मेरे एक मित्र पंकज झा, जो छत्तीसगढ़ भाजपा की मैग्जीन के संपादक हैं, ने सबसे एक सवाल पूछा है- ”जिन लोगों को अन्ना के इस आन्दोलन से काफी उम्मीद है उनसे एक असुविधाजनक सवाल पूछना चाहता हूं कि आखिर आज़ादी के बाद से अभी तक कितने आंदोलन को सफल होते उन्होंने देखा या सुना है? मेरे एक मित्र ने सही कहा कि गर्द-ओ-गुबार थम्हने दीजिए फिर सही तस्वीर देखिएगा.”
यह सवाल सिर्फ पंकज झा का नहीं है. ऐसे सवाल बहुत सारे लोग देश के अलग-अलग कोनों से उठा रहे हैं. और सवाल उठाने वाले अलग अलग बैकग्राउंड और विचारधारा के हैं. इसके जवाब में आप लोगों को मैं दो चीज कहूंगा. एक दिन आप बिना मकसद, बिना मतलब अन्ना के आंदोलन में शामिल हो जाइए. और वहां मौजूद लोगों को देखिए. हमारे आप जैसे घरों के बच्चे, युवा, बुजुर्ग, अभिभावक, लड़कियां, बच्चे, महिलाएं… आपको वहां मिलेंगे.
ये लोग सत्ता, सरकार और सिस्टम से उकताये-उबे हुए लोग हैं. आम जीवन में हम सभी रोज सिस्टम की क्रूरता, भ्रष्टाचार, असंवेदनशीलता से दो-चार होते हैं पर जब सिस्टम के खिलाफ आंदोलन की बात आती है तो उसके नाम पर वो पार्टियां सामने आती हैं जो खुद भ्रष्ट हो चुकी हैं और जनता का भरोसा खो चुकी हैं. चुनाव जीत जाना एक अलग बात है क्योंकि आजकल चुनाव लड़ने के लिए करोड़पति-अरबपति होना जरूरी होता है और चुनाव जीतने के बाद ये करोड़पति-अरबपति विभिन्न किस्म के भ्रष्टाचार से अपनी जेब भरते रहते हैं.
आजादी के बाद जितने आंदोलन हुए, वे भले सफल नहीं हुए पर उन आंदोलनों ने इस देश के लोकतंत्र को बचाए रखा, सत्ता के मद में चूर नेताओं को औकात न भूलने का दबाव बनाए रखा, तंत्र में लोक को हमेशा बड़ा मानने का ज्ञान पढ़ाए रखा… जेपी आंदोलन ने तानाशाह इंदिरा और कांग्रेस को उनकी औकात दिखाई. उस झटके के कारण कांग्रेस के नेताओं में जनता के प्रति भय पैदा हुआ जो हाल के वर्षों में गायब होता दिखा. लोकतंत्र की खासियत यही है कि अगर जनता संगठित और जागरूक होकर अपने हित में इकट्ठी न हुई तो सत्ता के भ्रष्ट से भ्रष्टतम होते जाने का रास्ता मिल जाता है.
इस देश में पक्ष और विपक्ष, दोनों दलों ने जनता के साथ धोखा किया है. दोनों ने भ्रष्टाचार के जरिए अथाह पैसा कमाया है. रोज ब रोज बढ़ती महंगाई को खत्म करने का बूता सरकारों में नहीं दिख रहा है. कारपोरेट इस देश की नीतियां बनाते और चलाते हैं, नेता उनके अप्रत्यक्ष प्रतिनिधि की तरह बिहैव करते हैं. भ्रष्टाचार और महंगाई का जो चोली-दामन का साथ है, उससे निपटना बेहद जरूरी हो गया है अन्यथा पैसा कुछ अमीर लोगों की जेब में जाता रहेगा और आम जनता दिन प्रतिदिन गरीबी रेखा के नीचे जाती जीती रहेगी. अन्ना के आंदोलन ने इस देश के लोकतंत्र को मजबूत करने का काम शुरू किया है. जनता की असली ताकत को दिखाने का काम किया है.
यह आंदोलन अपने मकसद में कामयाब हो या विफल, लेकिन इस आंदोलन ने भ्रष्ट नेताओं को संदेश दे दिया है कि उनकी तभी तक चल सकती है जब तक जनता चुप है. गर्द-ओ-गुबार थमने के बाद भी सही तस्वीर यही रहेगी कि अन्ना के आंदोलन से देश के नेता और पार्टियां अपनी औकात समझते हुए नई चीजें शुरू करेंगी जो उन्हें ज्यादा जनपक्षधर बनाएंगी. कम्युनिस्ट हों या संघ, मध्यमार्गी पार्टियां हों या जाति-भाषा वाली पार्टियां, सबकी सीमाएं जहां खत्म होती हैं, वहां से अन्ना का आंदोलन शुरू होता है. दुनिया का इतिहास गवाह है कि अक्सर बड़ी क्रांतियां छोटे मुद्दे पर शुरू हुआ करती हैं और बाद में निर्णायक रुख अख्तियार कर लेती हैं.
