Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

हांडी के हर चावल की जांच करना संभव नहीं

[caption id="attachment_15698" align="alignleft"]कुमार सौवीरकुमार सौवीर[/caption]यशवंत भाई, पत्रकार ही नहीं, भारत का जागरूकता के स्तर तक हर पढ़ा-लिखा और मीडिया फ्रेंडली आदमी यह जरूर जानना चाहता है कि आखिर हिन्दुस्तान, मृणाल पांडे और शशिशेखर के मामले में ताजा अपडेट क्या हैं और मृणाल जी द्वारा छोड़ी गयी हिन्दुस्तान की टीम का अब क्या रवैया होगा, बावजूद इसके कि मृणाल जी उन्हें इस्तीफा न देने का निर्देश जैसा सुझाव दे चुकी हैं। भड़ास4मीडिया में यह विषय खूब लिखा-पढ़ा जा चुका है। कुछ लेखकों की निगाह में मृणाल पांडे जी ललिता पवार जैसी खलनायिका दिखायी पड़ती हैं तो कुछ लोग उनमें गुण भी देख रहे हैं। कुछ बातें मैं भी कहना चाहता हूं। मृणाल जी के बारे में मैंने बहुत सुना था। एक बार जोधपुर में अपनी तैनाती के दौरान मैंने उन्हें दीदी कहते हुए एक खत लिखा।

कुमार सौवीर

कुमार सौवीरयशवंत भाई, पत्रकार ही नहीं, भारत का जागरूकता के स्तर तक हर पढ़ा-लिखा और मीडिया फ्रेंडली आदमी यह जरूर जानना चाहता है कि आखिर हिन्दुस्तान, मृणाल पांडे और शशिशेखर के मामले में ताजा अपडेट क्या हैं और मृणाल जी द्वारा छोड़ी गयी हिन्दुस्तान की टीम का अब क्या रवैया होगा, बावजूद इसके कि मृणाल जी उन्हें इस्तीफा न देने का निर्देश जैसा सुझाव दे चुकी हैं। भड़ास4मीडिया में यह विषय खूब लिखा-पढ़ा जा चुका है। कुछ लेखकों की निगाह में मृणाल पांडे जी ललिता पवार जैसी खलनायिका दिखायी पड़ती हैं तो कुछ लोग उनमें गुण भी देख रहे हैं। कुछ बातें मैं भी कहना चाहता हूं। मृणाल जी के बारे में मैंने बहुत सुना था। एक बार जोधपुर में अपनी तैनाती के दौरान मैंने उन्हें दीदी कहते हुए एक खत लिखा।

उन दिनों मृणालजी अपनी मां के पार्थिव अवसान के समय, जाहिर है, बेहद दुखी थीं। खत का जवाब तो नहीं आया, लेकिन उसके कुछ ही मास बाद उनसे भेंट का अवसर मिला। तब शशांक शेखर त्रिपाठी जी हिन्दुस्तान वाराणसी के स्थानीय सम्पादक थे और मुझे वाराणसी ले जाने के लिए मृणाल जी के सामने इंटरव्यू के लिए ले गये थे। मृणाल जी ने मुझसे बात करने के लिए दूसरों के मुकाबले मुझे पौन घंटे से ज्यादा का समय दिया जबकि दूसरों को वे अधिकतम दस-पंद्रह मिनट में ही निपटा रही थीं। लेकिन शायद यह मेरी वाकपटुता के चलते नहीं, बल्कि उनका बड़प्पन था। जाहिर है वे मुझमें कुछ खोज रही थीं। बाद में पता चला कि उन्होंने मेरे प्रस्तावित वेतन में अपनी ओर से ही इजाफा कर दिया था। उसके बाद मैंने कई बार प्रयास किए लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी।

