दुनियाभर के धर्मग्रंथ ढेर सारे नीति वाक्यों से लदे-पड़े हैं। अपने अनुचरों को राह दिखाने दिखाने वाले इन नीति मंत्रों की झलक हर रोज हमारे-तुम्हारे दरवाजे पर दखल देने वाले अखबारों के आगे-पीछे के पन्नों पर दर्ज होती है। पर क्या हमारे समय में अखबारी लाल इन पर अमल करते हैं? इस सवाल का जवाब कुछ हां, कुछ ना में ही हो सकता है।
बात राष्ट्रीय सहारा की हो तो उन लोगों को निराश ही होना पड़ेगा, जो पिछली सदी के आखिरी दशक में इस अखबार की केंद्रीय सत्ता को नीतिगत मामलों में विचलित करने वाली शैली के कायल रहे हों और उन लोगों को भी, जिनको इस अखबार ने थोड़ी बहुत बौद्धिक खुराक दी हो। राष्टीय सहारा में इन दिनों जो कुछ खिचड़ी पक रही है, वह परेशान व हैरान करने वाली है। मुख्यमंत्री की स्तुति में चाटुकारिता के स्पेशल पेज छापने से पिटी भद्द को अब जैसे-तैसे विज्ञापनों के सहारे ढापने के लिए एक नया कर्मकांड चल रहा है।
’निशंकनामा पढेंगे तो आप भी शरमा जाएंगे‘ शीर्षक से भड़ास4 मीडिया पर दैनिक अखबार राष्ट्रीय सहारा की चाटुकारिता के जगजाहिर होने के बाद अखबार के देहरादून के कर्ताधर्ताओं ने नया खेल शुरु कर दिया है। खेल की शुरुआत अखबार के हाईकमान की ओर से चाटुकारिता की वजह पूछने के साथ हुई। बताया जाता है कि स्थानीय संपादक की ओर से निशंकनामा की एवज में अखबार को 45 से 50 लाख रुपये का बिजनेस मिलने की बात बताई गई। इसके बाद देहरादून में साहब की ओर से विज्ञापन जुटाने के लिए अपने चार भरोसेमंद संपादकीय सहयोगियों को सरकारी बाबुओं के चक्कर काटने के लिए लगाया गया।
पत्रकारों की यह टोली दो से तीन दिन तक अपना सारा काम-धाम छोड़कर टहलती रही। इसके प्रतिफल में अखबार को करीब पांच से छह पेज कलर विज्ञापन मिला भी। इसमे दो से तीन पेज ऑल एडीशन छापा गया। वहीं दो-तीन रोज अखबार में जमकर विज्ञापन छपने के बाद सारे रिपोर्टरों को शहर से 20 किमी. दूर लच्छीवाला पिकनिक स्पॉट पर एक भव्य पार्टी दी गई। अन्दरूनी सूत्रों ने बताया कि अब तक मात्र 20 लाख का ही विज्ञापन मिला है, वो भी दो-तीन दिन तक विभागीय मंत्रियों व आलाधिकारी की जीहुजूरी के बाद।
बाकी का 30 लाख का विज्ञापन कहाँ से मिलेगा यह अभी भी चिन्ता का कारण बना है। सम्भवतः पार्टी भी रिपोर्टरों को इसीलिए दी गई थी ताकि बाद में उन्हें विज्ञापन के लिए लगाया जाय। बताते हैं कि इस दौरान बागेश्वर जनपद कार्यालय की ओर से भी ठीक-ठाक विज्ञापन सहारा को मिला है, लेकिन इसे भी इस पचास लाख के दायरे में बताया जा रहा है। जबकि सहारा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बागेश्वर जनपद कार्यालय सहारा के उन कुछ एक सेंटरों में है, जहां विज्ञापन के मामले में वह दूसरे बड़े अखबारों को टक्कर देता आया है।
खैर, हैरान करने वाली खबर है कि विज्ञापन जुटाने की इस मुहिम के तौर पर बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री को आसन्न विधानसभा चुनाव में अच्छी कवरेज का भरोसा दिलाया गया है। वहीं, दूसरी ओर सहारा के हेड आफिस से जुडे सूत्र बताते हैं कि इस मामले में जांच हो रही है।
लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.
Comments on “चाटुकारिता, जीहुजूरी और विज्ञापन”
लगता है की सहारा की माली हालत खराब हो गयी है, इसलिए रिपोर्टरों को कटोरा लेने को मज़बूर किया जा रहा है. टीवी में तो हाल ओर बी खराब है. अंबी वेली भी किसी को दे दिया हैं. एजेंटो को कमीशन भी वक्त पे नही मिल पा रहा. कर्मचरियों की च्चनटनी की जा रही है. सुब्रत राय की तबीयत भी नासाज़ है अओर उन के बाद कारोबार संभालानेवाला कोई नहीं.
राज्य स्थापना के १० वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं इस दौरान प्रदेश ने क्या खोया क्या पाया पर नज़र डालें तो यही प्रतीत होता है की यह राज्य नेताओं, बुरोक्रेअट्स, मीडिया घरानों व चाटुकारों के लिए ही बना है यदि यही स्थिति रही तो आने वाले १० वर्षों मैं ये लुटेरे राज्य को पूरी तरह से खोकला कर देंगे और यहाँ की जनता खुद को ठगा महसूस करेगी इसके बाद एक और क्रन्तिकारी आन्दोलन इनके खिलाफ करेगी ताकि इन् लुटेरों को ठिकाने लगाया जा सके