: एक पाठक के हित की बात करने वाला तो दूसरा अखबार के शेयरधारकों का खेमा : जनसंवाद माध्यम स्वयं तैयार करे ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ : नागपुर में राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान आयोजित : मीडिया जरूरत से ज्यादा अहंकार से ग्रस्त : वर्तमान दौर में बदलती स्थितियों में जनसंवाद माध्यमों को स्वयं आगे आकर अपना ‘कोड ऑफ कंडक्ट’ तैयार करना होगा। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार व प्रसार भारती की अध्यक्ष सुश्री मृणाल पांडे का। वे नागपुर के धंतोली स्थित तिलक पत्रकार भवन में आयोजित राजेंद्र माथुर स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रही थीं। महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा एवं दैनिक भास्कर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य विषय ‘राज, समाज और आज का मीडिया’ था।
सुश्री पांडे ने कहा कि गत एक दशक में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि देश में शिखर और तलहटी के बीच की खाई कम हुई है। इसके कई रोचक परिणाम आए हैं। इस दौरान यह पहली बार हुआ है कि चुनाव में जाति का मंथन हुआ। ऐसे जनप्रतिनिधि चुन कर आए, जिन्हें नेहरू के जमाने में चुना जाना संभव नहीं था। माथुर साहब मानते थे कि एक समय के बाद अलग-अलग राजनेता की आवश्यकता होती है। संवाद माध्यमों में अब पहले से ज्यादा शक्तिशाली भाषायी माध्यम है। पहले अंग्रेजी के पत्रकारों की पूछ थी, लेकिन जैसे-जैसे लोकतंत्र तलहटी तक गया, भाषायी अखबार महत्वपूर्ण हो गए। हिंदी अखबारों की प्रतिष्ठा बढ़ी है, लेकिन इसके साथ ही कुछ गलतफहमी भी हो रही है। मीडिया जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और अहंकार की भावना से ग्रस्त है, इसे दूर करना आवश्यक है, नहीं तो सरकार नियामक बनाएगी। उन्होंने कहा कि आज जितनी तेजी से जितनी मात्रा में खबरें आती हैं, उस दृष्टि से सभी खबरों पर संपादक की गिद्ध दृष्टि रखना मुश्किल हो गया है।
सुश्री पांडे ने कहा कि अखबार के मार्केटिंग मैनेजर और यूनिट मैनेजर पर भी विज्ञापन की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। उनका नाम भी प्रिंट लाइन में जाना चाहिए, जिससे पाठक भ्रमित विज्ञापनों के बारे में संपादक को दोष न दें। उन्होंने कहा कि हर अखबार में दो खेमे हैं। एक पाठक के हित की बात करने वाला तो दूसरा अखबार के शेयरधारकों का खेमा। दोनों में टकराव है। इसे अखबार को अपने स्तर पर ही निपटना होगा। उन्होंने कहा कि इतना बड़ा त्वरित परिवर्तन अपने जीवन काल में नहीं देखा। इसलिए मीडिया में परिवर्तन आवश्यक हो जाता है।
चैनलों की जल्दीबाजी के विषय पर चर्चा करते हुए सुश्री पांडे ने कहा कि भीड़ में दर्शक और पाठक यह खोज ही लेता है कि कौन का चैनल या अखबार उसके लिए है। उन्होंने कहा कि पाठक और दर्शकों का हित सर्वोपरि है। इसे कानूनी रूप से भी मान्य करना चाहिए। नियामक बनाकर पाठकों को यह बताना चाहिए कि अमुक अखबार किसी पार्टी विशेष का है। उन्होंने कहा कि माध्यम तो बहुत फलफूल रहा है, लेकिन हार्ड न्यूज की उपेक्षा हो रही है। इस न्यूज को लाने वाले की भी उपेक्षा हो रही है। इससे भारी नुकसान हो रहा है। खबरों का पीछा कर, उनकी श्रृंखला चलाने वाले कम हो गए हैं। बहुत ज्यादा सूचना का जखीरा होने से पत्रकारों में आलस आ गया है। नया माध्यम इंटरनेट तो अच्छा है,लेकिन इसकी स्थिति ऐसी है जैसे यह बंदर के हाथ लग गया हो। पहले हम लोग पढ़े थे कि पत्रकारिता हड़बड़ी में रखा गया साहित्य है। इसी तरह से ब्लॉग हड़बड़ी में रचा गया पत्रकारिता है।
