नीचे के इन दो चेहरों को ध्यान से देखिए। ये टीवी18 ग्रुप के बिजनेस न्यूज चैनलों से करीब ढाई सौ लोगों को बाहर किए जाने के अपराधी हैं। इस देश का कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि देश की सरकारें अब इन्हीं धंधेबाजों के इशारों पर नीतियां बनाती और बिगाड़ती हैं।
इस तस्वीर को गौर से देखिए।
ये है राघव बहल।
कंपनियां बनाने और बढ़ाने का उस्ताद।
पचास साल के करीब उम्र है।
नेटवर्क18 ग्रुप का संस्थापक है।
कंट्रोलिंग शेयरहोल्डर है।
मैनेजिंग डायरेक्टर है।
मैनेजमेंट कंसल्टेंट के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले इस शख्स ने 1994 में जर्नलिज्म में संस्कृति एवार्ड भी हासिल किया। टीवी और पत्रकारिता में करीब 22 वर्षों का इसका करियर है। पर इसने अपने ही पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को किस तरह अपनी कंपनी से निकाल फेंका, यह सबके सामने है। इसने किस तरह की पत्रकारिता की होगी, यह सभी सोच सकते हैं।
1993 में इसने टीवी18 की स्थापना की जो अब नेटवर्क18 समूह बन चुका है। 16 वर्षों के अंदर इस आदमी ने कई बड़ी कंपनियों एनबीसी यूनिवर्सल, वायकॉम, टाइम वार्नर और फोर्ब्स के साथ मिलकर सफल ज्वाइंट वेंचर प्रारंभ किया और बढ़ाया। इसका नतीजा यह हुआ कि नेटवर्क18 समूह का मार्केट कैपिटलाइजेशन 0.75 बिलियन डालर का हो गया।
नए जमाने में मीडिया का सबसे सफल अंटरप्रिन्योर माने जाने वाले इस शख्स की मेधा उस समय जाने कहां गुम हो गई जब टीवी18 ग्रुप के चैनलों की री-स्ट्रक्चरिंग के नाम पर ढाई सौ लोगों को निकालने की तैयारी हो गई। क्या इस सफल शख्स के पास कोई और तरीका नहीं था? दुनिया और भारत के बाजार से जब मंदी जा रही हो और विज्ञापनों से आय में वृद्धि होने लगी हो तो ढाई सौ लोगों की छांटने की रणनीति को इस शख्स ने क्यों ओके किया, समझ से परे है। फिलहाल राघव बहल के नाम के आगे एक धब्बा लग चुका है। यह धब्बा अपने ढाई सौ प्रोफेशनल मीडियाकर्मियों के पेट पर लात मारने का है।
इस अपराध का दंड इस शख्स को यही क्रूर बाजार देगा, जिसकी गोद में खेलकर यह उस्ताद बना बैठा है, इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। भड़ास4मीडिया राघव बहल को ढाई सौ कर्मियों की छंटनी के मामले में खलनायक का दर्जा देता है।
इसे निहारिए।
ये है हरेश चावला।
नेटवर्क18 और वायकॉम18 का ग्रुप सीईओ।
टीवी18 के दोनों बिजनेस चैनलों का डायरेक्ट माई-बाप।
धंधे से मुनाफा निकालने का कथित महारथी।
आईआईटी, मुंबई और आईआईएम, कोलकाता से पढ़ा-लिखा चावला वैसे तो कंपनी की वेबसाइट पर अपनी प्रोफाइल में लिखवाए हुए है कि वह कर्मियों को सबसे कीमती संपत्ति मानता है लेकिन सच्चाई यही है कि इसी शख्स ने टीवी18 के चैनलों से ढाई सौ से ज्यादा लोगों को बाहर करने की योजना तैयार कराई और उस पर अमल करने के आदेश दिए। इसने छंटनी के सिवा और किसी विकल्प पर विचार करने से भी इनकार कर दिया। भड़ास4मीडिया हरेश चावला को ढाई सौ लोगों को बेरोजगार करने का दूसरा मुख्य अपराधी मानता है।
आप कह सकते हैं कि जिन लोगों को निकाला गया, उन्हें नियमानुसार तीन महीने की नोटिस / तीन महीने की सेलरी दे दी गई है, तो फिर ये अपराधी कैसे हैं? आपकी बात तकनीकी रूप से सही हो सकती है लेकिन यह तर्क कब कुतर्क में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। बिजनेस में मानवीय संवेदना की बात होती है या नहीं? धंधे का सामाजिक सरोकार होता है या नहीं? कारपोरेट जगत का सोशल कनसर्न होता है या नहीं? या फिर इन्हें तकनीकी के नाम पर कुछ भी करते रहने की छूट मिल जानी चाहिए? श्रम कानून, जो कभी कर्मचारियों की रक्षा के सबसे बड़े हथियार थे, आज पूंजीपतियों के अनुकूल बना दिए गए हैं। तो क्या, इस देश में आम जनता, गरीब जनता को जीने का हक नहीं रह गया है? जिन लोगों को इन लोगों ने निकाला है, अगर वे कल रोजी-रोटी के लिए अपराधी बन जाएं, रोजी-रोटी का जुगाड़ न होने पर आत्महत्या कर लें तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? क्या किसी उद्योग का उद्देश्य सिर्फ यही होता है कि वह अपने मालिक की तिजोरी ही भरता रहे? अगर उद्योग रोजगार देने के माध्यम नहीं हैं तो ऐसे उद्योगों में आग लगा देना चाहिए।
आइए, हम सभी राघव बहल और हरेश चावला की निंदा करें। ढाई सौ लोगों के पेट पर लात मारने के अपराध में इन्हें दंड क्या मिले, इसे प्रकृति पर छोड़ते हैं। प्राकृतिक न्याय पर भरोसा करने के अलावा हम लोगों के पास और कोई विकल्प भी नहीं है। हम निराश हैं, इस देश के कानून और सरकारों से, जो इन पूंजीपतियों को कुछ भी कर गुजरने की छूट प्रदान करती है और इन पूंजीपतियों के लिए रात-दिन मरने वालों की सामाजिक और पारिवारिक सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं करतीं।
-यशवंत सिंह
एडिटर, भड़ास4मीडिया
दिल्ली
09999330099
ashwani kumar
January 16, 2010 at 6:02 pm
tulsi das ne kaha hai samarath ko nahi dosh gosain. ye baat yaha ek dam satik set hoti hai. bhai kya kare jitna kar le kam he hai.