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सूचना विभाग का हाथी, चोरी का संपादकीय और प्रकाशक निशंक

दीपककिसी सूबाई सरकार के लिए सूचना महकमा उसके आंख-कान की भूमिका में होता है, जो उसकी योजनाओं को, उसके क्रियाकलापों को जनता तक पहुंचाने के लिए मीडिया के बीच एक कड़ी की भूमिका अदा करता है। इसका एक काम और भी होता है सरकार के पक्ष-विपक्ष से तालुक रखने वाली अखबारी कतरनों को समेटते रहना, ताकि सत्तासीन खुली आंखों से देख सकें। पर आज के राजाओं का सत्ता के मद में चूर होने का ही तकाजा है कि वे अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते और जो ऐसा करते हैं, उनके कान मरोड़ने के लिए सूचना विभाग जैसे विशालकाय हाथी की कमान उनकी मुठठी में होती है।

दीपककिसी सूबाई सरकार के लिए सूचना महकमा उसके आंख-कान की भूमिका में होता है, जो उसकी योजनाओं को, उसके क्रियाकलापों को जनता तक पहुंचाने के लिए मीडिया के बीच एक कड़ी की भूमिका अदा करता है। इसका एक काम और भी होता है सरकार के पक्ष-विपक्ष से तालुक रखने वाली अखबारी कतरनों को समेटते रहना, ताकि सत्तासीन खुली आंखों से देख सकें। पर आज के राजाओं का सत्ता के मद में चूर होने का ही तकाजा है कि वे अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते और जो ऐसा करते हैं, उनके कान मरोड़ने के लिए सूचना विभाग जैसे विशालकाय हाथी की कमान उनकी मुठठी में होती है।

उत्तराखंड में इस विशालकाय हाथी के महावत की भूमिका में खुद मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हैं। ऐसे में जाहिर है वे जैसा चाहते हैं, यह हाथी वैसा ही उछल-कूद करता है। वह चाहे किसी अखबारी प्राणी को विज्ञापनों का प्रलोभन देकर उसकी बोलती बंद करने का हो या फिर विज्ञापन रूपी औजार से उसकी कमर तोड़ने का। पर इन दिनों निशंक का पीछा कुछ ऐसे सवाल कर रहे हैं, जो उनके पत्रकार से होते हुए एक दैनिक अखबार का मालिक/प्रकाशक होने से संबंध रखते हैं। कोई मुख्यमंत्री अपने अखबार के व्यावसायिक हितों से संबंध रखने वाली किसी फाइल पर विभागीय मंत्री होने की हैसियत से क्या कोई फैसला लेने का अधिकारी हो सकता है? यह कितना विधि के और कितना किसी मुख्यमंत्री की नैतिक संहिता के दायरे में है?

उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया नारायण दत्त तिवारी ने सूचना विभाग का मोह खुद तो नहीं पाला, लेकिन अपनी कैबिनेट की दो नंबरी नेता इन्दिरा हृदयेश को इसकी कमान सौंपी थी। तब श्रीमती हृदयेश ने इस दुधारु महकमे के बूते पत्रकारों को जो रंग दिखाया वह परिपाटी चेहरे बदलने के बाद भी खत्म नहीं हुई बल्कि आगे चलकर और तीव्रगामी हो गई। सरकारी विज्ञापनों पर जिंदा रहने वाले अखबारों को अपने हिसाब से हांकने के लिए उन्हें पुचकारना हो या फिर धमकाना, तो सूचना विभाग से बेहतर हथियार भला कौन हो सकता है। हृदयेश जब सूचना मंत्री हुआ करती थीं तो शायद ही, जब तक जनता ने चुनाव में उन्हें तड़ी पार नहीं कर दिया, उनके खिलाफ अखबारी लालों ने चूं तक किया हो, किसी अपवाद को छोड़कर।

