यह पब्लिक है, सब जानती है : समाज के हर वर्ग की तरह मीडिया में भी गैर-जिम्मेदार लोगों का बड़े पैमाने पर प्रवेश हो चुका है। भड़ास4मीडिया से जानकारी मिली कि एक किताब आई है जिसमें जिक्र है कि किस तरह से हर पेशे से जुड़े लोग अपने आपको किसी मीडिया संगठन के सहयोगी के रूप में पेश करके अपना धंधा चला रहे हैं। कोई कार मैकेनिक है तो कोई काल गर्ल का धंधा करता है, कोई प्रापर्टी डीलर है तो कोई शुद्ध दलाली करता है। गरज़ यह कि मीडिया पर बेईमानों और चोर बाजारियों की नजर लग गई है। इस किताब के मुताबिक ऐसी हजारों पत्र-पत्रिकाओं का नाम है जो कभी छपती नहीं लेकिन उनकी टाइटिल के मालिक गाड़ी पर प्रेस लिखाकर घूम रहे हैं।
इस वर्ग से पत्रकारिता के पेशे को बहुत नुकसान हो रहा है लेकिन एक दूसरा वर्ग है जो इससे भी ज्यादा नुकसान कर रहा है। यह वर्ग ब्लैकमेलरों के मीडिया में घुस आने से पैदा हुआ है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से ख़बर है कि एक न्यूज चैनल ने कुछ ठेकेदारों के साथ मिलकर एक सरकारी अफसर और उसकी पत्नी के अंतरंग संबंधों की एक फिल्म बना ली और उसे अपने न्यूज चैनल पर दिखा दिया। अफसर का आरोप है कि चैनल वालों ने उससे बात की थी और मोटी रकम मांगी थी। पैसा न देने की सूरत में फिल्म को दिखा देने की धमकी दी थी। चैनल वाले कहते हैं कि वह अफसर का वर्जन लेने गए थे, पैसे की मांग नहीं की थी। चैनल वालों के इस बयान से लगता है कि अगर पति-पत्नी के अंतरंग संबंधों की फिल्म हाथ लग जाय तो उनके पास उसे चैनल पर दिखाने का अधिकार मिल जाता है। यह बिलकुल गलत बात है और इसकी निंदा की जानी चाहिए। चैनल की यह कारस्तानी रायपुर से छपने वाले प्रतिष्ठित अखाबारों में छपी है और भड़ास4मीडिया के लोग भी इस चैनल की गैर-ज़िम्मेदार कोशिश को सामने ला रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मीडिया संस्थान के नाम पर ब्लैकमेलर बिरादरी पर लगाम लगाने की कोशिश इसी मामले से शुरू हो जायेगी। मौजूदा मामले में संबंधित अफसर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क परिजयोजना के नए मुख्य अधिकारी के रूप में तैनात हुआ था। अफसर का आरोप है कि वे ठेकेदारों की आपसी राजनीति का शिकार बने हैं और उनको फंसाने के लिए साजिश रची गई थी। आरोप यह भी है कि तथाकथित न्यूज चैनल वाले भी अफसर को सबक सिखाने के लिए साजिश में शामिल हो गए थे। इस मामले से अफसर की पत्नी भी बहुत दुखी हैं कि उसके अपने पति के साथ बिताए गए अंतरंग क्षणों को सार्वजनिक करके चैनल ने उसका और उसके नारीत्व के गौरव का अपमान किया है।
सूचना क्रांति के आने के बाद मीडिया की पहुंच का दायरा बहुत बढ़ गया है। अगर कहीं भी कोई गैर-जिम्मेदार और ना-समझ व्यक्ति बैठ जाता है तो पूरी पत्रकारिता के पेशे की बदनामी होती है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि मीडिया संगठनों से जुड़े लोग अपनी आचार संहिता बनाएं और उसका सख्ती से पालन किया जाए। यह जरूरत बहुत वक्त से महसूस की जा रही है लेकिन अब यह मामला बहुत ही अर्जेंट हो गया है। इस पर फौरन काम किए जाने