लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘डेली न्यूज एक्टिविस्ट’ (डीएनए) के ग्रुप एडिटर पद से प्रबंधन द्वारा बर्खास्त किए गए देशपाल सिंह पंवार ने अपने उपर लगे आरोपों का जवाब भड़ास4मीडिया को एक पत्र लिखकर दिया है. उनका पत्र इस प्रकार है- प्रिय यशवंत, एक सिद्धांत की वजह से झूठे और घटिया आरोपों का जवाब नहीं देना चाहता था.
किसी भी हाउस में काम करो, उसे अलविदा कहने पर कभी उसकी आलोचना मत करो. 25 साल से पत्रकारिता में हूं. उत्तर भारत टाइम्स, दून दर्पण, अमर उजाला, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, हरिभूमि जैसे न्यूजपेपर्स में बिजनौर से देहरादून, बरेली, मुरादाबाद, मेरठ, कानपुर, काशी, पटना, रांची, रायपुर तक की यात्रा की. 24 घंटे काम किया और बिना किसी गाडफादर के सिर्फ काम के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश की.
साफ-साफ कहने, लिखने और बोलने की आदत रही. सभी हाउसों में किसी ना किसी बड़े से वैचारिक मतभेद भी रहे. पर क्या कभी मुझे किसी हाउस या जर्नलिस्ट की आलोचना करते, खिलाफ बोलते या लिखते किसी ने देखा है? मैं हमेशा यही मानता रहा कि बस अपना काम करो. जिसको जो बोलना है, लिखना है, वो गंदगी फैलाता रहे. डीएनए के मामले में भी मैं चुप रहता पर क्या करूं, सच पर झूठ की छाया को नहीं हटाना भी ठीक नहीं.
डीएनए के मुताबिक मुझे गंभीर आर्थिक और चारित्रिक सिर्फ शिकायतों के आधार पर हटाया गया है. केवल शिकायत, किसकी, पता नहीं. आपको पता हो तो सबको बताओ. मैं भी जानना चाहता हूं. शिकायतों के आधार पर किसी की इज्जत नहीं उछाली जाती. झूठी शिकायतें सबके खिलाफ आए दिन होती रहती हैं. आपके खिलाफ भी होती होंगी. उनकी जांच होती है. सच होने पर ही एक्शन होता है. क्या उसका ऐसा करना और आप लोगों का बिना प्रूफ लिए कुछ भी पब्लिश कर देना सही है? वैसे बता दूं कि मैं जनवरी से अब तक तीन बार इस्तीफा दे चुका हूं. कहो तो प्रूफ भी भेज दूं? अब साबित हो गया कि मेरा इस्तीफा साजिशन मंजूर नहीं किए गए. कुछ बातें और-
1- किसी भी अखबार का विस्तार पैसे से होता है. क्या बिना एक पैसा पाकेट से लगाए कोई हाउस कोई यूनिट खोल सकता है?
2-क्या विस्तार के नाम पर डीएनए सुप्रीमों ने पाकेट से कभी एक भी पैसा खर्च किया है?
3-विस्तार बैंक, बाजार या परिचितों से लोन पर लिए पैसे से होता है ना कि फोकट की रकम से?
4-जिस अखबार के पास आरएनआई नंबर तक ना हो, सरकुलेशन ठीक ना हो, क्या उसमें कोई बिल्डर या पालीटिशियन करोड़ों रुपये लगाएगा और वो भी डोनेशन के रूप में? बिना किसी फायदे के?
5-ये करिश्मा डीएनए मालिक ही कर सकते हैं. क्या मेरे जैसा जर्नलिस्ट ये कर सकता है? अगर हां तो फिर मेरे जैसे नौकरी के लिए क्यों 24 घंटे गुहार लगाते रहते हैं? घर चलाने के लिए क्यों खटते रहते हैं? आखिर क्यों?
6-अगर जर्नलिज्म के काम प्रभावित ना हो तो क्या जर्नलिस्टों के रिश्ते पालीटिशियन से होना गुनाह है?
7-क्या कोई बिल्डर या पालीटिशियन डीएनए जैसे अखबार के नाम पर मुझे करोड़ों रुपये फोकट में दे सकता है? अगर हां तो फिर देश का कोई भी संपादक रिश्वतखोरी से अछूता नहीं है. डीएनए के मुताबिक अगर मुझे ये पैसे मिले हैं तो फिर तो मेरा नाम गिनीज बुक में दर्ज होना चाहिए.
8-अब सबको ये भी बताया जाए कि किस बिल्डर और पालीटिशियन ने कब कहां और कितना पैसा मुझे डीएनए या मेरे नाम पर दिया?
