जा सकता है।