मुंबई में सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता सुरेश बंजन पर गुण्डों ने जानलेवा हमला किया। मुंबई के बाहर शायद ही कोई उन्हें जानता हो लेकिन मुंबई में वह लंबे समय से सूचना के अधिकार और झोपड़पट्टियों के लिए काम करते रहे हैं। उन्होंने विकास परियोजनाओं की आड़ में बिल्डरों के कई नाजायज धंधों को उजागर किया है। उन्होंने शहर के भू-माफिया से जुड़ी कई जानकारियों का पता-ठिकाना ढ़ूंढ़ लिया था। इसी से उन पर हमले की आशंकाएं बढ़ गईं थीं।
शुक्रवार हुई इस घटना को अब दो दिन से ज्यादा गुजर गए हैं, इसके बावजूद मुंबई पुलिस ने हमलावरों को पकड़ने में कोई उत्सुकता नहीं दिखायी है। दूसरी तरफ सुरेश बंजन गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में भर्ती हैं। इंदिरा नगर झोपड़पट्टी में रहने वाले सुरेश बंजन जब अपने 6 साल के बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद कार्यालय जा रहे थे कि पीछे से उनके सिर पर जोरदार हमला हुआ। इसके बाद हमलावरों ने उन्हें तब तक मारा जब तक कि वह बेहोश होकर सड़क पर गिर नहीं गए। जब आसपास की भीड़ जमा हाने लगी तो हमलावर वहां से भाग निकले। थोड़ी ही देर में पुलिस को खबर की गई और सुरेश बंजर को नजदीक के साईन अस्पताल ले जाया गया। लेकिन दूसरी तरफ साईन पुलिस-स्टेशन के अधिकारियों ने 4 घण्टे तक एफआईआर दर्ज नहीं की। जब देखा कि मामला दबाया नहीं जा सकता तो इन अधिकारियों को एफआईआर लिखनी पड़ी।
सुरेश बंजन ‘घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन’ के साथ जुड़कर मुंबई की झोपड़ियों को बचाने के लिए खुलकर मैदान में आ गए थे, इसीलिए वह शहर की मजबूत बिल्डर-लाबी के निशाने पर भी आ गए थे। पिछले महीने, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेड ने एक शिकायत के संबंध में ऐनटाप हिल पुलिस स्टेशन को यह आदेश दिया था कि वह ’को-ओपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी कमेटी’ के भष्ट्र सदस्यों के खिलाफ एफआरआई दर्ज करे। इनके ऊपर झुग्गी बस्तियों के नाम पर धोखाधड़ी और जालसाजी करने के कई आरोप है। ऐसी ही एक और शिकायत में, सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके जानकारियां जमा की गई थीं। ‘महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ से मिली इन जानकारियों से मालूम हुआ कि एक परियोजना में बिल्डर ‘पर्यावरण प्रभाव आंकलन’ किए बगैर निर्माण कर रहा है। इन प्रकार की बातों से चिढ़कर बिल्डर और उनके दलालों ने कानूनी लड़ाईयों में उलझने की बजाय हिंसक हमलों से डराने की रणनीति अपनायी।
पिछले कई दिनों से उन्हें और उनकी पत्नी अभया पर भू-माफिया और उनके नेटवर्क में शामिल अधिकारियों के खिलाफ लड़ाई रोकने के लिए दबाव बढ़ाया जा रहा था। सामाजिक कार्यकताओं पर हमले या उत्पीड़न का यह कोई पहला मामला नहीं हैं, बल्कि यह भू-माफिया की लंबी रणनीति का हिस्सा है। कुछ महीनों में ही सुमित वजाले, आभा तंदेल और जामिया बी के साथ भी मारपीट और उत्पीड़न के मामले उजागर हुए हैं। इस दौरान पुलिस पर अपराधियों की ढ़ाल बनने के आरोप भी लगते रहे हैं। मण्डाला के 15 सामाजिक कार्यकर्ताओं पर तो हत्याओं के झूठे प्रकरण तक दायर कर लिये गए हैं। 2006 में महाराष्ट्र सरकार ने इनकी झुग्गियों को तोड डाला था।