केंद्र में काबिज नेताओं ने अन्ना को रोकने के लिए क्या नहीं किया, लेकिन उनका हर उपाय उन्हीं के खिलाफ चला गया. सारे सलाहकारों के मुंह पर ताले पड़ चुके हैं. कांग्रेस सकते में है. भाजपा सत्ता विरोधी हवा को अपने पक्ष में करने की फिराक में है पर सफल नहीं हो पा रही क्योंकि जनता किसी भी पार्टी पर भरोसा करने के मूड में नहीं है. संभव है आगे अन्ना के साथ के लोग कोई राजनीतिक विकल्प खड़ा करने की सोचें पर फिलहाल तो यही सच है कि भ्रष्टाचार का इलाज करने के लिए एक कड़वी दवा इस लोकतंत्र को देने की जरूरत है और वह कड़वी दवा जनलोकपाल बिल ही है.
इस बिल के बारे में भी लोगों को आशंकाएं हैं कि कहीं इस बिल के बाद देश में लोकतंत्र का स्वरूप ही नष्ट न हो जाए और जनलोकपाल सबसे बड़ा सत्ता तंत्र बन जाए. इसका जवाब यही दिया जा सकता है कि वही जनता जो आज करप्ट सरकारों और नेताओं के खिलाफ सड़क पर है, कल जनलोकपाल के पथभ्रष्ट हो जाने और तानाशाह हो जाने की स्थिति में उसके खिलाफ भी सड़कों पर उतरेगी. पर मौत तय है इस डर से तो जीना नहीं छोड़ा जा सकता. इस देश में हजारों कानून हैं पर उनका इंप्लीमेंटेशन नहीं होता. इंप्लीमेंटेशन क्यों नहीं होता और इंप्लीमेंटेशन कैसे कराया जाए, यह बड़ा सवाल रहा है पर नेता और सत्ता के लोग इस पर चुप रहते हैं.
इन कानूनों का सत्ताधारी नेता अपने हित के लिहाज से उपयोग करते हैं. जो सत्ता का विरोध करना शुरू करे, उसे नष्ट करने और फंसाने के लिए उन कानूनों का तुरंत इस्तेमाल शुरू हो जाता है पर सत्ताधारी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ वही कानून मौन रहते हैं. क्योंकि कानूनों को लागू करने वाली एजेंसियां सरकारों के दबाव में होती हैं. ऐसे में जनलोकपाल बिल जरूरी है ताकि सत्ता के मदांध सांड़ों को नाथा जा सका, काबू में किया जा सके, उन्हें उनके भ्रष्टाचार को लेकर कठघरे में खड़ा किया जा सके.
देश आजाद कितने बरसों में हुआ और कितने आंदोलन हुए, यह सबको पता है. सन 1857 से लेकर 1947 तक हजारों लाखों आंदोलन चले होंगे. कई दशक लग गए. पर अंततः आंदोलनों की सीरिज ने, जन जागरूकता ने, जन गोलबंदी ने अंग्रेजों पर इतना दबाव बनाया कि वे देश छोड़कर भागने को मजबूर हुए. इसी तरह अब अन्ना के नेतृत्व में जो जनगोलबंदी शुरू हुई है, और आगे भी यह विभिन्न लोगों, संगठनों, कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में जारी रहेगी, वह सत्ताधारियों को घुटने के बल बैठने को मजबूर करेगी ताकि वे जनहित में काम करें, करप्शन पर लगाम लगाएं, महंगाई को पूरी तरह नियंत्रित करें, प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसोट रोक सकें.
दिल्ली में जो जनसैलाब उमड़ा है, वह थमने का नाम नहीं लेगा, यह तय है. पूरा देश जब दिल्ली कूच करेगा तो दिल्ली वाले नेताओं की सांसें थम जाएंगी और वो मजबूर हो जाएंगे अन्ना की मांग मानने के लिए. अन्ना व्यवस्था में बदलाव कितना ला पाएंगे या नहीं ला पाएंगे, यह सवाल फिलहाल बेमानी है. हमें एक कदम आगे बढ़ना चाहिए ताकि निष्प्राण हो चुके कानूनों में जान फूंका जा सके. इस देश और लोकतंत्र को बचाने के लिए, बदलाव का सहभागी बनने के लिए हमको आपको सभी को अन्ना का साथ देना चाहिए ताकि हम अपनी विचारधाराओं से उपर उठकर सरकारों पर यह दबाव बना सकें कि वो काला धन देश में लाए, करप्शन करने वालों को सजा दे, उनकी संपत्ति जब्त करे और आम लोगों को राहत प्रदान करे.