9-क्या किसी संपादक के पास किसी अखबार में फाइनेंस की पावर होती है? मेरे पास तो नहीं थी. फिर मैंने घपला कैसे किया?
10-कैरेक्टर को लेकर आज तक मेरे उपर उंगली नहीं उठी. निहायत घटिया और झूठा आरोप है. मैं साबित कर दूंगा.
11-मैं जितने दिन लखनऊ रहा, लखनऊ विश्वविद्यालय के मिस्टर राय के ही डिपार्टमेंट के हास्टल में रहा. वहां उनकी पूरी नौकरों की फौज रहती थी. दिन में उनकी ही कार से आफिस जाता था और रात तक आफिस में ही रहता था. लंच और डिनर मिस्टर राय के साथ उनके ही घर पर करता था. किसी ब्यूरो आफिस में कभी विजिट पर नहीं गया. सब ब्यूरो को एक बार लखनऊ बुलाया. मुझे पता नहीं है कि कब, कहां और कैसे मैंने क्या गलत कर डाला?
12-हकीकत ये है कि दिल्ली, पटना आदि अनेक शहरों में विस्तार के नाम पर मैंने ज्वाइन किया था. मुझे नहीं पता था कि ये सारा धंधा फोकट की रकम से करना चाहते हैं. अखबार के सहारे कमाने, सबको झुकाने और राज्यसभा जाने का सपना पाले हुए थे. सब इनका वेल प्लान था. पूरा नहीं हुआ तो इन हरकतों पर उतर आए. कभी इन्हें 2-4 गुर्गों को छोड़कर किसी पर भरोसा ही नहीं था. मुझसे पहले के संपादक पर भी पैसा खाने के आरोप रोजाना लगाते रहते थे.
13-दिवाली से पहले ही इन्होंने अपनी नीयत साफ कर दी थी. मुजे पर ब्याज की बजाय फोकट का पैसा लाने का दबाव डालने लगे. मिनिस्टर और आईएएस आईपीएस के खिलाफ लगातार झूठी खबरों को प्लांट कराते थे. खासकर मेरे लखनऊ से बाहर रहने पर. मेरे विरोध करने पर मतभेद बढ़ते गए. आखिर जब दिसंबर के लास्ट में सिचुवेशन गंभीर हो गई तो मुझे इस्तीफा देकर लखनऊ से जाना पड़ा. प्रिंटलाइन से नाम हटाने को कहने पर भी नहीं हटाया गया.
14-जनवरी में राजभवन कालोनी एपिसोड पर भी इनकी सोच व अखबार की कवरेज से मैं खुश नहीं था. पर इनका अखबार कुछ भी छापता रहा.
15-फरवरी में दो स्टाफर को बिना बताए हटा दिया गया. अखबार में उनकी खबर छाप दी गई. मैंने फिर विरोध किया. नहीं सुना गया.
16-मार्च में इन्होंने मुझे दिल्ली में विश्वास दिलाया कि जैसा चाहेंगे, वैसे ही होगा. पर जब 17 को मैं वहां पहुंचा तो हालात और खराब थे. लखनऊ पहुंचते ही इन्होंने धमकी भरे सुर में पैसा लाने को कहने लगे. इनके यूनिवर्सिटी के गुर्गे भी कम नहीं ते. 23 को ही मैं वहां से लौट आया. फिर नहीं गया. मैंने फिर इस्तीफा भेजा. प्रिंटलाइन से नाम हटाने को बार-बार कहा पर इन्होंने नहीं हटाया.
17-अप्रैल में खुद मिस्टर राय ने कानपुर आफिस बंद करने का आदेश दिया और सामने मेरा नाम रख दिया. जबकि हकीकत ये है कि मैंने अपने समय में कभी किसी को नौकरी से नहीं हटाया. उल्टे, पहली बार अक्टूबर 09 में 20-22 को प्रमोशन, सबको इनक्रीमेंट और सबको पहली बार लेटर दिए.
18-मैं मदर इन ला की डेथ और सिस्टर के सीरियस एक्सीडेंट से परेशान रहा. और ये मुझे अलग से परेशान करते रहे. रिश्ते खराब नहीं करना चाहता था इसी वजह से खामोश रहा. मेरी खामोशी को शायद मेरी कमजोरी समझ लिया गया.
19-मई से लेकर 3 जून तक ये मेरे उपर प्रेशर डालते रहे. मैं क्या डकैती डालकर पैसा लाता. मेरे साफ मना करने पर इन्होंने मुझे बर्बाद करने की ये साजिश रची.