यही सारा बहुरंगी खेल भाजपाई राज में भी चल पड़ा। भाजपा ने तो तीन साल के अपने राज में अब तक उत्तराखंड को दो ऐसे मुख्यमंत्री दिये जो सूचना विभाग का मोह नहीं छोड़ पाए। पहले भुवन चंद्र खंडूड़ी सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुए तो उन्होंने भी सूचना की बागडोर दूसरों को देने का साहस नहीं दिखाया और उनकी विदाई के बाद निशंकी राजा से तो उम्मीद पालना ही किसी रेगिस्तान में बांक देना जैसा था। मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का खबरी प्रेम जगजाहिर है और साहित्य के प्रति भी उनका एक विषेष किस्म का प्रेम है, यह उनके संस्कारों में तब से कूट-कूट कर गहरे तक भरा हुआ है, जबसे उन्होंने शिशु मंदिर की मास्टरी से होते हुए खबरों की मंडी में हाथ आजमाने का कौशल सीखना शुरू किया। करीब दो दशक से सीमांत वार्ता नाम से दैनिक अखबार निकाल रहे निशंक उसके मालिक व प्रकाशक तो हैं ही, कुछ समय पहले तक उसके संपादक भी रहे। सीमांत वार्ता जैसा कि उसके नाम से ही पता चला है पंक्ति के आखिरी सिरे पर खड़े आदमी की बात करना। लेकिन यह अखबार आज भी वहीं खड़ा है जहां से बीस साल पहले चला था। यह अखबार उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाले उन सैंकड़ों अखबारों की भीड़ का हिस्सा है, जिसकी शिनाख्त आरएनआई, डीएवीपी और सूचना महकमे की फाइलों से तो हो सकती है, पर जनता के बीच नहीं।

यही नहीं खबरों के मामले में भी वही दोयम दर्जे की हैसियत को ही यह अखबार ढो रहा है। यह जरूर है कि कुछ समय से यह अखबार ब्लैक एंड व्हाइट से कलर हो गया है। इसके साथ ही संभवतः निशंक देश में किसी राज्य के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जो एक दैनिक अखबार के मालिक/प्रकाशक होते हुए राज्य के उस महकमे के मुखिया भी हैं, जिसकी निरीक्षा के दायरे में उनका अखबार भी आता है। इस लिहाज से एक अदना सा सरकारी कारिंदा प्रकाशक की हैसियत रखने वाले राज्य के मुखिया को आंख दिखा सकता है? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या मुख्यमंत्री के लिए बनी किसी संहिता के लिहाज से यह विधि सम्मत हो सकता है? क्या विभागीय मुखिया होने नाते वे अपने ही स्वामित्व वाले अखबार के व्यावसाहियक हितों से संबंध रखने वाली किसी फाइल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं?

पिछले डेढ़ साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान निशंक का ये सवाल इसलिए भी पीछा कर रहे हैं कि उनके अखबार पर संपादकीय चोरी जैसे गंभीर आरोप अखबारों की सुर्खियां बनते रहे हैं। इसके साथ एक सवाल भी उठता रहा है कि क्या उनके नेतृत्व में उनके ही मातहत काम करने वाले सूचना विभाग के अफसर किसी मुख्यमंत्री के स्वामित्व वाले अखबार को निरीक्षा के दायरे में रखने की हिम्मत जुटाने की हैसियत रखते हैं। जैसा कि दूसरे अखबारों के मामले में सूचना विभाग नोटिसबाजी करता दिख जाता है। हालांकि यह भी उन्हीं के साथ होता है जो सरकार विरोधी खबरें छापने का दुस्साहस दिखा पाते हैं।

सीमांत वार्ता

सीमांत

लेखक दीपक आजाद हाल-फिलहाल तक दैनिक जागरण, देहरादून में कार्यरत थे. इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय हैं.

