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शशिशेखर का इमोशनल अत्याचार

शशिशेखर देश के इन दिनों के सबसे चर्चित हिंदी संपादक हैं। खासकर अमर उजाला से छलांग लगाकर हिंदुस्तान के ग्रुप एडिटर बनने के बाद से उनकी लोकप्रियता और चर्चा में जमकर इजाफा हुआ है और हो रहा है। वे समकालीन पत्रकारिता के लिहाज से कंप्लीट पत्रकार और संपादक माने जाते हैं। कहा जाता है कि खबर-लेख लिखने-लिखवाने, न्यूज रूम को व्यवस्थित रखने-रखवाने, न्यूज टीम का कुशल प्रबंधन करने-कराने, संपूर्ण निष्ठा के साथ काम करने-कराने, सिस्टम डेवलप करने-कराने, अखबार के संपूर्ण ग्रोथ का साझीदार बनने और टीम को बनाने में उन्हें महारत हासिल है। वे जहां जो कुछ चाहते हैं, कर लेते हैं और पा लेते हैं। पर एचटी ग्रुप के ‘हिंदुस्तान’ में जाने के बाद उनसे जो उम्मीदें हम जैसों द्वारा कर ली गई थीं, लगता है वे ज्यादा थीं। हालांकि उन्हें वहां गए ज्यादा दिन नहीं हुए इसलिए उनके कार्यकाल के मूल्यांकन जैसा कोई कार्य अभी नहीं किया जा सकता पर विजन-सोच के लिहाज से तो परखा ही जा सकता है। इस मोर्चे पर वे फिलहाल निराश कर रहे हैं।

<p align="justify">शशिशेखर देश के इन दिनों के सबसे चर्चित हिंदी संपादक हैं। खासकर अमर उजाला से छलांग लगाकर हिंदुस्तान के ग्रुप एडिटर बनने के बाद से उनकी लोकप्रियता और चर्चा में जमकर इजाफा हुआ है और हो रहा है। वे समकालीन पत्रकारिता के लिहाज से कंप्लीट पत्रकार और संपादक माने जाते हैं। कहा जाता है कि खबर-लेख लिखने-लिखवाने, न्यूज रूम को व्यवस्थित रखने-रखवाने, न्यूज टीम का कुशल प्रबंधन करने-कराने, संपूर्ण निष्ठा के साथ काम करने-कराने, सिस्टम डेवलप करने-कराने, अखबार के संपूर्ण ग्रोथ का साझीदार बनने और टीम को बनाने में उन्हें महारत हासिल है। वे जहां जो कुछ चाहते हैं, कर लेते हैं और पा लेते हैं। पर एचटी ग्रुप के 'हिंदुस्तान' में जाने के बाद उनसे जो उम्मीदें हम जैसों द्वारा कर ली गई थीं, लगता है वे ज्यादा थीं। हालांकि उन्हें वहां गए ज्यादा दिन नहीं हुए इसलिए उनके कार्यकाल के मूल्यांकन जैसा कोई कार्य अभी नहीं किया जा सकता पर विजन-सोच के लिहाज से तो परखा ही जा सकता है। इस मोर्चे पर वे फिलहाल निराश कर रहे हैं। </p>

शशिशेखर देश के इन दिनों के सबसे चर्चित हिंदी संपादक हैं। खासकर अमर उजाला से छलांग लगाकर हिंदुस्तान के ग्रुप एडिटर बनने के बाद से उनकी लोकप्रियता और चर्चा में जमकर इजाफा हुआ है और हो रहा है। वे समकालीन पत्रकारिता के लिहाज से कंप्लीट पत्रकार और संपादक माने जाते हैं। कहा जाता है कि खबर-लेख लिखने-लिखवाने, न्यूज रूम को व्यवस्थित रखने-रखवाने, न्यूज टीम का कुशल प्रबंधन करने-कराने, संपूर्ण निष्ठा के साथ काम करने-कराने, सिस्टम डेवलप करने-कराने, अखबार के संपूर्ण ग्रोथ का साझीदार बनने और टीम को बनाने में उन्हें महारत हासिल है। वे जहां जो कुछ चाहते हैं, कर लेते हैं और पा लेते हैं। पर एचटी ग्रुप के ‘हिंदुस्तान’ में जाने के बाद उनसे जो उम्मीदें हम जैसों द्वारा कर ली गई थीं, लगता है वे ज्यादा थीं। हालांकि उन्हें वहां गए ज्यादा दिन नहीं हुए इसलिए उनके कार्यकाल के मूल्यांकन जैसा कोई कार्य अभी नहीं किया जा सकता पर विजन-सोच के लिहाज से तो परखा ही जा सकता है। इस मोर्चे पर वे फिलहाल निराश कर रहे हैं।