की जरूरत है और अगर ऐसा न हुआ तो सरकार इस मामले में दखल देगी और वह बहुत ही बुरा होगा क्योंकि सरकारी बाबू हमेशा इस चक्कर में रहता है कि अपने से सुपीरियर काम करने वालों को नीचा दिखाए। इसमें दो राय नहीं है कि पत्रकारिता का पेशा सरकारी बाबू के पेशे से ऊंचा है। सरकारी बाबू के पास पत्रकारों को अपमानित करने की अकूत क्षमता होती है। इमरजेंसी लगने पर इस बिरादरी ने करीब 19 महीने तक इसका इस्तेमाल किया था और लगने लगा था कि प्रेस की स्वतंत्रता नाम की चीज अब इस देश में बचने वाली नहीं है। बहरहाल इमरजेंसी की अंधेरी रात के खात्मे के बाद गाड़ी फिर से चल पड़ी। लेकिन जहां भी सरकारी बाबू वर्ग की दखाल है, उन मीडिया संस्थानों की दुर्दशा दुनिया को मालूम है। इसलिए मीडिया क्षेत्र के मानिंद लोगों को चाहिए कि पत्रकारिता के नाम पर अन्य धंधा करने वालों पर लगाम लगाने के लिए फौरन से पेशतर कोशिश शुरू कर दें। वरना बहुत देर हो जायेगी।
यहां इस बात को ध्यान में रखना होगा कि मीडिया में दलालों का प्रवेश बहुत बड़े पैमाने पर हो चुका है। इसलिए यह काम बहुत ही मुश्किल है। निहित स्वार्थ के लोग अड़ंगा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। इसलिए इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्रांतिनुमा कोई कोशिश की जानी चाहिए और मीडिया के काम से प्रभावित होने वाले हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। मीडिया के काम से सबसे ज्यादा प्रभावित तो आम जनता ही होती है। जनता को मालूम रहता है कि कौन पत्रकार कहां हेराफेरी कर रहा है, और मीडिया संगठन कहां बेईमानी कर रहा है लेकिन जनता बोलती नहीं। इस स्थिति को समाप्त किए जाने की जरूरत है। और अगर जनता की भागीदारी हो गई तो मामूली तनखवाह पाने वाले पत्रकारों के महलनुमा मकानों, बैंकों में जमा करोड़ों रुपयों और बच्चों की शिक्षा पर खर्च किए जा रहे लाखों रुपयों पर भी नजर जायेगी जिसके बाद चोरी और हेराफेरी करने वाले पत्रकार और मीडिया संगठन अलग-थलग पड़ने लगेंगे। इसलिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस मुहिम में शामिल हों। अगर जनता शामिल होगी तो मुकामी पत्रकार और मीडिया संगठन मजबूरन सच्ची रिपोर्ट देंगे। वैसे भी पत्रकार की आत्मरक्षा का सबसे बड़ा हथियार सच ही है। जब तक वह सच के सहारे रहेगा, कोई भी उसका बाल बांका नहीं कर सकता लेकिन जहां उसने गलतबयानी की, मीडिया को दुरुस्त करने के आंदोलन में शामिल पब्लिक उसके लिए मुश्किल कर देगी क्योंकि उसे तो सच्चाई मालूम ही रहेगी। रायपुर के मुकामी लोगों को आज भी मालूम होगा कि अफसर और उसकी पत्नी के निजी क्षणों को सार्वजनिक करने का अपराधी कौन है लेकिन वह रुचि नहीं लेते। लेकिन अगर उनको भी मीडिया की सफाई के मिशन में शामिल कर लिया जाय तो वे रुचि लेंगे और इससे पत्रकारों और प्रेस की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे उर्दू दैनिक ‘सहाफत’ में एसोसिएट एडिटर और हिंदी डेली ‘अवाम-ए-हिंद’ में एडिटोरियल एडवाइजर के रूप में कार्यरत हैं। उनसे संपर्क [email protected] के जरिए कर सकते हैं।