बहरहाल, आज मृणालजी की कमियों की चर्चा ही सबसे ज्यादा हो रही है। मैं भी मानता हूं कि कई मामलों में अगर समय रहते मृणाल जी हस्तक्षेप कर देतीं तो कई विवाद भड़कने से बच जाते। शेखर त्रिपाठी जी के बाद वाराणसी के स्थानीय संपादक बने विश्वेश्वर कुमार और उनके कुछ मुंहलगे चिंटू-पिंटू लोगों की करतूतों की वजह से वहां का माहौल बहुत गंदा हो गया था। जाहिर है, उसका शिकार मैं भी बना। पूरा दफ्तर अराजकता की हालत में पहुंच गया। मैंने इसकी सूचना समय रहते कई बार मृणाल जी को दी थी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। नतीजा, पूरे दफ्तर का माहौल गुटबाजी के चलते कुछ यूं बिगड़ा कि एक बेहद मिलनसार सम्पादकीय सहयोगी विनय पुरी की हृदयाघात से मौत हो गयी और लगातार तनावों में रहने के चलते सुशील त्रिपाठी जी पहाड़ियों से गिरे और कई दिनों तक बीएचयू में कोमा में रहने के बाद उन्होंने भी दम तोड़ दिया। मैं खुद भी सड़क दुर्घटना में घायल हो गया। जाहिर है कि मृणाल जी अगर चाहतीं तो यह बर्बादी रोकी जा सकती थी।

लेकिन क्या इसके लिए अकेले मृणाल जी ही दोषी हैं। दरअसल यह गड़बड़ी उन्होंने की जिन पर मृणाल जी ने पूरा विश्वास जताया। हां, ऐसे लोगों के चयन के लिए वे जरूर कटघरे में खड़ी की जा सकती हैं। लेकिन आलोचना करने के पहले शीर्ष पर बैठे ऐसे व्यक्ति की व्यस्तता का भी हमें ध्यान तो रखना ही चाहिए। हम यह कैसे भूल सकते हैं कि विचार और भाषा की जो अकूत दौलत मृणाल जी ने हम लोगों के साथ ही साथ पाठकों को मुहैया करायी है, वह अतुलनीय है, अनमोल है। मैं यह कैसे भूल सकता हूं कि शशांक शेखर त्रिपाठी ने पहली जनवरी-06 के अंक में पहले पन्ने पर सबसे उपर पांच कालम में मेरी एक नयी श्रंखला, जिसका शीर्षक था- ‘कहां खो गयी संकल्पों की काशी’, का पहला लेख प्रकाशित किया। खास बात यह कि नये साल का आगाज करते हुए उसी अंक में मृणाल जी का लेख सेकेंड लीड पर और तीन कालम में शेखर जी का एक आलेख बाटम लीड छपा था। यानी समूह संपादक और स्थानीय सम्पादक के लेखों से ज्यादा तरजीह मेरे आलेख को दी गयी। मैं पूछता हूं कि क्या यह कहीं और मुमकिन है। मैं तो यह मानता हूं कि यह हालत किसी भी पत्रकार के लिए नोबल पुरस्कार मिलने जैसी सुखदायी हो सकती है।

अब एक बात शशिशेखर जी के बारे में। यह बात भी इसी की पुष्टि करती है कि शीर्ष पर बैठा व्यक्ति हांडी के हर चावल की जांच नहीं कर सकता। वह तो बस एकाध चावल ही देखता है। मैं उनकी कुशलता, श्रेष्ठता और आत्मीय व्यवहार का प्रशंसक हूं। बीएचयू में डा. उपेंद्र पांडेय के पिता मौत से जूझ रहे थे। दिनभर रिपोर्टिंग के बाद मैं रात उपेंद्र के साथ ही अस्पताल में बिताता था। एक दिन बुखार चढ़ा और बदन टूटने लगा। अचानक डा. उपेंद्र ने कहा कि अपने भतीजे के इलाज के लिए शशिशेखर जी बीएचयू में ही आये हैं। मैं उनसे मिलने गया। बातचीत हुई। अचानक बुखार बढ़ा तो मैं सीढियों पर बैठ गया। उसके कुछ ही दिन बाद पता चला कि शशिशेखर जी की मेरे बारे में यह धारणा है कि कुमार सौवीर थका हुआ आदमी है। अब इसे क्या कहा जाए। तो हमें समझना होगा कि आखिर किसी का भी मूल्यांकन केवल उसे एक नजर देखकर किया जाएगा, या फिर उसे समग्रता में पूरी तरह तौल कर।


लेखक कुमार सौवीर इन दिनों महुआ न्यूज चैनल के उत्तर प्रदेश के ब्यूरो चीफ हैं। उनसे संपर्क [email protected] या 09415302520 के जरिए किया जा सकता है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement