: राजीव शुक्ला होने के अर्थ : राजीव शुक्ला अपने मुकाम पर पहुंच गए हैं। आज वे भारत सरकार में मंत्री है। और दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वे उस सरकार का अंग हैं, जो देश की सवा सौ करोड़ जनता की किस्मत लिखने का काम करती हैं।
उनको चाहिए भी यही था। मिल गया। बरसों से अपन उनको जानते हैं। तब से, जब वे जनसत्ता में मेरठ के संवाददाता थे। उन दिनों वे पत्रकार थे। खालिस खबरची। लेकिन आज राजीव शुक्ला सिर्फ मंत्री नहीं हैं। वे फुल टाइम राजनीतिक हैं। क्रिकेट के ‘कारोबार’ में भी हैं। पेशे से पत्रकार हैं। और खबरों के धंधे के साथ साथ ग्लैमर की दुनिया में भी पूरी तरह से सक्रिय हैं। ज्यादा साफ साफ कहा जाए, तो जीवन में सारे जतन करके कोई भी व्यक्ति जो मुकाम हासिल कर सकता है, राजीव शुक्ला उससे भी कई गुना ऊंचे और अलग आसन पर पहुंच गए हैं। उनकी यह सफलता किसी भी सामान्य आदमी के लिए चमत्कृत कर देने या किसी किसी को चिढ़ानेवाली भी हो सकती है।
मगर कोई आदमी इतनी कम ऊम्र में इतना कुछ कर सकता है, यह हैरत में डाल देनेवाला सत्य समझने से ज्यादा इस सत्य को जानने की जरूरत है कि राजीव शुक्ला दिन के कुल 24 घंटों में पूरे 48 घंटों का जीवन जीते हैं। और इसके अनुकूल बनने के लिए वे अपने आपको कितना कसते हैं, कितना खींचते हैं, और कितनी तेज गति से काम को अंजाम देते हैं, इसका अंदाज लगाना उनकी पत्रकार पत्नी अनुराधा प्रसाद के लिए बहुत आसान नहीं है।
वैसे तो यह कोई नीति या नियम नहीं है, लेकिन हमारे संसार की यह एक सहज परंपरा है कि हम किसी की भी सफलता को उसकी मेहनत और कोशिश से ना जोड़कर किसी और ही चश्मे से देखते हैं। इसीलिए राजीव शुक्ला के जीवन में साकार रूप से सजते और संवरते सफलता के संसार से लोगों को गर्व कम, मगर ईर्ष्या अधिक होती रही है। इस देश में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जो बहुत ही सहजता के साथ राजीव शुक्ला के जीवन के अलग अलग किस्मों के उत्थान को जुगाड़, प्रबंधन और अवसरवाद के दरवाजों से आई ऊंचाई बताकर अपना कलेजा ठंडा करते रहते हैं।
लेकिन वे यह नहीं जानते कि 1983 में सिर्फ तेईस साल की ऊम्र में कानपुर से दिल्ली आकर ‘जनसत्ता’ में बहुत मुश्किल से ढाई हजार की नौकरी पानेवाले राजीव शुक्ला आज अपने ‘न्यूज-24’ नामक न्यूज चैनल और बीएजी फिल्मस नामक कंपनी में ढाई – ढाई लाख से भी ज्यादा की नौकरियां भी बहुत आसानी से बांट देते हैं। हालांकि राजीव शुक्ला की सफलता को जुगाड़, प्रबंधन और अवसरवाद की ताकत का अंजाम बतानेवालों के पास अपने कुछ तथ्य, कुछ तर्क और कुछ तीखे कारण भी जरूर होगें। जो लोग उनको मानते हैं, वे यह भी जानते हैं कि मुकाम पर पहुंचने की पटकथा के पेंच खोलने में वे हर बार बहुत मेहनत करते रहे हैं।
मीडिया, क्रिकेट और कांग्रेस में बहुत सारा नाम कमाने के बाद वे जब दूसरी बार राज्यसभा में पहुंचे, तो उनके साथी और अपने बड़े ‘भाई’ आलोक तोमर ने कहा था – ‘आज राजीव सफल हैं, समृद्ध भी और बहुत प्रसिध्द भी हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी नाव अपने घाट पर लग गई है। उनका सफर बहुत लंबा है। इसलिए अभी तो बहुत सारी धाराएं, बहुत सारे भंवर और बहुत सारे प्रपात रास्ते में आने हैं, और राजीव शुक्ला को उन्हें पार करना है।’ पर, अब कहा जा सकता है कि राजीव शुक्ला ने उन में से बहुत सारी भवबाधाओं को पूरी हिम्मत के साथ पार कर लिया है। वे जब बीसीसीआई के उपाध्यक्ष बने, तब अपने को यह अहसास हो गया था कि इस आदमी में शरद पवार को भी पटखनी देने की ताकत है।
राजीव शुक्ला कांग्रेस में हैं। राहुल गांधी के खासमखास और सोनिया गांधी के विश्वासपात्र भी। मगर, बीजेपी के कई नेताओं से उनकी नितांत निजी और व्यावहारिक दोस्ती है। कांग्रेस को रह रहकर ब्लैकमेल करनेवाली एनसीपी के नेताओं के साथ गलबहियां करते भी उनको देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं। लेकिन उनको हैरत नहीं होती, जो राजीव शुक्ला की तासीर को जानते हैं। वे रिश्तों की अहमियत समझते हैं और उम्मीदों पर खरा उतरना उनको आता हैं। जो कहते हैं, करते हैं और समय गंवाना उनको गवारा नहीं है। वैसे कहा जाए तो ऊंचे और आला लोगों के साथ संबंधों का शौक राजीव शुक्ला को शुरू से है और रसूखदार लोगों के काम आना उनकी फितरत।
अपने बड़े भाई दिलीप शुक्ला का दामन थामकर कानपुर के दैनिक जागरण में जब राजीव शुक्ला पत्रकारिता का पाठ पढ़ रहे थे, तो आपकी और हमारी तरह उनकी भी उम्मीदों का संसार भले ही बहुत बड़ा रहा हो। लेकिन निश्चित तौर से उनको यह समझ भी शुरू से ही थी कि जीवन के वसंत का वास्तविक विकास और विस्तार रसूखदार और ऊंचे लोगों के जरिए तो हो सकता है। लेकिन इसके लिए सामंजस्य बनाने के साथ विश्वास की बारीक डोर से बंधे रहना भी बहुत आवश्यक होता है। साथ ही वे यह भी जानते हैं कि सफर जब लंबा हो तो अपने दामन को बहुत बचाकर कैसे चला जाना चाहिए। इसीलिए भारतीय क्रिकेट के संसार का सबसे प्रसिद्ध चेहरा होने के बावजूद राजीव शुक्ला किसी विवाद में कभी नहीं आते। वे अपनी अदाओं से आपको हैरत में डालते रहते हैं।
उनकी ऐसी ही कलाबाजियों में खो जानेवाले लोग 25 साल बाद भी आज तक इस रहस्य से परदा नहीं नहीं उठा पाए हैं कि हिंदी वाले राजीव शुक्ला धीरूभाई अंबानी के अंग्रेजी अखबार ऑब्जर्वर में वे कैसे पहुंच गए। और सबसे पहले जागरण, फिर जनसत्ता और बाद में रविवार जैसे विशुद्ध हिंदी प्रकाशनों में सिर्फ राजनीतिक पत्रकारिता का प्रकाश बिखेरनेवाला यह आदमी एक दिन अचानक अंग्रेजी के बिजनेस के अखबार का संपादक कैसे बन गया। बरसों बाद भी वे वैसे के वैसे ही हैं। लंबे वक्त तक साथ निभाना उनकी आदत में हैं। फिर पता नहीं, मूंछों के लिए उनकी तस्वीर में जगह क्यों खत्म हो गई।
