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हलचल

आइए, विरोध करें ताकि हम मुंह दिखा सकें

  • मीडिया के लिए प्रस्तावित काले कानून का विरोध
  • 15 जनवरी को दिन में 12 बजे जंतर-मंतर पहुंचे
  • काली पट्टियां बांध काला दिवस मनाने का ऐलान

मीडिया की आजादी फिर खतरे में है। केंद्र और राज्य सरकारों ने मीडिया को गुलाम बनाने की कोशिशें अतीत में भी कई बार की लेकिन इन साजिशों को मीडियाकर्मियों और लोकतंत्र में आस्था रखने वालों ने सफल नहीं होने दिया। एक बार फिर ऐसा ही संकट का समय हमारे करीब आ चुका है। काला कानून तैयार है। कार्यकाल खत्म होने से ठीक पहले केंद्र सरकार इस कानून को लागू करने के मंसूबे बनाए है। यह कानून संसद के जरिए नहीं, चुपचाप बनाया जा रहा है।

<ul> <li> <div><span style="color: #ff0000;">मीडिया के लिए प्रस्तावित काले कानून का विरोध </span></div> </li> <li> <div><span style="color: #ff0000;">15 जनवरी को दिन में 12 बजे जंतर-मंतर पहुंचे</span></div> </li> <li> <div><span style="color: #ff0000;">काली पट्टियां बांध काला दिवस मनाने का ऐलान</span></div> </li> </ul> <p align="justify">मीडिया की आजादी फिर खतरे में है। केंद्र और राज्य सरकारों ने मीडिया को गुलाम बनाने की कोशिशें अतीत में भी कई बार की लेकिन इन साजिशों को मीडियाकर्मियों और लोकतंत्र में आस्था रखने वालों ने सफल नहीं होने दिया। एक बार फिर ऐसा ही संकट का समय हमारे करीब आ चुका है। काला कानून तैयार है। कार्यकाल खत्म होने से ठीक पहले केंद्र सरकार इस कानून को लागू करने के मंसूबे बनाए है। यह कानून संसद के जरिए नहीं, चुपचाप बनाया जा रहा है।</p>
  • मीडिया के लिए प्रस्तावित काले कानून का विरोध
  • 15 जनवरी को दिन में 12 बजे जंतर-मंतर पहुंचे
  • काली पट्टियां बांध काला दिवस मनाने का ऐलान

मीडिया की आजादी फिर खतरे में है। केंद्र और राज्य सरकारों ने मीडिया को गुलाम बनाने की कोशिशें अतीत में भी कई बार की लेकिन इन साजिशों को मीडियाकर्मियों और लोकतंत्र में आस्था रखने वालों ने सफल नहीं होने दिया। एक बार फिर ऐसा ही संकट का समय हमारे करीब आ चुका है। काला कानून तैयार है। कार्यकाल खत्म होने से ठीक पहले केंद्र सरकार इस कानून को लागू करने के मंसूबे बनाए है। यह कानून संसद के जरिए नहीं, चुपचाप बनाया जा रहा है।

इसे मंत्रिमंडल की बैठक में पारित करके लागू करने की तैयारी है। इस अंतिम कदम से ठीक पहले का काम केंद्र सरकार कर चुकी है। कैबिनेट नोट सभी मंत्रालयों में भेजा जा चुका है। अब सिर्फ बैठक होने और मुहर लगने की औपचारिकता मात्र शेष है। हमारे आपके मन में टीवी न्यूज चैनलों को लेकर कई तरह की असहमतियां हो सकती हैं लेकिन इस तरह की असहमतियां कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को लेकर भी है। तो फिर इसका यह मतलब नहीं कि हम लोकतंत्र की मूल भावना को ही तिलांजलि दे दें और देश के जितने भी स्तंभ हैं उनकी आजादी छीन लें। उनकी स्वायत्तता भंग कर दें। उन्हें सरकारी बाबूओं-अफसरों के अधीन कर दें।

मीडिया से जुड़े लोगों और लोकतंत्र को चाहने वालों के लिए मुश्किल वक्त है। समय बिलकुल नहीं बचा है। सड़क पर आकर सरकार को यह बताने भर का समय शेष है कि हम अभी मरे नहीं हैं। हम जिंदा हैं। मीडिया को दूरदर्शन न बनने देंगे। मीडिया को सरकार का प्रवक्ता न होने देंगे।

कैबिनेट नोट की प्रतियां फूंकने और काला दिवस मनाने के लिए भड़ास4मीडिया ने पहल की है। विस्फोट डाट काम और तीसरा स्वाधीनता आंदोलन जैसे पोर्टल और संगठन कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार हो चुके हैं। आपसे भी अनुरोध है। आपको भी न्योता है।

15 जनवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर दिन में 12 बजे इकट्ठा हों और काली पट्टियां हाथ-पांव-सिर में बांधकर काला दिवस मनाएं। प्रस्तावित काले कानून के मसौदे को फूंकें। सरकार में बैठे लोगों तक विरोध का संदेश भेजें। उन तक गुस्से को पहुंचाएं। देश के हर जिले के मीडियाकर्मियों से अनुरोध है कि वे जिला मुख्यालयों पर काली पट्टियां बांधकर धरना दें, उपवास करें। काले कानून के मसौदे की प्रतियां फूकें। इन आंदोलनों की सचित्र रिपोर्ट हम तक पहुंचाएं ताकि विरोध की आवाज की अनुगूंज दुनियाभर में सुनाई पड़ने लगे।

इस मसले पर आपको अगर कुछ कहना, कुछ जानना है तो आप [email protected] पर मेल करें।

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