Connect with us

Hi, what are you looking for?

दुख-दर्द

मुझे सपरिवार इच्छा मृत्यु की इजाजत दो!

कुलदीप शर्माकुलदीप द्वारा मौत मांगने के एक साल मार्च महीने में पूरे होंगे। उन्हें अब तक न तो ‘मौत’ मिली और न जीने लायक छोड़ा गया।  भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों-खंभों ने उन्हें कोमा-सी स्थिति में रख छोड़ा है।  कुलदीप मीडियाकर्मी हैं। इंदौर में हैं। ‘नई दुनिया’ से जुड़े रहे हैं। प्रबंधन ने कुलदीप से इस्तीफा देने को कहा था। उन्होंने नई नौकरी न ढूंढ पाने की मजबूरी बताई थी। प्रबंधन ने उनका तबादला कर दिया। बीमार पिता को छोड़ दूसरे शहर में नौकरी करने जाने में असमर्थ रहे कुलदीप। सो, कुलदीप ने रहम की गुहार लगाई।

कुलदीप शर्मा

कुलदीप शर्माकुलदीप द्वारा मौत मांगने के एक साल मार्च महीने में पूरे होंगे। उन्हें अब तक न तो ‘मौत’ मिली और न जीने लायक छोड़ा गया।  भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों-खंभों ने उन्हें कोमा-सी स्थिति में रख छोड़ा है।  कुलदीप मीडियाकर्मी हैं। इंदौर में हैं। ‘नई दुनिया’ से जुड़े रहे हैं। प्रबंधन ने कुलदीप से इस्तीफा देने को कहा था। उन्होंने नई नौकरी न ढूंढ पाने की मजबूरी बताई थी। प्रबंधन ने उनका तबादला कर दिया। बीमार पिता को छोड़ दूसरे शहर में नौकरी करने जाने में असमर्थ रहे कुलदीप। सो, कुलदीप ने रहम की गुहार लगाई।

प्रबंधन को किसी गुहार या बीमार से क्या मतलब! थक हार कर कुलदीप ने 30 मार्च 2008 को राष्ट्रपति को पत्र लिखा। सपरिवार इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी। जाहिर है, पत्र लिखने से पहले कुलदीप ने कई महीने ऐसे हालात झेले जिससे उन्हें मृत्यु वरण करने के लिए मंजूरी मांगने को मजबूर होना पड़ा। ये हालात पैदा किए ‘नई दुनिया’ प्रबंधन ने। राष्ट्रपति को चिट्ठी भेजने से बस इतना हुआ कि एक पुलिस वाला आया और ‘क्यों मरना चाहते हो’ सवाल का जवाब कुलदीप के मुंह से सुनकर बयान दर्ज कर ले गया। कुलदीप मामले को लेबर कोर्ट में ले गए तो वहां जाने किसके इशारे पर सिर्फ सुनवाई की तारीख दर तारीख तय हो रही है, हो कुछ नहीं रहा है।

कुलदीप ने जिन दिनों राष्ट्रपति को पत्र लिखा, उनके पिता गंभीर रूप से बीमार हुआ करते थे। आर्थिक तंगी से परेशान कुलदीप पिता के इलाज के लिए दर-दर भटके। एक-एक रुपये इकट्ठा किया। बेहतर इलाज कराने की कोशिश की। पर पिता को बचा न सके। पिता गुजर गए। पिता रेवेन्यू डिपार्टमेंट में पटवारी थे। उनकी पेंशन अब कुलदीप की मां को मिलने लगी है। कुलदीप का इकलौता बेटा 12वीं में है। मां को मिलने वाली पेंशन की रकम से कुलदीप समेत चार जनों का खाना-खर्चा चल रहा है। नून-तेल-साबुन खरीदा जा रहा है। बच्चे की फीस भरी जा रही है।

