आज मेरे द्वारा ओ़थ कमिश्नर मेरठ के समक्ष यह शपथपत्र प्रस्तुत किया गया कि जाति-प्रथा के अहितकारी और बाधक असर को उसकी सम्पूर्णता में देखते हुए मैंने यह निर्णय लिया है कि भविष्य में मेरी कोई भी जाति नहीं होगी. इस प्रकार सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में किसी भी आवश्यकता पड़ने पर मेरी जाति “कोई नहीं” अथवा “शून्य” मानी जाए.
साथ ही मैंने अपने नाम के साथ जातिसूचक उपनाम को भी हटा कर आगे से सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में भी अपना नाम “अमिताभ ठाकुर” नहीं मात्र “अमिताभ” कर दिया है. साथ ही मैं अपनी तरफ से अपने सामर्थ्य भर एक जातिविहीन समाज की दिशा में अपना भी योगदान देने की पूरी कोशिश करूँगा. इस सम्बन्ध में प्रस्तुत शपथ पत्र इस प्रकार है..
शपथ पत्र
मैं, वर्तमान नाम अमिताभ ठाकुर पुत्र श्री तपेश्वर नारायण ठाकुर, पता- 5/426, विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ इस समय पुलिस अधीक्षक, आर्थिक अपराध अनुसन्धान शाखा, मेरठ के पद पर कार्यरत सशपथ यह वयान करता हॅू कि-
1- यह कि मेरा जन्म 16 जून 1968 को मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ था
2- यह कि मेरा जन्म एक हिंदू “भूमिहार ब्राह्मण” परिवार में हुआ था
3- यह कि मेरा नाम मेरे घर वालों ने अमिताभ ठाकुर रखा था
4- यह कि मैं आज तक इसी नाम “अमिताभ ठाकुर” तथा इसी जाति “भूमिहार ब्राह्मण” से जाना जाता रहा हूँ.
5- यह कि अपने गहरे तथा विषद चिंतन के बाद मेरा यह दृढ मत हो गया है कि हमारे देश में जाति-प्रथा का वर्तमान स्वरुप एक अभिशाप के रूप में कार्य कर रहा है और समय के साथ इसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
6- यह कि मैं यह समझने लगा हूँ कि देश की प्रगति में बाधक प्रमुख तत्वों में एक तत्व जाति-प्रथा भी है
7- यह कि जाति के इस प्रकार के स्वरुप के कारण कई बार सामाजिक विद्वेष तथा तमाम गलत-सही निर्णय भी होते दिखते रहते हैं.
8- यह कि मेरा यह दृढ मत हो गया है कि देश और समाज के समुचित विकास के लिए यह सर्वथा आवश्यक है कि हम लोग जाति के बंधन को तोड़ते हुए इस सम्बन्ध में तमाम महापुरुषों, यथा भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, संत कबीर से लेकर आधुनिक समय के विचारकों की बातों का अनुसरण करें और जाति के इस प्रकार के बंधन से निजात पायें.
9- यह कि इन स्थितियों में मैं अपनी यह न्यूनतम जिम्मेदारी समझता हूँ कि मैं अपने आप को इस जाति-प्रथा के इस बंधन से विमुक्त करूँ.
11- यह कि तदनुरूप मैं यह घोषित करता हूँ कि भविष्य में मेरी कोई भी जाति नहीं होगी.
12- यह कि सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में किसी भी आवश्यकता पड़ते पर मेरी जाति “कोई नहीं” अथवा “शून्य” मानी जाए.
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13- यह कि तदनुरूप मैं अपने नाम के साथ जातिसूचक उपनाम को भी हटाता हूँ.
14- यह कि मैं आज से आगे अपने आप को मात्र “अमिताभ” नाम से ही पुकारा तथा माना जाना चाहूँगा. साथ ही सभी आधिकारिक, शासकीय और सामाजिक अभिलेखों, दस्तावेजों, मान्यताओं और सन्दर्भों में भी अपना नाम “अमिताभ” ही समझूंगा, “अमिताभ ठाकुर” नहीं.
15- यह कि इस हेतु आधिकारिक तथा शासकीय अभिलेखों, दस्तावेजों आदि में अपने नाम के परिवर्तन हेतु मैं अग्रिम कार्यवाही इस शपथपत्र की कार्यवाही के पूर्ण होने के बाद आज से ही प्रारंभ कर दूँगा.
16- यह कि मैंने अपने सम्बन्ध में यह निर्णय अपने पूरे होशो-हवास में, अपना सब अच्छा-बुरा सोचने के बाद लिया है और यह निर्णय मात्र मेरे विषय में लागू है. मैं अपने इस निर्णय से अपनी पत्नी डॉ नूतन ठाकुर तथा अपने दोनों बच्चों तनया ठाकुर और आदित्य ठाकुर को ना तो बाध्य कर सकता हूँ और ना ही तदनुसार बाध्य कर रहा हूँ. इस सम्बन्ध में वे अपने निर्णय अपने स्तर से ही लेने को सक्षम हैं.
