न्यूज चैनलों के लिए क्रांतिकारी हो सकता है एनालॉग से डिजिटल की ओर का सफर

केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह फैसला न्यूज़ चैनलों के लिए क्रांतिकारी हो सकता है। सरकार ने तय किया है कि वह केबल आपरेटरों को अनिवार्य रूप से डिजिटल तकनीक अपनाने के लिए अध्यादेश लाएगी। हमारे देश में अस्सी फीसदी टीवी उपभोक्ता केबल नेटवर्क के ज़रिये चैनलों को ख़रीदते हैं। जिसके लिए वो महीने में दो सौ से तीन सौ रुपये तक देते हैं। अभी एनालॉग सिस्टम चलन में है।एनालॉग सिस्टम में कई तरह के बैंड होते हैं।

रेडि‍यो की शक्‍ल अख्‍ति‍यार करता एनडीटीवी इंडि‍या

कुछ वक्‍त पहले तक एनडीटीवी पर ”ज्‍योतिष नहीं जर्नलि‍स्‍ट की टीम के साथ करि‍ए दि‍न की शुरूआत…” जैसे स्‍लोगन सुनने को मि‍लते थे। पर अब खबरों के साथ जर्नलि‍स्‍ट की टीम एनडीटीवी से गायब हो चुकी है। एनडीटीवी इंडि‍या ने रवीश की रि‍पोर्ट, वि‍नोद दुआ लाइव जैसे कई बेहतरीन प्रोग्राम दि‍खाकर एक बहुत बड़े वर्ग को अपना मुरीद बनाया है। झाड़-फूंक और तन्‍त्रमंत्र दि‍खाने वाले चैनलों की भीड़ में एनडीटीवी इंडिया ने अलग रास्ता चुना था।

एनडीटीवी के रवीश ने आम्रपाली के अनिल से पूछा- कितने पत्रकार फोन करते हैं?

Ravish Kumar : कल मैंने आम्रपाली के सीएमडी से सवाल कर दिया कि कितने संपादक पत्रकार आपको फ्लैट में डिसकाउंट के लिए फोन करते हैं अभी प्राइम टाइम में बता दीजिए। मुझे यह भी मालूम है कि आप बिल्डरों के भय से कई पत्रकार ख़बर नहीं लिख पाते। तो इतनी बेचारगी समझ नहीं आ रही है आप लोगों की। अनिल शर्मा मुस्कुराते ही रहे। शायद जानते होंगे कि ऐसे टिटपुंजिया पत्रकारों के उत्साही सवालों से ज़मीनी हकीकत को ठेंगा न फर्क पड़ता है।

सब कुछ खत्‍म नहीं हुआ, उम्‍मीद की किरण बाकी है : श्रवण गर्ग

उत्‍तर प्रदेशीय महिला मंच के संस्‍थापक और कलम के योद्धा रहे स्‍व. वेद अग्रवाल की स्‍मृति में दिए जाने वाला साहित्‍य-पत्रकारिता-2011 पुरस्‍कार मेरठ के चैंबर हॉल में सामाजिक सरोकारों से जुड़े जुझारू पत्रकार रवीश कुमार को दिया गया तो उपस्थित लोगों ने करतल ध्‍वनि से उसका स्‍वागत किया।

वेद अग्रवाल स्‍मृति सम्‍मान एनडीटीवी के रवीश कुमार को

उत्तर प्रदेशीय महिला मंच अपना वार्षिकोत्‍सव चैंबर ऑफ कॉमर्स (रोडवेज बस स्‍टेशन के सामने), मेरठ में  25 जून को सायं 5.30 बजे से मना रहा है। हमेशा की तरह इस बार भी विषम परिस्थितियों में मुकाम हासिल करने वाली, सामाजिक एवं महिला उन्‍नयन में भागीदारी करने वाली सात विदूषी महिलाओं को हिंद प्रभा सम्‍मान से अलंकृत किया जाएगा।

बंद हो गई ‘रवीश की रिपोर्ट’!

[caption id="attachment_20575" align="alignleft" width="94"]बृजेश सिंहबृजेश सिंह[/caption]अब नहीं होगा, नमस्कार मैं रवीश कुमार… पता चला है कि एनडीटीवी ने ‘रवीश की रिपोर्ट’ को बंद करने का फैसला किया है. एनडीटीवी ने मीडिया में वैसी ही छवि बनाई है जैसी टाटा ने व्यापार में. दोनों ने बहुत ही चालाकी से एक खास तरह की प्रो पीपुल छवि गढ़ी. टाटा का मामला लीजिए. वो भी रिलायंस जैसा ही एक कारपोरेट संस्थान है.

इन लेखों को पढ़कर कुछ सोचिए, कुछ कहिए

पुण्य प्रसून बाजपेयी और रवीश कुमार. ये दो ऐसे पत्रकार हैं जो मुद्दों के तह में जाकर सच को तलाशने की कोशिश करते हैं. इनके टीवी प्रोग्राम्स, लेखों के जरिए किसी मुद्दे के कई पक्ष जानने-समझने को मिलते हैं. आनंद प्रधान अपने लेखों के जरिए अपने समय के सबसे परेशानहाल लोगों की तरफ से आवाज उठाते हैं, सोचते हैं, लिखते हैं. तीनों का नाता मीडिया से है. पुण्य और रवीश टीवी जर्नलिज्म में सक्रिय हैं तो आनंद मीडिया शिक्षण में. इनके एक-एक लेख को उनके ब्लागों से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया जा रहा है. -एडिटर

लंदन का ‘शाही शादी कांड’ और रवीश की फेसबुकी कमेंटरी

रवीश कुमार से कभी कभी मुझे ईर्ष्या होती है. ये आदमी इतना क्रिएटिव हर वक्त कैसे बना रहता है. रवीश की रिपोर्ट जब एनडीटीवी पर देखता हूं तो देखता ही रह जाता हूं. लगता है कोई अदभुत किस्म की फिल्म देख रहा हूं जो हर तरह के भाव मन में पैदा कराए जा रही है, न चाहते हुए भी. मानवीय संवेदना, उल्लास, खिलंदड़पना…. इतने रस रंग भाव रवीश की रिपोर्ट में होते हैं कि आंखें हटती नहीं. और यही रवीश जब फेसबुक पर होते हैं तो भी उतने ही सहज.

रवीश कुमार का वीकली ब्लाग कालम शशि शेखर ने शहीद किया!

पता नहीं, पत्रकारिता और जनता के हित में शशिशेखर ने कितने काम किए हैं, लेकिन ये जरूर है कि उन्होंने अपनी हरकतों से लोगों की बददुवाएं खूब ली हैं. अच्छा भला रवीश कुमार का ब्लाग पर एक वीकली कालम हिंदुस्तान में छपता था और कई ब्लागर तो सिर्फ इस कालम को पढ़ने के लिए अपने यहां हिंदुस्तान मंगाते थे, अब उस कालम को हिंदुस्तान प्रबंधन ने बंद कर दिया है. जबसे हिंदुस्तान का लेआउट अंतरराष्ट्रीय हुआ है, क्षेत्रीय पहचान वाले बोल-वचन गोल हो गए हैं.

नकवी जी की सेलरी 10 लाख रुपये महीने है!

अनुरंजन झा ने अपनी संपत्ति घोषित करते हुए अपनी सेलरी का जो खुलासा किया है, उसके आधार पर लोग टीवी इंडस्ट्री के बिग बॉसों की सेलरी का अंदाजा लगाने लगे हैं और इस तरह ”सेलरी रहस्य” से पर्दा उठने लगा है. अनुरंजन ने खुद लिखित रूप से बताया कि वे सालाना तीस लाख रुपये के पैकेज पर सीएनईबी गए हैं. महीने का ढाई लाख रुपये हुआ. लेकिन ये सेलरी कुछ नहीं है, अगर आप सुनेंगे कि दूसरे न्यूज चैनलों के संपादकों की सेलरी क्या है.

जो इस बकरीवाद से बच गया वो महान हो गया, जो फंसा वो दुकान हो गया

बकरी में में करती है। पत्रकार मैं मैं करने लगे हैं। हमारे एक पूर्व वरिष्ठ सहयोगी शेष नारायण सिंह कहा करते थे। कहते थे- पत्रकारिता में जो इस बकरीवाद से बच गया वो महान हो गया और जो फंस गया वो दुकान हो गया। मुझे तब यह बात अजीब लगती थी। शेष जी क्या क्या बोलते रहते हैं। अब उनकी बात समझ में आने लगी है।

रवीश ने शेषजी को समर्पित किया आज का ब्लाग वार्ता

शेष नारायण सिंह भले 60 पार के हैं लेकिन उनके तेवर नौजवानों से कम नहीं. हरदम ताल ठोंककर ललकारने और लिखने को तैयार. प्रिंट और इलेक्ट्रानिक वालों ने जिन दिनों शेष नारायण सिंह को उनके तेवर के कारण किनारे कर दिया था, उन मुश्किल दिनों में न्यू मीडिया के लोगों ने उन्हें राष्ट्रीय फलक में स्थापित किया. और, उन्हीं दिनों की ट्रेनिंग में शेषजी ने अपना एक ब्लाग भी बना लिया.

‘देवा’ ने कल रवीश कुमार की ज़िंदगी बख्श दी!

