यह सफाई हिन्दुस्तान की है या दैनिक जागरण की

Spread the love

14 सितम्बर को भड़ास4मीडिया पर मेरे द्वारा लिखित ‘हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण ने छोटी खबर को बनाया बड़ी’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। उस रिपोर्ट पर 26 सितम्बर को ‘मेरठ की शान’ नाम से कमेंट के रूप में किसी सज्जन की ओर से ‘सफाई’ पेश की गयी है। बहुत ही हैरत की बात है कि सफाई देने वाला शख्स या संस्थान अपनी पहचान छुपाकर सफाई पेश कर रहा है।

एक आम आदमी अगर सफाई पेश करता तो उसे पहचान छुपाने की जरूरत क्या थी? यह सफाई निश्चित रुप से ‘हिन्दुस्तान’ या ‘दैनिक जागरण’ की तरफ से आयी है। इसका सबूत भी लेखक महोदय ने खुद ही दे दिया है। लेखक लिखता है- ‘इमलियान प्रकरण पर जब हमने अपनी निष्पक्ष व गहराई से की गई कवरेज को अगली सुबह लोगों के सामने रखा तो शहर जागा और उसे इस बात का एहसास हो गया कि मामला वास्तव में दो सम्प्रदायों का न होकर सिर्फ ‘फुटबॉल’ का था।’

इस टिप्पणी को पढ़कर अक्ल का अंधा भी अंदाजा लगा सकता है कि कमेंट का लेखक आम पाठक नहीं, बल्कि कोई और है।

बहरहाल, बात यहीं खत्म नहीं होती। कमेंट में बाकायदा मेरठ के कुछ मुस्लिम बुद्धिजीवियों की राय को देकर यह भी कहा गया है कि ‘मुस्लिम विद्वानों के अनुसार इमलियान प्रकरण पर की गई तह तक की कवरेज व फिर उसे लोगों के समक्ष तहजीब के दायरे में पेश करना मीडिया का की कमाल है।’ यहां मुझे यह कहना है कि जब कमेंट लेखक की कोई पहचान ही नहीं है तो यह कैसे माना जाए कि मुस्लिम विद्वानों ने यही राय दी है? दूसरी बात यह है कि इसमें मेरठ के हिन्दू विद्वानों की राय लेने से परहेज क्यों किया गया?

सच बात तो यह है कि 13 सितम्बर को एक छोटी घटना को बड़ी बना कर पेश करने को मेरठ के आम लोगों ने ही नहीं, बल्कि कुछ पत्रकारों ने भी सही नहीं माना था। कमेंट में लेखक लिखता है कि ‘इमलियान प्रकरण पर जब इधर-उधर के कुछ लोगों ने प्रेस की निष्पक्षता पर सवाल उठाए तो समाज के संभ्रांत लोगों ने फौरन ही ऐसे लोगों की सोच को ‘तुच्छ मानसिकता’ का बताते हुए साफ कहा कि अगर ‘मीडिया’ न होता तो ‘सुबह’ ही न होती।’

पहली बात तो यह कि सवाल मीडिया की निष्पक्षता पर नहीं मीडिया के ‘अतिवाद’ पर उठाए गए थे, उसमें भी मेरठ के पूरे मीडिया पर नहीं बल्कि केवल ‘हिन्दुस्तान’ और ‘दैनिक जागरण’ पर उठाए गए थे। दूसरी बात यह कि अखबारों में खबर छपने से पहले तक इमलियान प्रकरण की हकीकत सबको मालूम हो चुकी थी। इसलिए यह कहना कि मीडिया न होता तो सुबह ही नहीं होती बेमानी है। मीडिया का अतिवाद कितना खतरनाक हो सकता है, इसकी मिसाल इमलियान प्रकरण ही है।

जब घटना वाले दिन मेरे एक दोस्त का फोन आया कि इमलियान में बहुत गड़बड़ हो गयी है तो मैंने इमलियान में रहने वाले अपने दोस्तों को फोन करके हालात जानें। उन्होंने बताया कि सब सही है ऐसी कोई बड़ी बात नहीं हुई है। यही बात मैंने अपने उस दोस्त को फोन पर बता दी कि सब ठीक है। सुबह सात बजे उसी दोस्त का फोन मेरे पास आया और उलाहना देते हुए कहने लगा तुम तो कह रहे थे कि बड़ी बात नहीं है, अखबार देखो कितनी ‘बड़ी’ खबर छपी है। इससे पता चलता है कि आम पाठक घटना कितनी बड़ी या छोटी है, इसका अंदाजा खबर के छोटी या बड़ी होने से लगाता है।

मेरठ से सलीम अख्तर सिद्दीक़ी की रिपोर्ट.

अपने मोबाइल पर भड़ास की खबरें पाएं. इसके लिए Telegram एप्प इंस्टाल कर यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia

Comments on “यह सफाई हिन्दुस्तान की है या दैनिक जागरण की

  • salimji aapne thick kaha hai.vastve main hindustan aur jagran ne khbar ko sanseni banane ke liye badi chappa hhalaki yeh galat tha-ashok j-ek chotta ssa paterkar,meerut

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *