: जगजीत सिंह बरास्ते अमिताभ (तीन) : जगजीत साहब के चले जाने की खबर एक चैनल पर देखकर झटका लगा। पर उम्मीद खत्म नहीं हुई थी, यह सोचकर कि ये चैनलवाले तो उल्टी-सीधी सच-झूठ खबरें देते ही रहते हैं, चलो किसी और चैनल पर देखें। चैनल बदल दिया। लेकिन दूसरे-तीसरे हरेक चैनल पर यही खबर। पिछली बार एक मित्र ने कहा था कि जब किसी इंसान के गुजर जाने की झूठी खबर चल जाये तो उसकी उम्र बढ़ जाती है।
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जगजीत सिंह बरास्ते अमिताभ (दो)
जगजीत सिंह साहब की महानता केवल इतने में नहीं है कि वे अच्छा गाते हैं या अच्छा गाते हुए वे बहुत ज्यादा लोकप्रिय भी हुए। बड़ी बात यह है कि उन्होंने ग़ज़ल गायन को एक संस्थागत रूप प्रदान किया और किसी रिले रेस की तरह वे अन्य गायकों को अपने साथ जोड़ते चले गये। दूसरे स्थापित गायकों की तरह उन पर कभी भी यह आरोप नहीं लगा कि उन्होंने किसी नवोदित ग़ज़ल गायक के रास्ते में कोई बाधा खड़ी की हो।
उन्हें भी नहीं पता पं. जसराज व पं. भीमसेन जोशी का फर्क?
म्यूजिक इंडिया मेरी पसंदीदा साइट है, हालांकि इसने मेरा बहुत बड़ा नुकसान भी किया है। पहले मनपसंद संगीत सुनने के लिये कैसेट-सीडी का सहारा लेना पड़ता था और आमतौर पर शास्त्रीय संगीत के कैसेट छोटे कस्बों में बहुत आसानी से नहीं मिलते। इसलिये कैसेट-सीडी की खोज भी एक समय में बड़ा अभियान हुआ करता था और बेहद मेहनत से ढूंढकर लाये गये अलबम को सुनने में जो आनंद आता था, उसकी बात कुछ और ही होती थी।
हमारे प्रस्तावों की सरलता ही हमारी दिक्कत है – अनिल बोकिल
[caption id="attachment_20959" align="alignleft" width="151"]अनिल बोकिल[/caption]: बातचीत : ‘अपनी आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह भी चोरी है।’ गांधीजी की इस उक्ति को अपने जीवन में अक्षरश: उतारने वाले अनिल बोकिल, 175 लाख करोड़ के घोटालों के युग में एक अजूबे की तरह हैं। उनसे फोन पर दिनेश चौधरी की हुई लंबी बातचीत के संपादित अंश यहां प्रस्तुत हैं:
अन्ना व बाबा के सवालों का सटीक जवाब है ‘अर्थक्रांति’
छत्तीसगढ़ के एक छोटे-से कस्बे बालोद में स्थानीय महावीर विद्यालय का सभागार खचाखच भरा हुआ है। वातावारण में थोड़ी उमस भी है। व्याख्यान प्रारंभ हुए कोई दो घंटे हो चुके हैं, फिर भी लोगों की एकाग्रता भंग नहीं हुई है। मजे की बात यह है कि व्याख्यान किसी धर्मगुरु का नहीं है, जो सरस पौराणिक गाथायें सुनाकर श्रोताओं को बांधे हुए हो।
अन्ना हजारे, रामदेव और कांग्रेस (अंतिम)
: हां, मैं बिका हुआ हूं! : “आप अमेरिका के साथ हैं या नहीं हैं?”… 9/11 के बाद बुश ने सारी दुनिया से यही वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछा था और चूंकि वह दुनिया का दादा है इसलिए प्रश्न के उत्तर में “इनमें से कोई नहीं” वाला विकल्प नहीं रखा था। जिन्होंने उत्तर “नहीं” में दिया वे सब आतंकवादी कहलाये। प्रतिबद्धताओं को स्पष्ट करने-कराने की बुश की यह नीति कालांतर में काफी लोकप्रिय हुई।
अन्ना हजारे, रामदेव और कांग्रेस – (एक)
: जब धर्म धंधे से जुड़ता है तो उसे योग कहते हैं- हरिशंकर परसाई : इस समय देश की राजनीति में कुकरहाव जैसा मचा हुआ है। पता नहीं आपके किस बयान को किस रूप में ले लिया जाये और हमले करने के लिये आप पर किसी प्रवक्ता को छोड़ दिया जाये। इन प्रवक्ताओं ने और कुछ किया हो या न किया हो, कुछ बातों को अच्छी तरह से स्थापित कर दिया है।
अच्छे संगीत की पाइरेसी अच्छी खबर है : पंडित जसराज
अगर आपको ईश्वर नाम की किसी चीज पर आस्था नहीं है, पर आप उसकी उपस्थिति को महसूस करना चाहते हैं तो एक बार जहां कहीं, जैसे भी अवसर हाथ लगे, पंडित जसराज को लाइव अवश्य सुनें। यदि आपको शास्त्रीय संगीत के नाम से ही घबराहट होती है, तब भी आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
क्या बात है कामरेड, लगता है आपकी बेटियां भाग गयीं हैं?
