पत्रकारों पर हमले की जांच : हरदोई जिले के गांव करडई नकतौरा में दो पत्रकारों को जिंदा जलाने की कोशिश का मामला और सरगर्म हो उठा है। उस वहशियाना घटनाक्रम के पीछे पुलिस, प्रधान और लकड़ी माफिया के काले कारनामे प्रकाश में आए हैं। पता चला है कि विधायक का भाई पूरे इलाके में लकड़ी माफिया का सरदार बना बैठा है। चार अवैध आरा मशीनों में एक प्रधान के भाई की भी है। पत्रकारों के एक दल ने पूरे घटनाक्रम की मौके पर गहराई से छानबीन के बाद जिला प्रशासन को चौबीस घंटे का अल्टीमेटम दिया है। डीएम, एसपी को चेतावनी दी गई है कि दर्ज रिपोर्ट के अनुसार कठोर कदम उठाने में पुलिस ने कोई हीलाहवाली की तो इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे।
पूरे मामले को जनता की अदालत में ले जाया जाएगा। मीडियाकर्मी एकजुट जनांदोलन छेड़कर सरकार, उसके मंत्रियों और सरकारी-प्रशासनिक कार्यक्रमों का विरोध-बहिष्कार करेंगे। उल्लेखनीय है कि विगत दिनो ‘दैनिक जागरण’ के संवाद सूत्र विनोद मिश्रा और ‘आज’ के श्रीप्रकाश बाजपेयी जब पाली कस्बे से कवरेज करने पहुंचे तो गांव करडई नकतौरा में उनको जिंदा जलाकर मार डालने की कोशिश की गई। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर एक आरोपी को हिरासत में ले लिया है। इस घटना की मौके पर छानबीन के इरादे से गत दिवस पाली से पत्रकारों का एक दल गांव पहुंचा। पहले पुलिस अधिकारियों के साथ वहां पहुंचने का इरादा था, लेकिन तहकीकात में अड़चन आने की आशंका से टीम कुछ पुलिसकर्मियों के साथ गांव गई।
पत्रकारों के इस जांच दल में थे आल इंडिया आकाशवाणी संवाददाता समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभय शंकर गौड़, हिंदुस्तान के कमर अब्बास, जी न्यूज़ के करीम उल्लाह, वरिष्ट पत्रकार संतोष वाजपेयी, ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के प्रियंक दीक्षित, लोकल न्यूज़ जी-10 के रवि गुप्ता और आजतक के प्रशांत पाठक आदि। उस छोर पर जिले का अंतिम गांव करडई नकतौरा सीमा पर शाहजहांपुर और फर्रूखाबाद जिलों को भी छूता है। रामश्री यहां की महिला ग्राम प्रधान है। इसी के पति नन्हे ने उल्टे पत्रकारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है। पत्रकारों के दल ने प्रधान व उसके परिजनों से भी घटना की हकीकत जानने की कोशिश की। रामश्री और ग्रामीणों से मिली जानकारी ने पूरे मामले की पोल खोल दी। न तो प्रधान, न ही किसी ग्रामीण ने इस बात की तस्दीक की कि दोनों पीड़ित पत्रकारों ने प्रधान से गाली-गलौज किया था अथवा उससे रुपये-पैसे मांगे थे। प्रधान की बहू राजवती ने बताया कि वह तो उस समय सो रही थी। उसने सिर्फ शोर-गुल सुना। बाद में उसे हकीकत पता चली। प्रधान के पड़ोसियों और उसके एक रिश्तेदार ने बताया कि दोनों पत्रकारों ने ऐसा कुछ नहीं किया था, जिससे कि उन पर हमला किया जाता।
प्रधान रामश्री ने पत्रकारों को अपने पैरो में दो चोट के निशान दिखाए। उसने बताया कि दोनों पत्रकारों ने उस पर डंडे से हमला किया था। गौर से देखने पर पता चला कि चोट के निशान बनाए गए थे, जो डंडे के नहीं थे। प्रधान परिवार की बुजुर्ग महिला ने जरूर ऐसा कहा कि प्रधान पर डंडे से हमला किया गया था। जब पत्रकारों ने अन्य ग्रामीणों से बातचीत की तो पता चला कि गांव से सौ मीटर की दूरी पर दोनों पत्रकारों पर मोबिल आयल उड़ेल कर जिंदा जलाने की कोशिश की गई थी। सरेआम उनका कहना था कि उन्होंने पहले तो दोनों पत्रकारों को प्रधान के घर जाने वाली सड़क की बजाय दूसरे रास्ते से गांव से बाहर जाते देखा। उसके कुछ देर बाद उन्हें हमले का शोर सुनाई पड़ा। गांव के उधर ही दौड़ लिए। पत्रकारों को पीटने के बाद उन पर मोबिल आयल उड़ेल दिया गया था। उनमें एक पत्रकार सड़क पर, दूसरा खेत में मोबिल आयल से भीगा हुआ जमीन पर पड़ा था और माचिस मोबिल आयल में भीग जाने के कारण जल नहीं पा रही थी। हुजूम इकट्ठा हो जाने से हमलावर भाग निकले थे।