उन्होंने हिंदुस्तान के पहले पन्ने पर आज अपनी तरफ से एक संपादकीय टिप्पणी प्रकाशित की है। इसमें उन्होंने धूमिल को उद्धृत करते हुए यूपी की हालत की तुलना तब (जवानी) और अब (प्रौढ़) के खुद के दिनों से की है। हालात को निराश करने वाला बताया है। स्थितियां बदलने के लिए उन्होंने हिंदुस्तान अखबार को माध्यम बनाने की जानकारी दी है। पटना में बिहार के विकास पर हिंदुस्तान ने विभिन्न दलों के नेताओं को एक मंच पर लाने में कामयाबी हासिल की तो लखनऊ में आज कई पार्टियों के बड़े नेताओं के पुत्रों और अन्य नामी-गिरामी लोगों के एकत्र होने की भी सूचना इसी संपादकीय टिप्पणी के नीचे दर्ज मिली।

उधर, आज ही हिंदुस्तान के अंदर के बिजनेस पन्ने पर एचटी मीडिया के मुनाफे से संबंधित खबर प्रकाशित हुई है जिसमें ‘हिंदी बिजनेस’ (जैसा कि खबर में उल्लखित है) का भी मुनाफा बढ़ने की सूचना दी गई है।

इन दोनों टिप्पणियों-खबरों को पढ़ने और बिहार-यूपी में बदलाव की बात से इन्हें जोड़ने पर जो कुछ समझ में आता है उससे लगता है कि शशिशेखर हिंदुस्तान के पाठकों पर इमोशनल अत्याचार कर रहे हैं। अगर वे हर साल मुनाफा बढ़ाने को लालायित एचटी ग्रुप के ‘हिंदी बिजनेस’ के शीर्ष प्रतीक दैनिक हिंदुस्तान के सौजन्य से और मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव, चौधरी अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी व स्वर्गीय हो चुके एक दिग्गज कांग्रेसी नेता के पुत्र व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के सहयोग से यूपी की हालत में बदलाव का कोई सपना देख रहे हैं तो यह शशिजी का स्वभावानुरूप दुस्साहस ही है।

ठीक है कि इसमें कई और नाम भी हैं जो विभिन्न मोर्चों पर सक्रिय हैं लेकिन व्यवस्था के भीतर गर्दन तक धंस चुके इन लोगों के भाषण से ही अगर देश-प्रदेश की तकदीर बदलनी होती तो जाने कबकी बदल गई होती। हम ये नहीं कह रहे कि इस तरह के आयोजन निराधार हैं। हम सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि ऐसे आयोजनों से बहुत ज्यादा उम्मीद पालना बेमानी है। शशि जी ने उम्मीद पाली है तो हो सकता है कि उसका कोई आधार हो क्योंकि यह माना जाता है कि वे बिना आधार कोई काम नहीं करते। पर बिहार और यूपी की जमीनी स्थितियां अगर इतनी सहज होतीं तो आज हिंदुस्तान अखबार की पहल के बिना ही वे जाने कब की पटरी पर आ चुकी होतीं, सुधर रही होतीं। समस्या का हल राजधानियों में बैठक, सम्मेलन, समिट, कांफ्रेंस, गोष्ठी करना नहीं बल्कि गांवों की बदहाली को ठीक करना है। इसके लिए सबको अपनी सेलरी, पैकेज, लाभ, करियर, सत्ता छोड़कर गांधी की तरह लंगोट पहनने के बाद घर-घर घूमना, बैठना, बतियाना और दुख-दर्द समझना पड़ेगा। देश का पेट भरने वाला किसान त्रस्त है। नौजवान बेरोजगार है। महंगाई सिर के ऊपर तक है। भ्रष्टाचार चरम पर है। नेता, थाना-पुलिस और मीडिया अपने ईमान-धर्म से डोल चुके हैं। तरक्की से वंचित लोग बंदूक को समाधान के रूप में देखने लगे हैं। मुद्दों पर बात करने की जगह नेता लोग अनाप-शनाप बक रहे हैं या फिर चुप हैं। मीडिया के लोग सत्ता और व्यवस्था की पोल खोलने की जगह उनसे सांठगांठ कर तिजोरी भरने में लगे हैं। ऐसे में अगर किसी अखबार का संपादक बदलाव का सपना अपने पाठकों को किन्हीं समिट, सेमिनारों और संगोष्ठियों के माध्यम से दिखाता है तो इस पर बहस की जरूरत है। आप क्या सोचते हैं?

