गांव से लौटा (2) : गरीबी और गर्मी दिमाग में अभी तक हलचल मचाए हैं. गांव जाने और गांव से लौटने के बीच कई दृश्य ऐसे दिखे जिससे मन बेचैन होता गया. हालांकि बेचैनी कुछ लोगों के जीवन का सहज स्वभाव है पर मन को दुखी करने वाली घटनाओं-दृश्य से अवसाद की ओर यात्रा शुरू हो जाती है. गांव में एक बूढ़ी महिला दिखी. कमर झुकी हुई. लाठी ले ठक ठक कर चलती हुई.
चलने के दौरान संभलने के लिए लाठी के साथ-साथ दीवार का सहारा लेती हुई. उसके ठीक पीछे उसकी पोती. गठरी लिए हुए. गांव की गली में इस बुढ़िया के धीरे-धीरे चलने को देखकर ठिठक गया. गौतम बुद्ध ने इसी बुढ़िया को देखा होगा. इन्हीं दुख-दर्दों के दृश्यों के कारण विचलित हुए होंगे वे. राज-पाठ छोड़कर निकल गए होंगे दुख-दर्द-मौत के रहस्य को समझने. पर हम लोग सब देखकर भी इगनोर करते हैं क्योंकि हमने मान लिया है कि मनुष्यों में भी ढेर सारे लोग जानवर की तरह जीने व मरने के लिए पैदा होते हैं और इस प्रवृत्ति-दशा-स्थिति का कोई इलाज नहीं है.
हमने मान लिया है कि दुखों-संकटों को दूर करने वाले लोग और होते हैं और हम अपने लिए सुख बटोरने के इकलौते काम में लगे रहने के लिए पैदा हुए मनुष्य हैं. तभी तो, हम सब हर ओर से अनजान, अपनी-अपनी जीवन-करियर की पारी खेलने में लगे हैं.
सरकार मंत्री नेता-परेता अफसर-चाकर इंटेल्केचुअल मीडिया-सीडिया साहब-सुब्बा गणतंत्र लोकतंत्र महानतम भारत देशम् ओम ओम ऊं ऊं ह्रीं क्रीं स्वाहा… (एक दोस्त ने बताया कि इस मंत्र का उच्चारण सुबह दोपहर शाम और रात, चारों पहर करें तो भ्रष्ट लोग एक-एक कर जल्दी जल्दी मरने लगेंगे और मंत्र पढ़ने वाले व देश के गरीबों का कुछ कल्याण होने लगेगा)
उस बुढ़िया के चलने के दृश्य को आप यहां देख सकते हैं….
कोरेक्स पीती लड़कियों को देखकर जब दिल्ली लौटा तो यहां भी अचानक दो ऐसी स्थितियों से दो-चार हुआ कि गांव-शहर का
भेद सा मिटता नजर आया. बीच सड़क पर लेटे एक जख्मी शराबी युवक को कुचलने से बचाने के लिए उसके पैर खींचकर उसे सड़क से हटाते हुए किनारे फुटपाथ पर लिटा दिया. मर गया है या जिंदा है, इस बात की पड़ताल की तो शरीर की गर्मी देख संतोष हुआ कि बालक जिंदा है. एक फोटो खींचा और आगे बढ़ लिया. का करें. पिए हम भी हुए थे. अंतर बस इतना कि वो सड़क पर चौड़ा होकर फैला हुआ था और मैं कुछ घंटों बाद दीवारों से घिरी कोठरी की जमीन पर पसर पड़ा…दिल्ली में एक मेट्रो स्टेशन पर अपने बेटे को मरणासन्न स्थिति में लेटे हुए दिखाकर एक मां भीख मांगती मिली. मेट्रो के गेट पर यह दृश्य देखकर ठिठका. लड़के को निहारा… जिंदा है या मर गया साला…. गरीब लोगों के लिए हम शहरियों के मुंह से गाली पहले निकल जाती है क्योंकि भीख मांगते गरीब लोग गालियों का प्रतिवाद नहीं करते. लड़के के पास बैठकर उसे महसूस किया… शायद जिंदा है. लगा, भीख के लिए ये नाटक प्लान किया होगा इस औरत ने. एक तस्वीर खींचकर और हाथ झाड़कर आगे बढ़ लिया.
दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना गम है.
सरकार मंत्री नेता-परेता अफसर-चाकर इंटेल्केचुअल मीडिया-सीडिया साहब-सुब्बा गणतंत्र लोकतंत्र महानतम भारत देशम् ओम ओम ऊं ऊं ह्रीं क्रीं स्वाहा… (एक दोस्त ने बताया कि इस मंत्र का उच्चारण सुबह दोपहर शाम और रात, चारों पहर करें तो भ्रष्ट लोग एक-एक कर जल्दी जल्दी मरने लगेंगे और मंत्र पढ़ने वाले व देश के गरीबों का कुछ कल्याण होने लगेगा)
गाजीपुर – बनारस – दिल्ली की आवाजाही में पान बेचते बच्चे के चेहरे
की मासूमियत से मन में हूक हुई. गांव में तपती दोपहरी में पेड़ के नीचे खटिया बिछाकर खाते-पीते लोगों को देखकर किसी भी हाल में सुखी रहने की जिजीविषा का दर्शन हुआ. पेड़, पोखरी, पशु के करीब गांववाले शहर के माल, एसी, बिजली, करोड़ों-अरबों रुपये की हायतौबा से बहुत दूर हैं. हायतौबा है तो रोज पेटभर खाने और सोने की.कई बार लगा कि यही गांव बचाएंगे अपने देश को. यहां सब कुछ खड़ा कर दो पर प्रकृति प्रेम और संतोष इनसे छीन पाना मुश्किल है. बाजार की आंधी कई कोनों से यहां भी प्रवेश पा रही है और ढेर सारी चीजें बदल रही हैं पर नहीं बदल रहा है तो जितना मिले उतने में संतोष कर जी लेने की आदत. बाजारू लोग जब इन्हें खाने और सोने लायक भी नहीं छोड़ेंगे तो शायद ये गांव और ये ग्रामीण जनसमूह बगावती हो जाए. देश के कई हिस्सों में ऐसा हो रहा है.
सरकार मंत्री नेता-परेता अफसर-चाकर इंटेल्केचुअल मीडिया-सीडिया साहब-सुब्बा गणतंत्र लोकतंत्र महानतम भारत देशम् ओम ओम ऊं ऊं ह्रीं क्रीं स्वाहा… (एक दोस्त ने बताया कि इस मंत्र का उच्चारण सुबह दोपहर शाम और रात, चारों पहर करें तो भ्रष्ट लोग एक-एक कर जल्दी जल्दी मरने लगेंगे और मंत्र पढ़ने वाले व देश के गरीबों का कुछ कल्याण होने लगेगा)
satya prakash "AZAD"
June 14, 2010 at 4:19 am
गांव की आपने कुछ सुध ली. इसके लिए आपको साधुवाद.