सूचना निदर्शिनी से पत्रकारों के नाम-पते गायब : सरकार पर जासूसी कराने का आरोप : लखनऊ के पत्रकारों में इन दिनों प्रदेश सरकार की मीडिया विरोधी नीतियों को लेकर भारी गुस्सा है। सबसे ज्यादा रोष इस बात पर है कि पहली बार ‘सूचना निदर्शिनी’ से सिर्फ पत्रकारों के नाम-पते गायब कर दिए गए हैं। गुस्साए मीडियाकर्मियों का दूसरा आरोप है कि एनेक्सी स्थित मीडिया सेंटर पहुंचने वाले पत्रकारों की इन दिनों जासूसी कराई जा रही है। वहां के रजिस्टर में हर पत्रकार के नाम-पते दर्ज हो रहे हैं। लखनऊ के पत्रकारों में एक ओर जहां मान्यता की चर्चाएं सुर्खियों में हैं, वही मीडियाकर्मियों के साथ प्रदेश सरकार के ताजा रवैये ने खलबली मचा रखी है। जिसको लेकर पत्रकारों में सबसे ज्यादा रोष है, वह है सूचना विभाग की इस साल की डायरी ‘सूचना निदर्शिनी’। जब से प्रदेश का सूचना विभाग यह डायरी प्रकाशित कर रहा है, उससे पहली बार पत्रकारों को बाहर कर दिया गया है। हर साल इस डायरी में प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल, दोनों के स्टॉफ के अधिकारियों, सभी मंत्रियों, विधायकों, एमएलसी, आईएएस, आईपीएस, सूचना विभाग प्रमुख अधिकारियों, निगमों के अध्यक्षों और सभी प्रमुख अखबारों के मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों के फोन नंबर, पते आदि प्रकाशित होते रहे हैं। पहली बार इस डायरी में सिर्फ पत्रकारों के नाम-पते नहीं छापे गए हैं। इस रवैये से नाखुश पत्रकारों का मानना है कि माया सरकार सुनियोजित तरीके से मीडियाकर्मियों को दरकिनार रखना चाहती है।
इसी तरह एनेक्सी स्थित मीडिया सेंटर में प्रशासनिक हस्तक्षेप भी पत्रकारों के गुस्से का सबब बनता जा रहा है। लखनऊ के कई-एक वरिष्ठ पत्रकारों ने भड़ास4मीडिया को बताया कि मायावती सरकार के इशारे पर मीडिया सेंटर आने-जाने वाले सभी पत्रकारों की जासूसी कराई जा रही है। यहां प्रदेश भर के पत्रकार आते-जाते रहते हैं। वहीं प्रेस वार्ताएं होती हैं। दस दिन पहले यानी मान्यता का कर्मकांड पूरा कर लेने के बाद मीडिया सेंटर में पत्रकारों की हाजिरी लगाने के लिए एक प्यून बैठा दिया गया। वह मीडिया सेंटर आने-जाने वाले पत्रकारों की रजिस्टर में हाजिरी लगाता है। पहले मीडिया सेंटर सप्ताह के सातों दिन खुला रहता था। अब रविवार को बंद कर दिया जाता है। पत्रकारों में इस बात का भी गुस्सा है कि मीडिया सेंटर में विराजमान मान्यताप्राप्त संवाददाता समिति के कर्ता-धर्ता सरकार के गलत कदमों पर या तो चुप्पी का रुख अख्तियार किए हुए हैं, अथवा दोनों ओर हां-में-हां मिलाकर समय काट रहे हैं। उन्होंने अब तक न तो डायरी प्रकरण, न हाजिरी के मामले पर पत्रकार हित में कोई अपेक्षित संकेत दिया है। सूचना यह भी है कि मुख्यमंत्री के कुछ निकटस्थ उच्चाधिकारी लगातार पत्रकारों के बीच मतभेद बढ़ाकर, ‘लड़ाओ और राज करो’ की भूमिका निभा रहे हैं। इससे पत्रकारों की सांगठनिक ताकत तितर-बितर हो रही है। मीडिया को लेकर सरकार की गलत मंशा का पत्रकार एकजुटता से विरोध नहीं कर पा रहे हैं।