मानवाधिकारवादियों से दुखी आलोक मेहता ने निकाली भड़ास : जापानी जर्नलिस्ट ने पीएम को दिया उलाहना : उन वरिष्ठ पत्रकारों के दिल से पूछिए जिन्होंने बड़े-बड़े अखबारों-पत्रिकाओं में कई दशक गुजार दिए पर उन्हें आज पीएम की विज्ञान भवन में हुई पीसी में इसलिए सवाल नहीं पूछने दिया गया क्योंकि वे फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं. इन वरिष्ठ पत्रकारों ने ऐतराज भी जताया. चिल्लाए भी. प्रधानमंत्री जी का ध्यान भी आकृष्ट कराया.
पर पीएम साहब सब सुनकर भी चुप थे. मीडिया मैनेजर हरीश खरे ने जिसे चाहा, उससे सवाल कराया. हरीश की आंखें जिस पत्रकार पर कुछ देर तक ठहर जाती थीं, वह मान लेता था कि अब सवाल पूछने की उसकी बारी है. आंखों ही आंखों में इशारा हो गया. पीएम से सवाल पूछने का इरादा हो गया. सवाल भी कैसे. बिलकुल सीधे-साधे. ताकि हमारे बुजुर्ग पीएम को कोई खास दिक्कत और परेशानी न हो.
पीएम की पीसी में गए कई वरिष्ठ पत्रकारों ने भड़ास4मीडिया को फोन कर सूचित किया कि हरीश खरे चेहरा देख देख कर सवाल पूछने का मौका दे रहे थे. उन्होंने फ्रीलांसर्स की तरफ तो देखा तक नहीं. वेटेरन जर्नलिस्ट बैठे रह गए. किसी ऐसे व्यक्ति को सवाल पूछने का मौका ही नहीं दिया गया जो तीखा सवाल पूछ सकता था. कुछ लोगों ने कहा कि पूरी पीसी फिक्स लग रही थी. मीठे मीठे सवाल हो रहे थे. पीएम की वाइफ के बारे में और राहुल की ताजपोशी के बारे में सवाल हो रहे थे. राहुल से जुड़े सवाल जवाब सुनकर तो लगा कि जैसे सब कुछ प्लांट था. राहुल के लिए माहौल बनाने को ये सवाल किए गए.
अपने नई दुनिया वाले आलोक मेहता ने ऐसा सवाल दागा कि कई पत्रकार चकरा गए. आलोक मेहता ने पीएम से पूछा कि आप उन मानवाधिकारवादियों के खिलाफ क्या एक्शन ले रहे हैं जो नक्सलवादियों को सपोर्ट करते हैं. पीएम ने कहा, भई ये डेमोक्रेटिक देश है. मानवाधिकारवादियों का अपना काम है, उन्हें करने दीजिए. जब अति हो जाएगी तब देखा जाएगा. लेकिन मानव अधिकारों की रक्षा करने वाले लोग तो होने ही चाहिए. जनता से कट चुकी पत्रकारिता इतनी पतित भी हो जाएगी, ऐसे ऐसे सवाल भी पूछे जाने लगेंगे, यह किसी को उम्मीद न थी. वैसे, आलोक मेहता का अरुंधति राय से पंगा जगजाहिर है. वे कई संपादकीय लिखकर अपनी भड़ास अरुंधति राय समेत मानवाधिकार बिरादरी पर पहले भी निकाल चुके हैं, आज भी निकाल लिया.
पीएम की पीसी में एक जापानी जर्नलिस्ट ने देर से पीआईबी कार्ड बनने की शिकायत की. उसका कहना था कि आपका जो पीआईबी कार्ड हैंडल करने वाला विभाग है, वह बहुत परेशान करता है, खासकर विदेशी संवाददाताओं को. उस संवाददाता का कहना था कि कोई भी कागजात देने में विभाग काफी परेशान करते हैं. इसी कारण उन लोगों को आज इस पीसी में शामिल होने में भी 25 मिनट तक हुई जांच-पड़ताल से गुजरना पड़ा. जापानी जर्नलिस्ट की शिकायत और उलाहना सुनकर पीएम ने संबंधित मंत्रालय से इस मामले के बारे में पूछताछ करने का आश्वासन दिया.
Comments on “पीएम की पीसी में भी फिक्सिंग?”
Maine bhi sari press conference Suni hai. Isme koi Shaque nahin press confrence poori tarah se fixed lag rahi thi. jab patrakar Khud Poochane main sakasham hain to bicholiya beech aakar kyon apni bhomika nibha raha tha or apni marzi se patrkaron ko bolne ke liye keh raha tha. Itna hi nahi confrence main ek bhi cross quetion nahin hua Aur jitane bhi swal pooche gaye unme se do-teen swalon ko chhodkar shesh sabhi bsseless ba pradhanmantri ki chamchagiri ko darsha rahe the. Aisa lag raha tha mano jaise confrence national level ki na hokar kisi rajya ke C.M. ki ho Uska Bhi satar Aisi confrence se Uncha Hota Hai.
SUNIL
shyad hindutan ke ilawa kisi patrkar ko kiya mahangi ki chinta nahi thi.
alok mehta kabhi reporter ke level se upar uth nhi paye hain. PM ko chehra dikhane chmachiyane pahunch gaye, varna kitne sampadak gaye the wahan jara puchhiye unse..ye log tanashahi ke pairokar hain, PM ne kam se kam ek sampadak ki to sare aam hawa nikal di.
Bhai yah sirf pm ki baat nahi. .cm ki pc main bhi yahi hota hai. yakeen karna ho to up main dekhiye. cm ki pc main unhi ko bulaya jayega jo bo sawal na puche jo maya mam ko bura lage. officers ki chamchagiri karo ya netao ka stutigan ..tabhi entry ho sakti hai. maje ki baat yah ki cm apna likha hua padti hai or sab chupchap note karte hai….kahi koai sawl nahi. sawl kiya to sarkari makan se bahar ya fir shaam ko editor hi kah dega ki kal se mat aana. aise hi chal raha hai hamara loaktantra.
good…. i m also with u sir, experienced journalist ko equal chance milna chahiye
…. पीएम की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी फिक्स थी… पर्चे में आसान सवाल पूछे गए… और हमेशा की तरह एक बार फिर पप्पू पास हो गया… प्राइमिनिस्टर पप्पू सिंह देश के सबसे कमज़ोर मगर भाग्यशाली प्रधानमंत्री हैं
पीसी के बारे में ऊपर जो चर्चा की गई है वो अपनी जगह ठीक है…लेकिन आलोक मेहता का सवाल भी गैर वाजिब नहीं था । नक्सलियों के खिलाफ जब भी बड़ी कार्रवाई होती है तो मानवाधिकार वाले अपनी दुकान चमकाने के लिए अपना डंडा और झंडा लेकर आ जाते हैं। उनके समर्थन में कोर्ट तक चले जाते हैं। क्या 6 अप्रैल को दंतेवाड़ा में मारे गए 76 CRPF जवानों में से एक के घर भी ये मानवाधिकार वाले गए थे। कम से कम इस तरह के कथित मानवाधिकार वालों के खिलाफ कार्रवाई तो जरूर होनी चाहिए।
यशवंत जी आप बहुत ही नासमझ है। भाई जब पीएम साहब को ही कूर्सी पर फिक्स किया गया है ऐसे में अगर पीसी फिक्स हो गई तो ईतनी हाय तौबा क्यों।
यशवंत जी बहुत बढ़िया किया आपने लिखकर..
मैंने भी पीएम कि पूरी पीसी देखि है,और मुझे भी कुछ इसी तरह का आभाष हुआ कि कुछ फिक्स लोग ही सवाल पूछ रहे थे जबकि बहुत सारे पत्रकार अपने हाथ में लिए हुए अपना नंबर पीएम के मीडिया मैनेजर [b]हरीश खरे[/b] को दिखाया कि मुझे भी सवाल पूछने हैं, लेकिन मीडिया मैनेजर हरीश खरे को इससे क्या फर्क पड़ता जो फिक्स था वो हुआ..