कैलाश खेर जब गाते हैं तो लगता है कि कोई संत गा रहा है. कोई सूफी गा रहा है. कोई फक्कड़ गा रहा है. कोई पागल गा रहा है. कोई औघड़ गा रहा है. कोई दीवाना गा रहा है. वे दिल से गाते हैं. आत्मा से गाते हैं. कैलाश खेर के गाने मैं अपने मोबाइल में एमपी3 के रूप में सहेजकर रखता हूं. जब मौका मिलता है तो सुनता हूं और गाता हूं. दो गानों को इन दिनों खासकर दीवाना हो गया हूं. बमम बम बमम, बमम बम बमम, बमम बम बमम, बम लहरी… और छाप तिलक सब छीनी….. इन दो गानों को कैलाश खेर ने मौर्य टीवी की लांचिंग के समारोह में नहीं गाया. कोई नहीं, नहीं गाया तो मैं सुनवा रहा हूं और खुद भी सुन रहा हूं, यूट्यूब के सौजन्य से. कैलाश खेर कार्यक्रम शुरू होते समय पटना वालों के ठंडे रिस्पांस से थोड़े निराश थे. सो, पूछ-पुचकार रहे थे कि भइयों, गानों पर मन करे हिलने का तो हिलो, नाचने का मन करे तो नाचो. हां, झूमना-नाचना जरूर लेकिन पड़ोसी का ध्यान रखकर 🙂 इसी बीच मैंने चिल्लाकर कहा- छाप तिलक सब छीनी वाला सुनाइए कैलाश जी! मैंने अपनी चिल्लाहट को दो-तीन बार रिपीट किया पर शायद कैलाश तक मेरी आवाज पहुंची नहीं, ये सोचकर खुद को तसल्ली दे रहा हूं.
हालांकि चिल्लाहट का असर स्थानीय स्तर पर ये हुआ कि मेरे अगल-बगल वाले मुझे कुछ ऐसे देखने लगे जैसे उन्हें लग रहा हो कि ये कहां से बंदर आ गया है जो उछल-कूद और चिल्ल-पों पर आमादा है. कैलाश खेर का एक गीत, जो वहां रिकार्ड किया था और उसे तो दे ही रहा हूं, यू-ट्यूब से खोजकर दो उपरोक्त पसंदीदा गीत दे रहा हूं, ये हैं- बमम बम बमम, बमम बम बमम, बमम बम बमम, बम लहरी… और छाप तिलक सब छीनी….. कैलाश को सुनिए और झूमिए. पटना यात्रा के आगे के अनुभव सुनने-जानने को थोड़ा इंतजार करिए.
Rakesh jha
February 4, 2010 at 8:38 am
is tarah ka lekhan aur safgoyi kahan dekhane ko milti hi.
tahnking for such wrtitting Skills
Deepak Rai
February 4, 2010 at 12:54 pm
यशवंत जी… बढ़िया लिखा आपने… आपकी जय हो…