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0 Comments

  1. kumar singh

    January 16, 2011 at 7:34 am

    खंडूड़ी-कोश्यारी-उमेश अग्रवाल और सांरगी की निशंक के खिलाफ आखिरी चाल
    उत्तराखंड में नौकरशाह और निशंक के हितैषि ही डुबो रहे हैं निशंक की नैया
    ——————————————————————————————————–
    डॉ.रमेश पोखरियाल ‘निशंक’को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर अभी तक का सबसे सफल मुख्यमंत्री माना जा रहा है। यह हम नहीं कह रहे,बल्कि पिछले दिनों जब हमने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष गडकरी से उत्तराखंड में पार्टी में चल रही खींचतान के बारे में बातचीत की और हमने जानना चाहा की आखिर उत्तराखंड में यह सब कब तक चलता रहेगा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता ही लगातार पार्टी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहे है। एक तरफ खंडूड़ी-कोश्यारी खैमा लगातार निशंक को घेरने से नहीं चुका रहा तो दूसरी तरफ उत्तराखंड का नौकराशाह लगातार अपनी कार्यप्रणाली में आम लोगों की नज़रो में खुद का स्तर खोता जा रहा है। क्या ऐसे में पार्टी को आने वाले समय में भारी नुकसान नहीं होने वाला है?
    इस पर गडकरी का साफ कहना था की “इन तमान हालातों को देखते हुए ही हमने पिछले प्रवेक्षों की एक टीम देहरादून भेजी थी। जिन्होंने उत्तराखंड में पार्टी की तमाम कार्यप्रणाली पर पार्टी नेताओं से बातचीत की है। जिसकी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंफ दी गयी है। इसी रिपोर्ट को देखने के बाद साफ हैं कि उत्तराखंड में डॉ.निशंक अभी तक के सबसे सफल मुख्यमंत्री है। यही नहीं प्रदेश की जनता भी 2012 में निशंक को ही मुख्यमंत्री की तौर पर देखना चाहती है। इसलिए हमने यह निर्णय लिया हैं कि उत्तराखंड में 2012 के चुनाव डॉ.निशंक के नेतृत्व में ही लड़े जाएंगें। ये बात मैं पहले भी कह चुका हूं,तो इस बात की अब कोई गुंजाईश नहीं रह जाती हैं कि उत्तराखंड का राजनैतिक भविष्य क्या होगा। जो लोग उत्तराखंड में भविष्य की राजनीति पर सवाल उठा रहे है। हमने अपने माध्यम एवं पार्टी के माध्यम से उन्हें भी बता दिया हैं की,वह लोग राज्य सरकार के साथ काम रहें,और पार्टी गाईडलाईंश पर काम करें। अभी यह सभी जानते हैं कि हमारे पास समय कम हैं,हमें बचे हुए समय में राज्य के विकास और राज्य की जनता की सेवा में जुटना चाहिए”।
    उत्तराखंड के बारे में पार्टी नेतृत्व के बयानों को हम पहले भी प्रकाशित कर चुके है। लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड में इन दिनों जो कुछ हो रहा है। उसे देखते हुए तो यह कतयी नहीं लगता की,निशंक की राह बहुत आसान है। क्योंकि गडकरी के बयान के बावजूद दो दिन पहले देहरादून और ऋषिकेश में खंडूड़ी-कोश्यारी और उमेश अग्रवाल-सांरगी के नेतृत्व में एक विशेष बैठक की गयी जिसमें निशंक के खिलाफ काम कर रही एक बड़ी पत्रकार लोबी भी मौजूद थी। जो इन दिनों लगातार उत्तराखंड के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में निशंक के खिलाफ लेखनी का बेढ़ा उठाएं है। इस बैठक में निशंक सरकार में काम कर रहे कुछ वह चेहरे भी मौजूद थे। जो अंदरखाने निशंक के खिलाफ खड़े है। इस बैठक में सबसे बड़ा मुददा यह रहा की,किसी भी तरह 2012 चुनाव से पहले निशंक सरकार को उखाड़ फैंका जाए। ताकि निशंक को सफल होने से रोका जा सकें। इसके लिए किसी भी तरह से समा-दाम-दण्ड-भेद की रणनिति तय कर दी गयी है। जिसके लिए खंडूड़ी के चहेते उमेश अग्रवाल और सांरगी को विशेष तौर पर जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इस बैठक में मौजूद कई पत्राकारों को भी हर संभव निशंक के खिलाफ नयी रणनीति के तहत कलम चालाने के लिए जोर देने की बात की गयी। यही नहीं पिछले दिनों उत्तराखंड में आयी देवीयआपदा और कुंभ-शैफविंटर गैम में राज्य सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर किस तरह से पैसा खर्च किया गया,कितना पैसा खर्च किया गया। इस की जानकारी जुटाने के लिए सूचना के अधिकार के तहत जानकारी जुटायी जा रही है। साथ ही इस बैठक में मौजूद कई पत्राकर उत्तराखंड के उन गांवों का दौरा भी करेगें,जिन्हें पिछले दिनों आपदा ने अपनी आगोश में ले लिया था। इस टीम को यह जिम्मेदारी सौंपी गयी हैं कि यह जाकर देखें की,आपदा पीड़ीत लोगों को सरकार से अभी तक कितनी मदद मिली है। साथ ही सरकार द्वारा इन गांव को बंसाने में के लिए अभी तक कितने काम किए गए है। इसके बाद पूरी रिर्पोट तैयार कर केंद्रीय नेतृत्व को सौंपी जाएगी और फिर खंडूड़ी-कोश्यारी इस रिर्पोट के आधार पर केंद्रीय नेतृत्व से पूछेगें की क्या निशंक को इसके बाद भी मौका दिया जाना चाहिए।
    खंडूड़ी-कोश्यारी उत्तराखंड में रहकर ही अपनी पूरी रणनीति बनाते है। निशंक सरकार के कई छोटे-बड़े चेहरे और कुछ नौकरशाह भी इस रणनीति में मौजूद होते है। लेकिन यहां सवाल यह उठता हैं कि डॉ.निशंक सरकार का सूचनातंत्र को,इस बैठक की कोई भनक तक नहीं लगती है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं की निशंक सरकार अपने शुरुआती दौर से अभी तक पूर्ण रुप से अपने हर कार्यप्रणाली को जनता के साथ मिलकर अंतिम रुप देने में लगी हैं,डॉ.निशंक निश्चित तौर रात-दिन एक कर राज्य की विकास यात्रा के लिए दौड़ रहे है। उन्हें अपने आदरणीयों के माध्यम से कई बार नहीं बल्कि बार-बार चोट पहुंचाने की कोशिश निरंतर जारी रही है,और हैं भी। इसके बावजूद डॉ.निशंक अपने काम में अनवरत लगें है। उन्हें किसी प्रकार की चोट से कोई फर्क नहीं पढ़ता है। उनके जह्न में मिशन 2012 की जो भूमिका तय है,वह उसे हर हाल में जनता के विकास में लेकर जाना चाहते है। शायद यही वजह भी हैं कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी मानता हैं कि निशंक उत्तराखंड में अभी तक के सबसे सफल मुख्यमंत्री है।
    लेकिन इस सबसे सफल मुख्यमंत्री को यह भी ध्यान रखना होगा की,आज वह विकास की जिस सीढ़ी पर खड़े है। वहां उनके अपने ही उन्हें गिराने की कोशिश में लगें है। इसके कई उदाहरण आज निशंक सरकार के पास मौजूद है,और मुझे लगता हैं,यह खुद डॉ.निशंक भी अच्छी तरह जानते और समझते भी होगें। लेकिन वह इन के खिलाफ आखिर निर्णय क्यों नहीं ले रहे हैं,यह निश्चित तौर चिन्ता की बात है। क्योंकि सरकार में बैठे कुछ सलाकार,नौकरशाह और मुख्यमंत्री के ईर्द-गिर्द बैठे मुख्यमंत्री के हितैषी जिस तरह से डॉ.निशंक को गुमराह कर रहे है। यह यकीनी तौर पर सरकार ही नहीं अपितु डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक के लिए भी शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता है। निशंक सरकार में मौजूद नौकरशाह और सूचनातंत्र निरंतर मुख्यमंत्री के आदेशों के धज्जियां उड़ा रहा है। नौकरशाह के मनमानी के चलते आज उत्तराखंड प्रशासन में राज्य की जनता और जरुमंद लोगों की फाइलें मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बावजूद कई महीनों से धुल चाट रही हैं,राज्य का नौकरशाह और सूचनातंत्र ऐश कर रहा है। यही नहीं राज्य नौकरशाह और मुख्यमंत्री के नीजीतंत्र में कार्यरत कई लोगों मुख्यमंत्री के नाम पर लोगों को गुमराह भी कर रहे है। जिससे सीधे-सीधे बदनामी डॉ.निशंक की हो रही है। यही नहीं इसका फ्यादा सीधे तौर पर राज्य में बैठे निशंक का विरोधी खैमा उठा रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री निशंक यह सब देखते हुए भी क्यों चुप-चाप बैठे हैं,इस पर अब सवाल उठने खड़े हो गए है।