जब वे रविवार में थे, और पूरा देश वीपी सिंह को भगवान बुद्ध की तरह मसीहा मानने को मजबूर हो रहा था, तो राजीव शुक्ला ने राजीव गांधी के विरोध में उतरे वीपी सिंह के असली चरित्र को रविवार के पन्नों पर उतार कर देश को समझाय़ा था कि यह लीजिए, वीपी असल में क्या है। तब वीपी के लोगों ने उन को कांग्रेस का एजेंट करार दिया था। लोग आम तौर पर ऐसे तमगों से बचते हैं, लेकिन, राजीव शुक्ला ने अपने को मिले इस बिल्ले को ही अपने आपको आसानी से आगे बढ़ाने के रास्तो के रूप में लिया। बाद में तो वे राजीव गांधी के बाकी लोगों से बिगड़े संबंधों को सुधारने की कड़ी भी बने। और सोनिया गांधी को सबसे पहले टीवी के टॉक शो पर भी वे ही लाए। लेकिन जीवन का पहला संसद का चुनाव उनको निर्दलीय लड़ना पड़ा।
फिर भी उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के इस चुनाव में वे बड़े बड़ों को धूल चटाकर सबसे ज्यादा वोटो लेकर दिल्ली पहुंचे। तो कांग्रेस, सोनिया गांधी और उनके परिवार को भी उनकी अहमियत समझ में आ गई। अब तो खैर, उनको राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और उनके बच्चों सहित शाहरुख खान के साथ क्रिकेट के मैच में लगते छ्क्कों पर खूब तालियां बजाते हुए भी देखने का भी यह देश आदी हो चुका है। रिश्ते बनाना, फिर उनको सहेजना और आगे बढ़ाना उनको आता है। धाराएं भले ही अलग हो जाएं पर, वे रिश्तों में रिसाव रत्ती भर नहीं आने देते। उनके संबंधों के संसार की सीमाएं क्रिकेट से लेकर मीडिया, उद्योग से लेकर राजनीति और कांग्रेस से लेकर ग्लैमर की दुनिया तक व्याप्त हैं। और जितना अपन उनको जानते हैं, उस हिसाब से कहें तो वे जिसके भी साथ होते हैं, वहां उनका विकल्प भी सिर्फ और सिर्फ उनके अलावा कोई और नहीं होता।
संबंधों के समानांतर संसार की संकरी गलियों के रिश्तों की राजनीति के राज पता नहीं वे कब जान गए थे। इसीलिए कांग्रेस से लेकर क्रिकेट, मीडिया से लेकर ग्लैमर और ङद्योग जगत से लेकर राजनीति के लोगों के बीच सामंजस्य भी वे बहुत सहजता से बिठा लेते हैं। राजनीति में रिश्ते और रिश्तों की राजनीति की अहमियत अपन भी जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि इनको सम्हालने के लिए एक अलग किस्म की ऊर्जा हासिल करनी होती है। मगर यह सवाल आज भी जवाब का मोहताज है कि बिल्कुल आपकी और हमारी तरह के हाड़ मांस से बना राजीव शुक्ला नामक यह आदमी इतनी सारी ऊर्जा पाता कहां से है?