मैं देवा हूं। यहां का देवा। चल कैमरा दे। टेप निकाल। ऐ आकर घेरे इनको। बाहर मत जाने देना। किससे पूछ कर अंदर आए। किसलिए शूट कर रहे हो। चल निकाल टेप और कैमरा दे। यहां से अब तू बाहर नहीं जाएगा। तू जानता नहीं मैं कौन हूं। मैं देवा हूं। मैंने बसाया है इनलोगों को। उजाड़ा नहीं है किसी। जाकर बाहर बोल देना कि देवा ने कैमरा ले लिया। लंबे कद का लोकल गुंडा। दोनों हथेलियां मरहम पट्टियों से ढंकी थीं। लगा कि पिछली रात उस्तरेबाज़ी में दोनों हाथ ज़ख़्मी हुए हैं। मैंने बोला कि इसमे चिप है,टेप नहीं है। आपके किसी काम का नहीं है। आप एक बार चला कर देख लो। कई लोगों ने मुझे घेर लिया था। देवा बार-बार बोल रहा था कि इनको बाहर मत जाने देना। मीडिया और सरकार ने नहीं मैंने तुम लोगों को बसाया है।

रवीश कुमार को स्‍व. वेद अग्रवाल स्‍मृति सम्‍मान

मेरठ : उत्‍तर प्रदेशीय महिला मंच ने अपने संस्‍थापक स्‍व. वेद अग्रवाल की स्‍मृति में प्रतिवर्ष दिए जाने वाले ‘पत्रकारिता-साहित्‍य सम्‍मान-2011’ देश के जाने-माने पत्रकार रवीश कुमार को देने की घोषणा की है. रवीश कुमार एनडीटीवी के जाने-माने पत्रकार हैं और अपनी बेबाक लेखनी के लिए देश भर में जाने जाते हैं. रिपोर्टर और एंकर रवीश की निष्‍पक्ष और निर्भीक टिप्‍पणियां और रिपोर्ट हमेशा सामाजिक सरो‍कारों से जुड़ी रही हैं.

रवीश कुमार को डा. राजेंद्र प्रसाद बिहार गौरव पुरस्कार

रवीश कुमारएनडीटीवी के स्टार रिपोर्टर और एंकर रवीश कुमार को डॉ. राजेंद्र प्रसाद बिहार गौरव पुरस्कार मिला है. उन्होंने यह एवार्ड भागलपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के हाथों लिया. वैसे तो डॉ राजेंद्र प्रसाद सम्मान सामाजिक क्षेत्र के लिए काम करने वाले लोगों को ही दिया जाता रहा है, और पहले दो साल यह पुरस्कार राजनीतिक हस्तियों को दिए गए थे, लेकिन इस बार सामाजिक सरोकार रखने वाले पत्रकार रवीश कुमार को इस एवार्ड के लिए चुना गया.

रवीश कुमार की झूठी रिपोर्ट का सच

शाम के चार बज रहे थे। ढाबे वाले को बार-बार दबाव डाल रहा था कि जल्दी कुछ भी बना दीजिए। सुबह नाश्ता भी नहीं किया था। पेट जल रहा था। बगल की कुर्सी पर ढाबे का मालिक भी आकर बैठ गया था। तभी सामने से एक शख्स शराब के नशे में धुत ख़ुद को संभालता हुआ मेरे पास आने लगा। आकर बैठ गया। आप हैं। आपको टीवी पर देखता हूं। अच्छा लगता है। ठीक बात करते हैं आप। वो इतना होश में था कि मुझे पहचान रहा था। कहने लगा कि मैं ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में क्लर्क हूं (मैं सही पदनाम नहीं दे रहा हूं)।

जो सवाल करेगा, वही मारा जाएगा

: पत्रकारिता के फटीचर काल का सही चित्रण है पीपली लाइव : पीपली लाइव के आखिर के उस शाट्स पर आंखें जम गई…जब कैमरे ने कलाई में बंधे ब्रैसलेट को देखा था। जला हुआ। यहां भी मीडिया ग़लत ख़बर दे गया। नत्था तो नहीं मरा लेकिन एक संवेदनशील और मासूम पत्रकार मारा गया। फिल्म की कहानी आखिर के इसी शॉट के लिए बचा कर रखी गई थी। किसी ने राकेश को ठीक से नहीं ढूंढा, सब नत्था के मारे जाने की कहानी को खत्म समझ कर लौट गए।

हिन्दी न्यूज़ चैनलों पर स्पीड न्यूज का हमला

रवीश कुमार: हिन्दी पत्रकारिता का दनदनाहट काल : अचानक से हिन्दी न्यूज़ चैनलों पर स्पीड न्यूज का हमला हो गया है। कार के एक्सलेटर की आवाज़ लगाकर हूं हां की बजाय ज़ूप ज़ाप करती ख़बरें। टीवी से दूर भागते दर्शकों को पकड़ कर रखने के लिए यह नया फार्मूला मैदान में आया है। वैसे फार्मूला निकालने में हिन्दी न्यूज़ चैनलों का कोई जवाब नहीं। हर हफ्ते कोई न कोई फार्मेट लांच हो जाता है। कोई दो मिनट में बीस ख़बरें दिखा रहा है तो कोई पचीस मिनट में सौ ख़बरें।

