न्यूज 24 के एंकर और तेज-तर्रार पत्रकार अतुल अग्रवाल ने एक गलती कर दी। उन्होंने फर्जी मेल आईडी बनाकर अपने संस्थान के लोगों को संस्थान के वरिष्ठों के बारे में उलटी सीधी बातें लिखकर मेल कर दिया। जांच हुई। वे पकड़े गए। उन्होंने गुनाह कबूला। अपना माफीनामा लिखा। माफीनामें में उन्होंने दिल से अपनी गलती कुबूल की है। बावजूद इसके, वे न्यूज 24 से निकाल दिए गए। पर अपने पत्रकार साथी अब भी नाराज हैं। वो नहीं चाहते कि अतुल को कहीं नौकरी मिले। वे अतुल की पुरानी हिस्ट्री खोले बैठे हैं। वे सबको बता रहे हैं कि आईबीएन7 में भी अतुल ने ऐसा किया था, वैसा किया था।
कुछ लोग सभी वरिष्ठ पत्रकारों को मेल भेजकर अतुल अग्रवाल को नौकरी पर न रखने का अनुरोध करते हुए उन्हें डराने वाली बातें बता रहे हैं। ये बातें कुछ उसी तरह की हैं कि अगर आपने अतुल को रख लिया तो अतुल आपको ही खा जाएगा। इन लोगों का वश चले तो ये अतुल अग्रवाल को चौराहे पर खड़ा करके तालिबानी तरीके से पत्थर मार मार के उसकी जान ले लें। अतुल ने अपने माफीनामें में खुद लिखा है कि अगर उनकी अगले महीने शादी न होती तो वे खुदकुशी कर लेते। पर अपने पत्रकार साथी चाहते हैं कि वो भले न खुदकुशी करें पर मीडिया में उनके करियर की खुदकुशी करा दी जाए। क्या यह उचित है?
इस प्रवृत्ति की मैं निंदा करता हूं और अतुल अग्रवाल के पक्ष में खड़े होने की सगर्व घोषणा करता हूं। अतुल अग्रवाल के संकट के इस क्षण में मैं उनके साथ हूं। अगर अतुल अग्रवाल को कोई नौकरी नहीं देता है तो मैं अतुल के करियर के लिए उनके साथ मिलकर उनके लिए कुछ नया करने-कराने के काम में मदद करूंगा। पर सवाल यही है कि क्या अपने मीडिया के संपादक लोग, सीनियर जर्नलिस्ट लोग इतने कमजोर हो चुके हैं कि वे माफी मांगने वाले एक शख्स को माफ करने की बजाय उसे पूरी तरह नष्ट करने में ही अपनी रक्षा और अपनी शान समझने लगे हैं। हमारी परंपरा में बड़प्पन शब्द जो है, उसे ठीक से समझने की जरूरत है। हम तात्कालिता में इस कदर जीने के आदी हो चुके हैं कि अपना धैर्य, अपना विवेक, अपनी महानता सब कुछ धीरे-धीरे भूल चुके हैं। दूसरे को दुखी देखने और रखने में मजा आने लगा है। यह सैडिस्ट एप्रोच मीडिया को और इसमें काम करने वाले मनुष्य को कहां ले जाकर छोड़ेगा, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। किसी मिलिट्री राज की तरह छोटी सी गलती पर गोली मारने के आदेश दे देने वाली स्थिति दिख रही है मीडिया में।
अतुल अग्रवाल ने गलती की है। पर पकड़े जाने पर उन्होंने अपनी गलती न सिर्फ कुबूल की बल्कि हृदय से माफी भी मांगी। अतुल में सैकड़ों अच्छाइयां हैं। पर एक बुराई इतनी बड़ी हो गई कि उन्हें अब जिंदगी जीने देने का भी मौका नहीं दिया जा रहा है? शायद एक मौका देने का बनता था। अगर ये मौके न दिए जाते रहे होते तो इस देश के दुर्दांत अपराधी अक्ल आने पर कभी मुख्यधारा की सामान्य जिंदगी न जी रहे होते और एक-दो गल्तियां करने वाला प्रतिभाशाली व्यक्ति बाद में सबक लेकर बेहतर मनुष्य न बन पाया होता। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण किताबों में, इतिहास में मिल जाएंगे। अतुल तो फिर भी एक सुलझे मनुष्य हैं जो मीडिया की कुटिल राजनीति में फंसकर खुद को अवचेतन तरीके से धीरे-धीरे एक शातिर मोहरे के रूप में तब्दील करने की स्थिति में पहुंचते गए। अतुल को इस स्थिति में पहुंचाने के लिए क्या मीडिया का वर्तमान माहौल कम जिम्मेदार नहीं है? मीडिया के अंदर मुद्दों पर कम, आपसी राजनीति पर ज्यादा चर्चाएं होती हैं, ये कौन नहीं जानता? हर वक्त लोग एक दूसरे को उखाड़ने-पछाड़ने के लिए मन ही मन रणनीतियां-कूटनीतियां बनाते रहते हैं, इससे कौन वाकिफ नहीं है? ऐसे माहौल में कोई प्रतिभावान पत्रकार अवचेतन तरीके से इस सबका हिस्सा बन जाए और दुस्साहस करते हुए कुछ बड़ी राजनीति कर दे तो उसे अकेले क्यों दोषी माना जाता है? इसके लिए तो वो सब भी जिम्मेदार हैं जो इस तरह के माहौल को पैदा करते हैं।
ऐसे माहौल में जी-रहे अतुल की जब आंख खुली तो तब तक बहुत देर हो गई थी। साइबर क्राइम के अपराध के चलते उनके जेल जाने की स्थिति आन पड़ी पर हाथ-पैर जोड़कर उन्होंने खुद को जेल जाने से बचाया। हो सकता है इसी गलती के बाद अतुल एक बेहतर मनुष्य बन जाते। वे ता-उम्र ऐसा कुछ भी न करने की ठान लेते। पर उन्हें प्रायश्चित तक करने का मौका नहीं दिया गया। न सिर्फ बाहर कर दिया गया बल्कि उन्हें और कोई मीडिया हाउस न रख ले, इसके लिए कुछ लोग छिपे तौर पर उनके खिलाफ मेल भेजो अभियान पर लगे हुए हैं। ये मेल भेजो अभियान वाले लोग भी अतुल से कम बड़ी गलती नहीं कर रहे हैं। अतुल की प्रतिभा में किसी को संदेह नहीं है। अतुल की कलम में जोर के बारे में किसी को संदेह नहीं है। पर अतुल को मीडिया में अछूत बनाने की कुटिल चाल चली जा रही है। यह न सिर्फ निंदनीय है बल्कि मीडिया द्वारा खुद के सहिष्णु और संवेदनशील रूप को तिलांजलि देने का संकेत भी है। ऐसी असंवेदनशील और असहिष्णु मीडिया क्या आम जन के दुख-दर्द को समझ पाएगी?
ऐसी मीडिया में अब डरे, सहमें, मुंह सिले, रोबोट की माफिक यस सर यस सर, जी सर जी सर करने वाले लोग ही काम कर सकेंगे। आप अगर थोड़ा भी दाएं-बाएं करेंगे, बोलेंगे, जिएंगे तो मारे जाएंगे। न सिर्फ मारे जाएंगे बल्कि आपको ता-उम्र सामान्य मनुष्य न बनने देने के लिए अभिशप्त कर दिया जाएगा। इसी मीडिया में कभी ऐसे लोग भी संपादक हुआ करते थे जो अपने मालिकों को अपने कमरे में नहीं घुसने देते थे। जो अपनी टीम के लिए मालिकों के सामने खुद की नौकरी दांव पर लगा दिया करते थे। जो अच्छे पत्रकारों की बड़ी से बड़ी बुराइयों को माफ कर दिया करते थे। पर मालिकों से आतंकित अबके संपादक अपने पीछे अच्छे पत्रकार नहीं चाहते बल्कि ऐसे अनुचर चाहते हैं जिनके पास न बोलने की क्षमता हो, न सुनने की और न देखने की।
ऐसे अनुचर कभी मध्य काल में राजे-रजवाड़ों के हरम में और महल में रखे जाते थे ताकि वो महल में चल रही किसी भी नापाक बात को सुन न पाएं, किसी भी अश्लील दृश्य देख न पाएं, इस बारे में किसी से कुछ भी बोल न पाएं। वे मनुष्य नहीं, मनुष्य के रूप में जबरन रचे गए संपूर्ण जानवर बना दिए जाते । जानवरों में तो फिर भी बोलने, देखने की क्षमता होती है लेकिन मीडिया के ये जो आधुनिक अनुचर हैं वे सब कुछ होते हुए भी मुंह पर पट्टी साधे रहते हैं क्योंकि उन्हें कुछ हजार रुपये की नौकरी करनी होती है। ऐसे अनुचरों से मीडिया का क्या भला होगा और मीडिया किस दिशा की तरफ जाएगा, सभी अंदाजा लगा सकते हैं। महानता की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग अपने अधीनस्थों से इस कदर आतंकित रहते हैं कि उन्हें हर पल इन्हें आतंकित करके रखने में ही अपनी नौकरी चलते रहने की संभावना दिखती है। वरना अतुल अग्रवाल जैसे लोग इस कदर खुदकुशी के लिए प्रेरित नहीं किए जाते।
