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एहसान फरामोश और कमजोर अमिताभ

मुंबई के अंग्रेजी टैबलायड अखबार मिड-डे में अमिताभ बच्चन व उनके परिजनों द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने संबंधी जो खबर प्रकाशित हुई, उसके जवाब में अमिताभ ने अपने ब्लाग पर मिड-डे  संवाददाता तुषार जोशी के बारे में जो कुछ लिखा है, जो सलाह दी है, वो बेहद बचकाना ही नहीं, बल्कि बेमतलब भी है। मसलन उनका यह कहना कि ‘अखबारी कागज पेड़ों की छाल से तैयार किया जाता है,  अखबार पब्लिश करने के लिए हरे पेड़ों को काटकर पर्यावरण को बिगाड़ा जा रहा है, इसलिए अखबार छपने बन्द होने चाहिए।’ उन्होंने तुषार जोशी को मोबाइल इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है, क्योंकि मोबाइल के इस्तेमाल से सेहत पर गलत असर पड़ता है। अमिताभ बच्चन को क्या यह नहीं पता कि कागज पर सिर्फ अखबार ही नहीं छपता, किताबें और कापियां भी छपती हैं। क्या पढ़ना-लिखना बन्द कर देना चाहिए?

मुंबई के अंग्रेजी टैबलायड अखबार मिड-डे में अमिताभ बच्चन व उनके परिजनों द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने संबंधी जो खबर प्रकाशित हुई, उसके जवाब में अमिताभ ने अपने ब्लाग पर मिड-डे  संवाददाता तुषार जोशी के बारे में जो कुछ लिखा है, जो सलाह दी है, वो बेहद बचकाना ही नहीं, बल्कि बेमतलब भी है। मसलन उनका यह कहना कि ‘अखबारी कागज पेड़ों की छाल से तैयार किया जाता है,  अखबार पब्लिश करने के लिए हरे पेड़ों को काटकर पर्यावरण को बिगाड़ा जा रहा है, इसलिए अखबार छपने बन्द होने चाहिए।’ उन्होंने तुषार जोशी को मोबाइल इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है, क्योंकि मोबाइल के इस्तेमाल से सेहत पर गलत असर पड़ता है। अमिताभ बच्चन को क्या यह नहीं पता कि कागज पर सिर्फ अखबार ही नहीं छपता, किताबें और कापियां भी छपती हैं। क्या पढ़ना-लिखना बन्द कर देना चाहिए?

स्कूलों में ताले डाल देने चाहिए? अमिताभ बच्चन साहब, अखबार अभी तक आज की जरूरत है। इसका विकल्प नहीं है। ठीक है। न्यूज चैनल हैं। इंटरनेट है। लेकिन ये कभी भी अखबार का विकल्प नहीं हो सकते। मोबाइल से समय और पैसे की भारी बचत होती है। इसका फिलहाल विकल्प नहीं है। हां, यूएसवी गाड़ियों का विकल्प है।

अमिताभ ने मिड-डे को अपने ब्लॉग के माध्यम से जो जवाब दिए हैं, उनमें अपनी गलती को मानने की मंशा कम, मुंहजोरी ज्यादा दिखाई दे रही है। उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि ‘चलिए मैं मान लेता हूं मेरी गलती है। भूल हो गयी, मैं अपनी भूल को सुधारुंगा भी।’ यदि अमिताभ यही कहकर अपनी बात खत्म कर देते तो ठीक था। लेकिन वे अमिताभ बच्चन हैं। इस सदी के महानायक कहलाते हैं। उन्हें भला ये कैसे गंवारा होता कि एक अदना-सा पत्रकार उन्हें नसीहत देने की जुर्रत करे। लिहाजा उनका ‘दीवार’ वाला कैरेक्टर उभर कर सामने आ गया और उन्होंने उसी अंदाज में लिख मारा कि ‘जाओ पहले अखबार छापना बन्द करो। पहले मोबाइल का इस्तेमाल बन्द करो। पहले एसी गाड़ियों को आग लगा दो। इसके बाद तुषार, मैं भी यूएसवी गाड़ियों का इस्तेमाल बंद कर दूंगा।’