: भागी हुई लड़कियां, शहर में कर्फ्यू और पूरन हार्डी : रेलवे स्टेशन के उस छोर पर, जहां मालगाड़ियों को उन्हें धकेलने वाले इंजिनों से जोड़ा जाता है और जहां रिटायर्ड रेल कर्मचारी अड्डा मारकर बैठते हैं, पूरन मुझे पहली बार सपत्नीक मिले। ‘ये मेरी सिस्टर हैं…’, चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए पूरन ने जैसे भूल सुधार की, ‘सारी.. वाइफ हैं।’
आइये, सचिन को भारत रत्न बनायें ! (तीन)
एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से यह खबर चलायी की सचिन को भारत रत्न मिलना तय है। सूत्रों का हवाला जी टीवी ने भी दिया। सबसे तेज ‘आज तक’ को लगा कि उसकी तेजी कुछ कम हो रही है-बल्कि वह पिछड़ रहा है।
आइए, सचिन को भारत रत्न बनाएं! (दो)
पाकिस्तान के साथ कोई मैच था। जावेद मियांदाद ने आखिरी गेंद में छक्का मार कर पाकिस्तान को जिता दिया। अगले दिन परम आदरणीय प्रभाष जी के अग्रलेख का शीर्षक था – ‘वे विजेता की तरह जीते, हम विजेता की तरह हारे।” इसी दौरान -शायद पाकिस्तान में ही- हॉकी की कोई प्रतियोगिता चल रही थी और भारतीय हॉकी टीम, कमोबेश इन्हीं परिस्थितियों में हालैण्ड से मैच हार गयी।
आइए, सचिन को भारत रत्न बनाएं! (एक)
[caption id="attachment_18216" align="alignleft" width="66"]दिनेश चौधरी[/caption]मै जानता हूं कि नक्कारखाने में मेरी चीखने की यह कोशिश महज एक बेवकूफी है, मगर मैं – आदत से लाचार – यह बेवकूफी एक बार फिर कर रहा हूं। हो सकता है कि इन पंक्तियों के पोस्ट किये जाने तक सचिन सचमुच में भारत-रत्न बन जायें। ऐसा हुआ तो यह देश का पहला मामला होगा जहां मीडिया की पैरवी की वजह से किसी को यह सम्मान दिया जायेगा। मुझे याद नहीं कि इससे पहले इस सम्मान के लिये मीडिया ने कोई दिलचस्पी दिखायी हो और बाकायदा किसी रत्न की पैरवी की हो।
मनहूस जनवरी भीमसेन जोशी को भी ले गया
: पंडित जी की अदभुत गायकी को सुनकर उन्हें श्रद्धांजलि दीजिए… सुनने के लिए नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें… : कुछ जाने क्यों नया साल मनहूस सा लगने लगा है. अतुल माहेश्वरी की मौत से जो शुरुआत हुई तो एक के बाद एक बुरी खबरें ही आ रही हैं. बालेश्वर चले गए. कई पत्रकार साथियों की मौत हुई, कइयों का इलाज चल रहा है तो कुछ के साथ पारिवारिक ट्रेजडी हुईं.
यह वैकल्पिक मीडिया नहीं है तो और क्या है?