कुछ बातें सीधे अतुल से।
अतुल भाई,
आपसे मेरी कोई मुलाकात नहीं है। फोन पर एक दो बार केवल बात भर हुई है। आपसे अनुरोध करता हूं कि आप डिप्रेसन में मत जाइए, आप खुद को अकेले मत मानिए। आप एक शानदार इंसान हैं। शानदार इंसान ही शानदार गल्तियां करता है और उसे कुबूल भी करता है, उसे महसूस भी करता है और उससे सबक लेते हुए आगे भी बढ़ जाता है। आप सबसे अलग हैं, तभी तो आप इतनी खरी-खरी और धारधार बातें लिखते हैं, बोलते हैं और कई बार उसे नकारात्मक रूप में जी भी लेते हैं। आपने छोटी सी गल्ती की है। उसे बहुत बड़ा बनाकर पेश किया गया है। ये गल्तियां हम सब किसी न किसी रूप में घर-बाहर करते-रहते हैं। आपने तो सिर्फ मेल भेजा, लोग तो जानते-बूझते रिश्तों की हत्या कर देते हैं। अपनों के दिल में सरेआम खंजर भोंक देते हैं।
न सही मीडिया, ज़िंदगी में आगे बढ़ने और अपना मुकाम हासिल करने के लिए लाखों कई और रास्ते व कई और मंजिलें भी हैं। बस, आप एक बार मजबूती से खुद को संभालिए और नया कुछ करने के बारे में सोचिए। हम आपके साथ हैं। आप भी दिल्ली में रहेंगे और बाकी लोग भी दिल्ली में रहेंगे। एक दिन आप दिखाएंगे कि आपमें वो चीज है जो किसी में नहीं है। कल तक जो कुछ हुआ उसे भूल जाइए, दुनिया याद रखे तो रखे क्योंकि दुनिया का दूसरा नाम भीड़ है और भीड़ का अपना कोई चेहरा और चरित्र नहीं होता। कमजोर लोगों की जुटान का नाम है भीड़। आप भीड़ के नेता हैं। आज नकारात्मक रूप में हैं। कल सकारात्मक रूप में होंगे। यही भीड़ जो आज आपको हिकारत से देख रही है, कल आपको फालो भी करेगी। आपको महान कहेगी। आपकी जय जय करेगी। बस, वक्त वक्त का फेर है। बस, आप भीड़ की ओर से आ रही आवाज से अपने को किसी संन्यासी की तरह तटस्थ बना लें।
कहते हैं न, दुख का होना बहुत जरूरी होता है। रहिमन दुख हो भला…..। इस वक्त में अच्छे-बुरे की पहचान हो जाती है। आपके बहुत अपने भी दुख में आपका साथ छोड़ जाते हैं। रह जाते हैं सिर्फ आप। तो यकीन मानिए, आप अकेले आए थे इस दुनिया में और अकेले जाएंगे यहां से। इसलिए इस जिंदगी को अकेले ही प्लान करिए। आप चलना शुरू करेंगे तो आप जैसे आपको खुद ब खुद मिलने लगेंगे और बन जाएगा एक कारवां।
अतुल, मैं निजी तौर पर और भड़ास4मीडिया की पूरी टीम आपसे प्यार करती है, आपकी गलतियों को माफ कर आपको गले लगाती है और आपको आगे बढ़ने के लिए आवाज देती है।
सुन रहे हैं न आप ! संभालिए खुद को, आगे बढ़िए, मंजिलें और भी हैं !!
लेखक यशवंत सिंह हिंदी मीडिया के नंबर वन न्यूज पोर्टल भड़ास4मीडिया के संपादक हैं। उनसे संपर्क करने के लिए या अपनी बात उन तक पहुंचाने के लिए उनकी मेल आईडी [email protected] पर मेल भेज सकते हैं।
awanish yadav
September 20, 2010 at 1:58 am
kya baat hai Yashwant bhaiya aapki baat Atul ji ke Dil tak pahunchi hogi unko nischay hi takat milegi.