20-मेरे नाम का इन्होंने फायदा उठाया. 3 जून तक मैं ठीक था. अचानक गलत हो गया. अगर पहले मैं गलत था तो मेरा इस्तीफा मंजूर क्यों नहीं किया गया? मेरा प्रिंटलाइन से नाम कहने पर भी क्यों नहीं हटाया गया? आरोपों के सिलसिले में मुझे नोटिस क्यों नहीं भेजा गया?
21-मेरे पास मीटिंग के अनेक फुटेज हैं. और कई अन्य महत्वपूर्ण सबूत हैं. समय और जरूरत पर ही बोलूंगा. मैं जानता हूं मैं सही हूं. ईश्वर जानता है कि मैं सही हूं.
इस समय जो मेरे साथ खड़े हैं, उनका शुक्रिया. जो मेरे विरोध में खड़े हैं, उनका तहेदिल से शुक्रिया क्योंकि विरोधी ही मेरी ताकत हैं और उनसे ही मुझे एनर्जी मिलती है. लड़ने और जीतने की प्रेरणा मिलती है.
धन्यवाद.
देशपाल सिंह पंवार
rajan nayak
June 13, 2010 at 6:28 pm
dear pawar,
yaar pawar tune murga khake mujhe gurga bana diya. yeh kuch jama yaar dubara jab kabhi is gurge se mulaqat karne aana toh murga banne ko taiyaar rehna.
sachin lucknavi
June 13, 2010 at 9:22 am
agar aap sahi hain to koi aap ka kuch nhi kar sakta. aur dna se aacha kaam kahi aur mil jayega. meri shuhkamanaye aap ke saath hain.
madan baliyan
June 13, 2010 at 11:04 am
sir; kalam k liye jeena marna.
ap kabhi rai jaiso se mat darna.
kabhi-2 darate hai rat k andhere.
lekin tay hota hai suraj ka nikalna.
madan baliyan
09215681090
rakesh seth
June 13, 2010 at 11:50 am
Res.Pawar ji
aap ke upar lage aarop sub jhuthe hai
yeh me vishwash ke sath keh sakta hu.
mai aapke sath hu.
With Regards
rakesh
Dr Matsyendra Prabhakar
June 13, 2010 at 11:54 am
Panwar jee, jis roz aap ke barkhast hone ki khabar chhapi thi, usi din mujhe yah laga tha ki dal men kuchh kala zaroor hai, iss liye nahin ki main aap ko Karib 22 sal se janta hoon, balki iss liye bhi ki kabhi kisi ke munh se aap ke bare men bura nahin suna tha, jisne aap ka nam liya aap ki kisi na kisi sadashayata ka hi zikra kiya. Par kya karenge jis ke pas sadhan aur zariya hai-vahi shreshtha hai. Aap tak meri bhawnayen pahle hi pahunch gayeen hoteen par us roz unhen add karte hue main ‘Terms of Uses’ par tick lagana bhool gaya. Zaldbazi men Aisa kaie bar ho jata hai, bad men ya to pahle ke khayal bikhar jate hain ya phir Aalasya men unhen dobara nahin likha ja pata. Kash Yashwant jee ke iss portel par ‘Add Comment’ par click karne ke bad apne computer screen par apna likha save rahta.
Rajeev Sharma
June 13, 2010 at 12:50 pm
पंवार जी, ये उथली तलैया सरीखे खाक नव-धनाड्य, आप जैसे खांटी जर्नलिस्ट का नाम मीडिया हाउस से सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए जोड़ते हैं। प्रिंट मीडिया में आप स्थापित हस्ताक्षर हैं। आप पर आरोप लगा कर ये खुद अपने चरित्र को आरोपित कर रहे हैं। आपकी पीड़ा जायज है। दर असल, ऐसे लोगों ने पत्रकारों से अपनी पीड़ा जाहिर करने का अधिकार भी छीन लिया है। एक झूठा आरोप लगा कर ऐसे लोग न्याय के तराजू में पासंग बन जाते हैं।
chandresh sharma, corespondent. chatra-jharkhand
June 13, 2010 at 1:11 pm
pawar sahab, mai aapko kafi dino se jan raha hu. aapke upar lage bharstachari Aditor hone ke aaropo me jara si bhi sachhai nahi hai . awr rahi media house ki bat, to isme do ray nahi ki media house apne niji sawartho ke liye hamesa se bikti rahi hai. mai aapke is sachhai ka tahe dil se samarthan karta hu..
chandresh sharma, corespondent. chatra-jharkhand
June 13, 2010 at 1:19 pm
mai aapki bhawnao ki kadra karta hu. awr aapke sath khada hu.media houso ki karstaniyo se har koi aaj wakif ho gaya hai, ki apne hito ke liye ye kaise-kaise kukrm karte hai.