बरस बीत गए पर दुख-दर्द जस के तस हैं। सिस्टम न्याय करने का भरपूर ‘प्रयास’ करता दिख रहा है पर हो नहीं पा रहा है। न्याय होगा कब, यह नहीं पता। प्रबंधन से जुड़े लोग दिन दूना रात चौगुना तरीके से फल-फूल रहे हैं। भांति-भांति के बहानों से जगह-जगह सम्मानित-सुशोभित हो रहे हैं। पर कुलदीप को कौन पूछे? कुलदीप को न तो लटके-झटके आते हैं और न दांव-पेंच। कुलदीप न तो दंदफंदी हैं और न धंधेबाज। कुलदीप न तो बेईमान बन पाए हैं और न रीढ़ निकाल पाए हैं। कुलदीप में वो सारी खामियां हैं जो इन दिनों के सिस्टम को मंजूर नहीं। सिस्टम केवल एक सिद्धांत जानता है- तुम मुझे लाभ दो, मैं तुम्हें फायदा दूंगा।

कुलदीप पहले दैनिक भास्कर, इंदौर में थे। नई दुनिया ने उनके आवेदन पर उन्हें अपने यहां प्रूफ रीडर रखा। छह माह में संपादकीय विभाग का हिस्सा बनाने का वादा किया। कुलदीप के मुताबिक, वो छह माह दस साल बाद भी नहीं आया। प्रूफ रीडर पद जब अखबारों में खत्म किए जाने लगे तो नई दुनिया प्रबंधन को भी कुलदीप अतिरिक्त खर्चे की तरह खटकने लगे। लाभ कमाने में यकीन रखने वाले मीडिया हाउसों का प्रबंधन घाटे का सौदा भला कितनी देर तक बर्दाश्त करता। कुलदीप से पहले तो सीधे कहा गया- इस्तीफा दो। कुलदीप ने मना किया तो तबादला कर दिया। फिर शुरू हुआ कुलदीप के मुश्किलों का दौर जिसे जीते-भोगते लगभग दो वर्ष गुजार चुके हैं।

कुलदीप अभी मरे नहीं हैं, यह भौतिक सच है पर अंदर से कुलदीप ने खुद को मरते-जीत कितनी बार देख-समझ लिया है, ये वे खुद जानते हैं। हर दो महीने बाद आने वाले तीज-त्योहार में खुद को गुम-सुम और बेबस पाने वाले कुलदीप को इन दिनों किसी से शिकायत नहीं है। शायद,  गरीब के लिए दुखों-शिकायतों-पीड़ाओं की अति ही इनसे मुक्ति है। इसी मुक्ति के सुबकते अवसादी मनोभाव में कुलदीप ने राष्ट्रपति को जो कुछ लिखकर चिट्ठी के रूप में भेजा, उसे हम यहां हू-ब-हू प्रकाशित कर रहे हैं, इस अनुरोध के साथ- कृपया पढ़ने के बाद थोड़ी देर दुखी होकर फिर अपने-अपने काम में लग जाएं क्योंकि मंदी काल में ऐसे ढेरों कुलदीप-सुलदीप-प्रदीप मिलेंगे जिनके घर-परिवार का दीया बड़ी मुश्किल से जल रहा है। आखिर किस-किस को राहत देंगे आप। वैसे भी, राहत आजकल वो पाने को उत्सुक हैं जिनके पेट भरे-फूले हैं। गरीब को राहत देना लोक कल्याणकारी राज्य और इसकी लाडली कंपनियों का फर्ज नहीं रहा। लोक कल्याण का काम भी बाजार के हवाले है। बाजार तो बाजार है। इसे सिर्फ रोबोट चाहिए, नोट कमवाने वाले कुशल, पेशेवर और दक्ष रोबोट चाहिए। किसी संवेदनशील, ईमानदार और विचारवान मनुष्य की कतई जरूरत नहीं!


सेवा में,

महामहिम राष्ट्रपति

श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल महोदया,

राष्ट्रपति भवन,

Advertisement. Scroll to continue reading.