अन्ना का आंदोलन अराजनीतिक हो चुकी कई पीढियों को राजनीतिक रूप से ट्रेंड करने का काम कर रहा है. जिन दिनों में बड़े नेताओं के बेटे ही राजनीति के योग्य माने जा रहे हों और उन्हें ही देश चलाने का अधिकार मिलता दिख रहा हो, उस दौर में हमारे आपके घरों के लोग राजनीति के प्रति प्रेरित हो रहे हैं, विरोध प्रदर्शन, राजनीतिक बहस-बतकही, लोकतंत्र से संबंधित विमर्श में शामिल हो रहे हों, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. राजनीति सिर्फ करप्ट लोगों की बपौती नहीं, राजनीति सिर्फ नेताओं के बेटे का पेशा नहीं बल्कि यह आम जनता को बेहतर जिंदगी दिलाने का माध्यम है, यह स्थापित होना चाहिए. संभव है अगले आम चुनाव में बड़ी संख्या में ऐसे नए चेहरे चुनकर संसद में पहुंचें जो हमारे आपके घरों के हों. इस बदलाव का असर भारतीय राजनीति पर जरूर पड़ेगा, कोई इससे इनकार नहीं कर सकता.
आखिर में कहना चाहूंगा कि यह पक्षधरता का वक्त है. बहस का नहीं. बहुत बहसें हो चुकी हैं. अब थोड़ा सी उर्जा लगाकर सड़क पर उतरें. और सरकारों, भ्रष्टाचारियों, नेताओं, अफसरों को अपनी ताकत दिखाएं. उन्हें औकात में रहने का संदेश दें. ध्यान रखिए, अगर हम चुप बैठे रहे तो देश बेचने वाले देश बेच डालेंगे और हम बहसों में ही उलझे रहेंगे. तय करो किस ओर हो, आदमी के साथ हो या कि आदमखोर हो… इन पंक्तियों में छिपे-छपे संदेश को महसूस करिए और अपना अपना पक्ष तय करिए. आपके दो पैर दो कदम भी अन्ना के आंदोलन में चल सकें तो यह बड़ी परिघटना होगी. इसलिए आप चाहें जिस शहर में हों, आप दिल्ली कूच करें, रामलीला मैदान पहुंचें. निर्णायक वक्त को आपके समर्थन की दरकार है.
यशवंत
एडिटर
भड़ास4मीडिया
bhadas4media@gmail.com
Comments on “जनांदोलनों के साथ हूं, इसलिए… मैं अन्ना हजारे हूं – बयान दर्ज करें”
पिछले कुछ दिनों से नेट और बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग रहने के कारण काफी देर से यह टिप्पणी पढ़ पाया. बहुत-बहुत साधुवाद एवं आभार यशवंत जी. अन्ना जी की नीयत या उनके सरोकारों पर सवाल उठाने की बात बिलकुल नहीं है. फेसबुक की की टिप्पणी में मेरा आशय अराजनीतिक आंदोलनों से था. साथ ही इस आंदोलन के शुरुआती दौर (अन्ना-एक) के समय से ही कुछ आशंकाएं-असहमतियां थी अपनी. अपने भड़ास के ही विचार सेक्शन पर अप्रैल माह में ही प्रकाशित अपने एक लेख http://vichar.bhadas4media.com/society/1171-2011-04-08-10-51-00.html में मैंने यह लिखा था कि आंदोलन को परवान चढाने के बाद कांग्रेस अन्ना की सभी मांगे मांग लेगी और यह उसके लिए सुविधाजनक भी रहेगा.
अनन्य-अशेष साधुवाद के पात्र होते हुए भी अन्ना जी के इस आंदोलन में खटकने वाली दो बातें थी जिसपर हमलोगों ने टीम अन्ना का ध्यान भी आकृष्ट कराया था. पहली यह कि बिना राजनीतिक दलों को साथ लिए हुए कोई आंदोलन सफल नहीं हो सकता और दूसरा अग्निवेश जैसे असामाजिक तत्व की प्रभावी उपस्थति से इस आंदोलन को नुकसान पहुचेगा. प्रसन्नता की बात है कि अन्ना साहब ने राजनीतिक दलों को भी साथ लिया और अन्ना-2 की समाप्ति तक अग्निवेश जैसों का असली चेहरा भी अंततः सामने आ ही गया….पुनः धन्यवाद यशवंत भाई.
kanurn ke raj me janlokpal bill jaise 1000-2000 kanun ban jane se vyavstha nahi badalegi. etihaskar Dharmapal ke anusar kanurn ke raj ki sthapana 1066 me normans ne briten me ki thi jisaka mul uddeshya 5% normans dwara 95% sampatti par kabja karna tha. matlab bhrashtachar karne ke liye kanun banaye gaye the. yadi 78% janata 20/ pratidin na kama pa rahi ho to jahir tour par 5% logon ne bharat ki 95% sampatti par kabja kar rakha hai. bharat ka loktantra usi kanun ke raj ki photocopy hai. aise me jabaki kanun ka paryay hi bhrashtachar ho tab kise bhi kanun se vyavastha badalegi es par mujhe sandeh hai. lekin vyavastha kaise badalegi main kuchch nahi kah sakta. shayad Aadilabad (A P) ke Ravindra Sharma (09390913153) kuchch bata sakenge. MERE VICHARON SE KISI KI BHAVANAON KO THES LAGI HO TO KSHAMA CHAHUNGA. SORRY.