: निंदनीय है पत्रकारिता पर हमला, किन्तु…! : खबरिया चैनल ‘आज तक’ कार्यालय पर संघ कार्यकर्ताओं के हमले को जब पत्रकारिता पर हमला निरूपित किया जा रहा है तो बिल्कुल ठीक। पत्रकारों की आवाज को दबाने, गला घोंटने की हर कार्रवाई की सिर्फ भत्र्सना भर न हो, षडय़ंत्रकारियों के खिलाफ दंडात्मक कदम भी उठाए जाएं। दंड कठोरतम हो।
इस मुद्दे पर पूरी की पूरी पत्रकार बिरादरी एकजुट है। लोकतंत्र में सुनिश्चित वाणी की स्वतंत्रता को चुनौती देने वाले निश्चय ही लोकतंत्र विरोधी हैं। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। किसी खबर पर आपत्ति प्रकट की जा सकती है, विश्वसनीयता अथवा सचाई को चुनौती भी दी जा सकती है। इसके लिए मीडिया ने अपने द्वार खोल रखे हैं। अगर कभी किसी कारणवश गलत खबर प्रकाशित अथवा प्रसारित हो जाती है तो संबंधित संस्थान उसे स्वीकार कर आवश्यक संशोधन के लिए तत्पर रहता है। प्रभावित पक्ष से अपेक्षा रहती है कि वह लोकतांत्रिक तरीका अपनाते हुए संयम के साथ अपना पक्ष रखे। किन्तु जब वह पक्ष संयम तोड़, अलोकतांत्रिक तरीके को अपना हिंसक हो उठे तब मामला अराजकता का बन जाता है। कानून ऐसे आचरण को अपराध की श्रेणी का मानता है। शुक्रवार की शाम विभिन्न टीवी चैनलों पर जो अराजक दृश्य देखा गया उससे पूरा देश हतप्रभ है। किसी खबर के विरोध का यह ढंग निश्चय ही गुंडागर्दी की श्रेणी का है।
‘आज तक’ की ओर से बताया गया कि उनके सहयोगी अंग्रेजी चैनल ‘हेडलाइन्स टुडे’ ने एक ‘स्टिंग आपरेशन’ के द्वारा दिखाया था कि भगवा ब्रिगेड के कतिपय लोग उग्र हिन्दूवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे क्रोधित होकर संघ के कार्यकर्ता हिंसक प्रदर्शन पर उतर आए और उन्होंने ‘आज तक’ के कार्यालय में घुसकर तोडफ़ोड़ की कार्रवाई की। इस चैनल की खबर के अनुसार पूरी घटना के दौरान दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बनी रही। कुछ दर्जन लोग तोडफ़ोड़ करते रहे। चूंकि मामला ‘आज तक’ जैसे बड़े व लोकप्रिय चैनल का था, आनन-फानन में कांग्रेस, राजद, लोजपा, वामपंथी आदि दलों के नेताओं के साथ-साथ मीडिया के महारथियों के बयान आ गए। सभी ने पत्रकारिता पर हुए इस हमले की निंदा करते हुए संघ की कथित गुंडागर्दी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की। हम भी ऐसे हमले के खिलाफ कार्रवाई की मांग के साथ हैं।
लेकिन कुछ सवाल, संशय भी कह सकते हैं, अनायास खड़े हो रहे हैं। एक बड़े मीडिया समूह का मामला होने से खुलकर तो कोई नहीं बोल रहा लेकिन दिल्ली के गलियारों में अनेक सवाल दागे जा रहे हैं, संशय प्रकट किए जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्यप्रणाली से परिचित स्वयं मीडियाकर्मी इस बात को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं कि संघियों ने चैनल के कार्यालय में घुसकर तोडफोड़ की।
हां, हर संगठन की तरह संघ में भी अगर कुछ ‘काले भेड़ियों’ का प्रवेश हो चुका हो तो इनके उपयोग से इन्कार नहीं किया जा सकता। लेकिन अधिकृत रूप से संघ की ओर से ऐसी कार्रवाई को अंजाम दिया जाना संदिग्ध है। आश्चर्यजनक है। मौके पर मौजूद दिल्ली पुलिस की तटस्थता भी विस्मयकारी है। दिल्ली में कांग्रेस का शासन है। कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्रालय की है। उनके अधीन की दिल्ली पुलिस तोडफ़ोड़ कर रहे कथित संघियों के खिलाफ नर्म क्यों बनी रही? अमूमन ऐसे मौकों पर अपनी ‘वीरता’ दिखाने के लिए दिल्ली पुलिस कुख्यात रही है। लोगों ने ‘आज तक’ के प्रसारण में ही देखा कि कैसे हुड़दंगी बेखौफ हो तोडफ़ोड़ की कार्रवाई को अंजाम दे रहे थे, पुलिस मूकदर्शक की तरह खड़ी थी। क्या यह असहज सवाल खड़े नहीं करता?
