बुरा न मानो होली है… : सवर्णों की दुनिया-मीडिया में….. दिलीप मंडल हैं बड़े परेशान….. होली के मौके पर दिक्खे चिंतित….. रंग डालन को न मिले दलित महान…. ले पिचकारी रामकृपाल पे तानी….. डाल दूंगा रंग सवर्ण महाराज….. रामू भइया बोलें धीरे से….. टाइम्स ग्रुप में न करो ऐसी बात….. वैसे भी अब दलित हैं ब्राह्मण….. सवर्ण भाई तो बन गए बेचारे….. न आरक्षण न है प्रोटेक्शन….. देखो लड़के घूमे हैं मारे-मारे…. वो देखो आ रही एक टोली…. भाग ले भइया एकजुट ये हमजोली…. अनिल चमड़िया एंड कंपनी आई…. साथ प्रगतिशील पिचकारी लाई…. तलाश रहे हैं शहर में कर्फ्यू…. घेर कर डाला गोबर पानी…. याद दिला दी सबकी नानी…. वर्धा से आया अनाम दलित मेल…. लिखा, यशवंत करते भड़ास पर खेल…. मुद्दा खोज आग लगावें….. आग लगे तो आगे बढ़ जावें… पैसे लेकर आग बुझावें…. न बुझे तो आंख बंद कर जावें…..
सीबीआई ने बिछाया जाल…. पकड़ गई अतुल की चाल…. घर का झगड़ा मचा बवाल….. शशि गए बचा के खाल…. अब पछताएं भइया अशोक…. चिड़िया चुग गई तब शोक…. मुंह फुलाए, नहीं रहे हिल…. होली में गले जाओ मिल….
खूब बटोरे हैं पइसा भइया….. अब न खाएंगे चना-लइया….. खबरें बेच-बेच कर तिजोरी भरी….. खुशी में देर रात तक पार्टी करी….. इंस्पेक्टर ने सबक सिखावा….. धन बल से काबू न आवा….. बेच ईमान जब पैसा पावा….. फिर पिटकर काहे पछतावा….. नंबर वन बन संसद तक गवा…. पर सिद्धांत न बचा रख पावा….. पूर्ण भइया ने जो जलाई मशाल…. अब लेकर हाथ में चलें दलाल….. अबकी होली मिल बैठ सोचो….. अपनी इज्जत न करो खोटो
दादा नकवी टेंशन में दिन रात….. आज तक क कहीं बिगड़े न बात…. प्रभु चावला करें हें हें हू हू….. पर अंकुर भइया चुप कर देहूं…. ऐसा पड़ा सीबीआई का डंडा…. आलोक तोमर ले आए अंडा…. अबको होली फ्राई करो भाई….. आमलेट से करो मुंह पुताई
बाल उगे तो हुए आंख का अंधा….. टीआरपी, रुपया और बस धंधा….. अंड बंड संड… करते रहो बकलंड….. रुपया पैसा तो खूब आवेगा….. पर इज्जत बाप न पावेगा….. डरा धमका के तमाशा न दिखा….. बाजार के नाम न्यूज न चढ़ा….. कब तक करेगा आंख मिचोली….. अबकी होली खा भांग की गोली….. सड़क के कीचड़ में जाकर लोट….. जनता आए तो खोल ले लंगोट…. देख क्या फिर टीआरपी आएगी….. बैठे ठाले पब्लिसिटी हो जाएगी….. इस दृश्य का तू वीडिया बना…. खबर न हो तो इंडिया को दिखा….. देख क्या सनसनी मच जाएगी…. नंगा देख जनता ताली बजाएगी…. अबकी होली जा गांव में खेल…. जनता की दिक्कत से कर मेल…. फिर सोच तूने क्या कर डाला….. अच्छे खासे धंधे को मार डाला
तेज तेज न बोल आशुतोष भइया…. चिल्लाने से डर जाएंगी गइया….. पगहा तोड़ाकर जब भाग जावेंगी….. तब पूरे गांव को जगावेंगी….. खबर जो हो चुपचाप बता जा….. धीरे से प्यार से लाजिक समझा जा…. हिंदी वाले ऊंचा थोड़े न सुनते हैं…. हम लोग भी थोड़ा कान रखते हैं….. होली के दिन भांग जरूर खाना….. न मिले गोली तो पैग बनाना…. मोटू चौधरी को साथ बिठाना…मटन रोगन जो-बिरयानी खिलाना…. वामपंथी चेलों को पाठ बढ़ाना….. थोड़ा चढ़ जाए तो गाना गवाना…. राजदीप-राघव का पूरा है हाथ….. जमकर मौज करो टीआरपी भी है साथ
चैनल छोड़ स्वामी फेसबुक पर विराजें….. हिंदी वालों को मठ तक लावें….. भांति-भांति के बात सुनावें…. जो बोले उसे समझावें….. पर किसी हाल में हार न मानें….. रीयल दुनिया में टेंशन टेंशन….. साथी हुए जा रहे अनमन….. कई तो चले गए छोड़ साथ….. पैसा बढ़ा नहीं, बढ़ रहा काम….. ऐसे में होने लगे हैं बदनाम….. रीयल टेंशन वर्चुवल ओर ले जावे….. आसमान में जाकर पालथी लगावें….. अबकी होली इंटरनेट पर ही खेलेंगे…. कोई और खेला तो आनलाइन पेलेंगे….. ऐसे में भइया रंग रखना साथ…. जब स्वामी कहें तो कहना बात….