लेखक निरंजन परिहार राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Comments on “राजीव शुक्ला दिन के कुल 24 घंटों में पूरे 48 घंटों का जीवन जीते हैं”
क्यों भाई परिहार जी, आप तो बखियां उधेड़ने में उस्ताद रहे हैं। कई बार आपने अपनी कलम से नेताओं को नंगा किया है। राजीव शुक्ला मंत्री बने, तो आप उनकी तारीफ में कसीदे कैसे पढ़ने बैठ गए ? इसे क्या कहा जाए, एक मंत्री की चमचागिरी करना या पत्रकार साथी होने का धर्म निभाना।
शुक्लाजी पर एकदम सही एवम सटीक लिखा है। लेख में कहीं व्यंग्य भी है तो कहीं सच्चाई भी है। कोई भी पत्रकार उनकी प्रगति पर खुश ही होगा।
mast chamchagiri ki hai sir aap ne aap bhi to waise hi ho
badhiya hai lekh hai . lekin pura chatukarita se bharpoor hai . aap lagata hai bhakt ho rajiv ji ke kyu ki aap bhi unki tarah patrakaar wo bhi paise lekar khabr chapnewale aise logo ko patrakar nahi dalal kehte hai ………kahawat hai na chor chor mausere bhai ……niranjan :);)
Rajiv Shukla Urja Pata Hai Dalali Se. Dear Mr. Parihar, he is just a gloried dalal. A real journalist works for whole and do not earn even a crore. He has created this empire through his dalali.
lagta hai ki aapko lambi Kamaai karne ki sujhi hai parihar jee,waise koi baat nahi hai purane aur khalis patrakar bhi ab chatukar ban gaye hain,aap bane to kya bane…..
Parihar je
rajiev shukla ke ander 24/48 ka stemna hai,,
mera unse aur anuradha madam se bag confrance me mulakat hai, mera mau ke liye bag me final v ho gaya tha likin mai kam na kar saka.
Ahbi rajev sir ke tarakki aur ayam baki hain.
Anand kumar
mau,up
mob.-9451831331
दलाली करने के लिए दिमाग, धैर्य, साहस और सबसे बड़ी चीज कलेजे में दम होना चाहिए। भाई लोगों की फटती है तो दलाली क्या करेंगे। एक दो टके का संपादक भी धीरे से झिड़क दे तो चैंबर में जाकर तलवा चाटने लगते हैं, बाहर आकर कहते हैं कि मैंने साले को सलटा दिया। हाय रे जमाना। सब इसी हिंदी पत्रकारिता में आ गए। राजीव शुक्ला को मौकापरस्त कहने वाले लोग खुद अपनी गिरेबां में झांक कर देखें कि उन्होंने 35 सालों में क्या उखाड़ लिया। साले चाय पीयेंगे उधार की, बात करेंगे क्रांति की। यह झूठ के मायाजाल में अपने आपको सर्वश्रेष्ठ समझने के कारण ही पत्रकार कुंठित होकर दक्खिन में लग रहे हैं। राजीव शुक्ला ने जो कुछ भी पाया है, वह उस बंदे की मेहनत का नतीजा है। आप दलाल कह कर अपने फ्रस्टेड मन को थोड़ा सुकून दे सकते हैं पर है यह सुफेद झूठ।
परिहार जी ने पहले ही साफ कर दिया है कि कुछ लोगों को राजीव शुक्ला से ईर्ष्या भी हो सकती है। जलने वाले छाती पीट रहे हैं। जलते रहें। क्या फर्क पड़ता है। परिहार जी बड़े और नामी पत्रकार हैं। शुक्लाजा भी देश के दिग्गज पत्रकार हैं। बड़े लेखक ने बड़े आदमी के बारे में बड़ी बात कह दी है। तो बातें ते सच ही कही है. लेकिन इससे भी कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है।
शुक्ला और परिहार में बहुत सारी बातें समान हैं। दोनों जनसत्ता वाले और दोनों ग्लैमर के पुजारी, दोनों नेताओं के पिछलग्गू और दोनों खूब पैसे वाले। इसीलिए निरंजन परिहार ने राजीव शुक्ला की तारीफ में कसीने पढ़े है। राजीव शुक्ला भले ही मंत्री बन गए हैं, मगर दलाल है, यह पूरा देश जानता है। और निरंजन परिहार कई सालों से मंत्रियों के चहेते बनकर खूब ऐश कर रहे हैं।
क्यों भाई परिहार जी, शुक्लाजी अभी तो मंत्री बने ही हैं… आपने उनसे बहुत सारे फायदे लिए हैं। अभी दूकान तो जमने दो… गुरू। गांव बसा नहीं कि लुटेरे पहले ही तैयार।
pariharji…..you have just given your own thoughts regarding rajiv shukla….no doubt he is a personality today with a mark of BIG shot but you did not mention his attitude towards his old friends like you….What I feel is if a friend succeeds in life and still he is your friend than no matter how or what he is….he should be considered best friend only…….But agar dost apko bhul jaye aur pradhanmantri bhi ban jaye….vo kal bhi zero tha aaj bhi zero hai age bhi ZERO rahega…..mafi chahunga agar mera sujhav kisi ko pasand na aaye TO……..