यशवंत

एडिटर, भड़ास4मीडिया

[email protected]


हिंदुस्तान (27 अक्टूबर 2009) के पहले पेज पर प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी

ताकि हम फिर से लिख सकें विजय गाथाएं

शशि शेखर

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पता नहीं क्यों धूमिल याद आ रहे हैं- ‘भाषा में भदेस हूं, इस कदर कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूं।’ जब यह कविता पहली बार पढ़ी थी, तब नया-नया जवान हुआ था इसीलिए इसके भाव मन में खंजर की तरह बहुत गहरे तक धंस गये थे। आज प्रौढ़ हूं और इस पुराने दर्द से पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा परेशान हूं।

उत्तर प्रदेश में पैदा हुआ। पला, पढ़ा और बड़ा हुआ। सब कुछ ठीक रहा, तो बुढ़ापा भी यहीं कटेगा। पर पीछे मुड़ कर देखता हूं तो खुद को अफसोस के रेगिस्तान में तनहा पाता हूं। जब आंखें खोली थीं, तब उत्तर प्रदेश से ही प्रधानमंत्री बना करते थे। संयोग से इलाहाबाद में रहता था और इस गौरव से ओत-प्रोत था कि सर्वोच्च सत्ता की जड़ें अपने आनंद भवन में हैं। पर न प्रधानमंत्री रहे, न उत्तर प्रदेश के शहरों और गांवों की रौनकें। हमने साल-दर-साल सिर्फ गिरावट का रास्ता तय किया है। इस दौरान गांव वीरान हुए हैं और गुलजार शहर गंदगी के ढेर में तब्दील हो गये हैं।

चार दशक पहले तक बंगलुरू और हैदराबाद को कोई इस अंदाज और तेवर में नहीं जानता था। भोपाल और जयपुर तो कस्बों से कुछ ऊपर के शहर लगा करते थे। इधर, लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, आगरा और वाराणसी के लोग इतराते थे। कोई इलाहाबाद विश्वविद्यालय को ‘ईस्ट का कैंब्रिज’ बोलता था, तो कोई काशी हिंदू विश्वविद्यालय को ‘सर्व विद्या की राजधानी’ मान कर गदगद हुआ करता था। आगरा विश्वविद्यालय का अपना गरिमामय अतीत था। कानपुर की मिलें तब वीरान नहीं थीं और वहां के लोग भी खुद को ‘पूरब के मैनचेस्टर’ का वाशिंदा मानते थे। देखते ही देखते सब छीज गया-उस गंगा और यमुना के पुण्य की तरह, जिन्होंने इस सूबे को शताब्दियों तक अपनी गोद में पाला और पोसा।

उत्तर प्रदेश शिक्षित था, सुसंस्कृत था इसीलिए शासक था। यह ‘समागम’ इसीलिए है ताकि सत्ता, संस्कृति और सोचवाले लोग एकजुट होकर उन मुद्दों पर विचार करें, जिन्होंने हमें कायर और पराजित बना रखा है। पिछले हफ्ते हमने पटना में जब बिहार 2020 विषय पर ‘समागम’ किया, तो लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ था। नीतीश कुमार, लालू यादव, शकील अहमद और दीपांकर भट्टाचार्य – सूबाई राजनीति के ये चारों ध्रुव बिहार की उन्नति और प्रगति के लिए पहली बार एकजुट दिखे। हमें उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश की जागृत जनता और उसके प्रतिनिधि इस ‘समागम’ के जरिये एक साझा रास्ता खोजने में सफल होंगे।