: नाट्योत्सव, एक छोटे-से कस्बे में : महज चालीस-पचास हजार की आबादी वाले एक छोटे-से कस्बे में होने वाले नाट्योत्सव की चर्चा राष्ट्रीय फलक पर किसलिये की जानी चाहिये? शायद इसलिए कि राष्ट्रीय स्तर का यह आयोजन बगैर किसी सरकारी सहायता के मेहनतकश जनता से एकत्र बहुत छोटी राशियों के बलबूते किया जाता है। या फिर इसलिए कि संभवतः यह हिंदी पट्टी का इकलौता कस्बा है, जहां नाटकों के दर्शकों का एक अपना वर्ग है और जहां बाद में आने वाले दर्शकों को जगह नहीं मिलने के कारण मायूस होकर लौटना पड़ता है।
बटुआ लौटाने की परंपरा और संस्कृति के झंडू बाम
: अखिल भारतीय नाट्योत्सव 2011 : जब सरकारें शासन का, भद्रजन अनुशासन का, कार्यपालिका प्रशासन का और मीडिया तटस्थता का ‘नाटक’ करने लगे तब नाटकों अथवा नाटककारों की क्या प्रासंगिकता रह जाती है?
बक रहा हूं जुनूं में क्या-क्या कुछ…
[caption id="attachment_18216" align="alignleft" width="66"]दिनेश चौधरी[/caption]भारत रत्न लता मंगेशकर ने सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की मांग की है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सचिन को भारत-रत्न से नवाजने की मुहिम मीडिया ने लंबे अरसे से चला रखी है। नैनो की लॉचिंग के बाद कुछ लोगों ने रतन टाटा को भी भारत रत्न देने की बात कही थी और प्रमोद महाजन के एक वक्तव्य को बाकायदा कोट किया गया था कि गाने-बजाने वालों को भारत रत्न बहुत मिल चुका ‘अब देश की सेवा करने करने वालों’ को यह सम्मान मिलना चाहिये। उन भले आदमियों की बात उस समय मान ली गयी होती तो अब ‘भारत रत्न’ रतन का नीरा से संवाद सुनने में कितना रस मिलता?
अब तो सारे संपादक एक ही जैसे दिखते हैं
[caption id="attachment_18332" align="alignleft" width="173"]रमेश नैयर[/caption]: इंटरव्यू : रमेश नैयर (छत्तीसगढ़ के जाने-माने और वरिष्ठ पत्रकार) : भाग-दो : ”हमने स्पेस बेच दिया… अपना ईमान बेच दिया… अपने सारे मूल्यों को हम विस्मृत कर गये… तो अपनी आत्मा को आदमी पहले मारता है, तब वो बेचता है अपनी अस्मत को… उर्दू का एक शेर है, ”कुछ भी कहिये जमीर कांप तो जाता होगा / वो गुनाह के पहले हो या गुनाह के बाद”…
अब रिपोर्टर्स नहीं, शार्प शूटर्स चाहिए : रमेश नैयर
[caption id="attachment_18309" align="alignnone" width="505"]वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर[/caption]
: इंटरव्यू : रमेश नैयर (छत्तीसगढ़ के जाने-माने और वरिष्ठ पत्रकार) : भाग-एक : रायपुर में नैयर साहब का मतलब सिर्फ रमेश नैयर होता है। कुलदीप नैयर जी में लगे नैयर नाम की समानता की वजह से यहां धोखे की कहीं कोई गुजांइश नहीं होती। रमेश नैयर साहब छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के स्कूल की तरह रहे हैं।
एक पागल शायर की याद में