हर आगे बढ़ते व्यक्ति के बारे में लोग बकवास करते रहते हैं। राजीव शुक्ला जी के बारे मं लोग बकवास कर ही रहे हैं। परिहार जी, ने तो सिर्फ इतना सा लिखकर ही बकवास करनेवालों को निपटा दिया कि… इस देश में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जो बहुत ही सहजता के साथ राजीव शुक्ला के जीवन के अलग अलग किस्मों के उत्थान को जुगाड़, प्रबंधन और अवसरवाद के दरवाजों से आई ऊँचाई बताकर अपना कलेजा ठंडा करते रहते हैं।… लेकिन मैं कहता हूं कि इस तरह के लोगों की जिंदगी में कोई भली बात है ही नहीं। ये घटिया लोग ना तो किसी का भला कर सकते और ना बी किसी का भला होता देख सकते। शुक्लाजी की जिंदगी पर आपने अच्छा लिखा तो स्सालों को मिर्ची लग रही है।
अरे भाई आप तो चमचागिरी के उस्ताद मालूम पड़ते हैं मगर आप राजीव शुक्ला से बड़े चमचे तो नहीं हो सकते और मौकापरस्ती में तो उनसे कोई जीत ही नहीं सकता खैर आपको बता दू की आप कभी राजीव शुक्ला बन भी नहीं पाएंगे उसकी किस्मत बहुत तेज़ है
parihar ji. had ho gai telahee ki. are itnaa prem hak manny sukla jii se. too yar har akhbar me vighapan chapwa do. bhadas4media.com me chpwanee se jii nahe joodaya too jansatta me bhe bhej diya wo bhe hoo-b-hoo..chen na mele too press confrensh kar doo..thora sabra karo sukla jee jaldee hee apne pro rakh lege..;D
yaswant jii
comment karne walee sabhe se vinamra anoorodh hai ki ve kooch bhe kahne se pahle ek bar sri dayanana pandey ka rajiv sukla ka vichar pad le… bas.
चोर चोर मौसेरे भाई। राजीव शुक्ला तथा निरंजन परिहार दोनों एत ही समाज के हैं। उनका समाज दलाल समाज है। दोनों ही भले ही जनसत्ता का पैदाइश हो, लेकिन दोनों सरकार में बैठे लोगों के दलाल है। लेकिन दोनों ही बहुत पहुंचे हुए पत्रकार हैं। इतने पहुंचे हुए कि नीरा राड़िया से साथ संबंध होने के बावजूद उससे बचकर रहना भी पता नहीं कहां से सीख गए थे। इसीलिए बच गए।
साथियो, यह तो सभी कह रहे हैं कि निरंजन परिहार ने राजीव शुक्ला की बहुत तारीफ कर दी। मगर यह किसी साथी ने जानने की कोसिश नहीं कि की दोनों का आपस में रिश्ता क्या है। ये दोनों सरकार के पिट्ठू हैं। राजीव शुक्ला अकेले सोनिया गांधी की चमचागिरी करता है और दिल्ली, महाराष्ट्र तथा विशेष रूप से राजस्थान के नेताओं का यह खसमखास है। इन लोगों ने राजनीति में रहकर नेताओं का विश्वास जीता हुआ है। यह गुण तो इन लोगों में है। राजीव शुक्ला तो मंत्री बन गया। मगर,
चिंता मत करो निरंजन परिहार, यह देश तुम जैसों के लिए ही बना है। आज राजीव शुक्ला जहां पहुंचे हैं, तुम भी जरूर पहुंच जाओगे। सत्ता की मलाई तो वैसे भी तुम चाट ही रहे हो।
Rajeev Shukla ke baare me BAKWAS karne walo ko apne andar jhankna chaiye. jo log apne imaandaar hone ki baat karke Shuklaji ko avsarvaadi batate hai, ve patrakar bhi to poore din avsar talaashate rahte. Pariharji aapne bahut badhiya likha hai.
