(एसपी के जन्मदिन पर पिछले दिनों कोलकाता में हुए आयोजन का संदर्भ लेते हुए चंदन प्रताप अपनी पीड़ा का बयान कर रहे हैं। एसपी की कुछ दुर्लभ तस्वीरें व दस्तावेज मुहैया कराने के लिए भड़ास4मीडिया चंदन का आभारी है)
यशवंत भाई, कोलकाता में सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस.पी. सिंह के जन्मदिन पर उनकी याद में पत्रकारों और बुद्धजीवियों ने संगोष्ठी का आयोजन किया, इसकी जानकारी आपके प्रतिष्ठित पोर्टल पर तारकेश्वर मिश्र जी के आदरणीय लेख से मिली। बहुत पीड़ा के साथ अपनी दिल की बात कह रहा हूं। आप मुझे जानते हैं। कम से कम एक बार पूछ तो लिए होते कि पापा का जन्मदिन कब होता है। यशवंत जी, हम लोग ऐसे परिवार से आते हैं, जहां पुरखों को जन्मदिन की तारीख याद करना जरूरी नहीं लगता था। मैंने कई विषयों पर अपनी दादी से बात की है।
उनसे कभी किसी का जन्मदिन पूछता था तो वो निपट जवाब देती थी कि- बेटा, माघ, पूस, कातिक के महीना रहल होई। तब्बै धान, गेंहू के कटाई-बिजाई होइल रहे।
या फिर यूं कहती थीं कि फलनवां के बियाह भइल रहे। उन कर लइकवा के संग फलां भइल रहलन।
आप समझ सकते हैं कि ऐसे परिवार में सही दिन और तारीख का प्रमाण कैसे मिल सकता है? तब स्कूलों में दाखिले के लिए नगर निगम से जन्म प्रमाणपत्र भी नहीं मांगा जाता था।
पढ़ाई ज़रूरी है, इस सोच को मेरा परिवार मानता था। तारीख का दस्तावेज कैसे बनता था, ये बता दूं।
दसवीं के बोर्ड परीक्षा से पहले स्कूल के क्लर्क गनेसजी अवतरित होते थे। सारे बच्चों को फार्म पकड़ा कर नाम, पिता का नाम, जन्म का तारीख भरने को कहते थे।
इसके बाद फार्म लेकर लौट जाते थे। ये मेरे साथ भी हुआ। ये वही स्कूल है, जहां पापा दसवीं तक पढ़े थे।
रही बात तारीख की। पटना में एक सज्जन पापा के नाम पर मीडिया पढ़ाते हैं। उनके दस्तावेज में 3 दिसबंर की तारीख दर्ज है।
जनसत्ता में उनका जो आखिरी इंटरव्यू था, उसमें भी 3 दिसंबर का जिक्र है, क्योंकि वो 3 दिसबंर 1948 सर्टिफिकेट में है।
दूसरी जरूरी बात, ये कौन लोग हैं, जो पापा की याद में संगोष्ठी करते हैं, मुझे कम से कम नहीं मालूम।
आज तक कितनी बार पापा की याद में संगोष्ठी हुई, ये मुझे नहीं मालूम। संगोष्ठी करनेवालों ने कभी इसकी सूचना मुझे, या एसपी सिंह की पत्नी, या एसपी के बड़े भाई को नहीं दी।
लगभग चार साल पहले सीपीएम सांसद सलीम ने मुझे कहा था कि तोमार बाबार नामे हिंदीभाषी सॉमाज निए संगोष्ठी करिए छिलाम। हिंदी में अर्थ- तुम्हारे पापा की याद में हिंदी भाषी समाज को लेकर एक संगोष्ठी किया था।
पापा ने जीते जी हिंदी और अहिंदी भाषी पत्रकारिता और मित्रता नहीं की। क्या एसपी का परिवार ये जानने का हक नहीं रखता कि ये आयोजनकर्ता कौन हैं? क्यों करते हैं आयोजन? आयोजनों की जानकारी हमें क्यों नहीं दी जाती? 3 और 4 दिसंबर का कंफ्यूज़न अभी तक क्यों रखे हुए हैं?
लेखक चंदन प्रताप सिंह टोटल टीवी के राजनीतिक संपादक हैं। उनसे [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।