बेबसी, बीमारी और गरीबी लील गई ओमाजी को

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ओमकार नाथ अग्रवाल उर्फ ओमा जीएक पत्रकार, जिसने अपने इलाके की जनता को अखबारों का दर्शन कराया, अखबारों को पढ़ाने की आदत डाली, अखबारों का प्रसार बढ़ाया, खबरें भेजी, अखबारों के जरिए जनसमस्याओं को अफसरों-नेताओं तक पहुंचाया, उसकी 70 साल की अवस्था में जब मौत हुई तो उसके पास कोई नहीं था. अगर कोई था तो वह थी बेबसी, लाचारी और अभाव. हम बात कर रहे हैं ओमकार नाथ अग्रवाल की. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के पुवाया कस्बे के रहने वाले ओमकार नाथ अग्रवाल के चलते जिले में हिंदुस्तान, दैनिक जागरम, अमर उजाला, पंजाब केसरी जैसे अखबार पहुंचे. उन्होंने शाहजहांपुर में दैनिक समाचार पत्रों को 1960 में प्रवेश कराया.

ओमाजी के नाम से मशहूर ओमकार नाथ अग्रवाल समाचार संकलन के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए थे. नगर की विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं से वे जुड़े रहे. पुवाया इंटर कालेज के आडीटर, रामलीला कमेटी पुवाया के सचिव तथा आर्य कन्या विद्यालय पुवाया के सचिव भी रहे. बरेली से प्रकाशित अमर उजाला का भी पुवाया में उन्होंने ही शुरुआत की थी. नगर में उनकी काफी इज्जत और सम्मान था. ओमाजी का अंतिम समय बहुत कष्ट में बीता. गरीबी, लाचारी एवं बेबसी के कारण समुचित इलाज न करा सके वे. इसी के चलते उनका निधन हो गया. उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत साठ के दशक में की थी. तब अखबारों के दाम 15 पैसे हुआ करते थे. तब समाचार संकलन का काम बसों के ड्राइवरों को लिफाफा देककर हुआ करता था. अखबार को समाचार के शीर्षकों को बोल-बोल के बेचा जाता था. उस जमाने के पत्रकार रहे ओमाजी करीब 30 वर्ष तक पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़े रहे. उनकी लेखनी बेबाक हुआ करती थी. उन्होंने कभी खबरों से समझौता नहीं किया. वे अपने पीछे पत्नी सरोज देवी और तीन लड़कों प्रदीप अग्रवाल, प्रवीन अग्रवाल और नवीन अग्रवाल को छोड़ गए हैं. दुर्भाग्य यह कि उनके दो लड़के प्रदीप और प्रवीन अग्रवाल नेत्रहीन हैं. ओमा जी का अंतिम संस्कार जेवा रोड पर स्थित श्मशानघाट में कर दिया गया.

शाहजहांपुर से विमलेश गुप्ता की रिपोर्ट

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