नई दिल्ली

विषय : सपरिवार इच्छा मृत्यु की अनुमति

महामहिम महोदया,

प्रार्थी कुलदीप शर्मा मध्य प्रदेश के भाषाई समाचार पत्र ‘नई दुनिया’ में वर्ष 1996 से कार्यरत है। नई दुनिया प्रबंधन ने दुर्भावना से प्रेरित होकर (यह जानते-बूझते कि मैं पारिवारिक कारणों से इंदौर से बाहर जाकर काम नहीं कर सकता हूं), मेरा स्थानांतरण 7 नवंबर 05 को भोपाल कर दिया। स्थानांतरण से संबंधित मेरा प्रकरण श्रम न्यायालय में गत वर्ष (प्रकरण क्रमांक 57/07 दिनांक 9/10/07 को) जवाब दावा देकर समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन इंदौर ने प्रस्तुत कर दिया लेकिन मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के उद्देश्य से नई दुनिया प्रबंधन द्वारा अभी तक श्रम न्यायालय में इसका जवाब ही पेश नहीं किया गया है।

लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का नाजायज फायदा

नईदुनिया प्रबंधन द्वारा अनेक प्रकार से लोकतंत्र का चैथा स्तंभ होने का नाजायज फायदा गलतबयानी को आधार बनाकर लिया जा रहा है। प्रबंधन द्वारा गलतबयानी को अपना हथियार बनाने की पहली मिसाल मेरे द्वारा सहायक श्रमायुक्त को 31 अगस्त 2006 को की गई शिकायत पर नई दुनिया प्रबंधन द्वारा दिया गया जवाब है। इसमें ( प्रबंधन द्वारा दिए गए जवाबी पत्र के) शुरुआती पैरा में लिखा गया है कि इनका कार्य संतोषजनक नहीं रहा। इनके काम के बारे में ढेरों गलतियां/ शिकायतें आने लगीं…आदि।

सहायत श्रमायुक्त को संबोधित 2 अक्टूबर 06 के इसी पत्र के दूसरे पेज के अंत में (कंडिका 7 का जवाब देते हुए) प्रबंधन द्वारा लिखा गया है- जिनका नाम प्रार्थी ने लिखा है उनकी योग्यता व क्षमता शिकायतकर्ता की योग्यता व क्षमता के आगे नगण्य है। यह है नई दुनिया की गलतबयानी की पहली मिसाल जिसके अनुसार पिछले 40-45 वर्षों से यहां काम करने वालों की योग्यता व क्षमता मेरे मुकाबले नगण्य है। कहने का सीधा और आसान मतलब यह है कि मुझसे पहले के सभी कर्मी अयोग्य हैं (प्रति संलग्न है)।

गलतबयानी की दूसरी मिसाल

नई दुनिया प्रबंधन द्वारा गलतबयानी की दूसरी मिसाल है क्षेत्रीय भविष्यनिधि आयुक्त के समक्ष दिया गया यह कथन कि मुझे 15/02/96 को बतौर अप्रेंटिस रखा गया था। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त (ईआर) द्वारा प्रबंधन को जब अप्रेंटिस एक्ट 1961 के तहत स्टेंडिंग आर्डर की प्रति देने को कहा गया तो प्रबंधन द्वारा इसकी प्रति प्रेषित नहीं की गई (भविष्यनिधि आयुक्त के फैसले की प्रति संलग्न)।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मौके-बेमौके नई दुनिया प्रबंधन की इस तरह गलतबयानी से जाहिर है कि उसने परेशान, प्रताड़ित और रोजी-रोटी से मोहताज करने के लिए जान-बूझकर मुझे ही स्थानांतरण के लिए इसलिए चुना ताकि अपने पारिवारिक कारणों से मैं इंदौर शहर से बाहर नहीं जा सकूं और प्रबंधन की मंशानुरूप स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दूं। नई दुनिया प्रबंधन पिछले लंबे समय से मुझ पर त्यागपत्र देने के लिए दबाव बनाए हुए था। 26 नवंबर 03 से 28 दिसंबर 03 की अवधि के दौरान भी मुझे जबरन काम करने से रोका गया था।