sanjay singh
June 13, 2010 at 2:01 pm
Panwar jee ko jitna main janta hoon, uske anusar ve bhukhe mar sakte hain, lekin bhrasht nahin ho sakte. patrakarita ki shuchita ke liye ve kuchh bhi kar sakte hain. Ranchi me main unke sath ek sal kam kar chuka hoon. main yah bhi janta hoon ki ve muddon par kisi se bhi bhir sakte hain, naukari ko lat mar sakte hain. Lalaon ki chamchagiri aur patrakaron ki partarna bhi ve nahin sah sakte. Bidrohi tejswita ke dhani panwar sahab apne sahkarmion me bhi yahi AAG bharte rahe hain. Bravo Panwar sir.
manorath mishra
June 13, 2010 at 2:20 pm
dono ek thaile ke chattey baatey hai. haan pawar thoda kam ghatiya ho saktey hai bas. etna bhar ka antar hai.
sanjay singh
June 13, 2010 at 4:56 pm
panwar sahab chup rahnewalon me kabhi nahin rahe. Aaropo ke upar bhi rahe hain. pahli bar unpar aarop padhne ko mila. waise unhen jannewale jante hain ki lalaon ki kargujarion ki pole kholte rahe hain aur patrakaron ke pakch me khare rahe hain. yahi karan hai ki kabhi vah mukam hasil nahin kar sake, jo dusre tthakathit saphal editor kar paye. bravo…. Panwar sahab
पंकज कुमार झा.
June 13, 2010 at 4:58 pm
काफी कम पवार जी के बारे में जानने का मौका मिला था.जब ये रायपुर में हरिभूमि में थे तब इनका लिखना-पढना जानता था. साथ ही व्यक्तिशः भी थोड़ा-बहुत उन्हें समझना का मौका मिला. उस आधार पर कहा जा सकता है कि देशपाल साहब में एक पत्रकार क़ा गरिमा और एक संपादक का गाम्भीर्य सतत पाया है. डीएनए प्रसाशन के बारे में ज्यादा नहीं जानता लेकिन यह तय है कि जिस तरह से उसने अपने संपादक को बर्खास्त करने की खबर छाप कर इन्हें बेईज्ज़त किया है. वह कहीं से मर्यादा के अनुकूल नहीं है.निश्चित ही अभी कम से कम पवार साहब को शक का लाभ दिया सकता सकता है. अगर अखबार के पास कोई ठोस सबूत थे तो उसको सामने लाना चाहिए था. एक कोलम की खबर छप कर किसी के चरित्र पर तक लांछन लगाने की निंदा ही की जानी चाहिए.
सादर/
सम्पादक,दीप कमल.
रायपुर,छत्तीसगढ़.
sandeep prajapati
June 13, 2010 at 7:52 pm
making allegations against any journalist is totally wrong. and allegation against such a gentle person adds more to it. i was companion of pawar sir in haribhoomi.i thimnk that he has been trapped by any notorious guy………..and truth is far behind it……….
s kumar
June 13, 2010 at 8:30 pm
yashwant bhai dna ne aapko kitana paisa diya tha D P S Pnwar ke khilaf likane ke lie. bhai aapni kimat ya rate hame bhi bta do bandhu kabhi kisi ke khilaf likhwana hua to utana paisa dekar likhawa lunga aap se
s kumar
June 13, 2010 at 8:33 pm
aakhir tum bhi bik gae dost
s kumar
June 13, 2010 at 8:35 pm
DNA news paper ke malik ki itani awkat nahi ki DPS panwar ke bare me kuch bole
saroj kumar singh
June 14, 2010 at 3:56 am
no problem sir
sandeep shrivastava
June 14, 2010 at 3:32 am
DPS PAWAR JI – Namaskar aapne Raipur haribhoomi chodkar accha faisla nahi kiya chhattishgarh ko aap ke anubhav ka pura laabh nahi mila.aapse 2 baar mobile par baat hui lekin samne baithne ko mouka mere busy rahne ke karan nahi ho paya.
aapka samman patrakarita ke acche group me hoga baagwan par bharosa rakhiye der se hi sahi nyay milega aisa mera manna hai.
sandeep shrivastava- sr journalist -chhattishgarh. contact -09425565365
Ramnandan Kumar
June 14, 2010 at 4:54 am
Mujhe poora vishwas hai ki aap sahi hain, isliye koi aapko kuch nahi kar sakta.Kabhi-kabhi jhooth ka bhi palra bhari ho jata hai, isliye bina ghabraye apna kaam karte jaiye.Is duniya mein kitne hi sachche logon par ungliyan uthai gayi hain. Meri shuhkamanayen aapke aur aapke pariwar ke saath hain.
vikas
June 15, 2010 at 2:19 pm
No comment