    काबिले तारीफ बात तो यह हैं कि डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक के साथ जुड़े कई लोग,बार-बार डॉ.निशंक को उनके नौकरशाह और सूचनातंत्र की इस कार्यप्रणाली की सूचना व्यक्तिगत स्तर पर दे चुके है। लेकिन उसके बावजूद इन लोगों को खिलाफ कोई कार्रवायी नहीं की गयी है। जबकि डॉ.निशंक बार-बार अपने स्तर पर नौकरशाह को निर्देश जारी कर चुके हैं की राज्य की जनता के कामों को जल्द से जल्द पूरा किया जाएं। राज्य के विकास के लिए चलायी जा रही योजनाओं को जल्द से जल्द पूरा किया जाएं। इस सबके बावजूद डॉ.निशंक सरकार के कुछ चेहर विशेष तौर पर सचिवालय तंत्र एक ही ढरे पर चल रहा है। यहां तक की राज्य सरकार में कार्यरत सचिव स्तर के अधिकारी अब आएं दिन यह बयान देने में लगें हैं कि,छोड़ो ना अब क्या काम करना,अब तो यह सरकार कुछ दिनों की मेहमान है,चुनाव आने वाले हैं,आचारसंहित लगने वाली हैं,बाकि के काम अगली सरकार में होगें। ऐसे हालत में किसे दोष दिया जाएं। यह बहुत ही गंभीर सावाल है?
    क्योंकि अभी भी यदि डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक यदि अपने नौकरशाह और सूचना तंत्र को दुरुषत नहीं करते हैं तो,निश्चित तौर उनका मिशन 2012 इनके चलते ही,भारी नुकसान का भोगी बन सकता है। क्योंकि अब आएं दिन जिस तरह से निशंक से जुडे उनके पत्रकार बंधुओं और निशंक के हितैषियों को विरोधियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। इसे दिखते हुए कहां जा सकता हैं कि यह निशंक को कमजोर करने की एक बड़ी चाल हो सकती हैं और अगर ऐसे मौके पर डॉ.निशंक अपने इन पत्रकारबंधुओं और हितैषियों के साथ खड़े नज़र नहीं आएं तो वह दिन दूर नहीं जब डॉ.निशंक खुद को सिर्फ अकेला खड़ा पाएगें और इन पत्रकारों और हितैषियों को संभालने वाला उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश में भी कोई दूसरा नहीं होगा।
    विद्रोही

  2. sandesh Kumar sharma

    January 13, 2011 at 4:54 pm

    Soochna bibhag main chandola wa RAjesh jaise chore jab tak rahenge tab tak aise hi hoga. Yahi nahi veer singh jaise aadmi ko inhone maar hi diya.

  3. hariom dwivedi

    November 25, 2010 at 9:16 am

    bhaiya bachke sab chor uhakke hai…………

  4. Rohit

    November 26, 2010 at 8:09 am

    koi baat nhi,,,, Electon hone do, 5 saal me satta ka jo nasha chadha h sb utar jaega…. public sab jaanti h…

    Nishank ki ki kaargujario se sb wakif h

  5. chandan

    November 26, 2010 at 9:54 am

    suchana vibhag kuch to sharam karo

  6. ramesh kumar

    November 26, 2010 at 10:06 am

    DAVP ki website par saikaro akhbaro ki list lagi hai jo doosare ki sampadkiy chura kar chapate hai

  7. vikas mamgain

    November 28, 2010 at 3:08 pm

    दीपक आजाद आपने बहुत साहस दिखाया मुख्यमंत्री के खिलाफ लिखकर लगे रहो

  8. DINESH

    January 24, 2011 at 11:18 am

    tusi great ho Aazad ji. Keep it up.

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