प्रबंधन ने कानून की जानकारी का फायदा उठाया

सारे प्रयासों के बावजूद मेरे त्यागपत्र नहीं देने पर नई दुनिया प्रबंधन ने कानून की इस जानकारी के आधार पर कि न्यायालय में स्थानांतरण का केस यूनियन के माध्यम से ही लड़ा जा सकता है, मुझे स्थानांतरण के लिए इसलिए भी चुन लिया क्योंकि मैं किसी यूनियन का सदस्य नहीं रहा था। यूनियन का सदस्य नहीं होने के कारण ही नवंबर 05 में स्थानांतरण होने के करीब 10 माह बाद (31 अगस्त 06 को) मैंने अपनी ओर से सहायक श्रमायुक्त कार्यालय में पहली औपचारिक शिकायत की थी।

पनपने नहीं दी यूनियन

नई दुनिया प्रबंधन ने लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होन का इस्तेमाल कर पिछले 60 वर्षों में इतनी बड़ी संस्था में लोगों के कार्यरत होने के बावजूद संस्था में किसी यूनियन को इसलिए नहीं पनपने दिया ताकि वह अपनी मर्जी से ‘किसे नौकरी पर रखना है और किसे बाहर करना है’ का तानाशाहीपूर्ण रुख अख्तियार करना जारी रख सके।

आपसे सपरिवार इच्छा मृत्यु चाहने का कारण

  1. मेरी उम्र 46 वर्ष से अधिक हो जाने के कारण अब किसी अन्य संस्था द्वारा नौकरी दिया जाना संभव नहीं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर कोई और या नई तरह की नौकरी अथवा धंधा कर पाना मुमकिन नहीं। इस कारण मैं नवंबर 05 से अभी तक मार्च 2008 (करीब 28 माह) तक बेरोजगार हूं।
  2. इकलौते बेटे के बेरोजगार होने के सदमें से पिताजी सितंबर 06 से बिस्तर पर चले गए हैं। वे चलना-फिरना तो दूर, उठने-बैठने से भी मोहताज हैं।
  3. बिस्तर पर लगातार एक ही मुद्रा में लेटे रहने से उनकी पीठ, कूल्हे और पांव में शैयावृण (बेडसोर) हो गए हैं।
  4. पुत्र होने के नाते मेरा दायित्व है कि मैं उन्हें इस तकलीफ से छुटकारा दिलाऊं (हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में यह व्यवस्था दी है कि माता-पिता की सेवा पुत्र का दायित्व है) लेकिन अंशदान जमा नहीं होने से राज्य बीमा चिकित्सा सुविधा मिलना बंद है।
  5. आय का अन्य कोई स्रोत नहीं होने और पिछले 18 माह से पिताजी के इलाज में पैसा खर्च होने से सारी जमापूंजी समाप्त हो गई है।
  6. एक तरफ नई दुनिया जैसी बड़ी संस्था और उसके आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने से वह अपनी पहुंच और पैसे के दम पर मुकदमे को लंबे समय तक खींच सकने में सक्षम है। इसका उदाहरण पिछले करीब 6 माह से श्रम न्यायालय में पेश जवाबदावे का जवाब ही नहीं दिया जाना है तो दूसरी तरफ महंगाई के लगातार बढ़ते जाने के साथ मौजूदा हालत में परिवार का गुजारा अहम प्रश्न है।
  7. परिवार को रोज तिल-तिलकर मारने से बेहतर है मृत्यु का वरण करना।

इन सब हालात के चलते मैं अपने पूरे होशो-हवास में आपसे सपरिवार इच्छा मृत्यु की अनुमति देने की प्रार्थना करता हूं।

महामहिम महोदया, आपसे निवेदन है कि शीघ्र ही इस प्रार्थना को स्वीकार कर हमें इच्छा मृत्यु की अनुमति देने की कृपा करें।

धन्यवाद

प्रार्थी

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुलदीप शर्मा


कुलदीप से संपर्क करने के लिए आप 09424505136 या [email protected] को माध्यम बना सकते हैं।
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement