नेताओं से मोहभंग की अपनी इन भावनाओं का लोगों ने पोस्टरों, नारों और गानों के माध्यम से इजहार भी किया। अन्ना के पिछले आंदोलन के दौरान जहां चौटाला और उमा भारती को अपमानित होना पड़ा था तो इस बार के आंदोलन के दौरान एक महिला कम्युनिस्ट नेता की दुर्गति हो गई। राजघाट पर अन्ना हजारे के अनशन के दौरान जब मंच संचालक ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा से जुड़ी एक महिला नेता को बोलने के लिए आमंत्रित किया तो लोग अन्ना के मंच से नेता को बोलने का मौका दिए जाने की बात सुनकर भड़क गए। इस महिला नेता ने मंच से जैसे ही लोगों को संबोधित करना शुरू किया तो वैसे ही अन्ना समर्थकों के एक बड़े हुजूम ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते विरोध के स्वर बढ़ते गए। आखिरकार भाकपा माले नेता को अपना वक्तव्य बीच में ही बंद करके मंच से उतर जाना पड़ा।
इस महिला नेता का नाम है कविता कृष्णन। ये कभी जेएनयू में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) की नेता हुआ करती थीं। इन दिनों भाकपा माले की केंद्रीय समिति की सदस्य हैं। जानकारी के मुताबिक राजघाट पर अन्ना के अनशन के दौरान मंच संचालक ने भाकपा माले और आइसा से जुड़ीं कविता कृष्णन को बोलने के लिए आमंत्रित किया। कविता ने जब मंच पर आकर लोगों को संबोधित करना शुरू किया तो कई लोग उन्हें मंच से उतारने की आवाज उठाने लगे। थोड़ी ही देर में काफी संख्या में लोग इस नेता को मंच से हटाने की मांग करने लगे। माहौल बिगड़ता देख वहां मौजूद कार्यकर्ताओं और मंच संचालक ने कविता कृष्णन से मंच से उतरने की अपील की। अंततः कविता को अन्ना के मंच से हटना पड़ा और इसी के बाद वहां मौजूद भीड़ शांत हुई।
गौरतलब है कि अन्ना हजारे और उनके समर्थक पहले भी इस बात को कहते रहे हैं कि उनके अनशन में मंच पर किसी राजनेता या राजनीतिक विचारधारा से जुड़े व्यक्ति को नहीं आने दिया जाएगा। इससे पहले चार अप्रैल से जंतर मंतर पर हुए अन्ना के अनशन में भी उमा भारती और ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेताओं को लोगों ने मंच पर नहीं चढ़ने दिया था। यही नहीं, यहां मौजूद कई लोगों में इस बात को लेकर भी रोष देखने को मिला है कि बाबा रामदेव के कार्यक्रम में साध्वी रितंभरा और संघ परिवार के करीबी लोगों को क्यों मंच से जोड़ा गया।
Comments on “अन्ना के मंच से उतारी गईं वामपंथी नेता”
Andolan ki pavitrta ke liye netaon ko dur rakhna zaruri hai.
सभी दल और उससे जूडे लोग एक जैसे हैं। भाकपा -माले तो एक प्रतिक्रियावादी दल है । मैंने इसके द्वारा जमीन कब्जा करने का एक केस लडा जिसके कारण इनलोगों ने मुझे हत्या के मुकदमें में फ़सा दिया । मैं डरता नही और पत्नी सहित बच्चों को भी यही सिखाया है । पत्नी मेरे जेल में रहते हुये हीं जिसकी हत्या हुई थी उसकी मां के पास गई , पुछा क्यों फ़सांया गलत केस में उसन ेकहा की मैं माले के कब्जे के खिलाफ़ मुकदमा लद रहा था । माले ने भी यही कारण बताया कि मैं माले के विरोध में मुकदमा लड रहा था । जिले का कार्यालय उनका खाली हो जाता। आ रहा हूं यशवंत भाई नेताओं के असली चेहरे की कहानी लेकर अरविंद ने कल ठीक कहा कि सभी दलों को अपनी आय का हिसाब देना चाहिये। ये राजनितिक दल भ्रष्टाार को सता हथियाने का हथियार बनाना चाहते हैं। ्जबकि सच्चाई यह है कि सब भ्रष्ट हैं। जब यशवंत और हमारे जैसे लोग पेट और परिवार के लिये दस प्रतिशत भ्रष्ट हो सकते हैं हालांकि उस दस प्रतिशत भ्रष्ट होने के बावजूद परिवार चलाना कठिन हो रहा है । लेकिन हम इमानदारी के ससaाथ स्वीकार करते हैं हम जो हैं।
नेताओं से घृणा करना एक प्रकार से फैशन हो गया है, जबकि अन्ना को भी अच्छी तरह मालूम है कि नेताओं के सहयोग के बिना लोकपाल विधेयक पारित होना मुश्किल है।
sahi kiya janta ne.koi bhi neta pak daman nahi hai
यही तो समस्या है तिवारी जी कि दस प्रतिशत की आड़ में ये सौ प्रतिशत, हजार प्रतिशत करते हैं और सबको डुगडुगी बजाकर नचाते रहते हैं.
duneya do den ka mela jayga upar tu akela:(:(:o