[caption id="attachment_18216" align="alignleft" width="66"]दिनेश चौधरी[/caption]: प्रमोशन की चिट्ठी और बर्खास्तगी के आदेश में से बर्खास्त होना चुना था कामरेड टीएन दुबे ने : 14 साल तक नौकरी से बाहर रहे, तब तने रहे, केस जीतकर नौकरी में लौटे तो टूट गए : बेगम अखतर को सुनते हुए फूट-फूट कर रोने लगे : धीरे-धीरे रोना उनके स्वाभाव का स्थायी भाव बनने लगा : उखाड़े गए पौधे की जड़ों की तरह वे उसी जमीन की सुपरिचित गंध की तलाश में छटपटाते रहे : कामरेड दुबे तकलीफ में थे और कामरेड चौबे दुविधा में : यह घर कम, आने वाले दिनों में होने वाली क्रांति का कंट्रोल रूम ज्यादा था : जमाने में इंकलाब के सिवा और भी गम थे : आखिरी बार देखकर मुस्कुराए थे पर कोई शेर नहीं कहा, कहने को अब बचा ही क्या था? : ”फैज दिलों के भाग में है घर बसना भी लुट जाना भी / तुम उस हुस्न के लुत्फो-करम पर कितने दिन इतराओगे” :
मुझे दुष्यंत कुमार ने बिगाड़ा
मुझे बिगाड़ने में दुष्यंत कुमार का अमूल्य योगदान रहा है। दुनिया की ऐसी-तैसी करने का जज्बा मुझे उन्हीं के शेरों ने दिया, ये बात और है कि ता-उम्र नुकसान अपना ही करते रहे। तब कस्बे में ‘साये में धूप’ की एकमात्र प्रति अग्रज मित्र पांडे जी के पास हुआ करती थी जो किताबें मांगने वालों को अच्छी निगाह से नहीं देखते थे।
शीशमहल की अड्डेबाजी और ग़ज़ल के वे दिन
: परवेज मेहदी का अंदाज और हरदिल अजीज रेशमा : शीशमहल के मालिकान तब बदले नहीं थे और दुर्ग स्टेशन के ठीक सामने स्थित इस होटल का हुलिया भी बदला नहीं था। इसका रख-रखाव कॉफी हाउस जैसा था और सामने की ओर शीशे पर कत्थई रंग के मोटे पर्दे पड़े रहते थे। भीड़-भाड़ कुछ ज्यादा नहीं होती थी। तब गजल सुनने की नयी-नयी लत लगी थी पर इन्हें सुनने की सुविधा हासिल नहीं थी। वह ग्रामोफोन व कैसेट के बीच का संक्रमण काल था। कैसेट प्लेयर महंगे थे और ग्रामोफोन भी निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों में विलासिता की चीज थी।
मलिका पुखराज, बेटी ताहिरा और हम दो
भारत-पाक सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी कोई सरकारी योजना रही होगी। मशहूर गायिका मलिका पुखराज का हिंदुस्तान आगमन हुआ। तब छत्तीसगढ़ राज्य बना नहीं था और सोवियत संघ टूटा नहीं था। भिलाई इस्पात संयत्र में सोवियत सहयोग के कारण भिलाई का रूतबा कुछ ज्यादा ही था और इसे छत्तीसगढ़ का सबसे मॉडर्न शहर माना जाता था।
उस्ताद शुजात हुसैन खां, सितार और गायकी
: पसंद न आए तो पैसे वापस! : उस्ताद शुजात हुसैन खां की ख्याति एक वादक के रूप में ज्यादा है, क्योंकि वे विलायत खां साहब के सुपुत्र हैं। तीन बरस की उम्र में जब बच्चे खिलौनों से खेलते हैं उनके लिये एक नन्हा सितार ईजाद किया गया था व छ: बरस की उम्र में जनाब “लाइव परफारमेंस” करने लगे। पर वे अपने दूसरे रूप में मुझे ज्यादा भले लगते हैं। आपने हारमोनियम के साथ गायकों को हजारों बार देखा व सुना होगा। लेकिन यह कितनी बार हुआ कि कोई कलाकार सितार के तार छेड़ते हुए गा रहा है? कम से कम मेरे लिये इस तरह का पहला अनुभव उस्ताद शुजात खां को सुनना था।
जूते-अंडे की दुकान और उस्ताद हुसैन बख्श
: आप इन्हें भड़ासी भाइयों को सुनाइए : भाई यशवंत जी, छोटे कस्बे की दुकानों में आप कोई तरतीब नहीं ढूंढ सकते। यहां चूहे मारने की दवा और जीवन रक्षक दवायें एक साथ मिल सकती हैं। एक ऐसी ही दुकान में जहां जूते व अंडे बिकते थे, एक कोने में कुछ कैसेट भी रखे थे। यह कोई २०-२१ साल पहले की बात है। यहीं पर मुझे उस्ताद हुसैन बख्श का एक कैसेट मिला था। दुकानदार कैसेट देते हुए बहुत खुश था।