अतः ईश्वर मेरी मदद करें।
अमिताभ
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ
पुलिस अधीक्षक,
ईओडब्ल्यू, मेरठ
dharamkaram
April 8, 2011 at 4:05 pm
यह काम तो कोई ठाकुर ही कर सकता था…भले ही आप खुद को भूमिहार ब्राहमण बताएं परंतु आपका कर्म क्षत्रिय वाला है। हां, इसका समाज को फायदा कितना होगा, यह देखने वाली बात होगी। जाति सामाजिक व्यवस्था का अंग है। हम आगे-पीछे सरनेम लगाएं या नहीं। शेर न गीदड़ हो सकता है, न गीदड़ शेर। उनकी नस्लें भी सहज ही पहचानी जाती हैं। बुद्ध-महावीर-राम-कृष्ण-कबीर-नानक सभी क्षत्रिय गुणों से ओतप्रोत थे। ब्राह्मण जाति ने इस देश का बेड़ा गर्क किया, क्षत्रियों ने समय-समय पर क्रांतिबीज बनकर इसे समूल नाश किया। आपका प्रयास निजी परितोष का प्रतीक है, शुरुआत के लिए अच्छा है। इसके भले-बुरे पर खासा विचार किया जा सकता है। ठाकुर-खासकर अमित आभा वाले ही ऐसा करने का साहस करेंगे। मायावादी-मायावती-मनुजताविरोधी अपने कुएं से बाहर न निकलेंगे। छद्म धर्मनिरपेक्षों से देश को खतरा है, धर्म से नहीं। मिथ्या जातिवादियों से खतरा है, शूरवीरों की जाति से नहीं। एक जैसी प्रतिभा-विचार-जीवनशैली वाले लोग एक साथ होने लगते ही हैं और जाति बन जाती है। मुझे नहीं लगता है कि जाति का कलेवर त्यागकर कोई सामाजिक सुधार किया जा सकता है। आजतक किसी ने किया हो, ऐसा भी नहीं लगता। हम जिस जाति-वर्ण में हैं, जो साधन-सुविधाएं सुलभ हैं, उन्हीं से मानवीय उत्थान का भाव रखकर कर्म करें, तो ज्यादा बेहतर हो। सनातन मार्ग तो यही है। लाभ भी इसी से हुआ है। मूलतः क्रांति और परिवर्तन तो धर्म से ही आएगा। इतिहास गवाह है। बहरहाल, हम तो समझते थे कि आप ठाकुर यानि क्षत्रिय हैं। अब पता चला कि ठाकुर लगाने वाले ब्राह्मण भी होते हैं। कुछ क्षेत्रों में यादव भी ठाकुर हैं, चर्मकार भी। जबसे संकरवर्णी संततियां अथवा जातियां बनी हैं, सबकुछ कन्फ्यूजन सा हो गया है। पीछे सिंह लगाते हैं, आगे गाय की तरह दुम छुपाते हैं। पराक्रमी शूरकर्मा नीतिकर्मा धर्मपरायण ही क्षत्रिय होते हैं, पहले तो यही था। ब्राह्मण भी वही होता था जो धर्म एवं अध्यात्म का शोधक होता था। शूद्र और वणिक उन्हें माना जाता था जिनका देहकर्म से ऊपर कुछ चिंतन ही न होता हो। आजकल ब्राहम्णों में शूद्र छुपे हैं, शूद्रों में ब्राह्मण। वणिकों ने इन दिनों धर्म की पौ-बारह कर रखी है। लिहाजा हमें यह मान लेना चाहिए कि जाति का फंद फांस नहीं है, धर्म का अभाव-ज्ञान का अभाव ही वास्तविक फांस है। धर्मपथ पर चलें तो ये जाति-वर्ण-संप्रदायगत समस्याएं बचती ही कहां हैं।
बहरहाल, जो हुआ अच्छा हुआ। जो होगा अच्छा ही होगा।
साभार-आशुतोष
सुनील कुमार
September 5, 2018 at 5:19 pm
मिस्टर पता नहींं आप कौन है लेकिन मनुष्य जाती के नाम पे कलंक है , आपका ये कहना कि ब्राह्मण जाति ने इस देश का बेड़ा गर्क किया,
Hitesh Thakur
January 11, 2019 at 7:12 am
आपकी जाति कौन हैं जनाब आप भी बता do अपनी जाति Thakur हैं हम …गर्व से कहेंगें Thakur हैं हम ……..
राघव ठाकुर
October 22, 2019 at 3:10 pm
कोनसे ठाकुर हो भाई
भारतीय नागरिक
April 8, 2011 at 6:44 pm
एक बहुत अच्छा फैसला. लोगों को आपसे प्रेरित होना चाहिये..
kanik
April 9, 2011 at 7:25 am
I M PROUD OF U
MY MOTHER IS NOT AGREE WITH OUR MARRIAGE BECAUSE OF LOW CASTE OF MY WIFE WE R LEAVING OUT OF OUR HOME .SHE DOESNT ALLOW US
Vinay Bihari Singh
April 9, 2011 at 8:46 am
अमिताभ जी, मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं स्वीकार करें। एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आपने जिस ईमानदारी का परिचय दिया है, वह दूसरों के लिए प्रोत्साहन बन सकती है। देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है। हमारे देश में शासन और प्रशासन के स्तर पर भ्रष्टाचार की सड़ांध की दुर्गंध विदेशों तक पहुंच रही है, ऐसे में आपने यह नेक कदम उठाया है। बधाई।
– – विनय बिहारी सिंह
Vinay Bihari Singh
April 9, 2011 at 8:52 am
अमिताभ जी, मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं स्वीकार करें। एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में आपने जिस ईमानदारी का परिचय दिया है, वह दूसरों के लिए प्रोत्साहन बन सकती है। देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है। हमारे देश में शासन और प्रशासन के स्तर पर भ्रष्टाचार की सड़ांध की दुर्गंध विदेशों तक पहुंच रही है, ऐसे में आपने यह नेक कदम उठाया है। बधाई।
– – विनय बिहारी सिंह