Connect with us

Hi, what are you looking for?

लाइफस्टाइल

हमारे प्रस्तावों की सरलता ही हमारी दिक्कत है – अनिल बोकिल

[caption id="attachment_20959" align="alignleft" width="151"]अनिल बोकिलअनिल बोकिल[/caption]: बातचीत : ‘अपनी आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह भी चोरी है।’ गांधीजी की इस उक्ति को अपने जीवन में अक्षरश: उतारने वाले अनिल बोकिल, 175 लाख करोड़ के घोटालों के युग में एक अजूबे की तरह हैं। उनसे फोन पर दिनेश चौधरी की हुई लंबी बातचीत के संपादित अंश यहां प्रस्तुत हैं:

अनिल बोकिल

अनिल बोकिल

अनिल बोकिल

: बातचीत : ‘अपनी आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह भी चोरी है।’ गांधीजी की इस उक्ति को अपने जीवन में अक्षरश: उतारने वाले अनिल बोकिल, 175 लाख करोड़ के घोटालों के युग में एक अजूबे की तरह हैं। उनसे फोन पर दिनेश चौधरी की हुई लंबी बातचीत के संपादित अंश यहां प्रस्तुत हैं:
  • ‘अर्थक्रांति’ का विचार मन में कैसे आया?

– योजनाबद्ध तरीके से तो नहीं आया। यह भी नहीं कह सकते कि अचानक कहीं से कोई प्रेरणा हासिल हुई हो। बस एक बार मन में यह विचार आया तो इस पर आगे बढ़ते गये। कुछ मित्रों से बात की और बहुत जल्दी ही पूरा ढांचा तैयार हो गया।

  • क्या आपको लगता है कि जनलोकपाल की तरह केवल ‘अर्थक्रांति’ से भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकती है?

लोकपाल का सरोकार एक कानून से है जो वर्तमान व्यवस्था में भ्रष्टाचारियों को दण्डित कर पायेगा। हमारा मानना यह है कि अगर किसी व्यवस्था में खामी है तो आप कितने भी कड़े कानून क्यों न बना लें, इन सब बुराइयों से नहीं बच सकते। लेकिन यदि आपकी व्यवस्था ही सुधर जाये तो आपको किसी कानून की जरूरत नहीं होगी। आप इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि फर्ज कीजिये की हमारी अर्थ-व्यवस्था मकान की छत पर बनी पानी की एक बड़ी टंकी है, जहां से हमारी जरूरतें पूरी हो रही हैं। इस टंकी में रिसाव के कारण पानी कहीं और इकट्‌ठा हो रहा है, जिसे हम ”पैरेलल इकानॉमी” या समानांतर अर्थव्यवस्था कहते हैं। अब यह जो गंदे पानी का जमाव है, उसी से मच्छरों की पैदावार बढ़ रही है। लोकपाल का काम इन मच्छरों को मारने का होगा पर आप बतायें कि कितने मच्छरों को मारा जा सकता है? अर्थक्रांति का उद्देश्य उस रिसाव को ही बंद कर देना है जो इनको पनपने की सहूलियत प्रदान करता है।

  • बड़े नोटों को वापस लेने संबंधी बाबा की मांग का आपने विरोध किया था?

बाबा ने मांग आधे-अधूरे ढंग से उठायी थी। उनके आंदोलन का समर्थन करते हुए हमने कहा था कि बड़े नोटों को वापस लेने की मांग अर्थक्रांति के मूल-प्रस्तावों को दरकिनार करते हुए अकेले नहीं उठायी जा सकती और ऐसा करना देश को एक बड़े संकट की ओर धकेलना है। किसी रोग के निदान के लिये यदि मरीज का कोई बड़ा ऑपरेशन करना हो तो उसे कुछ आवश्यक तैयारियों से गुजरना होता है। बाबा की मांग इन तैयारियों के बगैर मरीज के बड़े ऑपरेशन जैसी खतरनाक थीं। हालांकि उनके मन में भी यह खयाल कोई तीन साल पहले हमारा प्रेंजेटेशन देखने के बाद ही आया था और इसके बाद वे अपनी प्रत्येक सभा में बड़े नोटों को वापस लेने की मांग के बारे में कहते थे। ये बात और है कि उन्होंने कभी ‘अर्थक्रांति’ का जिक्र नहीं किया।

  • क्या इन्हीं वजहों से ‘अर्थक्रांति’ के पेटेंट की आवश्यकता महसूस हुई?

नहीं। हम ‘वसुधैव कुटुंबकम्‌’ की अवधारणा पर विश्वास करते हैं और हमारा मानना है कि अर्थक्रांति का कॉपीराइट न सिर्फ देश की कोई 120 करोड़ जनता का है, बल्कि पूरी दुनिया के पास है। पेटेंट लेने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई कि अमेरिका सहित कुछ अन्य देश इस तरह के प्रस्तावों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं और भविष्य में इन्हें अपने देश में लागू करने में कोई दिक्कत नहीं आये। बल्कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ व आतंकवाद जैसी विश्वव्यापी समस्याओं से निपटने के लिये हमने अपने प्रस्तावों में 0.1 फीसदी ‘ग्लोबल टैक्स’ देने का भी प्रावधान रखा है, जो प्रस्तावों के लागू होने पर बहुत आसानी से दिया जा सकता है।

  • क्या किसी ने इन प्रस्तावों का विरोध किया है?

इनाम-इकराम की व्यवस्था करते हुए हमने लोगों को प्रेरित किया है कि आप इन प्रस्तावों में तार्किक अथवा तकनीकी खामियां निकाल दें। राष्ट्रपति से लेकर मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों, सांसदों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इन्हें देखा है और अभी तक किसी ने इस पर सवालिया निशान नहीं लगाया है। या हमारे सामने कोई ऐसा सवाल अभी तक नहीं आया, जिसका हम जवाब न दे सके हों।

  • फिर इसे लागू करने में दिक्कत क्या है?

इच्छाशक्ति की कमी। हमारा पूरा प्रस्ताव एक तरह का ‘टैक्नीकल करैक्शन’ है और पूरी तरह से संवैधानिक ढांचे के अंदर है। सरकार चाहे तो इसे छः महीनों में लागू कर सकती है। हमारे प्रस्तावों के साथ एकमात्र दिक्कत यह है कि ये बेहद सरल हैं और हमारे देश के लोग अब अपने अनुभवों के कारण थोड़े शंकालु हो गये हैं। उन्हें लगता है कि क्या इतनी सरलता के साथ इतनी बड़ी व्यवस्था को बदला जा सकता है?

एक भले लोकतंत्र की कीमत

पाठकों को थोड़ी-सी हैरानी हो सकती है कि ‘अर्थक्रांति’ ने आर्थिक प्रस्तावों को रखते हुए लोकतंत्र की समुचित सेहत का भी ध्यान रखा है। यह बात जगजाहिर है कि राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में समानांतर अर्थ-व्यवस्था की बड़ी भूमिका होती है। जब साधन ही दूषित हो जायें तो साध्य पवित्र नहीं हो सकता और चुनावों के बाद ऐसे स्रोतों को उपकृत करने की परंपरा तो होती ही है।

लिहाजा ‘अर्थक्रांति’ ने पंजीकृत राजनीतिक दलों के लिये निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक मात्रा में मिलने वाले वोटों के अनुपात में अनुदान की व्यवस्था रखी है। प्रस्तावों के अनुसार एक भले लोकतंत्र की कीमत यहां के प्रत्येक नागरिक को 5 साल में एक बार 100 रुपये देकर चुकानी पड़ेगी, लेकिन यह पैसे अलग से नहीं वसूले जायेंगे बल्कि उसी राजस्व वसूली का हिस्सा होंगे जो ‘अर्थक्रांति’ प्रस्ताव के तहत बैंक-कटौती के माध्यम से आयेंगे। वर्तमान में उपलब्ध आंकड़ों के तार्किक विश्लेषण के बाद लोकसभा चुनावों के लिये यह राशि कोई 6900 करोड  रुपयों की होती है।

किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को 5 फीसदी से कम वोट मिलने पर कोई अनुदान नहीं दिया जायेगा। यदि किसी राजनीतिक दल को 10 फीसदी वोट मिलते हैं तो उसे पांच साल में एक बार 690 करोड  रुपये चुनावी खर्च के लिये मिल पायेंगे। 30 फीसदी वोट मिलने पर यही राच्चि 2070 करोड  हो जायेगी। विधान सभा व स्थानीय निकाय के चुनावों के लिये भी अलग से गणना की गयी है।

इतना ही नहीं, चुने हुए जनप्रतिनिधियों के लिये “आकर्षक” भत्तों का भी प्रावधान रखा गया है। प्रस्तावों के तहत इनके लागू होने पर एक सांसद को 10 लाख, विधायक को 5 लाख, पार्षद को 1 लाख तथा ग्राम विकास अधिकारी को 10 हजार रुपयों का मासिक भत्ता भी मिल सकेगा।

इससे संबंधित इस आलेख को भी पढ़ें- अन्ना व बाबा के सवालों का सटीक जवाब है अर्थक्रांति

दिनेश चौधरीसाक्षात्कारकर्ता दिनेश चौधरी पत्रकार, रंगकर्मी और सोशल एक्टिविस्ट हैं. सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट के बाद भिलाई में एक बार फिर नाटक से लेकर पत्रकारिता तक की दुनिया में सक्रिय हैं. वे इप्‍टा, डोगरगढ़ के अध्‍यक्ष भी हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Advertisement

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Uncategorized

मीडिया से जुड़ी सूचनाओं, खबरों, विश्लेषण, बहस के लिए मीडिया जगत में सबसे विश्वसनीय और चर्चित नाम है भड़ास4मीडिया. कम अवधि में इस पोर्टल...

Advertisement