मंदी की मार खाए कपाड़िया साहब नई पारी महाराष्ट्र के प्रमुख दैनिक लोकमत के साथ शुरू करेंगे। अभी तक वे उस वेंचर के सर्वेसर्वा हैं जो मंदी की बलि चढ़ गया। यह वेंचर है जागरण समूह और टीवी 18 ग्रुप के मिल-जुल कर देश भर में बिजनेस अखबार निकालने का। कपाड़िया इस वेंचर के सीईओ और एमडी हैं। पर यह वेंचर मूर्त रूप न ले सका। मंदी की आंधी चल पड़ी। कहने को तो यह वेंचर केवल पोस्टपोन किया गया है लेकिन सूत्र बताते हैं कि इसे पूरी तरह कैंसिल कर दिया गया है। भर्ती किए जा चुके सैकड़ों लोगों को बाय-बाय बोलकर बेरोजगार कर दिया गया।
इनमें से ढेर सारे मीडियाकर्मी अब भी बेकार टहल रहे हैं। टाप पद पर होने के चलते और वेंचर का कप्तान नियुक्त होने के नाते कपाड़िया साहब को सबसे आखिर में ही यहां से जाना है, सो, सबसे आखिर में अब जाने की तैयारी कर ली है। लेकिन आम मीडियाकर्मियों की तरह उन्हें नौकरी के लिए भटकना नहीं था। सो, भटके नहीं। एक मीडिया ग्रुप ने उन्हें खुद पसंद कर लिया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी भरत कपाड़िया इससे पहले भास्कर समूह में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पद पर थे। हर जगह बड़े-बड़े पदों पर रहकर अपने काम और प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले कपाड़िया साहब को इस बार लोकमत समूह ने पसंद कर लिया है। लोकमत समूह ने भी उन्हें बहुत बड़ा पद दे दिया है। कपाड़िया साहब को इस ग्रुप में बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में शामिल कर लिया गया है। मतलब, डायरेक्टर बनाए गए हैं, लगभग मालिक की हैसियत में होंगे। लोकमत ग्रुप की सभी गतिविधियों को कपाड़िया साहब के अधीन कर दिया गया है। उन्हें लोकमत समूह को नई ऊंचाई पर ले जाने की जिम्मेदारी दी गई है। कपाड़िया साहब नए साल की पहली तारीख को इस ग्रुप को ज्वाइन करेंगे। कपाड़िया साहब ने करियर की शुरुआत गुजराती मैग्जीन चित्रलेखा से की और इस मैग्जीन के साथ कुल 26 साल तक जुड़े रहे। इसी के बाद वर्ष 2005 में वे भास्कर ग्रुप के साथ जुड़े।
वैसे तो कपाड़िया साहब को भारत के मीडिया क्षेत्र के 50 शीर्ष स्तंभों में शुमार किया जाता है लेकिन दुनिया (खासकर देश) भर की मीडिया कंपनियों के मालिकों को उनकी अदभुत प्रतिभा के बारे में हाल-फिलहाल पता तब चला जब उन्होंने वोट फार ताज के अभियान में भारत में भास्कर समूह के लिए शानदार रणनीति बनाई और हर क्षेत्र में जोरदार सफलता दिलाई। इससे पहले वे इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी एवं मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। उम्मीद करते हैं, जैसे कपाड़िया साहब के दिन फिरे, वैसे ही जागरण समूह व टीवी 18 ग्रुप के संयुक्त उपक्रम के बेमौत मरने से बेरोजगार हुए सभी मीडियाकर्मियों के भी दिन जल्द ही अच्छे हो जाएंगे।