पत्रकारों के जांच दल को ग्रामीणों ने बताया कि उस दिन दोनों पत्रकारों के गांव में आने की भनक उन्हें समय से मिल गई थी। घटना से पहले उन पत्रकारों ने उनकी फोटो भी खींची थीं। जांच दल ने उस स्थल की फोटो ली, जहां पत्रकारों पर मोबिल आयल डाला गया था। ग्रामीणों ने बताया कि वारदात के बाद मौके से घटना के चिह्न साफ़ करने की भी कोशिश की गई थी। छानबीन के दौरान जांच दल को घटना की असली वजहों का भी पता चल गया। दरअसल, सारा मामला इलाके में अवैध पेड़ कटान से होने वाली अवैध कमाई का है। स्थानीय पुलिस और क्षेत्रीय बसपा विधायक की सरपरस्ती में लंबे समय से यह धंधा धड़ल्ले से चल रहा है। गांव में एक साथ चार आरा मशीनें लगी हैं, जो पत्रकारों पर हमले के बावजूद खुली हुई मिलीं। उनमें एक मशीन प्रधान के भाई की भी है। मौके पर देखा गया कि छिपा कर खड़ी की गईं ट्रॉलियों में शीशम की लकडी़ लदी थी। जिले का आखिरी गांव, ऊपर से तीन जिलों की सीमा। यहां तक पहुंचने का रास्ता भी इतना खराब कि पहुंचने से पहले ही अवैध कारोबारियों को खबर हो जाये। यह वजह है कि यह इलाका उन अवैध कारोबारियों का स्वर्ग बना हुआ है। साथ ही पुलिस की भी लाखों की कमाई का जरिया।
ग्रामीणों ने जांच दल को बताया कि घटना वाले दिन उन आरा मशीनों की फोटो लेना ही दोनों पत्रकारों पर भारी पड़ गया। पूरे इलाके में पेड़ों के अवैध कटान और आरा मशीनों का धंधा विधायक के भाई के संरक्षण में चल रहा है। मशीनों की फोटोग्राफी हो जाने से लकड़ी माफिया डर गए कि उनके कारनामों का सुबूत गांव से बाहर चला जाएगा। इसीलिए उनकी मंशा सुबूत के साथ सबूत जुटाने वालों को भी मिटा देने की थी। जांच में हमले की एक और वजह सामने आई। यहां के पूर्व प्रधान नीरज मिश्र के साथ दोनों पत्रकारों ने उस दिन गांव के विकास कार्यों का जायजा लिया था। नीरज इससे पूर्व प्रधान के कारनामों की पोलपट्टी आला अफसरों के सामने खोलते रहे हैं। अब दोनों पत्रकारों की कवरेज से लकड़ी माफिया, प्रधान और पुलिस के कारनामे सप्रमाण उजागर होने का डर था, जो उस दिन उनकी वहशियाना हरकत का सबब बना। पत्रकारों को छानबीन के दौरान यह भी पता चला कि उस दिन लकड़ी माफिया ने दोनों पत्रकारों के गांव पहुंचने की जानकारी फोन से थाना प्रभारी अखिलेश सिंह को दे दी थी। उन्होंने फ़ोन करने वाले को आगाह किया था कि सालों (दोनों पत्रकारों) को फिट कर दो। इलाके के सीओ मुन्नीलाल ने पत्रकारों के खिलाफ बोल कर तहरीर लिखवाई थी। पुलिस ने पीड़ित पत्रकारों की ओर से दर्ज कराई रिपोर्ट की एसआर छिपा ली थी और जघन्य हमले को संदिध करार दिया था। एसआर चौबीस घंटे में ऊपर भेज दी जाती है। जबकि उल्टे पीड़ित पत्रकारों के खिलाफ गंभीर धाराओं में फर्जी मुकदमा तुरंत दर्ज कर लिया गया। घटनास्थल से लौट कर जांच दल ने जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को चौबीस घंटे का अल्टीमेटम दिया है। अगर पीड़ित पत्रकारों की रिपोर्ट पर कार्रवाई में हीलाहवाली की गई तो जिले भर के पत्रकार जन आन्दोलन शुरू करेंगे। सरकार, उसके मंत्रियों और सरकारी-प्रशासनिक आयोजनों का तब तक विरोध किया जायेगा, जब तक कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिल जाता।
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