दरअसल, अमिताभ बच्चन एक खुदगर्ज, एहसान फरामोश और कमजोर इंसान हैं। वे नायक सिर्फ रील तक ही हैं। रीयल में वह कमजोर हैं। वह 1984 में इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव जीते थे। बोफोर्स कांड में अपना नाम आने के आरोप मात्र से ही वह बौखला कर अपने बाल सखा राजीव गांधी को अकेला छोड़कर इस्तीफा देकर मैदान छोड़ भागे। यदि आज की बात करें तो मुंबई में जब मनसे के गुंडों ने उत्तर भारतीयों पर अपना कहर बरपाया तो वह न केवल मूकदर्शक बने रहे, बल्कि कहीं राज ठाकरे नाराज न हो जाएं, इसलिए उनकी चापलूसी करते रहे और अपनी पत्नी जया से माफी मंगवाते रहे। उत्तर भारतीयों की हमदर्दी में उनके मुंह से एक बोल नहीं फूटे थे। जब भी मुंबई में भयंकर बारिश होती है तो उनके बंगले ‘प्रतीक्षा’ और ‘जलसा’ में पानी भर जाता है। इस बात का जिक्र वह अपने ब्लॉग पर करते हैं कि कैसे बंगलों में पानी घुसने से उनका परिवार परेशान हो जाता है। लेकिन उनके बंगले से मात्र एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर एक झोपड़ पट्टी आबाद है। उस झोपड़ पट्टी के लोग अपने मुख्तसर सामान को अपने सिर पर रखकर घंटों पानी में ख्ड़े होकर पानी के उतरने का इंतजार करते हैं। अमिताभ बच्चन ने कभी अपने ब्लॉग पर उन झोपड़ पट्टी वालों की तकलीफों का जिक्र भूले से भी नहीं किया ? वो जिक्र करें भी क्यों ? क्योंकि कभी सुनने में भी नहीं आया कि राज बब्बर, आमिर खान, सुनील दत्त, शबाना आजमी जैसे अनेक अभिनेताओं की तरह अमिताभ बच्चन का सामाजिक सरोकारों से कोई वास्ता रहा है। उन्होंने अपने आप को एक मिथक के रुप में गढ़ा, जो सिर्फ अपने ही खोल में सिमटा रहता है। ये उस तथाकथित नायक की हरकतें है, जो सत्तर और अस्सी के दशक में पर्दे पर गरीबों, मजलूमों और वंचितों की हक की बात करता था और जिसके बदले में देश की जनता ने उन्हें नायक बनाया तो मीडिया ने उन्हें सदी का महानायक घोषित किया। हालांकि यह बात समझ से परे है कि उनसे बेहतर कई अभिनेताओं के रहते मीडिया उन्हें सदी का महानायक क्यों कहता है ?

जब अमिताभ बच्चन मुंबई में संघर्ष कर रहे थे तो महमूद, अनवर (महमूद के भाई), शत्रुघन सिन्हा, नवीन निश्चल आदि कलाकारों ने उनका तन-मन-धन से साथ दिया था। लेकिन यह अमिताभ बच्चन की एहसान फरामोशी ही कही जाएगी कि सफलता मिलने के साथ ही उन्होंने अपने मोहसिनों को भुला दिया। यहां तक कि अपने बेटे अभिषेक की शादी में बुलाया तक नहीं। सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने इलाहाबाद में रह रहे अपने खानदान के करीबी लोगों तक को भी शादी में बुलाना मुनासिब नहीं समझा। कहा तो यह भी जाता है कि परवीन बॉबी की बरबादी के पीछे भी अमिताभ बच्चन का ही हाथ था। ये सब वे बातें हैं, जिनका जिक्र समय-समय पर मीडिया में होता रहता है।

मीडिया से दूर रहने वाले अमिताभ बच्चन की और क्या-क्या कारगुजारियां रही होंगी, कौन जानता है ?


सलीम अख्तर सिद्दीक़ी सामयिक मुद्दों पर कलम के जरिए सक्रिय हस्तक्षेप करने वाले सलीम अख्तर सिद्दीक़ी मेरठ के निवासी हैं। वे ब्लागर भी हैं और ‘हक बात‘ नाम के अपने हिंदी ब्लाग में लगातार लिखते रहते हैं। उनसे संपर्क 09837279840 या  [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

सलीम का भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित पिछला आलेख …. जरूरत है बहुत सारे उदयन पैदा करने की  : अमिताभ और मिड-डे के मुद्दे पर सुमंत की टिप्पणी जरूर पढ़ें …. अमिताभ बाबू, तनि इहरी लखा!!!

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0 Comments

  1. ibrastogi

    February 14, 2010 at 4:39 am

    sahi baaty hai is budhape me ve angry young man banane ki koshish me hasi

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