एसपी सिंह पर विशेष : मगर खबरें अभी और भी हैं…!

SP Singhवह शुक्रवार था। काला शुक्रवार। इतना काला कि वह काल बनकर आया। और हमारे एसपी को लील गया। 27 जून 1997 को भारतीय मीडिया के इतिहास में सबसे दारुण और दर्दनाक दिन कहा जा सकता है। उस दिन से आज तक पूरे चौदह साल हो गए। एसपी सिंह हमारे बीच में नहीं है। ऐसा बहुत लोग मानते हैं। लेकिन अपन नहीं मानते।

अखबार में खबर बाद में छपती है, मुझे पता पहले चल जाता है

समाजवादी पार्टी का सातवां राज्य सम्मेलन 10 से 12 फरवरी तक गोरखपुर के ऐतिहासिक रामगढ़ ताल के किनारे जीडीए पार्क में हो रहा है। सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र एवं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव, आजम खान, संगठन मंत्री ओम प्रकाश सिंह, राष्‍ट्रीय महसचिव प्रो. राम गोपाल यादव सहित पार्टी के तमाम दिग्गज नेता बुधवार की रात तक गोरखपुर पहुंच चुके हैं।

सरकार बनने पर फतेह बहादुर के पर कतरेगी सपा : राजेंद्र चौधरी

समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि प्रदेश के प्रमुख सचिव स्‍तर के दो नौकरशाह फतेह बहादुर और जेएन चैम्‍बर ने वित्‍तीय अनुशासन और सरकारी सेवा नियमावली के प्रतिकूल आचरण किया है. ये दो प्रशासनिक अधिकारी अपने निजी कार्यों से मसूरी जाने के लिए सरकारी हेलीकॉप्‍टर का प्रयोग किया. जो सेवा‍ नियमावली के मर्यादा के प्रतिकूल और निंदनीय है.

माया के वर्दी वाले गुंडों से नहीं डरूंगा

प्रिय भाई यशवंत जी, उत्‍तर प्रदेश के माया राज में पुलिस वालों की मार झेल रहा हूं, जहां लोगों को आवाज उठाना भारी पड़ता है. मुझे अखबारों में लिखना भारी पड़ गया. माया के इन गुण्‍डों ने मुझे कालेज से लौटते समय पकड़ लिया और पांच दिन तक बिना किसी सबूत व कारण के रिमांड पर रखा, फिर तेरह फर्जी केस लगाकर मुझे एक बड़े गिरोह के साथ जोड़ दिया गया. जिसके चलते मुझे तीन माह सोलह दिन जेल में काटना पड़ा.

एसएमएस भेजने वाले पत्रकार जायेंगे जेल!

: बाराबंकी में डीएम व एसपी ने ली एसएमएस भेजने वाले पत्रकारों की खबर : मोबाइल के द्वारा एसएमएस से खबर भेजने वाले पत्रकारों की खबर बाराबंकी के जिलाधिकारी ने ली। डीआरडीए कक्ष में उन्‍होंने इन पत्रकारों से उनके बायोडाटा सहित छह बिन्दुओं पर उनसे जवाब भी मांगा। जानकारी के अनुसार जनपद में मोबाइल के माध्यम से समाचार भेजने वाले लगभग एक दर्जन पत्रकार सक्रिय है। जिसमे अधिकांश फर्जी श्रेणी में आते है।

एसपी सिंह की मां का निधन

स्वर्गीय सुरेंद्र प्रताप सिंह की मां का आज निधन होने की सूचना मिली है. हिंदी के जाने-माने पत्रकार एसपी सिंह मात्र 49 वर्ष की उम्र में ही 27 जून 1997 को चल बसे थे. एसपी सिंह के निधन से करीब 11 महीने पहले उनके पिता जगन्नाथ सिंह का देहांत हुआ था. एसपी सिंह की मां का निधन आज 92 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के गारुलिया नामक स्थान पर हुआ.

दिल्ली के बड़े पत्रकार और एसपी की याद

[caption id="attachment_15121" align="alignnone"]सवाल-जवाबसवाल पूछने वाली लड़की (बिलकुल बाएं, मंच की ओर मुंह किए) को जवाब देकर समझाते मशहूर पत्रकार राम बहादुर राय. साथ में मंचासीन हैं ‘चौथी दुनिया’ के प्रधान संपादक संतोष भारतीय.[/caption]

सुरेंद्र प्रताप उर्फ एसपी को याद करने दिल्ली में 27 जून दिन शनिवार, दोपहर 3 बजे, पत्रकारों की जो जुटान हुई, उसके बिखरने का वक्त था। ऐलान भी कर दिया गया। तभी एक लड़की मंच की तरफ आती है। कुछ कहने की इजाजत मांगती है। संचालक ने सभी से अनुरोध किया- प्लीज रुक जाइए, इनकी भी सुन जाइए। और वह लड़की बोली। जो जहां जिस मुद्रा में था, रुका। कुछ ने उसके सवाल करने के जज्बे को सराहा। कुछ ने जवाब देने की कोशिश की। लेकिन बिखरती सभा को कितनी देर संभाला जा सकता था, सो, सब लोग चले गए। लड़की भी सवाल को दिमाग में चकरघिन्नी की तरह घुमाते सवाल की तरह चली गई। उसे जवाब न मिला। मिलना भी न था।

झूठ नहीं बोल सकते तो दिल्ली में बोलना बंद करो

[caption id="attachment_15101" align="alignnone"]चंदन का ब्लागचंदन प्रताप सिंह के ब्लाग पर प्रकाशित पोस्ट[/caption]

सत्ताइस जून को पापा को हमसे बिछड़े बारह साल पूरे हो जाएंगे। इन बारह साल के दौरान एक भी पल ऐसा नहीं रहा होगा, जब पापा की याद न आई हो। हर मोड़ पर पापा याद आए। चाहें वो मौक़ा ख़ुशी का रहा हो या फिर ग़म का। कभी अकेले में बैठकर सोचता हूं तो लगता है कि दुनिया में कितना अकेला हूं। एक –एक कर के वो सब साथ छोड़ गए, जिसकी कभी मैंने कल्पना नहीं की। चाहें वो मेरी बुआ (बाबा की बुआ) हों, बाबा हों, पापा हों, नाना हों या फिर मम्मी।

पापा को श्मशान छोड़ अकेले घर लौटा

[caption id="attachment_15099" align="alignright"]एसपी सिंहएसपी सिंह[/caption]दिल्ली में पत्रकारिता करने लगा तो शुरुआत में दैनिक आज के श्री सत्य प्रकाश असीम जी,  दैनिक हिंदुस्तान के के.के. पांडेय जी और साप्ताहिक हिंदुस्तान के श्री राजेंद्र काला जी ने बेहद प्रोत्साहित किया। लेकिन सहीं मायनों में मुझे श्री आलोक तोमर जी ने करंट न्यूज़ के जरिए ब्रेक दिया। पाक्षिक से साप्ताहिक बनने वाली अमित नंदे की पत्रिका की टीम में मुझे आलोक कुमार, कुमार समीर सिंह,  अनामी शरण बबल और फोटोग्राफर अनिल शर्मा जैसे दोस्त मिले। मैं दिल्ली में रहकर भी पापा के साथ नहीं रहता था।  शुरू में तकलीफ हुई। लेकिन पापा ने साफ कहा कि जहां मेरी मदद की जरूरत पड़े, आ जाना, लेकिन इस महानगर में तुम्हें अपने पैरों पर खड़ा होना है। तुम्हे आटा–दाल का भाव मालूम होना चाहिए। खैर, नब्बे के दशक में मुझे ढाई हजार रुपए पगार मिलते थे। पापा ने बस इतना ही कहा था कि कंक्रीट के इस महानगर में राजमिस्त्री भी इतना कमा लेता है। एक अच्छी लाइफ स्टाइल के लिए ये पैसे कम है।

दिल्लीवालों ने बेटा से भतीजा बना दिया

[caption id="attachment_15096" align="alignnone"]एसपी और चंदनएसपी सिंह के शव के साथ बैठे चंदन प्रताप सिंह.[/caption]

27 जून करीब है। एसपी इसी दिन हम लोगों से जुदा हो गए। उनकी याद में उनके पुत्र चंदन प्रताप सिंह का एक संस्मरण पेश है… 

एसपी को मैं पापा कहता हूं। वो मेरे सगे पापा नहीं हैं। न हीं उन्होंने समाज के सामने ढोल पीटकर और न ही लिखा-पढ़ी कर मुझे बेटा बनाया। रिश्तों की उलझन में समझना चाहें तो वो मेरे चाचा थे। जब मैं बोलना सीख रहा था तब मेरे बाबा (दादाजी), आजी (दादीजी) और मम्मी ने कहा कि ये पापा हैं। तब से उन्हें पापा कह रहा हूं। बचपन में बड़ी मुश्किल होती थी सगे पापा और पापा के संबोधन को लेकर। लेकिन घरवालों ने इसका भी तोड़ निकाल दिया।

3 और 4 दिसंबर का कनफ्यूजन अभी तक क्यों है?

(एसपी के जन्मदिन पर पिछले दिनों कोलकाता में हुए आयोजन का संदर्भ लेते हुए चंदन प्रताप अपनी पीड़ा का बयान कर रहे हैं। एसपी की कुछ दुर्लभ तस्वीरें व दस्तावेज मुहैया कराने के लिए भड़ास4मीडिया चंदन का आभारी है)

यशवंत भाई, कोलकाता में सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस.पी. सिंह के जन्मदिन पर उनकी याद में पत्रकारों और बुद्धजीवियों ने संगोष्ठी का आयोजन किया, इसकी जानकारी आपके प्रतिष्ठित पोर्टल पर तारकेश्वर मिश्र जी के आदरणीय लेख से मिली। बहुत पीड़ा के साथ अपनी दिल की बात कह रहा हूं। आप मुझे जानते हैं। कम से कम एक बार पूछ तो लिए होते कि पापा का जन्मदिन कब होता है। यशवंत जी, हम लोग ऐसे परिवार से आते हैं, जहां पुरखों को जन्मदिन की तारीख याद करना जरूरी नहीं लगता था। मैंने कई विषयों पर अपनी दादी से बात की है।