: वाचिक बलात्कार के अपराधी को सज़ा दो : बीएसएफ के पूर्व अधिकारी और वर्धा के महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय के कुलपति, विभूति नारायण राय ने महिला लेखकों के बारे में जिस तरह की बात कही है, वह असंभव लगती है. लेकिन बात उनके बहुत करीबी साहित्यकार की निगरानी में छपी पत्रिका में कही गयी है, इसलिए गलत होने का कोई सवाल ही नहीं है.
दो बातें हैं. पहली तो यह कि विभूति नारायण राय पागल हो गए हैं. अगर यह है तो सरकार को चाहिए कि उनका अच्छा से अच्छा इलाज करवाए. या दूसरी बात यह हो सकती है कि उनका बौद्धिक स्तर ही यही है. अगर यह सच है तो केंद्र सरकार, कांग्रेस पार्टी और केंद्रीय लोक सेवा आयोग को चाहिए कि पूरे देश से माफी मांगे. लोक सेवा आयोग इसलिए कि इतनी घटिया सोच वाले अफसर को आईपीएस जैसी नौकरी में चुना क्यों? सरकार इसलिए कि इतनी नीच मानसिकता के अधिकारी को इतने वर्षों तक ज़िम्मेदारी के पद दिए जाते रहे. और कांग्रेस इस लिए कि उसी पार्टी ने इस घटिया और नीच मानसिकता वाले इंसान को प्रमोट किया.
यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है लेकिन यह सच है कि जब सुल्तानपुर जिले की अमेठी संसदीय क्षेत्र से राजीव गाँधी एमपी थे, उन्हीं दिनों यह आदमी वहां पुलिस कप्तान बन कर आया और राजीव गाँधी और वीर बहादुर सिंह का चेला बनने का अभिनय करने लगा. उसके बाद तो जब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार रही, विभूति नारायण राय अच्छे पदों पर रहे. सत्ता का सारा सुख भोगा. १९८७ के मेरठ के दंगों के दौरान वीएन राय, गाज़ियाबाद के पुलिस कप्तान थे. उन दिनों गाज़ियाबाद ख़ासा मलाईदार जिला माना जाता था. वीएन राय ने भी इस तैनाती का फायदा उठा लिया था. जिले में कारोबार शुरू करवा दिया था. गाँव घर के लड़कों के नाम सब काम जमा रहे थे. और अपना और अपने परिवार का भविष्य संवार रहे थे.
इसी बीच मलियाना और हाशिमपुरा में मुसलमानों को पीएसी वालों ने पकड़ कर मार दिया. खबर थी कि बहुत सारे शव नहर में फेंक दिए गए. वह नहर गाज़ियाबाद जिले से होकर भी गुज़रती है. कुछ लाशें गाज़ियाबाद के इलाके में भी मिल गयी. बस फिर क्या था. करीबी प्रेस वालों को बुलाया और मुसलमानों के रक्षक की मुद्रा में अपने आपको पेश कर दिया. इस मुस्लिम परस्त इमेज का फायदा इनको बाद में बहुत मिला. कुछ किताबें वगैरह लिखीं. और जब भी सेकुलर टाइप लोग नज़र आये और अगर वे पावरफुल हुए तो उनके चरणों में दंडवत की और इसी रास्ते अर्जुन सिंह के दरबार, में दरबारी पद पर भर्ती हो गए. उसी से प्रमोशन हुआ और सीधे वर्धा में महात्मा गाँधी के नाम पर बने एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति बनाकर भेज दिए गए. आजकल वहीं हैं और हिन्दी के कुछ बड़े लोगों को प्रलोभन देने की स्थिति में हैं. वहीं बैठकर अपने साहित्य के सपनों को रंग भर रहे हैं.