अब पूछा यह भी जा रहा है कि पिछले दिनों म्यूनिख में ‘आज तक’, ‘हेडलाइन्स टुडे’ सहित समूह की अन्य सहयोगी इकाइयों की बैठक में क्या योजना बनी थी? उक्त बैठक में संस्थान के संचालक अरुण पुरी सहित वरिष्ठ संपादकीय व प्रबंधकीय अधिकारी उपस्थित थे। संस्थान के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो म्यूनिख की बैठक में ‘हेडलाइन्स टुडे’ के प्रधान राहुल कंवल को आड़े हाथों लिया गया था। अन्य अंग्रेजी न्यूज चैनलों के मुकाबले ‘हेडलाइन्स टुडे’ को सबसे नीचे की पायदान पर पहुंच जाने के लिए कंवल को दोषी ठहराया गया था। लेकिन संस्थान के प्रमुख की इच्छा के आगे नतमस्तक हो अन्य अधिकारियों ने राहुल कंवल को आक्सीजन मुहैया कराए जाने की बात मान ली।
तय हुआ कि किसी तरह भी ‘हेडलाइन्स टुडे’ को ‘एनडीटीवी’ और ‘टाइम्स नाउ’ के समकक्ष लाया जाए। सभी जानते हैं कि किसी चैनल को चर्चित करने के लिए प्रबंधन समय-समय पर हथकंडे अपनाता रहा है। दिल्ली का खबरिया गलियारा फुसफुसाहट में ही सही यह पूछ रहा है कि कहीं शुक्रवार की घटना किसी साजिश का अंग तो नहीं? कहा तो यह भी जा रहा है कि ‘टुडे ग्रुप’ में मौजूद संघी किन्हीं कारणों से संघ व भाजपा के नए नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि लगभग हर मोर्चे पर विफल सत्ता पक्ष ने लोगों का ध्यान केंद्र सरकार की विफलताओं से हटाने के लिए इन तत्वों का सहारा लेना शुरू कर दिया है? संसद के मानसून सत्र के दौरान सत्ता पक्ष पर विपक्ष के धारदार प्रहार की चर्चा जोरों पर है। बेचैन सत्ता पक्ष अपने बचाव के लिए हाथपांव मार रहा है। मैं यह नहीं कह रहा कि ‘आज तक’ में तोडफ़ोड़ की घटना के पीछे ये कारण हैं। लेकिन जब संदेह प्रकट किए जाने शुरू हो गए हैं, तब समाधान को सामने आना ही चाहिए।
लेखक एसएन विनोद वरिष्ठ पत्रकार हैं.
Abhilash Tiwari
July 17, 2010 at 11:39 am
Sir
I m agree with u………………..everything is possible here……………………
narendra
July 17, 2010 at 11:45 am
hamala apni jagah hain lekin jara soco sabhi patrakar ki IS HAMLE KE BAAD AAKHIR HAMARE SATTH JANTA KYO KHADI NAHI HAIN———JOURNLISM KE LIYE YE CHINTA AUR CHINTAN KA VISHAY HAIN
राजीव रंजन
July 17, 2010 at 3:11 pm
पटना में प्रकाश झा की फिल्म ‘गंगाजल’ के प्रदर्शन (2003) के राजद और साधु यादव (इस फिल्म में मुख्य खलनायक का नाम साधु यादव ही था), जो उस समय जीजाजी लालू प्रसाद के प्रिय साले थे और राजद में काफी ताकतवर थे, के समर्थकों को उकसा कर एक वरिष्ठ टीवी पत्रकार द्वारा पोस्टर जलवाए और फड़वाए गए और फिर उसका सनसनीखेज समाचार अपने चैनल पर प्रसारित करवाया गया, उसको देखते हुए कुछ भी असंभव नहीं लगता। एक बार तो ऐसा भी मामला सामने आया कि सिर्फ सनसनीखेज न्यूज के लिए एक व्यक्ति को जिंदा जल जाने के उकसाया गया। ऐसे मामले मीडिया की विश्वसनीयता पर गंभीर चोट कर रहे हैं, यही वजह है कि पत्रकारों पर आये दिन हमले हो रहे हैं और जनता की सहानुभूति मीडिया के साथ नहीं जुड़ रही है। आपकी बात में दम है। वैसे कल मैं ऐसा ही कुछ सोच रहा था कि ये हमला प्रायोजित हो सकता है। आजतक समूह पर भाजपा-संघ समर्थक होने का ठप्पा लगा हुआ है, हो सकता है कि भाजपा-संघ परिवार से दूरी दिखाने और शायद कांग्रेस राज के प्रति वफादारी साबित करने के लिए कोई खेल खेला गया हो। बहरहाल, ये सब अनुमान है, सचाई का पता तो टीवी टूडे ग्रुप और संघ के लोग बेहतर जानते होंगे। जो भी हो, ये हमला निश्चित रूप से निंदनीय है, लेकिन मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी को जिम्मेदारीपूर्ण रवैये से निभाना चाहिए।
rajesh bagde
July 17, 2010 at 3:27 pm
aakhir aise noubat kyo aai . etne bade samuh ko media me kya khbre chalni chaiea eski GARIMA ka dhyan kyo nahi rakha ,kya TRP KE CHAKKAR me yeh sab dikhaya gaya , eska jimmedar hum sahi hei.
anonymous
July 17, 2010 at 7:09 pm
vinod ji…
Ye to wahi question hai jo khub aaj tak ke paper mail today ne batla house encounter ke baad uthaiye the…jisme humne ek inspector ko kho diya…ab iski bhi enquiry human right commission se karaiy jani chahi ya nahin….maharaj yahan to chand kaanch ke saman tute hain…lekin enounter mein to ek jaan gayi thi…..
kumar hindustani
July 18, 2010 at 7:24 am
behatreen, dhardaar aur sashakt aalekh. aapne wakai theek kaha. media me sansanikhej news dikhana aur t r p batorne ke liye tamam hathkande apnana samanya hota jaa raha hai. aise me is ghatna ko ekpakshiya karaar dekar headline today ko paak saaf batana bemaani hoga.