कल तक सबको मार भगावें… आज खुद घर बैठ हवा खावें… प्रमोद जोशी की कथा निराली… बेरोजगारों की आह गई न खाली…. मैडम मृणाल की भी दाल न गली…. तुनक-भड़क के एक्जिट ले लीं…. जय हो तगड़े तामझाम का…. प्रसार भारती है खास आम का… कुर्सी मिल गई है फिर न्यारी…. पर प्रमोद जोशी कब तक काटें फरारी….. शशि भइया ने बीन बजावा…. सारे गैंग के सांप बुलावा…. भर भर निकलें उजाला बिल से…. सब गावें गीत हिंदुस्तान है दिल से…. कल तक निष्ठा यहां बजावा… आज बांसुरी एचटी का बजावा… अपने आदमी को फिट करावा…. पहाड़ गैंग का काम लगावा…. कार-ओ-बार चलता रहेगा…. तेरा मेरा गैंग बढ़ता रहेगा… प्रतिभावान आंसू बहावा…. सोचे, किस्मत पर ‘मीडिया गोबर’ चढ़ावा….. वैसे तो सब सिद्धांत बघारें… पर सब दिल से धंधा करावें….
श्रवण गर्ग हुए दिल्ली वाले…. कल्पेश याज्ञनिक के ठाठ निराले… चमड़े के सिक्के चलन लगे हैं…. पुराने दिनन के लोग मरन लगे हैं… भास्कर के घर में झगड़ा भारी… भाई बोले- ब्रांड नाम की हुई चोरी-चकारी…. सबको रमेश ने आंख दिखावा….. शेयर मार्केट में झंडा लहरावा…. माया है दुनिया खेल निराले…. आज चढ़े तो कल गिरोगे प्यारे…. अपने घर को एक कराओ….. दुखी आत्मा पर मरहम लगाओ… तब जाकर चैन की रोटी खाओ….. हर युग में रावण बढ़ा है…. दुनिया का राजा बन अट्टाहस किया है… पर एक दिन मारे हैं भालू बंदर…. तब समझ में आवे कि क्या है किस्मत के अंदर….
क्या होली पर आप भी शब्दों का रंग डालना चाहते हैं? कुछ लाइनें शेयर करना चाहते हैं?? तो फिर चुप क्यों हैं, कुछ करिए, कहिए, सुनाइए, दिखाइए, बताइए….. क्योंकि, बुरा न मानो होली है….
Comments on “तेज-तेज न बोल आशुतोष भइया….”
भैया पूरी चड्डी खोलते तो ज़्यादा मज़ा आता.फिर भी क्या पिचकारी मारी है मज़ा आ गया.
मन कर रहा है कि ‘घासीराम कोतवाल का मीडिया पाठ’ नाम से सीरीराम सेंटर में एख नाटक का मंचन कराउं। जिस रौ में लिखा है आपने,मुझे लगता है मंचन कर ही लेंगे। वैसे एक तरीका अच्छा रहेगा कि जइसे आजतक संजीव श्रीवास्तव सहारा प्रणा कर रहे हैं और बाकी के भी सहाराश्री के कर्मचारी,वैसे ही ibn7 को प्रणाम करने के बजाय कान दिखाकर नमस्कार करना चाहिए।…बुरा क्या मानेंगा कोई,बुरा तो इस बात से मान रहा होगा कि..स्साला यहां भी हमरा नाम नहीं लिया गया। आज तकलीफ किसी को गरिआने या उपहास करने से नहीं होता,तकलीफ होती है नोटिस नहीं ली गयी।..
रीजनल चैनल का देखो खेल हर एक यहाँ दंड रहा पेल
डबराल ने एक और पेग चड़ाया गुप्ता जी को उत्तराखंड घुमाया
संजीव श्रीवास्तव का देखो खेल राजेश कुमार बेचेंगे अब तेल
चंडाल चौकड़ी ने जाल फैलाया मारा गया कुशवाह बेचारा टाइम टुडे वाला
चमड़े के सिक्के चलवाओ साधना में नौकरी पाओ
सुमित राय ने खूब बजाई इसी लिए सहारा श्री ने लात जमाई
पंजवानी ने पंजीरी खाई सबको इसने थूक लगाई
एस.पी .त्रिपाठी का शुक्र बलवान बेचारा फिरे हैरान -परेशान
अजय त्रिपाठी ने ठोकर खाई साधना में पड़ रही ठुकाई
कातिल बम बम हैं अनिरूद्ध और शैलेश बेदम हैं
मियाँ जी ना हों दुखी कातिल है तो आप हैं सुखी
मनोज श्रीवास्तव बात है एक दम सच्ची कायस्थ का बच्चा और ब्राह्मण की बच्ची
बुरा ना मानो होली है थोड़ी सी चड्डी खोली है.
mahila press club kee chhatannirali.jugmug rahta hori deewari.mantriyon ka manpasand place netagan tarsate pane ko yahan space.bin rang bhee lagta hai holiyana,rangbirange kapdon ka jalwa hee aisa.mizazan mast hai yahan ka mausam.hardam fagun sa lage iska season.is bar nahin ho raha koi dhamal.shayad eternal fagun hai iska karan.ab mahila diwas par hee hogi hili see masti.jab ye fauj dikhayegi apnee hastii.
चलिये बीती को दुहराते हैं
आयी है फिर से होली,
इसे मनाते हैं ।
क्या फ़र्क पड़ता है
हर दिन की तरह,
ये भी गुजर जायेगा ।
हां थोड़ा अंतर होता है
लोग डगमगाते, गिरते-गिराते,
नज़र आते हैं,
हां हमे टल्ली होने का
आज सामजिक प्रमाण होता है ।
चुहलबाजी, छेड़-छाड़ कर सकते हैं
भड़ास तो निकालते ही हैं,
भला-बुरा कह कर भी,
निकल सकते हैं ।
जुगत मे भिड़े रहते हैं
कई दिन पहले से,
व्हिस्की, रम, बीयर-शियर
ला रख लें सहेज कर,
क्या पता कब से ड्राय-डे हो जाये ।
बड़े ही उल्लास उमंग से
रंग-उमंग संग गले लगते हैं,
अपने बराबरी वालों से,
अटपटा लगा होगा, लेकिन सोचिये ।
हम क्या नया कर जाते हैं
किसे क्या दे पाते हैं,
कोई सोच विकसित नहीं होती,
हां थोडे़ उदार हो जाते हैं,
सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनों के लिये ।
और फ़िर हर दिन हर पर्व की तरह
ये भी गुजर जाता है,
फिर से हम सब व्यस्त हो जाते हैं,
खुद को संवारने और बनाने में !!!!!!!!!!!
वी ओ आई में चली खाली पिचकारी…
मधुर ने खाली गुंजिया सारी… अमित बैठा पीसे भांग
भूखे पेट कैसे खेलें होरी… किसी को सुनाई ना दे दुखियारों की पगार की मांग
स्टाफ की होली … खाली जेब काली होरी…
आका चमचों की भीड संग मुम्बई में देखें गोरियों का ठुमका…
देख ठुमका कैसे बदलेगी चैनल की चाल… वहां कहां गिरा है झुमका …
खाली पीली मीठी बातों से पापी पेट ना भरत है…
कोई उनको ये समझा दे काश…
हीरे सारे निकल रहे हैं अंगुठी से अब तो खोलो आंख…
अतुल अग्रवाल …अजय सिंह … सुभाष गुप्ता …राजकुमार सिंह… … सचिन और कल्याण बोल गए टाट्टा…
मत लो धैर्य का इम्तहान … बांट दो पगार… मत करो त्योहार का मजा खट्टा
बुरा ना मानो होली है