सच्ची बात यह है कि जब इन्होंने वर्धा में जाति और चापलूसी के आधार पर लोगों को इनाम देना शुरू किया तो नहीं लगता था कि इनकी नीचता का स्तर वह है जिसका प्रदर्शन उन्होंने नया ज्ञानोदय के नए संस्करण में किया है. लगता था कि इनके तरह के लोग जितने नीच होते हैं, उतने ही होंगे. लेकिन मेरी सोच गलत थी. वीएन राय को अति निकृष्ट श्रेणी में रखना चाहिए क्योंकि नीच और अति नीच श्रेणी वालों के साथ अगर इतने बड़े पापी को डाल दिया गया तो वे लोग बुरा मान सकते सकते हैं. इस आदमी ने महिला लेखिकाओं को छिनाल कहा है. कहता है कि “लेखिकाओं में होड़ लगी है यह साबित करने की कि उनसे बड़ी छिनाल कोई नहीं है”.
इस तरह की बात करने वाले आदमी को क्या कहा जाए. सबसे पहले तो यह कि इसका सभ्य समाज में उठना बैठना बंद करवाया जाए. उसके लिए ज़रूरी है कि जिस विश्वविद्यालय की कुलपति की कुर्सी पर यह बैठा है, वह तुरंत खाली करवाई जाए. इसके खिलाफ महिलाओं के सामूहिक उत्पीड़न का मुक़दमा दर्ज करवाया जा सकता है. सरकार को फ़ौरन इस गैरज़िम्मेदार अफसर के खिलाफ कार्रवाई करना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा न हुआ तो सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग धृतराष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो जायेंगे और वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपति की गद्दी पर बैठा दु:शासन अट्टहास करता रहेगा. एक अन्य लेखिका के लिए भी उनकी आत्मकथा के हवाले से वीएन राय ने बहुत गलत बात की है. किसी बड़ी लेखिका के लिए इनके मुंह से निकले हुए घटिया शब्द क्या किसी वाचिक बलात्कार से कम हैं. इसलिए इस अफसर के खिलाफ फ़ौरन कारवाई होनी चाहिए वरना इस देश का सभ्य इंसान महाभारत के लिए तैयार हो जाएगा.
लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं.
anup anand
August 2, 2010 at 4:41 pm
शेष जी, यदि बीएन राय ने कुछ महिला साहित्यकारों के लिए आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया है तो आपने भी बीएन राय को पागल कह कर अपनी मानसिकता जाहिर की है। दूसरी ओर आपने राय पर मुस्लिमपरस्त छवि बनाकर लाभ अर्जित करने का आरोप लगाया है लेकिन खुद अपनी ओर नहीं देखा। आप भी तो पूरे जीवन मुस्लिमपरस्त बनने में लगे रहे हैं। संघ परिवार के बहाने हिंदुओं को गरियाना और मुसलमानों की हर जायज-नाजायज मांग के पक्ष में लिखने का ठेका तो आपने भी ले रखा है। आपकी छवि भी कोई कम मुस्लिमपरस्त नहीं है। यह अलग बात है कि खुद के लाख प्रयासों के बावजूद आप अर्जुन सिंह जैसा कोर्ई कांग्रेसी नहीं खोज पाए जो आपको भी सरकारी कृपा से उपकृत करता। शायद इसी हताशा में आप बीएन राय को गरिया रहे हैं। इस देश में मुस्लिमपरस्ती आगे बढऩे का बहुत बड़ा जरिया है और यह माहौल बनाने में आप जैसे पत्रकार कम जिम्मेदार नहीं हैं। जहां तक राय ने कुछ महिला साहित्यकारों के बारे अशोभनीय टिप्पणी की तो उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम होगी लेकिन उन्हीं की जैसी भाषा में यह निंदा नहीं होनी चाहिए और न ही उन्हें पागल कहा जाना चाहिए। आखिर किसी की भी जबान फिसल सकती है। हां, बीएन राय का यह कहना एक दम सही कि महिला साहित्यकारों में से कई अश्लील लेखन के दम पर चर्चा में बनी रहना चाहती हैं।
mahandra singh
August 9, 2010 at 6:58 pm
vn roy ke bare mai ja likh hai bhaut accha hai per bhasha kuch marydit hoti to thik tha.