राजीव शुक्ला की कामयाबी पर छाती पीटनेवालों को उनके ‘दलाल’ होने पर बड़ा दुख है। दलाली भी दिल वाले ही कर सकते हैं। इसे करने के लिए भी तो मेहनत चाहिए पर तुम फ्रस्ट्रेशन के शिकार न्यूज़रुम की राजनीति करनेवाले पत्रकारनुमा नमूने कभी किसी को बढते देखकर खुश हो भी नहीं सकते। ना कभी खुद का भला कर सकते,ना जनता का,ना अपने संस्थानों का। बस किसी कामयाब इंसान की उपलब्धियों पर सवालिया निशान खड़े करते जाओ और खुद की नाकामयाबी का गम आलोचना के नशे में भुलाने की कोशिश करते रहो,ये ही नियति है तुम्हारी। इतने बड़े क्रांतिवीर हो तो जिनसे पगार पाते हो कभी उनके खिलाफ बोल कर दिखाओ,थोड़ी देर बाद पता चल जाएगा कि कितने बड़े क्रांतिकारी हो।
बहुत बढ़िया लेख है। जानकारी, पेश करने का तरीका, भाषा तथा शैली बिल्कुल स्वर्गीय आलोक तोमर जी के जैसी है। सही लिखा है कि इस देश में बहुत सारे लोग ऐसे भी हैं, जो बहुत ही सहजता के साथ राजीव शुक्ला के जीवन के अलग अलग किस्मों के उत्थान को जुगाड़, प्रबंधन और अवसरवाद के दरवाजों से आई ऊँचाई बताकर अपना कलेजा ठंडा करते रहते हैं। लेकिन राजीव शुक्ला का उत्थान काबिले तारीफ है। लेख के लिए परिहार जी को साधुवाद।
जो आगे बढ़ गया वो सफल तथा जो बेऔकात रह गए वे असफल। पत्रकारिता में ईमानदारी का ढोल पीटकर अपना नाम चमकाने वाले हर दूसरे दिन लोगों से उधार मांगते देखे जा सकते हैं और तीन महीने में नौकरियां मांगते देखे जा सकते हैं। रही बात पत्रकारिता में ईमानदारी की, तो वह कहां बची है, यह कोई बताएगा। साले सबके सब भ्रष्ट हैं। मेरा सवाल यह है कि क्या पैसा ना लेने को ही ईमानदारी कहा जाता है। साले, मीडिया में ईमानदारी की औलाद बननने वाले चैनल में काम करने वाली बेचारी युवतियों की रिपोर्ट दिखाने तथा शूट पर भेजने के अलावा स्क्रीन पर दिखने तक की कीमत उनको होटलों के कमरों में ले जाकर वसूलते हैं। अखबारों में भी बाईलाइन देने के बदले में संपादक या न्यूज एडीटर लड़कियों से कुछ और भी चाहते हैं। ऐसा मीडिया ईमानदारी की बात करे तो शर्म आती है।