मशहूर खेल पत्रकार पदमपति शर्मा के इस्तीफेनामे के पहले व दूसरे भाग के बाद पेश है तीसरा और अंतिम भाग…
”अजय जी से पहली मुलाकात में ही मैंने स्पष्ट कर दिया था कि स्थानीय संपादक पद में मेरी कभी भी रुचि नहीं रही है। मेरी तो यही कामना है कि जब मरूं तो लोग कहें कि देखो, वह खेल वाले पदमजी का शव जा रहा है। हां, चूंकि खेल डेस्क को मास्टर पेज सभी संस्करणों के लिए बनाने हैं, अतः स्वायत्तशासी डेस्क हो। खेल प्रभारी सीधे संपादक से जुड़ा रहेगा।
यही मैं कर भी रहा था। आप कभी वाराणसी संस्करण पर नजर डालेंगी तो महसूस करेंगी कि कहां पहुंचा दिया था खेल पृष्ठ को। पचपन का हो चुका हूं लेकिन सोच हमेशा आगे की रही है। अमर उजाला को मेरे आगमन के बाद 14 महीनों के भीतर ही एक करोड़ से ज्यादा आय (विश्व कप फुटबाल, एशियाई खेल व विश्व कप क्रिकेट) हुई थी। मैंने तो यहां हिंदुस्तान के लिए भी 31 मई से प्रारंभ हो रहे विश्व कप फुटबाल के लिए डमी तैयार कर ली थी। लेकिन सुना है कि आप खांटी संपादक हैं और मार्केटिंग या कमर्शियल आदि से आपका कोई लेना-देना नहीं। पिर भी आपको यह सब बताया।
सचमुच, इस तरह से अपमानित होने की मैंने कल्पना तक नहीं की थी और वह भी तब जब वेतन वृद्धि का समय था और सोचा था कि इधर वाराणसी संस्करण खुलने के बाद जो जी तोड़ मेहनत की गई थी, उसको संज्ञान में लिया जाएगा। लेकिन यह पुरस्कार मिला….!
मृणाल जी, जा रहा हूं, कभी किसी मोड़ पर शायद आपसे मुलाकात हो। यदि यह कहूं कि आपने दिल को ठेस नहीं पहुंचाई तो मैं सच नहीं बोल रहा हूं लेकिन आपके प्रति मेरे मन में किसी भी तरह की दुर्भावना इसलिए नहीं है कि मुझे पता है आप अनजान हैं।
किसी महापुरुष ने ठीक ही कहा है, जो यह नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है, उसे क्षमा कर देना चाहिए।
बस कसक एक बात की है कि खता भी नहीं बताई और सूली पर लटका दिया…..! कम से कम मुझे बुला कर बात तो कर लेतीं और मेरा पक्ष सुन लेतीं। अरे, हत्यारे को भी सफाई देने का मौका दिया जाता है, क्या मैं उससे भी ज्यादा गया गुजरा अपराधी था?
खैर, कोई बात नहीं। आपको यह मेल करने के तुरंत बाद मैं हिंदुस्तान कार्यालय छोड़ दूंगा, हमेशा के लिए….!
अंत में आपको धन्यवाद।”
आपका
पदमपति शर्मा