वर्ना कोई नौकरी भी नहीं देगा…

रवीश इस दौर के टीवी जर्नलिस्टों के सुपर स्टार हैं. रिपोर्टिंग तो बहुत सारे टीवी जर्नलिस्ट करते हैं, एंकरिंग तो बहुत सारे टीवी जर्नलिस्ट करते हैं, पर रिपोर्टिंग-एंकरिंग करते वक्त खुद को जनता के साथ कनेक्ट कर-रख पाने का माद्दा बहुत कम लोगों में होता है. ये ‘माद्दा’ नामक बल कोई एक दिन में पैदा होने वाली चीज भी नहीं कि किसी मीडिया ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के मास्टरजी की घुट्टी से मिल जाए या किसी सीनियर जर्नलिस्ट की संगत से पैदा हो जाए. ये माद्दा नामक चिड़िया आपके ज्ञान, आपके जनजुड़ाव, आपके जन प्रेम, आपके आवारापन-बंजारापन टाइप जीवनानुभव, आपकी सचेत सोच और आपकी चीजों के प्रति जनपक्षधर नजरिए से पैदा होती है और यही ‘माद्दा’ आपको जर्नलिस्ट बनाता है. पर अब न तो मीडिया मालिक को ऐसा माद्दा वाला जर्नलिस्ट चाहिए क्योंकि उनके लिए माद्दा का मतलब धंधा है.

लंगोटिया भूत से लेकर जूली चुड़ैल की कहानी करना चाहता हूं : रवीश

टीवी के आइडिया उत्पादकों का अनादर मत करो : टीवी का फटीचर काल अपने स्वर्ण युग में प्रवेश कर चुका है। सानिया की शादी को लेकर तमाम संपादकीय रणनीतिकारों ने आइडिया को त्वरति गति से पैदा करना शुरू कर दिया है। टीवी के फटीचर दर्शकों ने लेख लिखने के लिए इन तमाम कार्यक्रमों पर अपनी आंखें गड़ा दी हैं। टीआरपी फिर लौट आया है।

रिपोर्टिंग के रिश्ते

रवीश कुमारसात साल की रिपोर्टिंग से न जाने कितने रिश्ते अरज लाया हूं। ये रिश्ते मुझे अक्सर बुलाते रहते हैं। जिससे भी मिला सबने कहा दुबारा आना। ऐसा कभी नहीं हुआ कि दुबारा उस जगह या शख्स के पास लौटा जा सके। तात्कालिक भावुकता ने दोबारा आने का वादा करवा दिया। मिलने वालों से स्नेह-सत्कार,भोजन और उनका प्रभाव इतना घोर रहा कि बिना दुबारा मिलने का वादा किये आया भी नहीं जाता था। सबको बोल आया कि जल्दी आऊंगा। अब आंसुओं से भर जाता हूं। एक रिपोर्टर सिर्फ दर्शकों का नहीं होता,वो उनका भी होता है जिनसे वो मिलता है, जिनकी सोहबत में वो जानकारियां जमा करता है और जिनके सहारे वो दुनिया में बांट देता है। रिपोर्टिंग में मिले इन सभी रिश्तों में झूठा साबित होता जा रहा हूं। क्या करूं उनका इंतज़ार खतम नहीं होता और मेरा वादा पूरा नहीं होता।

टीआरपी से बगावत का स्वागत : रवीश कुमार

[caption id="attachment_16692" align="alignleft"]रवीश कुमाररवीश कुमार[/caption]रेटिंग फार्मूले में भयंकर गड़बड़ी है : क्या मान लिया जाए कि अब टीआरपी के खिलाफ लड़ाई शुरू होने जा रही है? आज सुबह पहली नज़र हिन्दुस्तान में आशुतोष के लेख पर पड़ी फिर दैनिक भास्कर में एनके सिंह के लेख पर। हैदराबाद के न्यूज़ चैनलों ने जो फर्ज़ी खबरें चलाईं हैं, लगता है कि इस भयंकर भूल ने टीआरपी लिप्त हम सभी पत्रकारों का सब्र तोड़ दिया है। आशुतोष के इस लेख से पहले कुछ साल पहले अजित अंजुम ने लिखा था कि इस बक्से को बंद करो। अब लग रहा है कि इसके विरोध को लेकर मुखरता आने वाली है। पिछले एक साल में टैम के टीआरपी के आंकड़ों को देखने का अनुभव प्राप्त हुआ। हरा, पीला और ग्रे रंग से रंगे खांचे बताते हैं कि आपका कार्यक्रम कितना देखा गया।