तथाकथित ‘ऑनर किलिंग’ की चर्चा करते हुए सुश्री पांडे ने कहा कि यदि ऐसी हत्याओं पर गौर करें तो पाएंगे कि सबसे ज्यादा हत्याएं उस मामले में हुई हैं, जिसमें ऊंची जाति की लड़की ने अपने से छोटी जाति के लड़के के साथ प्रेम विवाह किया। ये घटनाएं साबित कर रही हैं कि इससे समाज बिचलित हो रहा है। इस विषय पर ब्लॉग जगत में खूब चर्चाएं हुईं। अधिकतर ब्लॉग लिखने वालों ने माना कि हत्याएं गलत थीं, लेकिन उनमें लड़की के विचलन पर रोष था। इस तरह के विचलन को सांस्कृति सहमति नहीं मिल रही है। ऐसी घटनाएं बताती हैं कि जो कुछ हो रहा है, उसका एक छोर लोकतांत्रिक राज्य से जुड़ा है। लोकतंत्र अपनी गति को मथ रहा है। लेकिन अनिवार्य चीजों को सहमति देने में देरी कर रहा है।
उन्होंने दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहा कि राजधानी के आसपास के चार गांव ऐसे हैं जिनमें चालीस मसर्डीज कारें हैं। गांव के जाट समुदाय के लोग अपनी संपत्ति बेच कर अमीर हो गए। लेकिन इससे गांव के बुजुर्गों को लगा कि उनके साथ से सत्ता निकल गई। पैसे से वे अमीर हो गए, लेकिन उनके पास से वह गौरव निकल गया जिस गौरव का अनुभव जमीन का स्वामी होने से होता था। यह गौरव पैसे से नहीं खरीदा जा सकता है। उन्होंने फैशन और जीवनशौली पर खर्च किया, लेकिन पढ़ाई-लिखाई नहीं की। वहीं दूसरी ओर दलित और पिछड़ी जातियों में बदलाव आया है। इस समाज के युवा पढ़ लिख कर सरकारी नौकरियों ने लगे। इससे गांव में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी है। लड़कियां ऐसे ही लड़कों की ओर आकर्षित हो रही हैं। क्योंकि वे जानती हैं कि ये लड़के लंबे रेस के घोड़े हैं। खाप पंचायतों पर कोर्ट के निर्णय लागू नहीं हो पाते हैं। पर इनके निर्णय मान्य हो रहे हैं। दरअसल दंड विधान भी वहीं से निकलता है। स्वागत भाषण वनराई के विस्वस्त व पूर्व विधायक गिरीश गांधी ने दिया। संचालन डा. प्रमोद शर्मा ने किया। कार्यक्रम में नगर के हर वर्ग के गणमान्य लोग उपस्थित थे।
नागपुर से संजय स्वदेश की रिपोर्ट
Comments on “हर अखबार में दो खेमे हैं : मृणाल पांडे”
JASWANT JEE,
MRINAL PANDEY ko is karyakram men bulana Mathur jee ki atman ko bhi achcha nahi laga hoga. is dus mahila patrakar ke munh se kuchh bhi achcha kisi ko nahi lagta hai. kai ubharte patrakaron ka is mahila ne gala ghota hai.
IS mahila ke liye itna hi. KUMAR M
मैडम, ये बताइएगा कि आप किस खेमे की है। पाठकों की बात करने वाली या शेयर धारकों की दलाल। व्यावसायिक मीडिया संस्थानों के अखबारों में उनके हित को किनारे करके सात साल संपादक रहीं क्या आप? अगर हां, तो बनारस के निदॆलीय प्रत्याशी की प्रचार वाली खबरें इश्तहार के हवाले से कैसे गी।
छपती रहां। संस्थानों में रहते कुछ करते तब कहते तो सुभाता भी। रज्जू बाबू की आत्मा झूठ जीने वालों से अपने बारे में सुनकर खून के आंसू रो रही होगी-मनोरथ मिश्र
bilkul sachhai kah gaye mrnila ji . esme onhone media ke kuch logo ko AHENKARI bhi kaha , aur padi news ki KHILAFAT ki . lekin afsos jis akhbar ke sanukt tatvdhan me wah aaye thee . wahi sabse jyada PAID NEWS CHALTI HEI yeh hamne vidhasabha ELECTION ke douran dekha.
mrinalji par lagaye ja rahe sabhi aarop vyaktigad dosh dekar lagaye ja rahe hai.
mathurji ke name vidharbha hindi patrkaro ke karykram par ttipani anuchit lagti hai.rahi bat ped news ki to desh ka koi akhbaar isase nahi bach saka.