जिस तरह बिहार में एक साझा मंच बना, वैसा ही उत्तर प्रदेश में भी बनेगा। पटना में एक प्रबुद्ध व्यक्ति ने कहा था कि सिर्फ मीडिया ही ऐसा कर सकता है। उम्मीद है आपका सहयोग मिलेगा और विकास के भटके हुए काफिले को हम मिलजुल कर रास्ते पर लाने में कामयाब होंगे।

फिर धूमिल पर आते हैं। उन्होंने जब यह कविता लिखी, तब मैं जवान हो रहा था। उम्मीद है आंखें मूंदने से पहले कुछ ऐसी कविताएं भी सुनने-पढ़ने को मिलेंगी जिसमें हमारे हिंदी प्रदेशों की विजय गाथाओं की चर्चा होगी। उम्मीद है कि हम काल के कपाल पर आंसू नहीं मुस्कान छोड़ कर जायेंगे।


हिंदुस्तान (27 अक्टूबर 2009) के पेज नंबर 13 पर प्रकाशित खबर

एचटी मीडिया का शुद्ध लाभ लगभग दोगुना हुआ

एचटी मीडिया ने चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में शानदार परिणाम दिए हैं। कंपनी की दूसरी तिमाही में आय चार प्रतिशत बढ़कर 348.1 करोड़ रुपए हो गई है। पिछले साल समान तिमाही में यह आय 334.2 करोड़ रुपए थी। वहीं कंपनी के शुद्ध लाभ 93 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। कंपनी का शुद्ध लाभ बढ़कर 31.4 करोड़ रुपए हो गया है। यह गत वर्ष की समान अवधि में 16.3 करोड़ रुपए था।

कंपनी ने सोमवार को अपने वित्तीय परिणाम जारी करते हुए बताया कि बदले हुए कलेवर में हिन्दुस्तान टाइम्स को रीडरों की ज्यादा नजदीकी मिली है। हिन्दी व्यवसाय को भी कंपनी ने बढ़ाने में पूरा जोर लगाया है। इसके चलते कुछ ही दिन पहले बरेली संस्करण लांच हुआ है। इस सब प्रयासों के चलते हिन्दी का व्यवसाय 23 फीसदी बढ़ा है। साथ ही इबिटा मार्जिन में भी 20 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। कंपनी ने कहा है कि उसका रेडियो व्यवसाय भी तीनों शहरों मे तेजी से बढ़ रहा है। कंपनी के एक और प्रयास शाइनडाटकाम की लोकप्रियता भी तेजी से बढ़ी है। करीब 30 लाख लोगों ने इस साइट पर अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। कंपनी ने जानकारी दी है कि उसका हिन्दी व्यवसाय तेजी से बढ़ रहा है। दूसरी तिमाही में कंपनी की आय 23 फीसदी बढ़कर 102.6 करोड़ रुपए हो गई है। कंपनी ने बताया है कि वह जल्द ही उत्तर प्रदेश में और जगह से अपना प्रकाशन शुरू करेगा। इसके अलावा पटना और आगरा में शीघ्र ही अत्याधुनिक प्रिंटिंग सुविधा का विकास किया जाएगा। कंपनी के अच्छे परिणामों पर कंपनी की निदेशक (एडीटोरियल) शोभना भर्तिया ने कहा कि उन्हें खुशी है कि कठिन समय में जो कदम उठाए गए उनका अच्छा परिणाम निकला है। सुश्री भर्तिया ने कहा कि उत्तर भारत में कंपनी अपनी उपस्थिति बढ़ाने का लगातार प्रयास करती रहेगी।

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0 Comments

  1. sandhydeep kashiv

    July 18, 2010 at 10:28 pm

    shashiji aap ka up prem aisa hi bana rahe. itne pm up ne diye per aap jisa ek group editor bhi diya jo hindustani media ko ek naya josh aur ek nayi disha de raha hai. thanks 9300720081

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