वरिष्ठ पत्रकार रामकृष्ण पांडेय की जिंदगी ईमानदारी और संवेदनाओं से भरी रही। उनकी संवेदनशीलता की गवाह उनकी कविताएं भी हैं जिसमें बहुत बारीक-बारीक इमोशन्स को उकेरा गया है। उनके कविता संग्रह ‘आवाजें’ से यह एक कविता यहां प्रस्तुत कर रहे हैं–
बच्चे डरते हैं
खो नहीं जाएं पापा
बच्चे डरते हैं
बच्चे डरते हैं
इसलिए वे प्राथनाएं करते हैं
‘गाड सेव माई पापा’
‘भगवान मेरे पिता की रक्षा करना’
किंतु भगवान उनकी रक्षा नहीं करता
भगवान बच्चें की नहीं सुनता
रोज सुबह घर से निकलते हैं उनके पापा
कभी नहीं लौटने के लिए
बच्चे डरते हैं
खो नहीं जाएं पापा
बच्चे पूछते हैं
‘पापा, आप खो नहीं जायेंगे पापा’
पापा कुछ नहीं बोलते
बच्चे पूछते हैं
‘पापा, कौन लाएगा हमारे लिए चाकलेट’
‘कौन हमको घुमाने ले जायेगा पापा’
पापा कुछ नहीं बोलते
‘पापा हमें प्यार कौन करेगा पापा’
बच्चे पूछते हैं
पापा कुछ नहीं बोलते
‘आप बाहर क्यों जाते हैं पापा’
‘चुन्नु के पापा भी खो गये पापा’
‘चुन्नु की मम्मी बहुत रो रही थी पापा’
‘चुन्नु बता रहा था
अब नहीं लौटेंगे उसके पापा’
बच्चे पूछते हैं
‘आप खो जायेंगे पापा’
पापा कुछ नहीं बोलते.
-रामकृष्ण पांडेय